Friday 31 January 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (14)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (14)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
*जो इस जीवत्मा को मारने वाला समझता है तथा जो इसे मरा हुवा समझता है, वह दोनों ही अज्ञानी हैं, क्योंकि आत्मा न मरता है और न मारा जाता है.
**आत्मा के लिए किसी भी काल में न जन्म है न मृत्यु. वह न तो कभी जन्मा है न जन्म लेता है, न जन्म लेगा. वह अजन्मा, नित्य, शाश्वत तथा पुरातन है.शरीर के मारे जाने पर वह मारा नहीं जाता.
श्रीमद्  भगवद् गीता अध्याय 2   श्लोक 19 +20 +++++

अर्जुन युद्ध करने से कतराते हैं . 
कहते हैं कि अपने भाइयों को मारने से अच्छा है कि मैं ही मारा जाऊँ, 
इस पर भगवन उन्हें यह पट्टी पढ़ाते हैं . 
मामला गो़र तलब है. 
अर्जुन प्रतियक्ष शरीर की बात करते हैं 
तो भगवान् परोक्ष आत्मा की सुनाते हैं, 
यह धर्म है या अधर्म.

और क़ुरआन कहता है - - - 
"अगर अल्लाह को मंज़ूर होता वह लोग (मूसा के बाद किसी नबी की उम्मत) उनके बाद किए हुआ बाहम कत्ल ओ क़त्ताल नहीं करते, 
बाद इसके, इनके पास दलील पहुँच चुकी थी, 
लेकिन वह लोग बाहम मुख़्तलिफ़ हुए 
सो उन में से कोई तो ईमान लाया और कोई काफ़िर रहा. 
और अगर अल्लाह को मंज़ूर होता तो वह बाहम क़त्ल ओ क़त्ताल न करते 
लेकिन अल्लाह जो कहते है वही करते हैं" 
(सू रह अलबकर-२ तीसरा पारा तिरकर रसूल आयत २५३) 
धर्म व मज़हब के मंतर भाषा के दांव पेच से रचे हुवे मिलते हैं. सवाल उठता है कि यह रूहानियत के सौदागर आख़िर इंसानी जान के दुश्मन क्यूँ हैं ?
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 30 January 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (13)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (13)

अर्जुन पूछता है - - -
अब मैं अपनी कृपण- दुर्बलता के कारण अपना कर्तव्य भूल गया हूँ और सारा धैर्य खो चुका हूँ. ऐसी अवस्था में मैं आपसे पूछ रहा हूँ कि जो मेरे लिए श्रेयस्कर हो, उसे निश्चित रूप से बताएं. अब मैं आपका शिष्य हूँ और आपका शरणागत . कृपया मुझे आदेश दें. 
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 2   श्लोक 7 
भगवान् कृष्ण अर्जुन से कहते हैं - - -
अनिवाशी (कभी नाश न होने वाला) अप्रमेय (न नाप तौल कर सकने वाला ) तथा शाश्वत जीव के भौतिक शरीर का अंत आवश्यम्भावी है, 
अतः हे भारत वंशी युद्ध करो . 
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 2   श्लोक 18 
इंसानी शरीर की रचना ऐसी वैसी है, इस लिए उसे युद्ध करना चाहिए ?
भगवान् बात पच नहीं पा रही. दूसरी तरफ़ आप ॐ शान्ति का पाठ पढ़ाते हैं ? 
यह धर्म का डबुल स्टैण्डर्ड, जवाब तलब है.

और क़ुरआन कहता है - - - 
"और अल्लाह कि राह में क़त्ताल करो. 
कौन शख़्स  है ऐसा जो अल्लाह को क़र्ज़ दिया 
और फिर अल्लाह उसे बढ़ा  कर बहुत से हिस्से कर दे 
और अल्लाह कमी बढ़ाया करते हैं और फ़राख़ी करते हैं और तुम इसी तरफ़ ले जाए जाओगे" 
(सूरह अलबकर-२ तीसरा पारा तिरकर रसूल आयत २४४+२४५) 

उप महाद्वीप का बेड़ा यह अल्लाह और भगवान् दोनों ग़र्क़ किए हुए हैं .
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 29 January 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (12)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (12)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
यदि कोई कृष्णाभावनामृत अंगीकार कर लेता है तो भले ही वह शाश्त्रानुमोदित कर्मों को न करे अथवा ठीक से भक्ति न करे और चाहे वह पतित भी हो जाए तो इसमें उसकी हानि या बुराई नहीं होगी. किन्तु यदि वह शाश्त्रानुमोदित सारे कार्य करे तो उसके किस काम का है ?
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 1.5.17
*
और क़ुरआन कहता है - - - 
"कुल्ले नफ़्सिन ज़ाइक़तुलमौत''-हर जानदार को मौत का मज़ा चखना है, 
और तुम को तुम्हारी पूरी पूरी पादाश क़यामत के रोज़ ही मिलेगी, सो जो शख़्स दोज़ख़ से बचा लिया गया और जन्नत में दाख़िल किया गया, सो पूरा पूरा कामयाब वह हुवा। और दुनयावी ज़िन्दगी तो कुछ भी नहीं, सिर्फ़ धोके का सौदा है।" 
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (185) 

क्या गीता और कुरआन के मानने वाले इस धरती को पुर अमन रहने देंगे ?
क्या इन्हीं किताबों पर हाथ रख कर हम अदालत में सच बोलने की क़सम खाते हैं ? ?
धरती को शर और फ़साद के हवाले करने वाले यह ग्रन्थ 
क्या इस क़ाबिल हैं कि इनको हाज़िर व् नाज़िल किया जाए,
 गवाह बनाया जाए ???
***


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 28 January 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (11)



शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (11)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
तुम सुख या दुःख ,हानि या लाभ, विजय या पराजय का विचार किए बिना युद्ध करो ऐसा करने पर तुम्हें कोई पाप नहीं लगेगा.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 38 
*
और क़ुरआन कहता है - - - 
"और उन से कहा गया आओ अल्लाह की राह में लड़ना या दुश्मन का दफ़ीअ बन जाना. वह बोले कि अगर हम कोई लड़ाई देखते तो ज़रूर तुम्हारे साथ हो लेते, यह उस वक़्त कुफ़्र से नज़दीक तर हो गए, बनिस्बत इस हालत के की वह इमान के नज़दीक तर थे।" 
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (168) 

क्या गीता और कुरआन के मानने वाले इस धरती को पुर अमन रहने देंगे ?
क्या इन्हीं किताबों पर हाथ रख कर हम अदालत में सच बोलने की क़सम खाते हैं ? ?
धरती पर शर और फ़साद के हवाले करने वाले यह ग्रन्थ 
क्या इस काबिल हैं कि इनको हाज़िर व् नाज़िल किया जाए, गवाह बनाया जाए ???
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 27 January 2020

खेद है कि यह वेद है (10)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (10)

हे इंद्र ! तुमने शुष्ण असुर के साथ भयानक संग्राम में कुत्स ऋषि की रक्षा की थी 
तथा अतिथियों का स्वागत करने वाले दियोदास को बचाने के लिए, 
शंबर असुर का बद्ध किया था. 
तुमने अर्बुद नामक महान असुर को पैरों से कुचल डाला था. 
इस तरह से तुम्हारा जन्म दस्यु नाश के लिए हुवा मालूम पड़ता है.   
  (ऋग वेद प्रथम मंडल सूक्त 51)........(6)

इंद्र को वेद असुरों का बाप राक्षस साबित कर रहा है.
वेद मुर्खता पूर्ण कल्पनाओं से कुसज्जित है.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 26 January 2020

खेद है कि यह वेद है (9)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (9)

हम महान इंद्र के लिए शोभन स्तुत्यों का पयोग करते हैं. 
क्योकि परिचर्या करने वाले यजमान के घर में इंद्र की स्तुत्यां की जाती हैं.
जिस प्रकार चोर सोए हुए लोगों की संपत्ति छीन लेते है, 
उसी प्रकार इंद्र असुरों के धन पर तुरंत अधिकार कर लेते हैं. 
धन देने वालों के विषय में अनुचित स्तुति नहीं की जाती.    
ऋग वेद प्रथम मंडल सूक्त 5- - -  (1)
और यहाँ ग्रन्थ इंद्र को चोरों का बाप डाकू साबित करता है, 
वह भी डरपोक. 
सोते हुवे चोर को लूटा. चोर जगता हुआ होता तो महाराज की ख़ैर न होती.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली)
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 25 January 2020

खेद है कि यह वेद है (8)


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (8)

दूध भरे स्तनों वाली रंभाती हुई गाय के समान बिजली गरजती है. 
गाय जिस प्रकार बछड़े को चाटती है, 
उसी प्रकार बिजली मरूद गणों की सेवा करती है. 
इसी के फल स्वरूप मरूद गणों ने वर्षा की है.  
ऋग वेद प्रथम मंडल सूक्त 3---------- (8)  

पोंगा पंडित की कल्पना  देखिए, 
रंभाती गाय बिजली की तरह गरजती है ?
कभी इन दोनों को देखा और सुना ?
तो मरूद गण वर्षा करते हैं. 
तब तो कुत्तों  के भौंकने से मरूद गणों की हवा खिसकती होगी.
हे अश्वनी कुमारो ! 
सागर तट पर स्थित तुमहारी नौका, 
आकाश से भी विशाल है. 
धरती पर गमन करने के लिए तुम्हारे पास रथ हैं, 
तुम्हारे यज्ञ कर्म में सोमरस भी  सम्लित रहता है.
ऋग वेद प्रथम मंडल सूक्त 46  ......(8)  
चुल्लू भर सागर में अनंत आकाश से बड़ी नौका ? 
मूरखों की अवलादो! इक्कीसवीं सदी को ठग रहे हो.
कल्पित देवताओं के कल्पित कारनामों को, 
पुरोहित देवताओं को याद दिला दिला कर अपने बेवक़ूफ़ यजमान को प्रभावित करता है. जैसे कि वह उनके  हर कामों का चश्म दीद  गवाह हो. 
***


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 24 January 2020

खेद है कि यह वेद है (7)


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (7)

(ऋग वेद प्रथम मंडल सूक्त (33)(5) 
हे इंद्र ! जो लोग स्वयं यज्ञ नहीं करते अथवा यज्ञ करने वालों का विरोध करते हैं, 
वह पीछे की ओर मुंह करके भाग रहे हैं. 
हे इंद्र ! तुम हरि नामक घोड़ों के स्वामी, युद्ध में पीठ न दिखलाने वाले तथा उग्र हो. 
यज्ञ न करने वालों को तुमने स्वर्ग आकाश तथा धरती से भगा दिया है.
*
पंडितों ने वेद श्लोक को रहस्य मय औए पवित्र बनाने के लिए इन का दुश्मन ख़ुद  बना रख्खा है. और यह दुश्मन है शूद्र, 
शूद्र अगर इन निरर्थक श्लोकों को सुन ले तो उसके कानों में पिघला हुवा शीशा पिला दिया जाए. इसके आलावा वह जानते थे कि इन दरिद्रों के पास है ही क्या कि यह हमारी यजमानी करें ? इनको तो मन्त्रों में लूट लेने की अर्ज़ी देवताओं को दी जाती है. 
हे अश्वनी कुमारो ! 
हमें तीन बार धन प्रदान करो. 
हमारे देव संबंधी यज्ञ में तीन बार आओ.
तीन बार हमारी बुद्दी की रक्षा करो 
तीन बार हमारे सौभग्य की रक्षा करो. 
हमें तीन बार अन्न दो. 
तुम्हारे तीन पहिए वाले रथ पर सूर्य पुत्री सवार है. 
(ऋग वेद प्रथम मंडल सूक्त (34 )(5)  
मन्त्रों में विधवा विलाप है. 
निर्बला जैसे अपने पति से तीन तलाक़ न देने की गुहार लगती है, 
वैसे ही यह भिखारी इस सूक्त के बारहों श्लोक में तीन तीन की रट लगाईं हुई है.
क्या रख्खा है इन वेदों में ??
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 23 January 2020

खेद है कि यह वेद है (6)


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (6)

ऋग वेद -प्रथम मंडल  -सूक्त 21 
मैं इस यज्ञ में इंद्र और अग्नि को बुलाता हूँ एवं इन्हीं दोनों की स्तुति करने की इच्छा रखता हूँ. 
सोम पान करने के अत्यंत शौक़ीन वह दोनों सोमरस पिएँ . (1)
हे मनुष्यों ! इस यज्ञ में उन्हीं इंद्र और अग्नि की प्रशंशा करो एवं उन्हें अनेक प्रकार से सुशोभित करो. 
गायत्री छंद का सहारा लेकर उन्हीं दोनों की स्तुत्याँ गाओ. (2)
हम मित्र देव की प्रशंशा के लिए इंद्र और अग्नि को इस यज्ञ में बुला रहे हैं. (3)
हम शत्रु नाशन में क्रूर उन्हीं दोनों को इस सोमरस पीने के लिए बुला रहे हैं. 
इंद्र और अग्नि इस यज्ञ में आएँ. (4)
ये गुण संपन्न एवं सभा पलक ! इंद्र और अग्नि राक्षस जाति की क्रूरता को समाप्त कर दें. 
नर भक्षण करने वाले राक्षस इन दोनों की कृपा से संतान हीन हो जाए. (5)
हे इंद्र और अग्नि जो स्वर्ग लोक हमारे कर्मो को प्रकाशित करने वाला है, 
वहीँ तुम इस यज्ञ के निमित्त जाओ और हमें सुख प्रदान करो. (6)
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली)
अग्नि और इंद्र देवता क्रूर भी हो सकते हैं ?
अपने और सिर्फ़ अपने सुख के लिए यह ईश्वरों को दारू पिला रहे हैं ? 
कल तो गया, आज भी ऐसे भारत माता के सपूत हर मौक़े पर हवन करके स्वयं को धोखा दे रहे हैं.
आप तलाश करें कि वेदों में कोई तत्व है क्या ?
*** 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 22 January 2020

खेद है कि यह वेद है (5)


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (5)

प्रथम प्रथम मंडल   सूक्त  11
सागर के समान विस्तृत, रथ के स्वामियों में श्रेष्ट, अन्यों के स्वामी एवं सब के पालक इंद्र को हमारी स्तुतियों ने बढ़ाया है. (1)
हे बल के स्वामी इंद्र ! तुम्हारी मित्रता पाकर हम शक्ति शाली एवं निरभय बने. 
तुम अपराजित विजेता हो. हम तुम्हें नमस्कार करते हैं. (2)
इंद्र द्वारा किए गए पुराकालीन दान प्रसिद्ध हैं. यदि ये स्तुति कर्ताओं को गाय युक्त एवं शक्ति पूर्ण अन्न दान करें तो सब प्राणियों की रक्षा हो सकती है (3) 
इंद्र ने पुरभेदनकारी, युवा, अमित तेजस्वी, सभी यज्ञों के धारण करता यज्ञ धारक एवं अनेक व्यक्तियों द्वारा स्तुति रूप में जन्म लिया. (4)  
हे वज्र धर इंद्र ! तुमने गायों को अपहरण करने वाले बल असुर की गुफा का द्वार खोल दिया था. बलासुर द्वारा सताए हुए देवों ने उस समय निडर होकर तुम्हें घेर लिया था. (5)
हे शूर इंद्र !निचोड़े हुए सोमरस के गुणों का वर्णन करता हुआ मै तुम्हारे धन दानो से प्रभावित होकर वापस आया हूँ. हे स्तुति पात्र ! यज्ञ कर्ता तुम्हारे समीप उपस्थित होने एवं तुम्हारी कार्य कुशलता को जानते थे. (6)
हे इंद्र ! तुमने छल द्वारा मायावी शष्णु का नाश किया है. इस बात को जो मेघावी लोग जानते हैं, तुम उनकी रक्षा करो. (7)
शक्ति द्वारा विश्व के स्वामी बनने वाले की स्तुति प्रार्थियों ने की हैं. इंद्र के धन देने के ढ़ंग को हज़ारों अथवा हज़ार से भी अधिक हैं.(8)
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
पुजारी इंद्र की महिमा गान करके उनको बतलाता है कि तुम में क्या क्या ख़ूबियाँ हैं जिनको कि शायद तुम भूल गए हो. 
इंद्र देवता को वह बतलाता है कि वह छल विद्या के भी माहिर हैं . 
देव और छली  ?
क्या देवता इन मक्खन बाजों की बातों में आकर मानव कल्याण कर सकते हैं ? 
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 21 January 2020

खेद है कि यह वेद है (4)


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (4)

प्रथम मंडल  - सूक्त (युक्त पूर्ण वाक्य)- 1 
मैं अग्नि की स्तुति (गुनगान) करता हूँ . यह यज्ञ का पुरोहित दानादि गुणों से भुक्त, यज्ञ में देवों को बुलाने वाला एवं यज्ञ के फल रूपी रत्नों को धारण करने वाला है.(1)
प्राचीन ऋषियों ने अग्नि की स्तुति की थी, वर्तमान ऋषि भी उसकी स्तुति करते हैं, वह अग्नि देवों को इस यज्ञ में बुलाता हैं. (2)
अग्नि की कृपा से यजमान को धन मिलता है. उसी की कृपा से धन बढ़ता है. उस धन से यजमान यश प्राप्त करता है एवं अनेक वीर पुरुषों को अपने यहाँ रखता है.(3)
हे अग्नि जिस यज्ञ की तुम चारों ओर से रक्षा करते हो, उसमे राक्षस आदि हिंसा नहीं कर सकते, वही यज्ञ देवताओं को तृप्त देने स्वर्ग को जाता है. (4)
हे अग्नि देव! तुम दूसरे देवों के साथ इस यज्ञ में आओ. तुम यज्ञ के होता, बुद्धी संपन्न, सत्यशील, एवं परम कीर्ति वाले हो.(5)
हे अग्नि! तुम यज्ञ में हवि (हवन में प्रयोग होने वाला द्रव्य) देने वाले यजमान का जो कल्याण करते हो, वह वास्तव में तुम्हारी ही प्रसंनता का साधन बनता है.(6)
हे अग्नि! हम सच्चे ह्रदय से तुम्हें रात दिन नमस्कार करते हैं और प्रतिदिन तुम्हारे समीप आते हैं. (7)
हे अग्नि! तुम प्रकाश वान, यज्ञ की रक्षा करने वाले और कर्म फल के द्योतक हो, 
तुम यज्ञशाला में बढ़ने वाले हो. (8)
हे अग्नि! जिस प्रकार पिता पुत्र को सरलता से लेता है, उसी प्रकार हम भी तुम्हें सहज ही प्राप्त कर सकें. तुम हमारा कल्याण करने के लिए, हमारे समीप निवास करो.(9)
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

इन वेद मन्त्रों में कहीं कोई तत्व है ? कोई मूल्य है ? 
किनको यह हवन में आमंत्रित करता है ? 
जो अपने विशाल रूप में आ जाए तो इनका पंडाल स्वाहा हो जाए 
और साथ में यह भी. 
ग़ौर करें कि आप बीसवीं सदी में आगए हैं.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 20 January 2020

खेद है कि यह वेद है (3)


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (3)

हवन करने के लिए ब्रह्मण अपने पोंगा पंडित लगाते हैं, 
यह ब्रह्मण के निठल्ले कपूत होते हैं जो राज काज में निपुणता से परे माने जाते हैं. 
यह समाज में हवन यज्ञ का माहौल बनाए रहते हैं. 
यजमान (हवन का भार उठाने वाला) को पटाया करते हैं, 
हवन की उपयोगता को समझाते है कि इस से वायु मंडल शुद्ध, सुरक्षीत और सुशोभित रहता है. यह पोंगे सैकड़ों देवताओं को यजमान के घर में मन्त्र उच्चारण से  बुलाते हैं जैसे देवता गण इनके मातहत हों.  
यह हराम खोर यजमान से सोमरस तैयार कराते हैं 
औए फिर देवताओं को आमंत्रित करते हैं कि आओ अश्वनी कुमारो ! 
सोमरस तैयार है, आकर पियो.
सोमरस शराब नहीं होती, क्योंकि यह पत्थर से कूट कर 
फिर कपडे से छान कर बनाई जाती है. 
यह ग़ालिबन भांग और चरस होती है जिसके दीवाने शंकर जी हुवा करते थे. 
यह सोमरस देवताओं के नाम पर नशा खो़री का जश्न हुवा करता था.

ऋग वेद में नामित देव गण - - - 
इंद्र देवता, अग्नि देवता, वायु देवता, अश्वनी कुमार, मरुदगण, रितु देवता, ब्राह्मणस्पति देवता, वरुण देवता, ऋभुगण देवता एवं 
सविता, पूषा, उषा, सूर्य, सोम विश्वेदेव, रात्रि , भावयव्य, मित्र, विष्णु ऋभु, मारूत, ध्यावा पृथ्वी जल देवता गण आदि. इन देवताओं के कोई न कोई ईष्ट होता है, इनकी वल्दियत दर्ज दर्जा है अगर आप इसे कल्पित मानते हैं. 
आदि.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 18 January 2020

खेद है कि यह वेद है (2)


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (2)

बहुत शोर सुनते थे सीने में दिल का ,
जो चीरा तो इक क़तरा ए ख़ून निकला .
वेदों के जानकर वेदी कहे जाते थे . 
एक वेद का ज्ञान रखने वाला वेदी हुवा करता था, 
दो वेदों के ज्ञाता को द्वेदी का प्रमाण पात्र मिलता था, 
तीन वेदों पर ज्ञान का अधिकार रखने वाला त्रिवेदी हुवा था, 
इसी तरह चारों वेदों का विद्वान चतुर्वेदी की उपाधि पाया करता था. 
वैदिक काल में यह डिग्रियां इम्तेआन पास करने के बाद ही मिलतीं. 
जैसे आज PHD करने वाले स्कालर को दी जाती हैं. 
मगर हिन्दू धर्म के राग माले ने सभी ऐरे गैरों को 
वेदी, द्वेदी, त्रिवेदी और चतुर्वेदी बना दिया है, जिनका कोई पूर्वज वेद ज्ञाता रहा हो. 
अगर ऐसा न होता तो आज की दुन्या में,  
कोई योग्य पुरुष वेदों के ज्ञान को लेकर अज्ञानता को गले न लगगाता. 
आज के युग में वेद ज्ञान शून्य है, 
इससे बेहतर है कि एक कमज़ोर दिमाग़ का बच्चा हाई स्कूल पास कर ले. 
और किसी आफ़िस में चपरासी लग जाए.
वह कहते हैं कि पश्चिम हमारे वेदों से ज्ञान चुरा कर ले गए 
और इससे उन्हों ने विज्ञान को जाना और समझा और उसका फ़ायदा लिया. 
इसी तरह क़ुरआनी ढेंचू भी दावा करते हैं.
क़ुरआन और वेद में बड़ा फ़र्क़ इस बुन्याद पर ज़रूर है कि 
वेदों के रचैता भाषा के ज्ञानी हुवा करते थे, 
इसके बर अक़्स क़ुरआन का रचैता परले दर्जे का अनपढ़ और जाहिल था.
जिसने यह कह कर छुट्टी पाई कि यह उसका नहीं, अल्लाह का कलाम है.
इस बात को वह खुद अपने मुंह से कहता है कि 
हम अनपढ़ क्या जाने कि किस महीने में कितने दिन होते हैं. (एक हदीस)
मुसलमान जाहिल को Refine करते हुए मुहम्मद के लिए 
हिब्रू लफ़्ज़ उम्मी का इस्तेमाल करते हैं. 
जिसका अस्ल मतलब है हिब्रू भाषा का ज्ञान न रखने वाला.
वेद में जीवन दायी तत्वों को एक जीवंत शक़्ल दे दी गई है 
जोकि एक देव रूप रखता है, यह इस लिए किया कि उसको संबोधित कर सके. 
जैसे इस्लाम ने क़ुदरत को अल्लाह का रूप दे रखा है. 
इससे तत्व मानव जैसा कोई रूप बन गया है.
इससे संबोधन में जान पड़ जाती है.
वेद में सबसे ज़्यादः जीवन दायी पानी हवा और अग्नि को महत्त्व दिया है, 
पानी को इंद्र देव बना दिया और इंद्र देव को मुख़ातिब करके  सूक्त गढे. 
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 17 January 2020

खेद है कि यह वेद है (1)


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (1)

जब आर्यन मध्य एशिया से भारत आए तो उन्होंने पाया कि यहाँ तो वन ही वन हैं. उनकी गायों के लिए चरागाहें तो कहीं दिखती ही नहीं. 
भारत के मूल निवासियों की जीविका यही वन थे जो आर्यों को रास नहीं आए. 
उनकी जीविका तो गाय समूह हुवा करती थीं जो उनको खाने के लिए मांस, 
पीने के लिए दूध और पहिनने के लिए खाल मुहय्या करतीं. 
उनके समझ में आया कि इन जंगलो को आग लगा कर, 
भूमि को चरागाह बन दिया जाए तो समस्या का हल निकल सकता है. 
आर्यों ने जंगलों में आग लगाना शुरू किया तो मूल निवासियों ने इस का विरोध किया. छल और बल द्वारा उन्होंने इस अग्नि काण्ड को 'हवन' का नाम प्रचारित किया, 
कहा कि हवन से वायु शुद्ध होती है. 
यज्ञ और हवन की शुरुआत इस तरह हुई थी 
और आर्यन भारत के मालिक बन गए, 
भारत के मूल निवासी अनार्य हो गए. 
इसी यज्ञ की बरकत लोगों का विश्वास बन गया 
और पंडों पुजारियों की ठग विद्या इनका धंधा बन गया. 
यह सवर्ण कहे जाने वाले आर्यन मध्य एशिया से चार क़िस्तों में आए. 
इनकी आख़िरी क़िस्त इस्लाम की सूरत में आई. 
भारत की ज़र्खेज़ी 5000 वर्ष पूर्व से १००० वर्ष पूर्व आर्य हमलावरों को खींचती रही. और हजारों सालों तक भारत भूमि पर क़ब्ज़ा जमाती रही. 
यह हमलावर भारत के उत्तर से आते रहे और भारत के मूल निवासियों को भारत में ही दक्षिण दिशा में ढकेलते रहे. 
जो न भाग सके वह इनके दास अछूत बन गए. 
आज भारत की तस्वीर गवाह है कि भारत की आबादी जिस हालत में है.  
यह ज़लिम आर्यन 5000 वर्षों से भारत के मूल निवासियों को उनकी ज़मीन जायदाद से बे दख़्ल कर रहे हैं, कभी नफ़रत फैला कर तो कभी देश प्रेम की हवा बना कर. 
देश के सभी मानव सभ्यताएँ इनके पैरों तले बौनी हो चुकी हैं, 
कही यह दुष्ट हक़दारों को नक्सली बतला कर मार रहे हैं तो कहीं पर माओ वादी. कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग कह कर, 
नागा लैंड जैसी रियासतों को अटूट हिस्सा बता कर. 
छल और कपट इनका धर्म होता है. 
आलमी अदालत UNO में समझौते पर दस्तख़त करने के बाद भी 
उससे फिर जाना इनके लिए हंसी खेल होता है. 
भारत के दो भू भागों के झगड़े को कभी न हल होने देने के लिए 
इनके पास हरबे होते हैं, कि यह हमारा अंदरूनी मुआमला है, 
किसी तीसरे को हमारे बीच पड़ने की कोई ज़रुरत नहीं, 
जब कि हर दो के झगड़े को कोई तीसरा पक्ष ही पड़ कर सुलह कराता है. 
आर्यन भारत आने से पहले भी अपना घिनावना इतिहास रखते हैं, 
भारत आने के बाद इनको टिकने के लिए बेहतर ज़मीन जो मिल गई है.
भारत में यह अपनी विषैली फ़सल बोने और काटने का हवन जारी रख्खेंगे.
यहूदियों और योरोपियन ने अमरीका के मूल निवासियों रेड इंडियंस की नस्ल कुशी करके उनका वजूद ही ख़त्म कर दिया, 
आर्यन ने भारत के मूल निवासियों को न मारा, न ही जीने दिया,
क्यों कि इन्हें दास बना कर रखने के लिए जीवित इंसानों की ज़रुरत है. 
मैं विशुद्ध हिन्दू हूँ, आर्यन हूँ, मगर सच बोलना ही मेरा धर्म है.
*** 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 16 January 2020

वैदिक युग की आमद आमद


खेद ही कि यह वेद है 

वैदिक युग की आमद आमद 

मैं अपने हिन्दू पाठकों को बतलाना चाहता हूँ कि 
कम बुरा इस्लाम, अधिक बुरे हिंदुत्व से कुछ बेहतर है. 
यह बात अलग है कि बहु संख्यक की आवाज़ अल्प संख्यक पर भारी पड़ रही है 
मगर सत्य की आवाज़ दबी हुई जब उभरती है तो हर तरफ़ सन्नाटा छा जाता है .
इसका जीता जगता सुबूत यह है कि हमेशा की तरह आज भी कम बुरा इस्लाम, 
हिन्दुओं को अपनी तरफ़ खींच रहा है, 
अल्ला रखखा रहमान से लेकर शक्ति कपूर तक सैकड़ों संवेदन शील लोग देखे जा सकते हैं , 
जबकि कोई अदना मुसलमान भी नहीं मिलेगा 
जो इस्लाम के आगे हिंदुत्व को पसंद करके हिन्दू बन गया हो .
कुछ मुख़्तसर सी बातें देखी - - -
एक अल्लाह की पूजा और बेशुमार भगवानो की पूजा ? 
कौन आकर्षित करता है अवाम को ? 
ऐसी ही बहुत सी समाजी बुराइयाँ मुसलमानों में कम है, हिन्दुओं से . 
मसलन शराब और दूसरे नशा .
त्योहारों को ही लीजिए,
*दीपावली आई तो रौशनी कर के बिजली घर को आफ़त में डाल दिय जाता है , 
पटाख़े से जान माल और पर्यावरण को नुक़सान, 
जुवा खेलना भी त्यौहार का महूरत है .
*होली को ख़ुद हिन्दुओं में संजीदा हिन्दू पसंद नहीं करते . 
अंधेर है कि होली में अमर्यादित गालियां गाई जाती हैं , 
रंग गुलाल को नाक से फांका जाता है .
*दर्शन और स्नान के नाम पर पंडों की दासता .
इन तमाम बुराइयों से मुसलमान अलग दूर नज़र आता है. 
अपने त्योहारों को भी पाक साफ़ रखता है और कोई पंडा बंधन नहीं .
फिर एक बार वैदिक युगीन हिंदुत्व के हाथों में सत्ता आ गई है. 
हिंदुत्व का दबाव जितना बढेगा, 
इस्लाम को भारत में उतना ही फलने फूलने का अवसर मिलेगा. 
कहीं ऐसा न हो कि संघ परिवार का सपना देखते ही देखते चकना चूर हो जाए. 
 कोई समाजी इन्कलाब आए और भारत का नक़्शा ही बदल जाए .
नेहरु का हिदोस्तान सही दिशा में जा रहा था, 
धर्म रहित मर्यादाएं विकसित हो रही थीं . 
याद नहीं कि हमने कभी उनको या उनके साथियों को टीका लगा देखा हो , 
आज सारी की सारी सरकारी मिशनरी टीका और बिंदिया से सुसज्जित दिखाई देती हैं . 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 15 January 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (10)

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (10)

कृष्ण भगवान् गीता में कहते हैं - - - 
"हे कुंती पुत्र ! तुम अगर युद्ध में मारे जाओगे तो स्वर्ग प्राप्त करोगे या 
यदि तुम जीत जाओगे तो पृथ्वी के सान्राज को भोग करोगे, 
अतः तुम संकल्प करके खड़े हो जाओ और युद्ध करो .
श्रीमद्  भगवद् गीता अध्याय 2  श्लोक 37
*
अल्लाह क़ुरआन में कहता है - - -
"और जो शख़्स अल्लाह कि राह में लड़ेगा वोह ख़्वाह जान से मारा जाए या ग़ालिब आ जाए तो इस का उजरे अज़ीम(महा पुण्य) देंगे और तुम्हारे पास क्या औचित्य है कि तुम जेहाद न करो अल्लाह कि राह में"
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (75)
*
" वह इस तमन्ना में हैं कि जैसे वोह काफ़िर हैं, वैसे तुम भी काफ़िर बन जाओ, 
जिस से तुम और वह सब एक तरह के हो जाओ. 
सो इन में से किसी को दोस्त मत बनाना, 
जब तक कि अल्लाह की राह में हिजरत न करें, और 
अगर वह रू गरदनी करें तो उन को पकडो और क़त्ल कर दो 
और न किसी को अपना दोस्त बनाओ न मददगार"
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (89)
***


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 14 January 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (9)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (9)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
किन्तु यदि तुम युद्ध करने से स्वधर्म को संपन्न नहीं करते तो तुम्हें निश्चित रूप से अपने कर्तव्य की उपेक्षा करने का पाप लगेगा और तुम योद्धा के रूप में भी अपना यश खो दोगे. 
लोग सदैव तुम्हारे अपयश का वर्णन करेंगे और सम्मानित व्यक्ति के लिए अपयश तो मृत्यु से भी बढ़ कर है. 
तुम्हारे शत्रु अनेक प्रकार के कटु शब्दों से तुम्हारा वर्णन करेगे. तुम्हारे लिए इससे दुखदायी क्या हो सकता है.
श्रीमद्  भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 33 -34 -36 
*
और क़ुरआन कहता है - - - 
''तुम में हिम्मत की कमी है इस लिए अल्लाह ने तख़्फ़ीफ़ (कमी) कर दी है,
सो अगर तुम में के सौ आदमी साबित क़दम रहने वाले होंगे तो वह दो सौ पर ग़ालिब होंगे.
नबी के लायक़ नहीं की यह इनके कैदी रहें,
जब कि वह ज़मीन पर अच्छी तरह खून रेज़ी न कर लें.
सो तुम दुन्या का माल ओ असबाब चाहते हो और अल्लाह आख़िरत को चाहता है
और अल्लाह तअला बड़े ज़बरदस्त हैं और बड़े हिकमत वाले हैं.''
सूरह -इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत (६७)

*क्या गीता और कुरआन के मानने वाले इस धरती को पुर अमन रहने देंगे ?
क्या इन्हीं किताबों पर हाथ रख कर हम अदालत में सच बोलने की क़सम खाते हैं ? ?
धरती पर शर और फ़साद के हवाले करने वाले यह ग्रन्थ 
क्या इस काबिल हैं कि इनको हाज़िर व् नाज़िल किया जाए, गवाह बनाया जाए ???
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 11 January 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (7)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (7)

भगवान कृष्ण कहते  हैं ---
 क्षत्रिय होने के नाते अपने अशिष्ट धर्म का विचार करते हुए 
तुम्हें जानना चाहिए कि धर्म के लिए युद्ध करने से बढ़ कर तुमहारे लिए अन्य को कार्य नहीं है 
अतः तुम्हें संकोच करने की कोई आवश्यता नहीं.
 हे पार्थ! 
वे क्षत्रिय सुखी हैं जिन्हें ऐसे युद्ध के अवसर अपने आप प्राप्त होते हैं 
जिस से उनके लिए स्वर्गों के द्वार खुल जाते हैं.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय २ श्लोक  31- 32 

*मनुवाद ने मानव जाति को चार वर्गों में बांटे हुए है. हर वर्ग के लिए उसक कार्य क्षेत्र निर्धारित किए हुए है, चाहे भंगियों को जनता के मल-मूत्र उठाना हो या वैश्य के लिए तेलहन पेर कर तेल निकलना हो अथवा क्षत्रिय को युद्ध करना. 
भगवान् अर्जुन को धर्म के कर्म बतला रहे हैं. 
यह कर्म तो उस पर ईश्वरीय निर्धारण है, कैसे पीछे रह सकता है ? 
कुरआन कहता है ---
''ऐ ईमान वालो! जब तुम काफिरों के मुकाबिले में रू बरू हो जाओ तो इन को पीठ मत दिखलाना और जो शख्स इस वक़्त पीठ दिखलाएगा, अल्लाह के गज़ब में आ जाएगा और इसका ठिकाना दोज़ख होगा और वह बुरी जगह है. सो तुम ने इन को क़त्ल नहीं किया बल्कि अल्लाह ने इनको क़त्ल किया और ताकि मुसलामानों को अपनी तरफ से उनकी मेहनत का खूब एवज़ दे. अल्लाह तअला खूब सुनने वाले हैं.''
सूरह -इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत (१५-१६-१७)
''निकल पड़ो थोड़े से सामान से या ज़्यादः सामान से 
और अल्लाह की राह में अपने माल और जान से जेहाद करो, 
यह तुम्हारे लिए बेहतर है अगर तुम यक़ीन करते हो.''
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (४१)
क्या गीता और कुरआन के मानने वाले इस धरती को पुर अमन रहने देंगे ?
क्या इन्हीं किताबों पर हाथ रख कर हम अदालत में सच बोलने की क़सम खाते हैं ? ?
धरती पर शर और फ़साद के हवाले करने वाले यह ग्रन्थ 
क्या इस काबिल हैं कि इनको हाज़िर व् नाज़िल किया जाए, गवाह बनाया जाए ???

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 10 January 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (8)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (8)

भगवान कृष्ण कहते  हैं ---
 क्षत्रिय होने के नाते अपने अशिष्ट धर्म का विचार करते हुए 
तुम्हें जानना चाहिए कि धर्म के लिए युद्ध करने से बढ़ कर तुम्हारे लिए अन्य को कार्य नहीं है 
अतः तुम्हें संकोच करने की कोई आवश्यता नहीं.
 हे पार्थ! 
वे क्षत्रिय सुखी हैं जिन्हें ऐसे युद्ध के अवसर अपने आप प्राप्त होते हैं 
जिस से उनके लिए स्वर्गों के द्वार खुल जाते हैं.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय २ श्लोक  31- 32 

*मनुवाद ने मानव जाति को चार वर्गों में बांटे हुए है. हर वर्ग के लिए उसक कार्य क्षेत्र निर्धारित किए हुए है, चाहे भंगियों को जनता के मल-मूत्र उठाना हो या वैश्य के लिए तेलहन पेर कर तेल निकलना हो अथवा क्षत्रिय को युद्ध करना. 
भगवान् अर्जुन को धर्म के कर्म बतला रहे हैं. 
यह कर्म तो उस पर ईश्वरीय निर्धारण है, कैसे पीछे रह सकता है ? 
कृष्ण आदेश क्या आज का समाज स्वीकार करेगा ?
*
क़ुरआन कहता है ---
''ऐ ईमान वालो! जब तुम काफ़िरों के मुक़ाबिले में रू बरू हो जाओ तो इन को पीठ मत दिखलाना और जो शख़्स इस वक़्त पीठ दिखलाएगा, अल्लाह के गज़ब में आ जाएगा और इसका ठिकाना दोज़ख होगा और वह बुरी जगह है. सो तुम ने इन को क़त्ल नहीं किया बल्कि अल्लाह ने इनको क़त्ल किया और ताकि मुसलामानों को अपनी तरफ़ से उनकी मेहनत का खूब एवज़ दे. अल्लाह तअला खूब सुनने वाले हैं.''
सूरह -इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत (१५-१६-१७)
क्या गीता और क़ुरआन के मानने वाले इस धरती को पुर अमन रहने देंगे ?
क्या इन्हीं किताबों पर हाथ रख कर हम अदालत में सच बोलने की क़सम खाते हैं ? ?
धरती पर शर और फ़साद के हवाले करने वाले यह ग्रन्थ, 
क्या इस काबिल हैं कि इनको हाज़िर व् नाज़िल किया जाए, 
गवाह बनाया जाए ???
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 9 January 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (6)

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (6)

मर्यादित वीर अर्जुन कहते हैं , 
>जो लोग उत्तम परंपरा को विनष्ट करते हैं और इस तरह आवांछित को जन्म देते हैं, 
उनके दुष्कर्मों से समस्त प्रकार की सामुदायिक योजनाएं तथा पारिवारिक कल्याण-कार्य विनष्ट हो जाते है. 
>>हे प्रजापति कृष्ण ! 
मैंने गुरु परंपरा से सुना है कि जो लोग कुल धर्म का विनाश करते हैं, 
वे सदैव नरक में वास करते है.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  1- श्लोक - 42 -43
भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>जिन जिन महान योद्धाओं ने तुम्हारे नाम तथा तुम्हारे यश को सम्मान दिया है 
वह सोचेंगे कि तुमने डर के मारे युद्ध भूमि छोड़ दी है 
और इस तरह वे तुम्हें तुच्छ मानेगे.
>>यहाँ मैंने वैश्लेषिक अध्धयन द्वरा इस ज्ञान का वर्णन किया है.
अब निष्काम भाव से कर्म करना बतला रहा हूँ , उसे सुनो. 
>>हे पृथापुत्र ! 
तुम यदि ऐसे ज्ञान से काम करोगे तो तुम कर्मों के बंधन से अपने को मुक्त कर सकते हो.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  अध्याय -2 - श्लोक -35 -39 
मर्यादित वीर अर्जुन कृष्ण से मर्यादित सवाल करते हैं,
कृष्ण उनको अमर्यादित सुझाव का जवाब देते हैं  ?
*
और क़ुरआन कहता है - - -
"पस की आप अल्लाह की राह में क़त्ताल कीजिए. आप को बजुज़ आप के ज़ाती फ़ेल के कोई हुक्म नहीं और मुसलमानों को प्रेरणा दीजिए . अल्लाह से उम्मीद है कि काफ़िरों के ज़ोर जंग को रोक देंगे और अल्लाह ताला ज़ोर जंग में ज़्यादा शदीद हैं और सख़्त सज़ा देते हैं।" 
सूरह निसाँअ 4 पाँचवाँ पारा- आयात (84) 
* ज़ेहन से काम लो दोसतो आस्थाएं तुम्हें अँधा किए हुए है. 
दोनों धर्मों में बहुत कम अंतर है, 
हम हिन्दू मुस्लिम में कितना अंतर हुवा जा रहा है.
दोनों धर्म मानवता के दुश्मन हैं.
***



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 8 January 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (5)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (5)

सज्जन पुरुष अर्जुन कहता है - - -
>यदि हम ऐसे आततायियों का बद्ध करते हैं तो हम पर पाप चढ़ेगा,
अतः यह उचित न गोगा कि घृतराष्ट्र के तथा उनके मित्रों का बद्ध करें.
हे लक्षमी पति कृष्ण ! 
इस में हमें क्या लाभ होगा ?
और अपने ही कुटुम्भियों को मार कर हम किस प्रकार सुखी हो सकते हैं ?   
>>हे जनार्दन ! 
यद्यपि लोभ से अभिभूत चित वाले यह लोग अपने परिवार को मारने या अपने मित्रों से द्रोह करने में कोई दोष नहीं देखते, 
किन्तु हम लोग जो परिवार को विनष्ट करने में जो अपराध देख सकते  हैं, 
ऐसे पाप कर्मों में क्यों प्रवृति हों ? 
 श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  1   श्लोक 36-37-38
*अर्जुन पहले धर्म मुक्त, इंसानी दर्द का हमदर्द था. 
कृष्ण ने उसे धर्म युक्त कर दिया. 
वह धर्म के अधर्मी गुणों का शिकार हो गया.
युद्ध की आग भड़काने वाले भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>किन्तु अगर तुम यह सोचते हो कि आत्मा सदा जन्म लेता है 
तथा सदा मरता है तो भी, 
हे बाहुबली ! 
तुम्हारे शोक करने का कोई करण नहीं.
>>जिसने जन्म लिया है, 
उसकी मृत्यु निश्चित है. 
अपने अपरिहार्य कर्तव्य पालन में तुम्हें शोक नहीं करना चाहिए.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 2  श्लोक 26-27  
*अभी पिछले दिनों किसी मुल्क में आतंक वादियों ने एक बस्ती जला दी, 
उसमे एक ज़ू था, उसके जानवर भी जलकर मर गए. 
उनसे पूछा गे कि ज़ू के जानवरों की कौन सी ख़ता थी कि तुमने उनको मार दिया ? जवाब था कि जानवरों को तो एक दिन मरना ही था. 
क्या भगवान् केविचार उन आतंकियों से कुछ जुदा हैं.
और क़ुरआन कहता है - - - 
अल्लाह मुहम्मद से कहता है, 
''आप फ़रमा दीजिए तुम तो हमारे हक़ में दो बेहतरीयों में से एक बेहतरी के हक़ में ही के मुनतज़िर रहते हो और हम तुम्हारे हक़ में इसके मुन्तज़िर रहा करते हैं कि अल्लाह तअला तुम पर कोई अज़ाब नाज़िल करेगा, अपनी तरफ़ से या हमारे हाथों से.सो तुम इंतज़ार करो, हम तुम्हारे साथ इंतज़ार में हैं.''
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (५२)
यह आयत मुहम्मद की फितरते बद का खुला आइना है, कोई आलिम आए और इसकी रफ़ूगरी करके दिखलाए. ऐसी आयतों को ओलिमा अवाम से ऐसा छिपाते हैं जैसे कोई औरत बद ज़ात अपने नाजायज़ हमल को ढकती फिर रही हो. आयत गवाह है कि मुहम्मद इंसानों पर अपने मिशन के लिए अज़ाब बन जाने पर आमादा थे. इस में साफ़ साफ़ मुहम्मद ख़ुद को अल्लाह से अलग करके निजी चैलेन्ज कर रहे हैं, क़ुरआन अल्लाह का कलाम को दर गुज़र करते हुए अपने हाथों का मुजाहिरा कर रहे हैं. अवाम की शराफ़त को ५०% तस्लीम करते हुए अपनी हठ धर्मी पर १००% भरोसा करते हैं. तो ऐसे शर्री कूढ़ मग्ज़ और जेहनी अपाहिज हैं 
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 6 January 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (4)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (4)

महा भारत छिड़ने से पहले अर्जुन, भगवान् कृष्ण से कहते हैं ,
>"हे गोविंद ! 
हमें राज्य सुख अथवा इस जीवन से क्या लाभ !
क्योंकि जिन सारे लोगों के लिए हम उन्हें चाहते हैं , 
वे ही इस युद्ध भूमि में खड़े हैं. 
>>हे मधुसूदन !
जब गुरु जन, पितृ गण, पुत्र गण, पितामह, मामा, ससुर, पौत्र गण, साले 
और अन्य सारे संबंधी अपना अपना धन और प्राण देने के लिए तत्पर हैं 
और मेरे समक्ष खड़े हैं 
तो फिर मैं इन सबको क्यों मारना चाहूंगा,
भले ही वह मुझे क्यूँ न मार डालें ?
>>>हे जीवों के पालक !
मैं इन सबों से लड़ने के लिए तैयार नहीं, 
भले ही बदले में हमें तीनों लोक क्यूँ न मिलते हों.
इस पृथ्वी की तो बात ही छोड़ दें. 
भला धृतराष्ट्र को मार कर हमें कौन सी प्रसंनता मिलेगी ?" 
श्रीमद्  भगवद् गीता अध्याय 1  श्लोक ++-32-33-34-35 
* नेक दिल अर्जुन के मानव मूल्यों का के जवाब में,  
भगवान् कृष्ण अर्जुन को जवाब देते हैं - - - 
"श्री भगवान् ने कहा ---
>हे अर्जुन !
तुम्हारे मन में यह कल्मष आया कैसे ?
यह उस मनुष्य के लिए तनिक भी अनुकूल नहीं है 
जो जीवन के मूल्य को जानता हो.
इससे उच्च लोक की नहीं अपितु अपयश की प्राप्ति होती है.
>>हे पृथा पुत्र !
इस हीन नपुंसकता को प्राप्त न होवो 
यह तुम्हें शोभा नहीं देती.
हे शत्रुओं के दमन करता ! 
ह्रदय की क्षुद्र दुर्बलता को त्याग कर युद्ध के लिए खड़े हो जाओ.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय अध्याय  2  श्लोक 2 -3 

*कपटी भगवान् के निर्मूल्य विचार, पाठक ख़ुद फ़ैसला करें. 
और क़ुरआन कहता है - - - 
''ए नबी! कुफ़्फ़ारऔर मुनाफ़िक़ीन से जेहाद कीजिए और उन पर सख़्ती  कीजिए, उनका ठिकाना दोज़ख़ है और वह बुरी जगह है. वह लोग कसमें खा जाते हैं कि हम ने नहीं कही हाँला कि उन्हों ने कुफ़्र की बात कही थी और अपने इस्लाम के बाद काफ़िर हो गए.- - -सो अगर तौबा करले तो बेहतर होगा और अगर रू गरदनी की तो अल्लाह तअला उनको दुन्या और आख़िरत में दर्द नाक सज़ा देगा और इनका दुन्या में कोई यार होगा न मददगार.''
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (७२-७४)
"काफ़िरों को जहाँ पाओ मारो, बाँधो, मत छोड़ो जब तक कि इस्लाम को न अपनाएं."
"औरतें तुम्हारी खेतियाँ है, इनमे जहाँ से चाहो जाओ."
"इनको समझाओ बुझाओ, लतियाओ जुतियाओ फिर भी न मानें तो इनको अंधेरी कोठरी में बंद कर दो, हत्ता कि वह मर जाएँ."
"काफ़िर की औरतें बच्चे मिन जुमला काफ़िर होते हैं, यह अगर शब् खून में मारे जाएँ तो कोई गुनाह नहीं."
>>ऐसे सैकड़ों इंसानियत दुश्मन पैग़ाम इन जहन्नुमी ओलिमा को इनका अल्लाह देता है.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 5 January 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (3


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (3)

>अर्जुन ने वहां पर दोनों पक्षो की सेनाओं के मध्य में अपने चाचा, ताऊओं, पितामहों, गुरुओं, मामाओं, भाइयों, पुत्रों, पौत्रों, मित्रों, ससुरों और शुभचिंतकों को भी देखा.
>>(सरल स्वभाव अर्जुन कहता है - - -)
हे कृष्ण ! 
इस प्रकार युद्ध की इच्छा रखने वाले अपने मित्रों तथा संबंधियों को अपने समक्ष उपस्थित देख कर, मेरे शरीर के अंग काँप रहे हैं और मेरा मुंह सूखा जा रहा है.
>>> मेरा सारा शरीर काँप रहा है, मेरे रोंगटे खड़े हो रहे हैं, 
मेरा गाण्डीव धनुष मेरे हाथ से सरक रहा है और मेरी त्वचा जल रही है. 
>>>>मैं यहाँ अब और खड़े रहने में असमर्थ हूँ. 
मैं अपने को भूल रहा हूँ और मेरा सिर चकरा रहा है. 
हे कृष्ण !
 मुझे तो केवल अमंगल के करण दिख रहे है. 
>>>>>हे कृष्ण ! 
इस युद्ध में अपने ही स्वजनों का बद्ध करने से न तो मुझे कोई अच्छाई दिखती है और न, मैं उस से किसी प्रकार का विजय, राज्य या सुख की इच्छा रखता हूँ.  
 श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 1    श्लोक 26 -28 -29 -30- 31  
   श्री भगवान ने कहा --
>तुम पाण्डित्य पूर्ण वचन कहते हुए उनके लिए शोक कर रहे हो, 
जो शोक करने योग्य नहीं. 
जो विद्वान् होते हैं, वह न तो जीवित के लिए,
 न ही मृत के लिए शोक करते हैं.  
*(भगवान अर्जुन को गुमराह कर रहे हैं ) 
>>जिस शरीर धारी आत्मा इस शरीर में बाल्यावस्था से तरुणावस्था में 
और फिर वृधा वस्था में निरंतर अग्रसर होता रहता है, 
उसी प्रकार मृत्यु होने पर आत्मा दूसरे शरीर में चला जाता है. 
धीर व्यक्ति ऐसे परिवर्तन से मोह को प्राप्त नहीं होता है.  
>>हे कुन्ती पुत्र ! 
सुख और दुःख का क्षणिक उदय और काल क्रम में उनका अन्तर्धान होना, 
सर्दी तथा गर्मी के ऋतुओं के आने जाने के सामान है.
हे भरतवंशी ! 
वे इन्द्रीय बोध से उत्पन्न होते हैं 
और मनुष्य को चाहिए कि अविचल भाव से उन्हें सहन करना सीखे.
श्रीमद् भगवद भगवद् गीता अध्याय 2     श्लोक 11-  13 -14  
*अर्जुन की ठोस मार्मिक और तार्तिक भावनाएं 
और कृष्ण के कुरुर और अमानवीय मशविरे? 
मनुवाद के इस घृणित विचारों से से गीता की शुरुआत होती है 
और अंत तक युद्ध-पाप का दमन गीता नहीं छोडती. 
और क़ुरआन कहता है - - - 
''निकल पड़ो थोड़े से सामान से या ज़्यादः सामान से और अल्लाह की राह में अपने माल और जान से जेहाद करो, यह तुम्हारे लिए बेहतर है अगर तुम यक़ीन करते हो.''
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (४१)
''जो लोग अल्लाह और क़यामत के दिन पर ईमान रखते हैं वह अपने माल ओ जान से जेहाद करने के बारे में आप से रुख़सत न मांगेंगे अलबत्ता वह लोग आप से रुख़सत मांगते हैं जो अल्लाह और क़यामत के दिन पर ईमान नहीं रखते और इन के दिल शक में पड़े हैरान हैं.
''सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (४५)
''आप कह दीजिए तुम्हारे बाप, तुम्हारे बेटे, तुम्हारे भाई और तुम्हारी बीवियां और तुम्हारा कुनबा और तुम्हारा माल जो तुमने कमाया और वह तिजारत जिस में से निकासी करने का तुम को अंदेशा हो और वह घर जिसको तुम पसंद करते हो, तुमको अल्लाह और उसके रसूल से और उसकी राह में जेहाद करने से ज़्यादः प्यारे हों तो मुन्तज़िर रहो, यहाँ तक की अल्लाह अपना हुक्म भेज दे. और बे हुकमी करने वाले को अल्लाह मक़सूद तक नहीं पहुंचता'' 
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (२४)
इन्तहा पसंद मुहम्मद, ताजदारे मदीना, सरवरे कायनात, न ख़ुद  चैन से बैठते कभी, 
न इस्लाम के जाल में फंसने वाली रिआया को कभी चैन से बैठने दिया. 
अगर कायनात की मख्लूक़ पर क़ाबू पा जाते तो जेहाद के लिए दीगर कायनातों की तलाश में निकल पड़ते. 
अल्लाह से धमकी दिलाते हैं कि तुम मेरे रसूल पर अपने अज़ीज़ तर औलाद, 
भाई, शरीके-हयात और पूरे कुनबे को क़ुर्बान करने के लिए तैयार रहो, 
वह भी बमय अपने तमाम असासे के साथ जिसे तिनका तिनका जोड़ कर आप ने अपनी घर बार की ख़ुशियों के लिए तैयार किया हो. 
इंसानी नफ़्सियात से नावाक़िफ़ पत्थर दिल मुहम्मद क़ह्हार अल्लाह के जीते जागते रसूल थे. 
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 4 January 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा (2)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा (2)

गीता का संक्षेप परिचय इस तरह से है कि कौरवों और पांडुओं के बीच हुए युद्ध के दौरान पांडु पुत्र अर्जुन के सारथी (कोचवान) बने भगवान कृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं, अर्जुन उनके उपदेश और निर्देश को सुनता है, शंका समाधान करवाता है, 
भगवान् उसे जीवन सार समझाते हैं, दोनों की यही वार्तालाप गीता है. 

अंधे राजा धृतराष्ट्र का सहायक संजय युद्ध का आँखों देखा हाल सुनाता है. 
संजय गीता का ऐसा पात्र है कि जिसमें अलौकिक दूर दृष्टि होती है. 
वह कृष्ण और अर्जुन के बीच हुई बात चीत को अक्षरक्षा अंधे धृतराष्ट्र को सुनाता है.
>धृतराष्ट्र ने पूछा  ---
धर्म भूमि कुरुक क्षेत्र युद्ध की इच्छा से एकत्र हुए मेरे तथा पांडु के पुत्रों ने क्या किया.
>>संजय ने कहा --- 
हे राजन ! 
पांडु पुत्रों द्वारा सेना की व्यूह रचना देख कर राजा दुर्योधन अपने गुरु के पास गया और उसने यह शब्द कहे---
>>>हे आचार्य ! 
पांडुओं की विशाल सेना को देखें, जिसे आपके बुद्धिमान शिष्य द्रुपद के पुत्र ने इतने कौशलता से व्यवस्थित किया है.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय- 1  श्लोक  1-2-3 
*गीता क्या है ? 

नमूने के तौर पर उपरोक्त तीन श्लोक प्रस्तुत हैं . 
अंधे धृतराष्ट्र को संजय अपनी दूर दृष्टिता द्वारा मैदान ए जंग का आँखों देखा हाल सुनाता है, 
इसी सन्देश वाहक के सन्देश द्वारा गीता की रचना होती है.
संजय की ही तरह मुहम्मद ने क़ुरआन को आसमान से वह्यि (ईश वाणियाँ) ढोकर लाने वाले फ़रिश्ता जिब्रील को गढ़ा है, जो क़ुरआनी आयतें अल्लाह से ले कर मुहम्मद के पास आता  है और इनको उसका पाठ पढ़ाता है. मुहम्मद उसे याद करके लोगों के सामने गाते हैं. 
ऐसे चमत्कार को आज, इस इक्कीसवीं सदी में भी बुद्धिहीन हिन्दू और मुसलमान ओढ़ते और बिछाते हैं. 
कुरआन कहता है ---  
''ये किताब ऐसी है जिस में कोई शुबहा नहीं, राह बतलाने वाली है, अल्लाह से डरने वालों को." 
(सूरह अलबकर -२ पहला पारा अलम आयत 2 ) 
आख़िर अल्लाह को इस क़द्र अपनी किताब पर यक़ीन दिलाने की ज़रूरत क्या है? 
इस लिए कि यह झूटी है. 
क़ुरआन में एक ख़ूबी या चाल यह है कि मुहम्मद मुसलामानों को अल्लाह से डराते बहुत हैं. मुसलमान इतनी डरपोक क़ौम बन गई है कि अपने ही अली और हुसैन के पूरे ख़ानदान को कटता मरता खड़ी देखती रही, 
अपने ही ख़लीफ़ा उस्मान ग़नी को क़त्ल होते देखती रही, 
उनकी लाश को तीन दिनों तक सड़ती, खड़ी देखती रही, 
किसी की हिम्मत न थी की उसे दफ़नाता, 
यहूदियों ने अपने कब्रिस्तान में जगह दी तो मिटटी ठिहाने लगी. 
मगर मुसलमान इतना बहादुर है 
कि जन्नत की लालच और हूरों की चाहत में सर में कफ़न बाँध कर जेहाद करता है. 
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान