Sunday 30 June 2019

निर्पक्षता

निर्पक्षता
मैं न हिदू समर्थक न इस्लाम समर्थक.
मेरी नज़रें हर मुआमले में सत्य को खोजती हैं. 
तुम जानो कागद की लेखी, 
हम जाने आंखन की देखी. 
कबीर के इस दोहे को जो नहीं समझ सकता, 
वह व्यक्ति मेरे विचारों को कभी भी नहीं समझ सकता. 
मैं भारत के इतिहास में ऐसे ऐसे मुस्लिम शाशकों को देखता हूँ 
कि जहाँ न्याय उनके आगे हाथ जोड़े खड़ा रहता है, 
समाज के साथ अन्याय करने वाले घट तौलियों के कूल्हों से 
घटतौल के बराबर मांस निकलवा लेता था. 
बादशाह ख़ुद फ़कीरी जीवन जीते मगर जनता को ख़ुश रखते. 
मनुवादी इतिहास जहाँ शुद्र को सवर्ण के तालाब का पानी पीना भी 
जुर्म हुवा करता था, पूरी दुन्या को मालूम है. 
वह न्याय से आँख मिलाने के क़ाबिल नहीं.
दोसतो! पक्ष पात को छोड़कर अपने व्यक्तिव को संवारें. 
पक्ष पाती कभी भी न्यायाधीश नहीं हो सकता. 
इस धरती को निर्पक्षता की ज़रुरत है 
जोकि आप की आगामी पीढ़ी की सवच्छ कर सके.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 28 June 2019

ब्तेदाई भूल

इब्तेदाई भूल                 
क़ुरआन के पसे मंज़र में ही रसूल कि असली तस्वीर छिपी हुई है. 
मुहम्मद अल्लाह के मुंह से कैसी कैसी कच्ची बातें किया करते हैं, 
नतीजतन मक्का के लोग इस का मज़ाक़ बनाते हैं. 
इनको लोग तफ़रीहन ख़ातिर में लाते हैं. ताकि माहौल में मशग़ला बना रहे. 
इनकी क़यामती आयतें सुन सुन अकसर लोग मज़े लेते हैं. 
और ईमान लाते हैं, उन पर और उन के जिब्रील अलैहिस्सलाम पर. 
महफ़िल उखड़ती और एक ठहाके के साथ लोगों का ईमान भी उखड़ जाता है. 
इस तरह बेवक़ूफ़ बन जाने के बाद मुहम्मद कहते हैं, 
यह लोग ख़ुद बेवक़ूफ़ हैं, जिसका इन को इल्म नहीं. 
इस्लाम पर ईमान लाने का मतलब है 
एक अनदेखे और पुर फ़रेब आक़बत से ख़ुद को जोड़ लेना. 
अपनी मौजूदा दुन्या को तबाह कर लेना. 
बग़ैर सोचे समझे, जाने बूझे, परखे जोखे, किसी की बात में आकर 
अपनी और अपनी नस्लों की ज़िन्दगी का तमाम प्रोग्राम 
उसके हवाले कर देना ही बेवक़ूफ़ी है. 
ख़ुद मुहम्मद अपनी ज़िन्दगी को क़याम कभी न दे सके, 
और न अपनी नस्लों का कल्यान कर सके, 
यहाँ तक कि अपनी उम्मत को कभी चैन की साँस न दिला पाए . 
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 27 June 2019

धर्म के एजेंट्स


धर्म के एजेंट्स 

मेरे एक नए नए रिश्तेदार हुए, जो कट्टर मुस्लिम हैं. 
उन्हों ने जब मेरे बारे में जाना तो एक दिन मोलवियों का जत्था लिए हुए 
मेरे घर में घुस आ आए.
मैंने लिहाज़न उस वक़्त उन्हीं के अंदाज़ में उनके साथ सलाम दुआ 
और उनका स्वागत किया. 
उन्हों ने अपने साथियों का परिचय कराया. 
उनमे एक ख़ास थे D U के प्रोफ़ेसर ज़जाक़ अल्ला (बदला हुआ नाम) यह पहले पंडित रामाकांत मिश्र (बदला हुआ नाम) हुवा करते थे, इस्लाम के प्रभाव में आकर कलमा पढ़ लिया और मुसलमान हो गए . 
ज़जाक़ अल्ला ने मुझे इस्लाम की कई ख़ूबियाँ गिनाईं, 
हिन्दुओं में बहुतेरी ख़ामियां भी साथ साथ . 
पंडित जी ने कठ मुल्लों जैसी दाढ़ी रख ली थी 
और उन से ही कुछ सीखा था, 
कठमुल्लों जैसा अंदाज़ था उनका . 
मैं उनकी बातें को नाटकीय अंदाज़ में बड़ी तवज्जो के साथ सुनता रहा. 
दो मुसलमान उनके साथ थे . 
उन में से एक ने हदीस बयान की कि 
हज़रत मुहम्मद रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम 
(मुसलमान मुहम्मद का नाम इतनी उपाधियों के साथ ही लेता है 
या फिर उनको हुज़ूर कहता है .) 
के पास एक सहाबी आया और हुज़ूर (मुहम्मद) से एक काफ़िर के क़त्ल का वाक़िया बयां किया कि 
काफ़िर भागता रहा, मैं दौड़ाता रहा, वह थक कर गिर पड़ा तो हाथ जोड़ कर कलिमा पढ़ने लगा, मगर उसको मैंने छोड़ा नहीं . 
हुज़ूर ने पूछा मार दिया ? 
हाँ . 
हुज़ूर ने कहा कलिमा पढ़ लेने के बाद भी ? 
उसने कहा हाँ भाई हाँ, 
वह तो मजबूरी में कलिमा पढ़ने लगा, जान बचाने के लिए. 
हुज़ूर ने कहा कलिमा पढ़ लेने के बाद तुम्हें उसे मारना नहीं चाहिए था. 
हुज़ूर ने तीन बार इस बात को दोहराया.
मौलाना साबित करना चाहते थे कि इस्लाम में ज़्यादती नहीं है.
मौलाना की हदीस सुनने के बाद मैंने कहा 
आपने पूरी हदीस नहीं बयान की. 
जी ? वह चौंके .
जी मारने वाला हुज़ूर की हब्शी लौंडी ऐमन का लौंडा ओसामा था 
जो कि हुज़ूर को बेटे की तरह अज़ीज़ था. 
उसने हुज़ूर को बड़ी मायूसी के साथ जवाब दिया था कि 
इस्लाम क़ुबूल करने में मैंने जल्दबाज़ी की.
सुन कर मौलाना का ख़ून जम गया.

पंडित जी ने बहुत सी बकवासें कीं जिसे मैं लिहाज़ में सुनता रहा मगर जब उन्हों ने कहा कि वेद में भी हज़रत मुहम्मद रसूल्लिल्लाह सल्लल्लाह ए अलैहि वसल्लम के बारे में भविष्य वाणी की गई है. 
उन्हों ने महमद के नाम से कोई कबित सुनाई. 
तब तो मुझे ग़ुस्सा आ ही गया. 
मैंने पूछा किस वेद में ? 
बोले भाई ऋग वेद में. 
मैंने पूछा किस मंडल में कौन सी सूक्ति है ? 
तब तो पंडित जी के कान खड़े हुए . 
कहा यह तो देख कर ही बतला पाएँगे. 
हाँ बतलइए गा, वैसे वेद तो मेरे पास भी है , खैर मगर छोडो.
अस्ल में यह नक़ली मुसलमान राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लिए आहूतियां हैं जो मुसलमानों में घुसकर कई महत्त्व पूर्ण काम करते हैं . उसी में एक यह भी है कि इनको मज़बी खंदकों में गिराने का काम करते रहें.
मुस्लिम आलिम भी इनकी साजिश और सहायता में मग्न रहते हैं. 
धर्म और मज़हब का यही किरदार है.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 26 June 2019

मुहम्मद सब से आगे

मुहम्मद सब से आगे     
     
मनु महाराज अपनी स्मृति में लिखते हैं कि शूद्रों का साया भी अगर किसी बरहमन पर पड़ जाए तो वह अपित्र हो जाता है और उसको स्नान करना चाहिए, 
इस क़िस्म की बहुत सी बाते दर्शाती हैं कि 
जैसे इनको जीने का हक़ बरहमन की सेवा के बदले ही है - - - 
इसी तरह यहूदियों को उनके ख़ुदा यहवह ने नबी मूसा को ख़्वाब दिखलाया कि 
तुम दुन्या की बरतर क़ौम हो और एक दिन आएगा जब 
तुम्हारी क़ौम दुन्या के हर क़ौम पर शाशन करेगी, 
कोशिश जारी रहे - - - 
मेरा अनुमान है कि बरहमन जो बुनयादी तौर पर आर्यन हैं, 
इन के पूर्वज मनु मूसा वंशज एक ही ख़ून  हैं.
 यहूदी और ब्राह्मणों का ज़ेहनी मीलान बहुत कुछ यकसाँ है. 
दोनों के मूल पुरुष इब्राहीम, अब्राहाम, अब्राहम, बराहम, और ब्रह्मा एक ही लगते हैं. 
अब यह बात अलग है कि अतिशियोक्ति पसंद पंडितों ने ब्रह्मा का रूप तिल का ताड़ नहीं बल्कि तिल का पहाड़ बना दिया. 
मुहम्मद मूसा और मनु से भी चार क़दम आगे हैं, 
इन दोनों ने विदेशियों से नफ़रत सिखलाया और 
यह जनाब कफिर और मुशरिक़ बना कर अपने ही भाई बन्धुओं को अछूत बना रहे है.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

दोहरे स्टार


 दोहरे स्तर 
गाय हमारी माता है, 
भैंस हमारी ताई माँ है, 
भेड़ बकरियां हमारी चाचियाँ हैं. 
इन सबों का हम दूध पीते हैं, मगर सब से ज्यादा हमें प्यारी है गऊ माता.
क्योंकि वह हमें दूध मुफ़्त देती है. 
वह रात भर उसारे में आराम करती है, 
सुबह जितना भी हो सकता है दूध देती है, 
फिर हम इसे खूंटे से आज़ाद कर देते हैं, 
वह दिन भर कुत्तों के साथ कूड़ा घर में अपना भोजन ख़ुद अर्जित कर लेती है और शाम को अपने घर को याद करके वापस आ जाती है. 
इसके खो जाने का भी कोई ख़तरा नहीं,  गऊ माता को कौन चुराएगा ? 
दस बारह साल मुफ़्त में हम दूध खाते और पीते हैं, बूढ़ी हुई, कोई चिंता नहीं, 
दूध पूत से छुट्टी पाइस भूखी खड़ी है गय्या, 
इसके दुःख को कोई न देखे, देखे कदा क़सय्या

न न ऐसी कोई अवस्था नहीं आती क़साई की मजाल नहीं कि मुंह भी दिखलाए. 
उसका सट्टा बट्टा तो गऊ शाला से डायरेक्ट है. 
कौड़ियों के भाव ले जाता है महाराज से. धेलों के भाव बिकता है गोमांस. 
क्या भैंस ताई को कूड़े घर के लिए छुट्टा किया जा सकता है ? 
नहीं भाई एक पल में ग़ायब हो जाएगी . 
200 रुपया किलो उसका गोश्त बिकता है. 
150 किलो अवसत भैस का गोश्त 30000- हज़ार का हुवा, 
खाल तो नाप कर बिकती है, वह भी D C मीटर में. 
हड्डी तो बहुतै क़ीमती होत है. इससे जेलिटिन जो बनत है,  
स्वादिष्ट इतना होता है कि खाद्य पदार्थ में सब से महंगा. 
इस से बढ़ कर चाची भेड़ बकार्यों के रुतबे हैं. 
400-500- किलो इनका मांस है और मंहगी खाल. 
बस बेचारी गऊ माता की कोई कीमत नहीं. न जीते जी न मरने के बाद. 
चोरी छीपे से उपभोगताओं तक पहुंचे तो बड़ी बात है, वरना इनकी कब्रें बनवाइए.  

तस्वीर का एक दूसरा पहलू है, 
देखें जाकर बड़ी बड़ी विश्व स्टार की डेरी फ़ारमो में, भैसों से बड़ी गाएँ, 
अधेड़ हुईं, दूध अपनी ख़ूराक की क़ीमत से कम दिया तो गईं स्लाटर हॉउस में, 
कोई भखुवा गऊ रक्षक वहां नहीं रोकेगा, हिम्मत ही नहीं. 
वहां गोमांस 1000-रू किलो से अधिक हो जाता है, 
उसे विदेशी खाते हैं जिसे हम गऊ रक्षक परोसते हैं. 
फिर इन्डिया में ग़रीबों के बीच यही स्लाटर हाउस क़त्ल खाने क्यूँ बन जाते हैं ? 
बाबा TV चैनलों पे फेरी लगाता हुवा आवाज़ लगाता है, 
"पवित्र गो मूत्र का सेवन करिए, इसे खाइए, पीजिए, इस से नहाइए, धोइए, फिनाइल की जगह इससे पोछा लगाइए और गऊ माता को क़त्ल ख़ाने में जाने से बचाइए." 
लाखों किसानों कि आधी रोज़ी चौपट हो गई, 
गोवंश से तौबा कर रहे हैं, 
चमड़ा मजदूर  भुखमरी के कगार पर हैं, 
स्लाटर हाउसेस का व्यापार चमक रहा है. 
पप्पू ठीक ही कहता है कि 
"यह पूंजी पतियों की सरकार है, गरीबों की दुश्मन." 
ग़रीबों में तो जज़्बात की तिजारत हो रही है, 
भावनाओं का उत्पाद, 
गाय हमारी माता है,
मुस्लिम इसको खाता है.
इसी में इन की रोज़ी रोटी सुरक्षित है.  
देखिए हिन्दुस्तान इन जालसाज़ सियासत दानों से कब आज़ाद होता है,    
 ***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 24 June 2019

मुहम्मद की दीवानगी

मुहम्मद की दीवानगी 
      
कितना ज़ालिम तबा था अल्लाह का वह ख़ुद साख़्ता रसूल? 
बड़े शर्म की बात है कि आज हम उसकी उम्मत बने बैठे हैं. 
मुहम्मद कालीन अरब इतिहास में ऐसा दौर भी था कि जीना दूभर हो गया था. सोचें कि एक शख़्स रोज़ी की तलाश में घर से निकला है, 
उसके छोटे छोटे बाल बच्चे और बूढे माँ बाप उसके हाथ में लटकती रिज्क़ की पोटली का इन्तेज़ार कर रहे हैं और इसको मुहम्मद के दीवाने जहाँ पाते हैं क़त्ल कर देते हैं? 
एक आम और ग़ैर जानिबदार की ज़िंदगी किस क़दर मुहाल कर दिया था 
मुहम्मद की दीवानगी ने. 
बेशर्म और ज़मीर फ़रोश ओलिमा उल्टी कलमें घिस घिस कर उस मुजरिमे-इंसानियत को मुह्सिने-इंसानियत बनाए हुए हैं. 
यह क़ुरआन उसके बेरहमाना कारग़ुज़ारियों का गवाह है और शैतान ओलिमा इसे मुसलमानों को उल्टा पढ़ा रहे हैं. 
हो सकता है कुछ धर्म इंसानों को आपस में प्यार मुहब्बत से रहना सिखलाते हों 
मगर उसमें इसलाम हरगिज़ नहीं हो सकता. 
मुहम्मद तो उन लोगों को भी क़त्ल कर देने का हुक्म देते हैं 
जो अपने मुसलमान और काफ़िर दोनों रिश्तेदारों को निभाना चाहे. 
आज तमाम दुन्या के हर मुल्क और हर क़ौम, यहाँ तक कि 
क़ुरआनी मुसलमान भी इस्लामी दहशत गर्दी से परेशान हैं. 
इंसानियत की तालीम से नाबलद, क़ुरआनी तालीम से लबरेज़ 
अलक़ायदा और तालिबानी तंज़ीमों के नव जवान अल्लाह की राह में 
तमाम इंसानी क़द्रों पैरों तले रौंद सकते हैं, 
इर्तेकई जीनों को तह ओ बाला कर सकते हैं. 
सदियों से फली फूली तहज़ीब को कुचल सकते हैं. 
हजारों सालों की काविशों से इन्सान ने जो तरक़्क़ी की मीनार चुनी है, 
उसे वोह पल झपकते मिस्मार कर सकते हैं. 
इनके लिए इस ज़मीन पर खोने के लिए कुछ भी नहीं है एक नाक़िस सर के सिवा, जिसके बदले में ऊपर उज़रे-अज़ीम है. 
इनके लिए यहाँ पाने के लिए भी कुछ नहीं है 
सिवाए इस के की हर सर इनके नाक़िस इसलाम को क़ुबूल करे  
और इनके अल्लाह और उसके रसूल के आगे सजदे में नमाज़ के वास्ते झुक जाए. इसके एवज़ में भी इनको ऊपर जन्नतुल फ़िरदौस धरी हुई है, 
पुर अमन चमन में तिनके तिनके से सिरजे हुए आशियाने को 
इन का तूफ़ान पल भर में पामाल कर देता है.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 23 June 2019

मानसिक दासता


 अपूज्य 

आस्था, अकीदा, इबादत और पूजा, 
पहले वह इंसानी अमल हैं जो इंसान के ठोस बुन्याद को कमज़ोर करते हैं. 
हमने किसी अनदेखी ताक़त को मान्यता दे कर ख़ुद को कमज़ोर साबित किया और उसके सामने हथियार डाल दिए, 
फिर उसके बाद जंग लड़ने चले. 
क़ुदरत नुमा अगर कोई ताक़त है तो वह जीव से आत्म समर्पण नहीं चाहती, 
जीव का मुक़ाबला चाहती है. 
बिलकुल सही है आज का कथन 
"जो डर गया वह मर गया." 
सोलह आना सही है. 
अंधे विश्वाश को नमन करना इंसान की सब से बड़ी  कमज़ोरी है. 
नमन तो पूरी तरह से विश्वशनीयता को शोभा देता है, 
जैसे कि माँ बाप ग़ुरु और अपने बुज़ुर्ग. 
जब आप अपने लक्ष की ओर क़दम बढाएं तो ध्यान रखे कि 
आपकी मेहनत और यत्न ही आपके काम आएगा, 
आप से ज्यादा कोई जुझारू होगा तो लक्ष वह ले जाएगा. 
इस हक़ीक़त का सामना भी  आप बहादुरी के साथ  करिए.
कोई ताक़त पूज्य नहीं है, 
सराहनीय हो सकती है, प्रीय हो सकती है, पूज्य नहीं. 
पूजा इंसान को शारीरिक रूप में ही नहीं, बौद्धिक रूप को भी नुक़सान पहुंचती है. 
पूजा में आप जो भी कामना करते हैं, 
तो दूसरों के हक़ को मारने की भावना आपकी पूजा में छिपी है. 
धन प्राप्ति की पूजा समाज को कंगाल बनाने की लालसा है, 
इस वास्तविकता को समझे.
अपूज्य का वातावरण ही इंसान को भार मुक्त कर सकता है.
***
मानसिक दासता 
*अपनी मानसिक दासता का एलान कुछ लोग बड़े गर्व के साथ करते हैं कि - - -
मैं हनुमान भक्त हूँ अथवा 
मैं ख्वाजा अजमेरी का मुरीद हूँ.
इस तरह स्वाधीनता एवं स्वचिनतन, आधीन और ग़ुलाम  हो जाती है.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 21 June 2019

राह ए पैग़मबरी

राह ए पैग़मबरी   
             
मुहम्मद के ज़ेहन में .पैग़मबर बनने का ख़याल कैसे आया 
और फिर ये ख़याल जूनून में कैसे बदला??
मुहम्मद एक औसत दर्जे के समाजी फ़र्द थे. तालीम याफ़्ता न सही, 
मगर साहिबे फ़िक्र थे, फ़िक्र मुन्फ़ी सही.  
ये बात अलग है कि इंसान की फ़िक्र समाज के लिए तामीरी हो या तख़रीबी. 
मुहम्मद की कोई ख़ूबी अगर कही जाए तो उनके अन्दर दौलत से मिलने वाली ऐश व आराम की कोई अहेमयत नहीं थी. 
क़ेनाअत पसँद थे, लेन देन के मुआमले में व ईमान दार भी थे.
मुहम्मद ने ज़रीआ मुआश के लिए मक्के वालों की बकरियाँ चराईं. 
सब से ज़्यादः आसान काम है, बकरियाँ चराना, 
वह इसी दौरान ज़ेहनी उथल पुथल में पैग़मबरी का ख़ाका बनाते रहे.
 एक वाक़िया हुवा कि ख़ाना ए काबा की दीवार ढह गई 
जिसमें संग ए असवद नस्ब था जोकि आकाश से गिरी हुई उल्का पिंड थी. 
दीवार की तामीर अज़ सरे नव हुई, 
मक्का के क़बीलों में इस बात का झगड़ा शुरू हुआ कि किस क़बीले का सरदार असवद को दीवार में नस्ब करेगा? 
तय ये हुवा कि जो शख़्स दूसरे दिन सुब्ह सब से पहले काबे में दाख़िल होगा 
उसकी बात मानी जायगी. 
अगले दिन सुबह सब से पहले मुहम्मद हरम में दाख़िल हुए.
(ये बात अलग है कि वह सहवन वहाँ पहुँचे या क़सदन, 
मगर क़यास कहता है कि वह रात को सोए ही नहीं कि जल्दी उठाना है) 
बहर हाल दिन चढ़ा तमाम क़बीले के लोग इकठ्ठा हुए, 
मुहम्मद की बात और तजवीज़ सुनने के लिए.
मुहम्मद ने एक चादर मंगाई और असवद को उस पर रख दिया, 
फिर हर क़बीले के सरदारों को बुलाया, 
सबसे कहा कि चादर का किनारा पकड़ कर  दीवार तक ले चलो. 
चादर दीवार के पास पहुच गई तो ख़ुद असवद को उठा कर दीवार में नस्ब कर दिया. सादा लोह अवाम ने वाहवाही की, 
जब कि उनका मुतालबा बना ही रहा कि पत्थर कौन नस्ब करे. 
मुहम्मद को चाहिए था कि सरदारों में जो सबसे ज़्यादः बुज़ुर्ग होता 
उससे पत्थर नस्ब करने को कहते.
 मुहम्मद अन्दर से फूले न समाए कि वह अपनी होशियारी से क़बीलो में बरतर हो गए. उसी दिन उनमें ये बात पक्की हो गई कि पैग़मबरी का दावा किया जा सकता है.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 20 June 2019

ख़्वाब ए रिसालत

ख़्वाब ए रिसालत 
              
तारीख़ अरब के मुताबिक़ बाबा ए क़ौम  इब्राहीम के दो बेटे हुए  
इस्माईल और इसहाक़. 
छोटे इसहाक़ की औलादें बनी इस्राईल कहलाईं जिन्हें यहूदी भी कहा जाता है. 
इन में नामी गिरामी लोग पैदा हुए, मसलन यूफुफ़, मूसा, दाऊद, सुलेमान और ईसा वगैरा और पहली तारीख़ी किताब मूसा ने शुरू की तो उनके पैरू कारों ने साढ़े चार सौ सालों तक इसको मुरत्तब करने का सिलसिला क़ायम रखा. 
बड़े बेटे लौंडी ज़ादे हाजरा (हैगर) के पुत्र इस्माइल की औलादें इस से महरूम रहीं जिनमें मुहम्मद भी आते हैं. 
इस्माइलियों में हमेशा ये क़लक़ रहता कि काश हमारे यहाँ भी कोई पैग़मबर होता कि हम उसकी पैरवी करते. 
इन ख़यती चर्चा मुहम्मद के दिल में गाँठ की तरह बन्ध गई 
कि क़ौम में पैग़मरी की जगह ख़ाली है.
मदीने की एक उम्र दराज़ बेवा मालदार ख़ातून ख़दीजा ने मुहम्मद को अपने साथ निकाह की पेश काश की. वह फ़ौरन राज़ी हो गए 
कि बकरियों की चरवाही से छुट्टी मिली और आराम के साथ रोटी का ज़रीया मिला. 
इस राहत के बाद वह रोटियाँ बांध कर ग़ार ए हिरा में जाते 
और अल्लाह का रसूल बन्ने का ख़ाका तैयार करते.
इस दौरान उनको जिंसी तकाजों का सामान भी मिल गया था 
और छह अदद बच्चे भी हो गए, 
साथ में ग़ार ए हिरा में आराम और प्लानिग का मौक़ा भी मिलता कि रिसालत की शुरूवात कब की जाए, कैसे की जाए, 
आग़ाज़, हंगाम और अंजाम की कशमकश में आख़िर कार एक रोज़ फैसला ले ही लिया कि गोली मारो सदाक़त, शराफ़त और दीगर इंसानी क़दरों को. 
ख़ारजी तौर पर समाज में वह अपना मुक़ाम जितना बना चुके हैं, 
वही काफ़ी है.
एक दिन उन्हों ने अपने इरादे को अमली जामा पहनाने का फैसला कर ही डाला. अपने क़बीले क़ुरैश को एक मैदान में इकठ्ठा किया, 
भूमिका बनाते हुए उन्हों ने अपने बारे में लोगों की राय तलब की, 
लोगों ने कहा तुम औसत दर्जे के इंसान हो कोई बुराई नज़र नहीं आती, 
सच्चे, ईमान दार, अमानत दार और साबिर तबा शख़्स हो. 
मुहम्मद  ने पूछा अगर मैं कहूँ कि इस पहाड़ी के पीछे एक फ़ौज आ चुकी है 
तो यक़ीन कर लोगे? 
लोगों ने कहा कर सकते हैं इसके बाद मुहम्मद ने कहा - - -
मुझे अल्लाह ने अपना रसूल चुना है.
ये सुन कर क़बीला भड़क उट्ठा. 
कहा तुम में कोई ऐसे आसार, ऐसी ख़ूबी और अज़मत नहीं कि 
तुम जैसे जाहिल गँवार को अल्लाह पयंबरी के लिए चुनता फिरे.
मुहम्मद के चाचा अबू लहेब बोले,
 "माटी मिले, तूने इस लिए हम लोगों को यहाँ बुलाया था? 
सब के सब मुँह फेर कर चले गए. 

मुहम्मद की इस हरकत और जिसारत से क़ुरैशियों को बहुत तकलीफ़ पहुंची 
मगर मुहम्मद मैदान में कूद पड़े तो पीछे मुड़ कर न देखा.
बाद में वह क़ुरैशियों के बा असर लोगों से मिलते रहे और समझाते रहे 
कि अगर तुमने मुझे पैग़मबर मान लिया और मैं कामयाब हो गया तो तुम बाक़ी क़बीलों में बरतर होगे, 
मक्का अरब में बरतर होगा और अरब ज़माने में.
और अगर नाकाम हुवा तो ख़तरा सिर्फ़ मेरी जान को होगा. 
इस कामयाबी के बाद, बदहाल मक्कियों को हमेशा हमेश के लिए रोटी सोज़ी का सहारा काबा मिल जाएगा.
मगर क़ुरैश अपने माबूदों (पूज्य) को तर्क करके मुहम्मद को अपना माबूद बनाए जाने को तैयार न हुए.
इस हक़ीक़त के बाद क़ुरआन की आयातों को परखें.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 19 June 2019

सीता कथा -- धर्मांध आस्थाएँ

सीता कथा 

भारत में ग़ुलाम  वंशज के दूसरे बादशाह अल्तुतमिश  के वक्त में बाल्मीकि कानपुर की वन्धाना तहसील में  बिठूर स्थित गाँव में रहते थे. 
उन्होंने सीता नाम की तलाक़ शुदा औरत को पनाह दी थी. 
बिठूर जाकर इस विषय में बहुत सी जानकारियाँ और निशानियाँ आज भी जन जन की ज़ुबान पर है. 
बाल्मीकि रामायण संस्कृत में, सीता पर लिखी एक रोचक कथा मात्र है. 
तुलसी दास ने हिंदी में अनुवाद कर के इस में बड़ा हेर फेर किया है. 
रचना को दिलचस्प कर दिया है. 
इसी सीता राम की कहानी को मनुवाद ने भारत का धर्म घोषित कर दिया है.
***
 धर्मांध आस्थाएँ 

मोक्ष की तलाश में गए जन समूह को पहाड़ों की प्राकृति ने लील लिया, 
आस्था कहती है उनको मोक्ष मिल गया, वह सीधे स्वर्ग वासी हो गए, 
सरकार और मीडिया इसे त्रासदी क्यों मानते है ? 
समाज में भगवन का दोहरा चरित्र क्यों है ? 
यह मामला धर्म के धंधे बाजों की ठग विद्या है, 
इनकी दूकानों का पूरे भारत में एक जाल है. 
इन लोगों ने हमेशा जगह जगह पर अपने छोटे बड़े केंद्र स्थापित कर रखे हैं 
और भोली भाली नादान जनता इनका आसान शिकार है. 
सब कुछ गँवा चुकने के बाद भी जनता के मुंह से कल्पित भगवानों 
के विरोध में शब्द नहीं फूटते हैं. 
मठाधिकारी आड़म्बरों के उपाय सुझाते फिर रहे हैं और अपने अपने गद्दियों के लिए लड़ रहे होते हैं,
जनता सब कुछ देख कर भी अंधी बनी रहती है. 
मुस्लिम वहदानियत और निरंकार के हवाई बुत को लब बयक कहने के लिए मक्का जाते हैं और शैतान के बुत को कन्कडियाँ मार कर वापस आते हैं. 
बरसों से यह समाज अरबियों की सहायता हज के नाम पर करता चला आ रहा है. अक्सर दुर्घटनाओं का शिकार होता है . 
कब यह मानव जाति जागेगी ? 
कब तक समाज का सर्व नाश होता रहेगा . 
अलौकिक विशवास को आस्था का नाम दे दिया गया है 
और गैर फ़ितरी यक़ीन को अक़ीदत का मुक़ाम हासिल है. 
बनी नॊअ इन्सान के हक में दोनों बातें तब असली सूरत ले सकती हैं 
जब मुसलामानों को केदार नाथ और हिन्दुओं को हज यात्रा पर जबरन भेज जाए. 
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 18 June 2019

ब्रहमांड से बाबा बर्फानी तक

ब्रहमांड से बाबा बर्फानी तक 

आज से पचास पहले हिदी की नई नई शब्दावली गढ़ी जा रही थी, 
रेलवे स्टेशन  को भकभक अड्डा और रेल पटरी को लौह पद गामिनी किया गया था, तो अंड़े का शुद्धि करण करते हुए इसे शाकाहार बनाया गया 
और नाम दिया गया, पखेरू गंड फल. 
कुछ ऐसा ही नाम ब्रहमांड का मालूम पड़ता है. 
ब्रह्मा का अंडा. 
ज़ाहिर है ब्रह्म देव नर ही थे योनि विहीन. 
बच्चा देने से रहे, अंडा वैसे ही दिया होगा जैसे पखेरू, 
अर्थात यह ब्रहमांड ब्रह्मा गंड फल हुवा.
हमें वैदिक हिंदुत्व भी बतलाता है कि समस्त मानव प्राणी 
ब्रह्मा के शरीर से निर्मित हुए, सर, बाज़ू , पेट और पैरों निर्मित चार जातियां हुईं. 
मुझे अकसर कहा जाता है कि मैं हिन्दू धर्म की गहराइयों में जा कर देखूं 
कि इस में कितना दम है ?
इस का आभास मुझे ब्रहमांड से शरू होता है, 
मैं कर बध्य होकर पांडित्य के सामने बैठता हूँ, 
उनकी गायकी और उबाऊ कथा के आगे.
मेरे हर कौतूहल के जवाब में इन का सन्दर्भ और संगर्भ आ जाता है, 
सुनते सुनते रत बीत जाती है, 
सन्दर्भ और संगर्भ का सिलसिला ख़त्म होने का नाम नहीं लेता. 
मुझे ख़ामोश रह कर इन सनातनी दास्तानों को सुननी पड़ती है, 
ब्रह्मा शरीर से निर्मित, सुवर पुत्र, या मेढकी से जन्मित अथवा जल से निकसित  
विष्णु द्वारा संचालित सृष्टि की गाथा से लेकर, महेश यानी शिव जी के तांडव तक जाने में हमारी ज़िन्दगी 2 अरब 50 करोर वर्ष समाप्त हो जाते हैं, 
मै बोझिल हो कर पूछता हूँ , पंडित जी महाराज ! 
आप की गाथा ख़त्म हुई? 
और वह कहते हैं , 
वत्स अभी तो वैदिक गर्भ का एक काल ख़त्म हुवा है, 
अभी तो असंख्य काल शेष हैं, आस्था के साथ सुन.

ब्रह्मा की चार सरों वाली तस्वीर मुस्लिम मोलवी छाप जैसी है. 
मेरे अनुमान के हिसाब से यह तस्वीर मुस्लिम, ईसाई और यहूदियों में 
मुश्तरका मूल पुरुष अब्राम जो अब्राहम हुए फिर इब्राहीम हुए, 
उसके बाद बराहम हुए, आर्यों ने उनको ब्रह्मा बना दिया.  
अभी पिछले दिनों इस बात पुष्टि हो गई है कि यहूदियों और ब्रह्मनो का 
DNA टेस्ट से मालूम हुवा है कि दोनों में 98% यकसानियत है. 
अब्राहम साढ़े तीन हज़ार साल पहले इराक में पैदा हुआ जिसका वहाँ के मानव इतिहास में पहला वरदान है. 
इनको बाबा ए अक़वाम भी कहा जाता है. 
इनकी प्रसिद्धि इनके पड़ पोते युसूफ़ की वजह से और हुई 
जो मिस्र के फ़िरअना का मंत्री था, बाद में ऐतिहासिक आइकान बना.
शिव जी जो अभी चंद सौ साल पहले उत्तर भारत में हुए 
जिनको कश्मीरी मुसलमान बर्फानी बाबा कहते हैं, 
अभी कुछ साल पहले उनकी लाठी किसी मुस्लिम ने तलाश करके 
नई दुन्या को दिया जिसे छड़ी मुबारक नाम दिया. 
यही बाबा बर्फ़ानी आस्था वानो के ज्ञान का श्रोत्र हैं जो ब्रह्मा के साथ मिल कर 2500000000 वर्षों का कार्य काल पूरा करते हैं.
अब तो मुसलमानों को ही नहीं 
हिदुओं को भी कहने को मजबूर होना पड़ रहा है कि 
जागो हिन्दू जागो !!
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 17 June 2019

मुहम्मद नाक़बत अंदेश

मुहम्मद नाक़बत अंदेश   
    
मुहम्मद जानते थे कि अल्लाह नाम की कोई मख़लूक़ नहीं है. 
उसका वजूद क़यासों में मंडला रहा है,  
इस लिए वह ख़ुद को अल्लाह बना कर कयासों में समा गए. 
इस हक़ीक़त को हर साहिब ए होश जानता है 
और हर बद ज़ाद आलिम भी. 
मगर माटी के माधव अवाम को हमेशा झूट और मक्र में ही सच्चाई नज़र आती है. 
वक़्त मौजूँ हो तो कोई भी होशियार मुहम्मद, 
अल्लाह का मुखौटा पहन कर भेड़ों की भीड़ में खड़ा हो सकता है 
और वह कम अक़लों का ख़ुदा बन सकता है. 
दो चार नस्लों के बाद प्रोपेगंडा से वह मुस्तनद भी हो जाता है. 
ये हमारी पूरब की दुन्या की ख़ासियत  है.
मुहम्मद ने अल्लाह का रसूल बन कर कुछ ऐसा ही खेल खेला 
जिस से सारी दुन्या मुतास्सिर है. 
मुहम्मद इन्तेहाई दर्जा ख़ुद परस्त और ख़ुद ग़रज़ इंसान थे. 
वह हिकमते-अमली में चाक चौबंद, 
पहले मूर्ति पूजकों को निशाना बनाया, 
अहले किताब (ईसाई और यहूदी) को भाई बंद बना रखा, 
कुछ ताक़त मिलने के बाद मुल्हिदों और दहरियों ( कुछ न मानने वाले, नास्तिक ) को निशाना बनाया और मज़बूत हुए, 
तो उसके बाद अहले किताब को भी छेड़ दिया कि इनकी किताबें असली नहीं हैं, 
इन्हों ने फ़र्ज़ी गढ़ ली हैं, असली तो अल्लाह ने वापस ले ली हैं. 
हालाँक़ि अहले किताब को छेड़ने का मज़ा इस्लाम ने भरपूर चखा, 
और चखते जा रहे हैं मगर ख़ुद परस्त और ख़ुद ग़रज़ मुहम्मद को इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. वह अवाम को अपने सजदे में झुका हुवा देखना चाहते थे, 
इसके अलावा कुछ भी नहीं.
ईमान लाने वालों में एक तबका मुन्किरों का पैदा हुआ 
जिसने इस्लाम को अपना कर फिर तर्क कर दिया, 
जो मुहम्मदी ख़ुदा को क़रीब से देखा तो इसे झूट क़रार दिया, 
उनको ग़ालिब मुहम्मद ने क़त्ल कर देने का हुक्म जरी कर दिया, 
इससे बा होश लोगों का सफ़ाया हो गया, 
जो डर कर इस्लाम में वापस हुए वह मुरतिद कहलाए.
मुहम्मद ख़ुद सरी, ख़ुद सताई, ख़ुद नुमाई और ख़ुद आराई के पैकर थे. 
अपनी ज़िन्दगी में जो कुछ चाहा, पा लिया, 
मरने के बाद भी कुछ छोड़ना नहीं चाहते थे कि 
ख़ुद को पैग़म्बरे-आखरुज़ ज़मा बना कर क़ायम हो गए, 
यही नहीं वह अपनी जिहालत भरी क़ुरआन को अल्लाह का आख़री निज़ाम बना गए. 
मुहम्मद ने मानव जाति के साथ बहुत बड़ा जुर्म किया है 
जिसका ख़ामयाज़ा सदियों से मुसलमान कहे जाने वाले बन्दे झेल रहे है.
अध् कचरी, पुर जेह्ल और नाक़िस कुछ बातों को आख़री निज़ाम क़रार दे दिया है. 
क्या उस शख़्स के सर में ज़रा भी भेजा नहीं था कि वह इर्तेक़ाई तब्दीलियों को समझा ही नहीं. 
क्या उसके दिल में कोई इंसानी दर्द था ही नहीं कि इसके झूट एक दिन नंगे हो जाएँगे.
तब इसकी उम्मत का क्या हश्र होगा?
आज इतनी बड़ी आबादी हज़ारों झूट में क़ैद, मुहम्मद की बख़्शी हुई सज़ा काट रही है. वह सज़ा जो इसे विरासत में मिली हुई है, 
वह सज़ा जो ज़ेहनों में पिलाई हुई घुट्टी की तरह है, 
वह क़ैद जिस से रिहाई ख़ुद क़ैदी नहीं गवारा करता, 
रिहाई दिलाने वाले से जान पर खेल जाता है. 
इन पर अल्लाह तो रहम करने वाला नहीं, आने वाले वक्तों में देखिए, क्या हो? 
कहीं ये अपने बनाए हुए क़ैद ख़ाने में ही दम न तोड़ दें. 
या फिर इनका कोई सच्चा पैग़ामबर पैदा हो.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 16 June 2019

धर्म मुक्त धरती

धर्म मुक्त धरती 

अन्न और घी को आग में झोंक कर क्षितिज को शुद्ध करने वाले मूरख ! 
अपनी नीदें खोलें, 
उनको ग़लत फ़हमी हुई है कि सदियों बाद उनका साम्राज्य स्थापित होने जा रहा है. बार बार उनके कान में फूंका जा रहा है कि शब्द हिन्दू, 
आक्रमण कारी विजेताओं, अरबियों और फ़ारसियों की बख्शी हुई उपाधि है, 
जो उनकी भाषा में कुरूप काले चोर उचक्कों को कहा जाता है. 
और तथा कथित हिन्दू परिषद फिर भी अपने इस अपमान पर गर्व करता है ?? 
कैसा आशचर्य है कि शायद यही हिन्दू परिषद की नियति है. 
दक्षिण भारत में "द्रविण मुन्नैत्र" शुद्घ शब्द है जोकि हिन्दू का बदल हो सकता है, 
मगर यहाँ पर स्वर्ण फिर भी फंस जाते हैं कि वह आर्यन है और 
उनका मूल रूप ईरान है इस ऐतिहासिक सत्य को कभी भी ढका नहीं जा सकता. 
दर अस्ल हिंदुत्व और इस्लाम एक ही सिक्के दो पहलू हैं. 
हिंदू अपने आधीनों को कभी भी मार नहीं डालता , 
उसके यहाँ तो जीव हत्या पाप है 
चाहे वह बीमारी फ़ैलाने वाले जीव जंतु ही क्यों न हों, 
आधीन उसके लिए "सवाब जरिया" (सदयों जारी रहने वाला पुण्य) होते हैं 
जिन्हें वह कभी मारता है, और न मोटा होने देता है. 
मनुवाद को ईमान दारी से पढ़िए अगर असली कहीं मिल सके. 
इस्लाम क़त्ल और ग़ारतगरी पर ईमान रखता है , 
यहूदियत की तरह. 
हिन्दू परिषद वालो सावधान ! 
देश की अवाम जाग चुकी है , 
तुमको हमेशा की तरह एक बार भी बड़ी ज़िल्लत उठानी पड़ेगी.  
मानवता अपने शिखर विंदू को छूने वाली है. जिसके तुम दुश्मन हो. 
इस्लाम ख़ुद अपने ताबूत में आख़िरी कील ठोंक रहा है. 
सऊदी की जाम गटरों से क़ुरआन की जिल्दें निकाली जा रही हैं.  
बहुत हो चुकी धर्म व् मज़हब की धांधली,
अब मानव समाज को धर्म मुक्त धरती चाहिए. 
जो फ़ितरी सदाक़तो और लौकिक सत्य पर आधारित हो.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 14 June 2019

इस्लामयात==== इब्तेदा


इब्तेदा              

मक्का वाले मुहम्मद की रिसालत को बहुत ही मामूली एक समाजी वाक़ेए के तौर पर लिए हुए थे. 
मुहम्मद ज्यादः हिस्सा तो माहौल की तफ़रीह हुवा करते थे. 
अपने सदियों पुराने पूज्य की शान में मुहम्मद की ग़ुसताख़ियों को बर्दाश्त करने में एक लिहाज़ भी था कि, 
काबा के तकिया दारों के खानदान के फ़र्द होने का, 
इसके अलावा मालदार बीवी के शौहर होने का लिहाज़ भी उनको बचाता रहा. 
फिर एक मुहज़्ज़ब समाज में एतदाल भी होता है, क़ूवते बर्दाश्त  के लिए. 
समाज की ये भी ज़िम्मेदारी होती है कि फक्कड़ लोगों को अहेमियत न दो, 
उन्हें झेलते रहो. 
ख़ुद को अल्लाह का रसूल कहना अपनी बे सिर पैर की बातों की तुकबंदी बना कर उसे अल्लाह का कलाम कहना, आयतें की एक फ़रिश्ते के ज़रिए आमद, 
सब मिला कर समाज के लिए अच्छा मशग़ला थे मुहम्मद. 
इन पर पाबन्दी लगाना मुनासिब न था.
बड़ी ग़ौर तलब बात है कि 
उस वक़्त 360 देवी देवताओं का मुत्तःदा निज़ाम किसी जगह क़ायम होना. 
ये कोई मामूली बात नहीं थी. हरम में 360 मूर्तियाँ दुन्या की 360 मुल्कों, 
ख़ित्तों और तमद्दुन की मुश्तरका अलामतें थीं. 
काबा का ये कल्चर जिसकी बुन्याद पर अक़वाम मुत्तहदा क़ायम हुवा. 
काबा मिस्मार न होता तो हो सकता था कि आज का न्यू यार्क मक्का होता और अक़्वाम मुत्तहदा जगह हरम क़ायम होता, 
इस्लाम से पहले इतना ठोस थी अरबी सभ्यता. 
अल्लाह वाहिद के ख़ब्ती, मुहम्मद ने 
इर्तेक़ा के पैरों में बेड़ियाँ पहना कर क़ैद कर दिया.
मुहम्मद की दीवानगी बारह साल तक मक्का में सर धुनती रही. 
जब पानी सर से ऊपर उठा तो अहले मक्का ने तय किया कि इस फ़ितने का ख़त्म हो.  
क़ुरैशियों ने इन्हें मौत के घाट उतारने का फ़ैसला कर लिया. 
मुहम्मद को जब इस बात का इल्म हुवा तो 
उनकी पैग़म्बरी सर पर पैर रख कर मक्का से रातो रात भागी. 
अल्लाह के रसूल का इस सफ़र में बुरा हल था 
कि मुरदार जानवरों की सूखी हुई चमड़ी चबा चबा कर जान बचानी पड़ी, 
न इनके अल्लाह ने इनको रिज्क़ मुहय्या किया न जिब्रील को तरस आई. 
रसूल अपने परम भक्त अबुबकर के साथ मदीने पहुँच गए 
जहां इन्हें सियासी पनाह इस लिए मिली कि 
मदीने के साथ मक्का वालों की पुरानी रंजिश चली आ रही थी.
ग्यारह साल बाद मुहम्मद तस्लीम शुदा अल्लाह के रसूल और फ़ातेह बनकर जब बस्ती में दाख़िल हुए तो आलमे इंसानियत की तारीख़ में वह मनहूस तरीन दिन था. उसी दिन से कभी मुसलमानों पर और कभी मुसलमानों के पड़ोसी मुल्क के बाशिंदों पर ज़मीन तंग होती गई.
कुछ लोग इस वहम के शिकार हैं कि 
मुसलमानों ने सदियों आधी दुन्या पर हुकूमत की.  
इनका अंदरूनी सानेहा ये है कि मुसलमान हमेशा आपस में ही एक दूसरे की गर्दनें काट कर  फ़ातेह और मफतूह रहे. 
वह बाहमी तौर पर इतना लड़े मरे कि पढ़ कर हैरत नाक अफ़सोस होता है. 
मुसलमानों की आपसी जंग मुहम्मद के मरते ही शुरू हुई जिसमें एक लाख ताज़े ताज़े हुए मुसलमान मारे गए, 
ये थी जंगे "जमल" जो मुहम्मद की बेगम आयशा और दामाद अली के दरमियान हुई, 
फिर तो ये सिलसिला शुरू हुआ तो आज तक थमने का नाम नहीं लिया. 
मुहम्मद के चारो ख़लीफ़ा आपसी रंजिश के बाईस एक दूसरे की साज़िश से क़त्ल हुए, 
इस्लाम के ज़्यादः तर शशक साज़िशी तलवारों से कम उम्र में मौत के घाट उतारे गए.
इस्लाम का सब से ख़तरनाक पहलू जो उस वक़्त वजूद में आया था, 
वह था जंग के ज़रीया लूट पाट करके हासिल किए गए 
अवामी इमलाक को ग़नीमत कह कर जायज़ करार देना. 
लोगों का ज़रीया मुआश बन गई थीं जंगें. 
चौदह सौ साल ग़ुज़र गए, 
इस्लामियों में इसकी बरकतें आज भी क़ायम हैं. 
अफ़ग़ानिस्तान में आज भी किराए के टट्टू मिलते हैं 
चाहे उनके हाथों मुसलमानों का क़त्ल करा लो, 
चाहे काफ़िर का. 
इस्लाम में रह कर ग़ैर जानिबदारी तो हो ही नहीं सकती कि 
उसका गला कट्टर मुसलमान मुनाफ़िक़ कह कर पहले दाबते हैं 
जो ग़ैर जानिब दार होता है.
इस्लाम के इन घिनावनी सदियों को मुस्लिम इतिहास कार 
इस्लाम का सुनहरा दौर लिखते हैं.
***   
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 13 June 2019

लिंग पूजा

लिंग पूजा 

योगियों, योगिनों स्वामी और साध्वियों के बयानों को पढ़ पढ़ कर पानी सर से ऊंचा हुवा जा रहा है, मेरे पाठक क्षमा करें कि सीमा लांघ रहा हूँ.
वह कहते हैं हिन्दू बच्चो की कतारें लगाएँ, 
porn फ़िल्में देखें, स्व-लिंग पूजा करें, 
यह वही नामर्द और नामुराद लोग हैं जो अपनी पौरुष शक्ति से 
एक चूहा भी पैदा नहीं कर सके.
हिजड़े होते होते रह गए, गेरुवे बन गए . 
इन्हों ने शिव लिंग मंदिर बनवा दिए अपनी औरतो के लिए, 
इनकी औरतों नें शिव लिंग को पूजना शुरू किया और अपनी वासना को लिंग की आराधना में ठंडा कर लिया.
यह आत्म ज्ञान और आत्म ध्यान में इतना डूबे कि वाह्य ज्ञान से बेख़बर रह गए. अपना जीवन तो ख़ुशियों से वंचित कर लिया अब दूसरों को राय दे रहे है कि 8, 8 बच्चे पैदा करके तुम भी जीवन की ख़ुशियों वंचित हो जाओ.
डा तो गडिया ने पौरुष वर्धन दवा भी हिन्दुओं के लिए ईजाद कर लिया है. 
600 की लिंग वर्धन को खरीदने पर 100 रुपिए की छूट भी दे रहे हैं.
धिक्कार है ऐसे मदारियों पर जो अपनी कमियों को छिपाने के लिए 
जनता को मूर्ख बनाए हुए हैं.
सुदर्शन TV का जोकर हिन्दू जागरण की यात्रा कर रहा है जहाँ पहाड़ जैसे 
"झूटों" का प्रचार हो रहा है, लोगों को समझाया जा रह है कि मुसलमान देश में जन संख्या को 8.8 % की दर से बढ़ा रहे है और हिन्दू केवल 1.2% 
अफ़ग़ानी तालिबान की राह चल कर 10-12 बच्चे पैदा करो.
उन्हें खिलाएं पिलाएंगे वह जो स्वयम दूसरों की मेहनत पर ग़ुज़ारा करते है ?
इस्लाम में ब्रह्म चर्य हराम है जो 100% सही है. 
इसकी बहस को ख़ुद अपने दिमाग़ में गति दें कि 
इस पर पूरी किताब लिखने की ज़रुरत होगी. 
ब्रह्म चर्य तो ठीक वैसे ही है जैसे माली अपने पेड़ को फलने फूलने न दे,
किसान अपनी फसलों को लहलहाने न दे.
इस धरती का सारा कारोबार SEX पर आधारित है, 
धरती का दारोमदार SEX है.
कुछ लोगों में इसमें दिल चस्पी कम हो सकती है, 
जबकि उनके लिए इसके मुक़ाबिले में कोई और विषय हो, 
जो मानव जाति  के लिए वरदान हो.
उनको मुनकिर का सलाम,

 ***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 12 June 2019

इस्लामयात

यतीम मुहम्मद      

मुहम्मद जब माँ के पेट में थे, उनके बाप चल बसे, 
बचपन में ही माँ का इन्तेक़ाल हो गया. 
इसके बाद दाई हलीमा की सुपुरदगी में बकरियाँ चराने में उनका काफ़ी वक़्त बीता. 
फिर मुहम्मद अपने घर में अपनी माँ की हबशन लौंडी ऐमन के साथ रहने लगे जो कि उम्र में उनसे कुछ बड़ी थी, इतनी की उनकी पैदाइश पर 
उनका गू मूत और पोतड़े वही धोती. 
मुहम्मद के रिश्तेदार तो बहुतेरे थे, सगे दादा, कई एक चचा भी थे, 
मगर यतीम का कोई पुरसान ए हाल न था. 
झूठे ओलिमा इनके दादा और चचाओं की दास्तानें बघारते हैं. 
साबित यह होता है कि मुहम्मद मक्का के लोगों की बकरियां चरा कर 
अपना और ऐमन का ग़ुज़ारा करते. 
पचीस साल की उम्र तक उनकी ज़िन्दगी की कोई क़ाबिल ए ज़िक्र 
हालात नहीं मिलते. 
मुहम्मद के मिज़ाज को देखते हुए यह बात यक़ीन के साथ कही जा सकती है कि सिने बलूग़त आते आते इनका जिस्मानी तअल्लुक़ ऐमन के साथ हो चुका था. 
उस वक़्त यह बात कोई मायूब भी नहीं मानी जाती थी.
खादीजः ने जब मुहम्मद के सामने निकाह की पेश कश रखी तो 
मुहम्मद को कोई एतराज़ न हुआ, हांलाकि वह उम्र में उनसे पंद्रह साल बड़ी थीं, 
मगर मालदार ज़रूर थीं. 
मुहम्मद ने घर जंवाई बनना भी ठीक जाना. 
वह अपने साथ अपनी लौड़ी ऐमन को भी अपनी ससुराल ले गए.
इसी दरमियान लौंडी ऐमन अपने आक़ा की फ़रमा बरदारी में हामलाः हो गई, 
खदीजः के मशविरे पर मुहम्मद ने फ़ौरन इसकी शादी की बात मान ली. 
ग़ुलाम ज़ैद उनकी ग़ुलामी में था ही, 
उसे लौंडी ऐमन का शौहर बना दिया, 
गोकि उसकी उम्र अभी बारह साल की ही थी, 
वह जिन्सियात से वाक़िफ़ भी नहीं था कि एक अदद बच्चे का बाप बन गया. 
लौंडी और ग़ुलाम  की मजाल ही क्या थी कि शादी से इनकार कर देते. 
ज़ैद मशहूर हदीस गो ओसामा का बाप कहलाया, 
जो कि दर अस्ल मुहम्मद का बेटा था. 
मुहम्मद ने इसे हर जगह फ़ौक़ियत भी दी.
इसी ज़ैद बिन हारसा की दूसरी कहानी शुरू हुई 
जब मुहम्मद ने इसकी दूसरी शादी अपनी रखैल ज़ैनब से की. 
किसी इस्लामी मुवर्रिख की मजाल नहीं की इस सच्चाई को क़लम ज़द कर सके.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान /

Tuesday 11 June 2019

महा भारत

महा भारत

सेकुलर अकबर ने एक रोज़ अपने वज़ीर अबुल फ़ज़ल से कहा, 
महा भारत का तर्जुमा फ़ारसी में किया जाए ताकि हिन्दुस्तान का मुक़ाम आलमी सतह पर क़ायम हो सके.
दो हफ़्ते ग़ुज़र गए, अकबर ने फिर अबुल फ़ज़ल को याद दिलाया और दरियाफ़्त किया, कहाँ तक पहुंचे?   
अबुल फ़ज़ल ने कहा सरकार ! महा भारत का अध्धयन चल रहा है. 
महीना ग़ुज़रा तो फिर अकबर ने अबुल फ़ज़ल से पूछा, 
महा भारत की शुरुआत हुई ?
अबुल फ़ज़ल ने जवाब दिया अभी शुरुआत में ही अटका हुवा हूँ हुज़ूर. 
बादशाह ने पूछा, आख़िर माजरा क्या है ?
अबुल फ़ज़ल ने कहा, दर अस्ल मुआमला यह है कि महा भारत के शुरुआती किरदार ही हसबन और नसलन मशक़ूक़ और नाजायज़ हैं 
अकबर :- वह कैसे ?
अबुल फ़ज़ल :- हुज़ूर ! हिन्दुओं में एक प्रथा नियोग की हुवा करती है .
अकबर :- वह क्या हैं ? 
अबुल फ़ज़ल :- वह यह कि इनके नपुंसक महानुभाव अपनी पत्नियों का गर्भाधान किसी हिष्ट पुष्ट और योग्य पुरुष से मावज़ा देकर कराते हैं, 
जैसे गायों के लिए सांड किराए पर लिए जाते हैं.
एक राजा ने गौतम ऋषि को किराए पर लेकर अपनी तीनों रानियों का गर्भा दान कराया, इनसे जन्मित तीनों रानियों के राज कुमार महा भारत के बुनयादी किरदार हैं . इसके प्रचार और प्रसार से हिदुस्तान की शोहरत कम बदनामी ज़्यादः होगी .
अकबर सर पकड़ कर बैठ गया कि उसका तैमूरी ख़ून गैरत में आ गया था.
अबुल फ़ज़ल ने कह एक ग़ुज़ारिश और है हुज़ूर !
जलाल उद्दीन अकबर सरापा सवालिया निशान बन कर अबुल फ़ज़ल को देखा 
और पूछा, वह क्या है ?
अबुल फ़ज़ल ने बतलाया ,
महा भारत के किरदार में पांडु नाम के पांच भाई हुआ करते हैं 
जिन्हों ने मुश्तरका तौर पर एक औरत से ही शादी की है. 
द्रोपदि अपने शौहरों की, देवरों और जेठों की तनहा बीवी है.
लाहौल वला क़ूवत - - - अकबर के होटों पर आ गया,
अबुल फ़ज़ल ने कहा हुज़ूर ! 
इसे पढ़ कर फ़ारसी दानों को और उनके समाज को क्या पैग़ाम जाएगा ?
सुन कर बादशाह चीखा, 
ख़ामोश ! 
तख़लिया !!
महा भारत को बी आर चौपड़ा ने बड़ी कामयाबी के साथ फ़िलमाया . 
इसके प्रसारण के वक़्त सड़कों पर कर्फ्यू का आलम होता.
तब हिन्दू समाज में सहिस्नुता सहिषणुता का अंबार था, 
यही हिम्मत आज कोई मासूम रज़ा करके दिखलाए ?
फिल्म बैंड ही नहीं हो जाएगी,
मुल्क में फ़साद की नौबत आ जाएगी .
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 10 June 2019

सूरह फ़लक -113 = سورتہ الفلکसूरह नास -114 = سورتہ الناس

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****
सूरह फ़लक -113 = سورتہ الفلک
(कुल आऊजो बेरब्बिल फलके) 
 सूरह नास -114 = سورتہ الناس
(कुल आऊजो बेरब्बिन नासे) 

यह क़ुरआन का तीसवाँ और आख़िरी पारा है. इसमें सूरतें ज़्यादः तर छोटी छोटी हैं जो नमाज़ियों को नमाज़ में ज़्यादः तर काम आती हैं. 
बच्चों को जब क़ुरआन शुरू कराई जाती है तो यही पारा पहला हो जाता है. इसमें 78 से लेकर114 सूरतें हैं जिनको (ब्रेकेट में लिखे ) उनके नाम से पहचान जा सकता है कि नमाज़ों में आप कौन सी सूरत पढ़ रहे हैं 
और ख़ास कर याद रखें कि क्या पढ़ रहे हैं.

आज मैं ख़ुश हूँ कि क़ुरआन की आख़िरी सूरह पर पहुँच चुका हूँ. 
सूरह अव्वल यानी सूरह फ़ातेहा में मैंने आपको बतलाया था कि 
मुहम्मद ने ख़ुद अपने कलाम को अल्लाह बन कर फ़रमाने की नाकाम कोशिश की, 
जिसे ओलिमा ने क़लम का ज़ोर दिखला कर कहा कि अल्लाह कभी अपने मुँह से बोलता है, 
कभी मुहम्मद के मुँह से, 
तो कभी बन्दे के मुँह से बोलता है. 
बोलते बोलते देखिए कि आख़िर में अल्लाह की बोलती बंद हो गई, 
उसने सच बोलकर अपनी ख़ुदाई के खात्मे का एलान कर दिया है. 

क़ुरआन की 114 सूरतों का सिलसिला बेतुका सा है, 
कोई सूरह इस्लाम के वक़्त ए इब्तेदा की है तो 
अगली सूरह आख़िर दौर की आ जाती है. 
बेहतर यह होता कि इसे मुरत्तब करते वक़्त मुहम्मद की तहरीक के मुताबिक़ तरतीब वार इस का सिसिला होता. ख़ैर , 
इस्लाम की तो सभी चूलें ढीली हैं, उनमें से एक यह भी है. 
इस ख़ामी से एक फ़ायदा यह हुवा है कि इन आख़िरी दो सूरतों में इस्लाम की वहदानियत की हवा ख़ुद मुहम्मदी अल्लाह ने निकाल दिया है. 
अल्लाह जिब्रील के मार्फ़त जो पैग़ाम मुहम्मद के लिए भेजता है उसमे मुहम्मद उन तमाम कुफ्र के माबूदों से पनाह माँगते है, अल्लाह की, 
जिन्हें  हमेशा वह नकारते रहे, 
 इस सूरह में अल्लाह तमाम माबूदों को पूजने का मश्विरः देता है, 
क्यूंकि उसका रसूल बीमारी से निढाल है.
मुहम्मद शदीद बीमार हो गए थे, 
कहते हैं कि उनका पेट फूल गया था, 
जिसकी वजेह थी कि कुछ यहूदिनों ने उन पर जादू टोना कर दिया था 
कि उनकी बजने वाली मिटटी जाम हो गई थी और उसका बजना बंद हो गया था.
(पिछली सूरतों में उन्होंने फ़रमाया है कि इंसान बजने वाली मिटटी का बना हुवा है) 
उनका पेट इतना फूल गया था कि बोलती बंद हो गई थी. 
जिब्रील अलैहिस सलाम वह्यि लेकर आए और मंदार्जा ज़ेल आयतें पढ़नी शरू कीं, 
तब जाकर धीरे धीरे उनका जाम खुलने लगा, 
उनसे जिब्रील ने कहलवाया कि - - - 
"तुम गाठों पर पढ़ पढ़ कर फूंकने वाली वालियों को तस्लीम करो कि उनकी भी एक हस्ती है, 
तुम्हारे अल्लाह जैसी ही." 
"हसद करने वाले भी दमदार हैं जो अपना असर अल्लाह की तरह रखते हैं, 
जब वह हसद करने पर आ जाएं." 
"आदमियों के मालिक, बादशाहों का भी अल्लाह की तरह ही कोई मुक़ाम है." 
"आदमियों के मुख़ालिफ़ मअबूदों ; लात, मनात और उज्जा वग़ैरा को भी तस्लीम करो कि वह भी अल्लाह की तरह ही कोई ताक़त हैं." 
"वुस्वुसा डालने के वह्म को भी अपना माबूद तस्लीम करो जब तुम वुस्वुसे में आओ." 
"जिन्न को तो तुम पहले से ही अल्लाह दो नम्बरी माने बैठे हो. तो ठीक है . . . ." 
एक हफ़्ते की मामूली बीमारी ने मुहम्मद को ऐसा सबक़ सिखलाया कि 
इस्लाम का मुँह काला हो गया. 
और अल्लाह की वहदानियत काफ़ुर.
मुहम्मद के फूले हुए पेट से मुहम्मदी अल्लाह की सारी हवा ख़ारिज हो गई,

मुसलमान सिर्फ़ इन ग्यारह आयतों की दो सूरतों को ही पढ़ कर, 
संजीदगी से मुहम्मद को समझ लें तो मुहम्मदी अल्लाह को समझ पाना आसान होगा. 
***
 नमाज़ियो !
सूरह फ़लक और सूरह नास के बारे में वाकिया है कि यहूदिनों ने मुहम्मद पर जादू टोना करके उनको बीमार कर दिया था, तब अल्लाह ने यह दोनों सूरतें बयक वक़्त नाज़िल कीं, 
घर की तलाशी ली गई, एक ताँत (सूखे चमड़े की रस्सी) की डोरी मिली, जिसमे ग्यारह गाठें थीं. 
इसके मुक़ाबिले में जिब्रील ने मंदार्जा ग्यारह आयतें पढ़ीं, 
हर आयत पर डोरी की एक एक गाठें खुलीं, 
और सभी गांठें खुल जाने पर मुहम्मद चंगे हो गए.
जादू टोना को इस्लामी आलिम झूट क़रार देते हैं, 
जब कि इसके ताक़त के आगे रसूल अल्लाह की अमाँ चाहते हैं. 
यह क़ुरआन क्या है?
राह भटके हुए मुहम्मदी अल्लाह की भूल भुलय्या ? 
या मुहम्मद की, अल्लाह का पैग़म्बर बन्ने की चाहत ? 

मुसलमानों! 
मैं तुम्हारा और तुम्हारी नस्लों का सच्चा ख़ैर ख़्वाह  हूँ , 
इस लिए कि दुन्या की कोई क़ौम तुम जैसी सोई हुई नहीं है. 
माज़ी परस्ती तुम्हारा ईमान बन गया है, 
जब कि मुस्तकबिल पर तुम्हारे ईमान को क़ायम होना चाहिए. 
हमारी तहक़ीक़ात और हमारे तजुरबे, 
हमारे अभी तक के सच है, 
इन पर ईमान लाओ. कल यह झूट भी हो सकते हैं, 
तब तुम्हारी नस्लें नए फिर एक बार सच पर ईमान लाएँगी, 
उनको इस बात पर लाकर कायम करो, 
और इस्लाम से नजात दिलाओ. 

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 9 June 2019

माता


माता 

मैं मुस्लिम बाहुल्य और मुस्लिम शाशक कस्बे में पैदा हुवा, 
चार पाँच की उम्र से सामाजिक चेतना मुझ में जागने लगी थी. 
माहौल के हिसाब से ख़ुद को हिन्दुओं से बरतर समझने लगा था. 
सेवक लोग उस समय के प्रचलित अछूत हुवा करते थे 
जो शक्लन काले कलूटे मज़लूम लगते . 
हिन्दू अकसर मुझे चेचक ज़दा चेहरे दिखते . 
बड़ों से मालूम हुवा कि चेचक एक बीमारी होती है 
जिसमें पूरे शरीर पर फोड़े निकल आते हैं , 
हिदू इसे माता कहते हैं और इलाज नहीं कराते . 
मेरे मन में शब्द माता घृणित बीमारी जैसा लगने लगा .

बाज़ार में एक बनिए की दूकान में आग लग गई तो 
बूढ़ी बानिन लोगों को आग बुझाने से रोक रही थीं कि 
अग्नि माता को मत बुझाव . 
इससे मेरी समझ में आया कि वाक़ई माता ख़तरनाक हुवा करती हैं .

मैं अपनी माँ के साथ बस द्वारा कानपुर आ रहा था कि शोर सुना 
जय गंगा मय्या की, बस से झांक कर देखा तो पहली बार देखा, 
एक विशाल नदी ठाठें मार रही थी, डर लगा. 
माँ से मालूम हुवा हिन्दू गंगा नदी को माता कहते हैं.
अभी तक माता बमानी माँ होती है, मैं नहीं जनता था, 
इस लिए हर ख़तरनाक बात को माता समझता था.

क़स्बे में काली माई का मेला हुवा करता था जिसमे माताओं की ख़तरनाक तस्वीरें हुवा करती थीं, कोई ख़ूनी ज़बान बीता भर की लपलपाती हुई होती, 
तो कोई नर मुंड का हार पहने दुर्गा माता हुवा करती थी. 
माँ का तसव्वुर मेरे ज़ेहन में घिनावना ही होता गया.
क़स्बे में गाय का गोश्त एलानया कटता और बिकता. 
सुनने में आया कि हिन्दू गाय को भी माता कहते हैं. 
माता ! माता !! अंततः मेरी झुंझलाहट को पता चला  कि माता के मानी माँ के हैं.
शऊर बेदार हुवा तो इस माता पर ग़ौर किया, बहुत सी माताएं सुनने में आईं, 
धरती माता, सीता माता, लक्ष्मी माता, सरस्वती माता, सति माता, 
संतोषी माता से होते हुए बात राधे माता (डांसर ) तक आ गई .
पिछले दिनों गऊ माता के सपूतों ने काफ़ी ऊधम कटा 
और कई मानव जीव भी काटा.
अब नए सिरे से सियासी भूत अवाम पर चढ़ाया जा रहा है 
"भारत माता" .
ख़ैर ! मैं सियासी फ़र्द नहीं समाजी चिन्तक हूँ . 
इन माताओं की भरमार में इंसान की असली माता पीछे कर दी गई है . 
सदियों से वह इतनी पीछे है कि उसका ठिकाना गंगा पुत्रो के शरण में है . 
उसकी किसी हिन्दू को परवाह नहीं कि 
अन्य कल्पित माताएं उन्हें दूध भी दे रही हैं और कुर्सियां भी .
हिन्दू भाई अन्य समाज से ख़ुद को नापें तौलें 
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 7 June 2019

सूरह इख़लास - 112 = سورتہ الخلاص

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह इख़लास - 112 = سورتہ الخلاص
(कुल हवाल लाहो अहद

जंगे-बदर के बाद जंगे-ओहद में अल्लाह के ख़ुद साख़ता रसूल हार के बाद अपने मुँह को ढक कर हारी हुई फ़ौज के सफ़े-आख़ीर में पनाह लिए हुए खड़े थे. अबू सुफ़्यान की आवाज़ ए बुलंद को सुनकर भी टस से मस न हुए. वह आवाज़ ए बुलंद जंग का बाहमी समझौता हुवा करती थी, कि नाम पुकारने के बाद दस्ते के मुखिया को सामने आ जाना चाहिए ताकि उसके मातहतों का ख़ून ख़राबा मज़ीद न हो. 
वैसे भी मुहम्मद ने कभी तलवार और तीर कमान को हाथ नहीं लगाया, 
बस लोगों को चने की झाड़ पर चढ़ाए रहते थे. उनका कलाम दीगरों के लिए होता ,
''मार ज़ोर लगा के, तुझ पर मेरे माँ बाप कुर्बान"

"आप कह दीजिए वह यानी अल्लाह एक है,

अल्लाह बेनयाज़ है,
इसके औलाद नहीं,
और न वह किसी की औलाद है, 
और न कोई उसके बराबर है."

नमाज़ियो !

सूरह अख़लास क़ुरआन में दूसरी ग़नीमत सूरह है, 
पहली ग़नीमत थी सूरह फ़ातेहा. 
बाक़ी क़ुरआन की सूरतें करीह हैं, 
तमाम सूरतें मकरूह हैं. 
इन दोनों सूरतों को छोड़ कर बाक़ी क़ुरआन नज़रे-आतिश कर दिया जाय, 
तो भी इस्लाम की लाज बच सकती है, 
वरना तो ज़रुरत है मुकम्मल इन्कलाब की.
इसमें कोई शक नहीं की क़ुदरत की न कोई औलाद है, 
न ही वह किसी की औलाद है.
 इसी तरह क़ुदरत की मज़म्मत करना या उसे पूजना दोनों ही नादानियाँ हैं. 
क़ुदरत का सामना करना और उसके मद्दे-मुक़ाबिल रहना ही उसका पैग़ाम है. 
क़ुदरत पर फ़त्ह पाना ही इंसानी तजस्सुस और इंसानी ज़िन्दगी का राज़ है. 
क़ुदरत को मग़लूब करना ही उसकी चाहत है.


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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान