Thursday 31 October 2019

लब्बयक अल्लहुम लब्बयक

लब्बयक अल्लहुम लब्बयक 
(ऐ अल्लाह मैं हाज़िर हूँ )

क़ब्ल इस्लाम काबा पूरी दुन्या का मरकज़ हुवा करता था. 
आजका अक़्वाम मुत्तःदा (यूनाइटेड नेशन) मक्का हुवा करता था. 
काबे में हर क़ौम  के बुत हुवा करते थे जैसे आज U N O में हर मुल्क के झंडे होते हैं. आस पास की क़ौमें अपने मसाइल लेकर यहाँ इकठ्ठा हुवा करती थीं. 
इस दौरान मक्का में हिंसा वर्जित हुवा करती थी. 
खाने पीने का सामान ख़ुद शुर्का किया करते थे. 
तिजारत भी हुवा करती थी और तबाला ए ख़याल भी. 
काबे में साहिबे हैसियत लोग ही शरीक होते थे, लाख़ैरे नहीं. 
लोग अपनी हैसियत के हिसाब से जानवरों की क़ुरबानी दिया करते थे, 
बकरे से लेकर ऊँट तक सभी जानवर क़ुरबानी के लिए मुहय्या किए जाते थे, 
बीमार और लाग़ुर नहीं. इस इन्तेज़ामियां में शरीक लोग अपने माल की क़ुरबानी देकर आलमी सम्मलेन का नियोजन किया करते थे.
इस्लामी इंक़्लाब आया, क़ुरबानी की रवायत जिहालत में बदल गई.
तमाम क़ौमो के हुक़ूक़ मुसलमानों की जंग जूई ने हथिया लिया . 
अब मुसलमान के सिवा कोई दूसरा मक्के में दाख़िल नहीं हो सकता. 
क़ुरबानी अब हज के बाद तीन दिनों तक होती है. हाजी हफ़्तों पहले से जाते हैं , 
उनका ख़र्च ख़राबा उनके जिम्मे. 
बकरे हज के बाद कटते हैं जो खाए नहीं जाते बल्कि रेतों में दफ़्न  कर दिए जाते हैं. होगी कोई इनकी तरह अक़्ल की अंधी, दुन्या में कोई क़ौम  ? 
बुत परस्ती इस्लाम में हराम है, 
बुतों से नफ़रत इतनी कि उसका ही बुत बना कर उसे कंकड़ मरते है. 
नहीं समझ पाते यह अहमक़ कि बुत परस्ती हो या बुत की संगसारी, 
दोनों बातें बुत की हस्ती को तस्लीम करती हैं. 
आसमान से गिरे पत्थर शहाब साकिब (उल्का पिंड) को पूजने से बढ़ कर, 
उसे चूमते हैं.
***
दोस्तो !
मैं बीमारी और बुढापे से लड़ता हुआ फिर मैदान में आ गया हूँ . 
जुनैद मुंकिर 
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 30 October 2019


नया आईना 

लाखों, करोरों, अरबों बल्कि उस से भी कहीं ज़्यादः बरसों से इस ब्रह्मांड का रचना कार अल्लाह क्या चौदह सौ साल पहले सिर्फ़ तेईस साल चार महीने (मोहम्मद का पैग़मबरी काल) के लिए अरबी जुबान में बोला था? 
वह भी मुहम्मद से सीधे नहीं, किसी तथा कथित दूत के माध्यम से, 
वह भी बाआवाज़ बुलंद नहीं काना-फूसी कर के ? 
जनता कहती रही कि जिब्रील आते हैं तो सब को दिखाई क्यूँ नहीं पड़ते? 
जो कि उसकी उचित मांग थी 
और मोहम्मद बहाने बनाते रहे. 
क्या उसके बाद अल्लाह को साँप सूँघ गया कि स्वयम्भू अल्लाह के रसूल की मौत के बाद उसकी बोलती बंद हो गई और जिब्रील अलैहिस्सलाम मृत्यु लोक को सिधार गए ? 
उस महान रचना कार के सारे काम तो बदस्तूर चल रहे हैं, 
मगर झूठे अल्लाह और उसके स्वयम्भू रसूल के छल में आ जाने वाले 
लोगों के काम चौदह सौ सालों से रुके हुए हैं, 
मुसलमान वहीं है जहाँ सदियों पहले था, 
उसके हम रक़ाब यहूदी, ईसाई और दीगर क़ौमें आज मुसलमानों को 
सदियों पीछे अतीत के अंधेरों में छोड़ कर प्रकाश मय संसार में बढ़ गए हैं. 
हम मोहम्मद की गढ़ी हुई जन्नत के फ़रेब में ही नमाज़ों के लिए 
वज़ू, रुकू और सजदे में विपत्ति ग्रस्त है. 
मुहम्मदी अल्लाह उन के बाद क्यूँ किसी से वार्तालाप नहीं कर रहा है? 
जो वार्ता उसके नाम से की गई है उस में कितना दम है? 
ये सवाल तो आगे आएगा जिसका वाजिब जवाब देना होगा....
क़ुरआन का पोस्ट मार्टम खुली आँख से देखें 
"हर्फ़ ए ग़लत" का सिलसिला जारी हो गया है. 
आप जागें, मुस्लिम से मोमिन हो जाएँ और ईमान की बात करें. 
अगर ज़मीर रखते हैं तो सदाक़त ज़रूर समझेंगे और 
अगर इसलाम की कूढ़ मग्ज़ी ही ज़ेह्न में समाई है तो जाने दीजिए 
अपनी नस्लों को तालिबानी जहन्नम में.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान