Tuesday 31 March 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (44)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (44)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
हे महाबाहु अर्जुन ! और आगे सुनो. 
चूँकि तुम मेरे प्रिय सखा हो, 
अतः मैं तुम्हारे लाभ के लिए  ऐसा ज्ञान प्रदान करूँगा, 
जो अभी तक मेरे द्वारा बताए गए ज्ञान में श्रेष्ट होगा .
**जो मुझे अजन्मा अनादि,  
समस्त लोकों के  स्वामी के रूप में जनता है,
मनुष्यों में केवल वही मोहरहित और समस्त पापों से मुक्त हिता है.     
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  - 10  श्लोक -1+3 
> भगवान् एक सामान्य आदमी को विभिन्न उपाधियाँ देकर ही संबोधित करते हैं.. कभी महाबाहु तो कभी कुंती पुत्र तो कभी पृथा पुत्र, पांडु पुत्र और भरतवंशी. 
अर्जुन भी कोई कसर नहीं छोड़ते मधुसूदन  भगवान्   पुरुषोत्तम आदि उपाधियों से नवाजते हैं. 
फ़ारसी की एक सूक्ति है कि नए शहर में रोज़ी कमाने दो लोग गए और तय किया कि "मन तुरा क़ाज़ी बगोयम, तू मरा हाजी बेगो." 
(तुम मुझे काज़ी जी कहा करो और मै तुमको हाजी जी.) 
कुछ दिनों में हम दोनों कम से कम इज़्ज़त तो कमा ही लेगे .
खैर यह लेखनी की नाट्य कला है. गीता कृष्ण और अर्जुन का नाटक ही तो है जिसे धर्म ग्रन्थ माँ लिया गया है. उसके बाद तुलसी दास के महा काव्य कृति रामायण को धर्म ग्रन्थ मान लिया गया.
कृष्ण जी अपने प्रिय सखा से एक ही बात को बार बार दोहराते हैं कि आखिर तुम मुझको ईश्वरीय ताक़त क्यों नहीं मान लेते.
और क़ुरआन कहता है - - - 
>'' ऐ ईमान वालो! तुम अल्लाह और रसूल के कहने को बजा लाया करो जब कि रसूल तुम को तुम्हारी ज़िन्दगी बख्श चीजों की तरफ बुलाते हैं और जान रखो अल्लाह आड़ बन जाया करता है आदमी के और उसके क़ल्ब के दरमियान और बिला शुबहा तुम सब को अल्लाह के पास जाना ही है.''
सूरह -इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत ( २४ )
जादूई खसलत के मालिक मुहम्मद इंसानी ज़ेहन पर इस कद्र क़ाबू पाने में आखिर कार कामयाब हो ही गए जितना कि कोई ज़ालिम आमिर किसी कौम पर फ़तह पाकर उसे गुलाम बना कर भी नहीं पा सकती. आज दुन्या की बड़ी आबादी उसकी दरोग की आवाज़ को सर आँख पर ढो रही है और उसके कल्पित अल्लाह को खुद अपने और अपने दिल ओ दिमाग के बीच हायल किए हुए है.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 30 March 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (43)

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (43)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>अपने मन को मेरे नित्य चिंतन में लगाओ, 
मेरे भक्त बनो, मुझे नमस्कार करो और मेरी ही पूजा करो. 
इस प्रकार मुझ में पूर्णतया तल्लीन होने पर 
तुम निश्चित रूप से मुझे प्राप्त करोगे. 
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -9  श्लोक -34 
>भगवान् को प्राप्त करने के बाद साधक को क्या मिलता है ?
गूंगे को गुड का स्वाद ? जिसे वह बयान नहीं कर पाता. 
या अंधे की कल्पना जिसमे डूब कर वह हमेशा मुस्कुराया करता है ? 
क्या गीता लोगों को अँधा और गूंगा बनती है ? 
परम सुख है औरों को सुख देना और भगवान् स्वयं सुख पाने का पाठ पढ़ा रहे हैं.
और क़ुरआन कहता है - - - 
>''ऐ ईमान वालो! 
अगर तुम अल्लाह से डरते रहोगे तो, वह तुम को एक फैसले की चीज़ देगा और तुम से तुम्हारे गुनाह दूर क़र देगा और तुम को बख्श देगा और अल्लाह बड़ा फ़ज़ल वाला है.''
सूरह -इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत ( २९ )
अल्लाह के एजेंट बने मुहम्मद उसकी बख्शी हुई रियायतें बतला रहे हैं. 
पहले उसके बन्दों को समझा दिया कि उनका जीना ही गुनाह है, 
वह पैदा ही जहन्नम में झोंके जाने के लिए हुए हैं, 
इलाज सिर्फ़ यह है कि मुसलमान होकर मुहम्मद और उनके कुरैशियों को टेक्स दें और उनके लिए जेहाद करके दूसरों को लूटें मारें जब तक कि वह भी उनके साथ जेहादी न बन जाएँ.
ना करदा गुनाहों के लिए बख्शाइश का अनूठा फार्मूला जो मुसलमानों को धरातल की तरफ खींचता रहेगा.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 29 March 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (42)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (42)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>यदि कोई जघन्य से जघन्य कर्म करता है, 
किन्तु यदि वह भक्ति में रत रहता है तो 
उसे साधु मानना चाहिए.
क्योंकि वह अपने संकल्प में अडिग रहता है. 
>>वह तुरंत धर्मात्मा बन जाता है और स्थाई शान्ति को प्राप्त होता है. 
हे कुंती पुत्र ! 
निडर होकर घोषणा करदो कि मेरे भक्त का कभी विनाश नहीं होता.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -9  श्लोक -30 +31 
>कितनी खोखली बात कही है गीता ने. क्या यह गीता अपराधियों की शरण स्थली नहीं ?
 बड़े बड़े डाकू भगवान् की इन बातों का सहारा  लेकर गुनाहों से तौबा करते हैं, 
उसके बाद धर्मात्मा बन कर पूजे जाते हैं. उन की लूट आसान हो जाति है, 
बिना खून खराबे के माल काटते हैं.
और क़ुरआन कहता है - - - 
मुगीरा नाम का एक कातिल एक कबीले का विशवास पात्र बन कर सोते में पूरे कबीले का खून करके मुहम्मद के पास आता है और इस्लाम कुबूल कर लेता है, इस शर्त के साथ कि उसका लूटा हवा माल उसका होगा . मुहम्मद फ़ौरन राज़ी हो जाते हैं.
*मुगीरा*= इन मुहम्मद का साथी सहाबी की हदीस है कि इन्होंने (मुगीरा इब्ने शोअबा) एक काफिले का भरोसा हासिल कर लिया था फिर गद्दारी और दगा बाज़ी की मिसाल क़ायम करते हुए उस काफिले के तमाम लोगो को सोते में क़त्ल करके मुहम्मद के पनाह में आए थे और वाकेआ को बयान कर दिया था, फिर अपनी शर्त पर मुस्लमान हो गए थे. (बुखारी-११४४)
गीता और क़ुरआन खोटे सिक्के के दो पहलू हैं, इनका चलन जब तलक देश में प्रचलित रहेगा, भारत के बाशिंदों का दुर्भाग्य कायम रहेगा.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 28 March 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (41)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (41)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>जो देवताओं की पूजा करते हैं, वे देवताओं के बीच जन्म लेते है,
जो पितरों को पूजते हैं वे पितरों के पास जाते हैं, 
जो भूत प्रेतों की उपासना करते हैं वे उन्हीं के बीच जन्म लेते हैं, 
और जो मेरी पूजा करते है वे मेरे साथ ही निवास करते हैं.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  - 9  - श्लोक -25 
>हे कृष्ण भगवान ! 
तुमको पूजने से तो बेहतर है हम औरों को पूजें, या अपने पितरों को. 
कम से कम दूसरे आपकी तरह ब्लेक मेलिंग तो नहीं करेगे.
स्वयंभू भगवान् बन कर, महिमा मंडित होकर, हमारा दिमाग़ तो नहीं खाते रहेंगे. 
और क़ुरआन कहता है - - - 
>''आप फरमा दीजिए तुम तो हमारे हक में दो बेहतरीयों में से एक बेहतरी के हक में ही मुताज़िर रहते हो और हम तुम्हारे हक में इसके मुन्तजिर रहा करते हैं कि अल्लाह तअला तुम पर कोई अज़ाब नाज़िल करेगा, अपनी तरफ से या हमारे हाथों से.सो तुम इंतज़ार करो, हम तुम्हारे साथ इंतज़ार में हैं.''
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (५२)
यह आयत मुहम्मद की फितरते बद का खुला आइना है, 
कोई आलिम आए और इसकी रफूगरी करके दिखलाए. 
ऐसी आयतों को ओलिमा अवाम से ऐसा छिपाते हैं जैसे कोई बद ज़ात औरत अपने नाजायज़ हमल को ढकती फिर रही हो. 
आयत गवाह है कि मुहम्मद इंसानों पर अपने मिशन के लिए अज़ाब बन जाने पर आमादा थे. 
इस में साफ़ साफ मुहम्मद खुद को अल्लाह से अलग करके निजी चैलेन्ज कर रहे हैं, 
क़ुरआन अल्लाह का कलाम को दर गुज़र करते हुए अपने हाथों का मुजाहिरा कर रहे हैं. 
अवाम की शराफत को ५०% तस्लीम करते हुए अपनी हठ धर्मी पर १००% भरोसा करते हैं. 
तो ऐसे शर्री कूढ़ मग्ज़ और जेहनी अपाहिज हैं 
***
  
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 27 March 2020

खेद है कि यह वेद है (40)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (40)

हे सोम एवं पूषा !
तुम में से एक ने समस्त प्राणियों को उत्पन्न क्या है. 
दूसरा सब का निरीक्षण करता हुवा जाता है. 
तुम हमारे यज्ञ कर्म की रक्षा करो. 
तुम्हारी सहायता से हम शत्रुओं की पूरी सेना को जीत लेंगे.
द्वतीय मंडल सूक्त 40(5)
*पंडित जी सैकड़ों देव गढ़ते है और फिर इनको उनकी विशेषता से अवगत कराते हैं, उसके बाद उनको अपनी चाकरी पर नियुक्त करते हैं. पता नहीं किस शत्रु की सेना इनके यज्ञ में विघ्न  डालती हैं. 
यजमान हाथ जोड़ कर इनके मंतर सुनते हैं. मैंने पहले भी कहा है मंतर जिसे मंत्री के सिवाए कोई समझ न पाए. यह बहुधा संस्कृति और अरबी में होते है.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 26 March 2020

खेद है कि यह वेद है (39

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (39)

कपडे बुनने वाली नारी जिस प्रकार कपडे लपेटी है, 
उसी प्रकार रात बिखरे हुए प्रकाश को लपेट लेती है. 
कार्य करने में समर्थ एवं बुद्धिमान लोग अपना काम बीच में ही रोक देते हैं. 
विराम रहित एवं समय का विभाग करने वाले सविता देव के उदित होने तक लोग शैया छोड़ते हैं.
द्वतीय मंडल सूक्त 38(4)
*वाहन पंडित जी ! क्या लपेटा है.
कुर आन में भी कुछ ऐसे ही रात और दिन को अल्लाह लपेटता है. 
नारी कपडे को लपेट कर सृजात्मक काम करती है 
और रात बिखरे हुए प्रकाश को लपेट कर नकारात्मक काम करती है. 
यह विरोधाभाषी उपमाएं क्या पांडित्व का दीवालिया पन तो नहीं? 
इस सूक्त से एक बात तो साफ़ होती है कि वेद की आयु उतनी ही है कि जब इनसान कपडा बुनना और उसे लपेट कर रखने का सकीका सीख गया था, 5-6 हज़ार वर्ष पुरानी नहीं.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 25 March 2020

खेद है कि यह वेद है (38)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (38)

हे अस्वनी कुमारो ! 
तुम दोनों होटों के सामान मधुर वचन बोलो, 
दो स्तनों के सामान हमारे जीवन रक्षा के लिए दूध पिलाओ, 
नासिका के दोनों छिद्रों के सामान हमारे शरीर रक्षक बनो. 
एवं कानो के सामान हमारी बात सुनो.  
द्वतीय मंडल सूक्त 39(6)

पंडित जी महाराज दोनों होटों से ही कटु वचन भी बोले जाते है. 
कब तक स्तनों के दूध पीते रहोगे ? अब बड़े भी हो जाओ.
हाथ, पैर, आँखें और अंडकोष भी दो दो होते हैं इनको भी अपने मंतर में लाओ. 
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 24 March 2020

खेद है कि यह वेद है (37)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (37)

हे द्रविणोदा ! वे घोड़े तृप्त हों जिनके द्वारा तुम आते हो.
हे वनों के स्वामी ! तुम किसी की हिंसा न करते हुए दृढ बनो.
हे शत्रुपराभवकारी !तुम नेष्टा के यज्ञ आकर ऋतुओं के साथ सोम पियो. 
द्वतीय मंडल सूक्त 37 (3)

समझ में नहीं आता कि कौन सी उपलब्धियाँ हैं वेद में जो मानवता का उद्धार कर रही होम. बस देवों को खिलने पिलाने की दावत हर दूसरे वेद मन्त्र में है. 
खुद बामन्ह का पेट गणेश उदर जैसा लगता है कि इसके लिए हवि की हर वक़्त ज़रुरत होती है. 
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 23 March 2020

खेद है कि यह वेद है (36)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (36)

* हे बुद्धिमान अग्नि ! 
इस यज्ञ स्थल में देवों को बुला कर उनके निमित यज्ञ करो.
हे देवों को बुलाने वाले अग्नि !
तुम हमारे हव्य की इच्छा करते हुए तीन स्थानों पर बैठो , 
उत्तर वेदी पर रख्खे हुए सोमरूप मधु को रवीकर करो.
एवं अगनीघ्र के पास से अपना हिस्सा लेकर तृप्त बनो.
द्वतीय मंडल सूक्त 36(4)

बुद्धू राम अग्नि को बुद्धमान बतला रहे हैं. 
आग का बुद्धी से क्या वास्ता ?  
देव को महाराज हुक्म देते हैं कि अपना हिस्सा ही लेना , 
कोई मनमानी नहीं करना. 
यह है इनका मस्तिष्क स्तर.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 22 March 2020

खेद है कि यह वेद है (35)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (35) 

 हिरण्यरूप, हिरण्यमय इन्द्रियों वाले एवं हिरण्यवर्ण अपानपात हिरण्यमय स्थान पर बैठ कर सुशोबित होते हैं. हिरण्यदाता यजमान उन्हें दां देते हैं.  
द्वतीय मंडल सूक्त 35(10)
पंडित जी शब्दा अलंकर को लेकर एक पशु हिरन को सुसज्जित और अलंकृत कर रहे हैं, भाव का आभाव है,
हरे हरे कदम की, हरी हरी छड़ी लिए, हरि हरि पुकारती, हरे हरे लतन में. 
पिछले सूक्त34 (1) में अपने देव को भयानक पशु जैसा रूप गढ़ा था.  
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 21 March 2020

खेद है कि यह वेद है (34)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (34)

हे रूद्र ! 
तुम्हारा वह सुख दाता हाथ कहाँ है जो सबको सुख पहुँचाने वाली दवाएं बनाता है ? 
हे काम वर्धक रूद्र !
तुम देव कृत पाप का विनाश करते हुए मुझे जल्दी क्षमा करो . 
द्वतीय मंडल सूक्त 33 (7)
काम वर्धक अर्थात आज की भाषा में अय्याशी . श्लोक उन हाथों को तलाश कर रहा है जो उसके लिए काम वर्धक दवाएं बनाता है . 
कुरआनी  मुसलमान हो या वैदिक हिन्दू , सब भोग विलाश में मुब्तिला है. 
देव तो देव होते हैं, उनके कृत पाप कैसे हुए. अगर देव भी पापी हुवा करते हैं तो इंसान की क्या औकात ? 
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 20 March 2020

खेद है कि यह वेद है (33)


खेद  है  कि  यह  वेद  है   (33)

स्थिर बृक्ष आदि को चंचल करने वाले, 
अपनी शक्ति से सब को पराजित करने वाले, 
पशु के सामान भयानक, 
अपने बल द्वारा समस्त संसार को व्याप्त करने वाले, 
अग्नि के सामान द्वीव जल से मुक्त मरुद गण, 
घूमने वाले बादलों को छिन भिन्न करके जल बरसते हैं.  
द्वतीय मंडल सूक्त 34(1)
यह देखौ पंडित के ज्ञान. अपने पूज्य को पशु बतलाता है, पशुओं को भयानक जनता है. अपने देव की विचित्र विशेषताएँ गिनवाता है. कहते हैं कि वेद मन्त्रों की व्याख्या ब्राह्मण के आलावा कोई दूसरा नहीं कर सकता, ज़ाहिर है इसका पांडित्व नंगा हो जाएगा. विडंबना ही कही जाएगी कि ऐसी पाखंड पोथी भारत के सर आँख पर है.
*(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 19 March 2020

खेद है कि यह वेद है (32)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (32)

हे अभीष्ट वर्षक मरूद गण ! 
तुम्हारी जो औषधियां शुद्ध एवं अत्यधिक सुख देने वाली हैं, 
जिन्हें हमारे पिता मनु ने पसंद किया था, 
रूद्र की उन्हीं सुखदायक व् भय नाशक औषधियों की हम इच्छा करते हैं.
द्वतीय मंडल सूक्त  33(13)
इस वेद मन्त्र को इस लिए चुना कि इससे मालूम हुवा कि इन मन्त्रों के रचैता रुस्वाए-ज़माना मनु महाराज वंशज हैं, मनु महाराज ने मनु समृति रच कर देश को मनु विधान दिया था, जिस में मानवता 5000 सालों से कराह रही है.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 18 March 2020

खेद है कि यह वेद है (31)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (31)

हे ध्यावा पृथ्वी !
यज्ञ करने के इच्छुक एवं तुम्हें प्रसन्न करने के लिए प्रयत्न शील 
मुझ स्तोता की रक्षा करो. 
सब की अपेक्षा उत्कृष्ट अन्न वाले 
एवं अनेक लोगों द्वारा प्रशंसित तुम्हाती स्तुति में 
अन्न प्राप्ति की अभिलाषा से विशाल स्तोत्रों द्वारा करूँगा.
द्वतीय मंडल सूक्त 32 (1)
मेरे बचपन में मुझे याद है भिखारी गले में झोली लटकाय दर दर पिसान माँगा करते थे. कुत्ते उनको देख कर भौंकते और भगाते.
शेख शादी कहते हैं कि कुत्ता इस लिए भिखारी पर भौंकता है कि उसका एक टुकड़े से पेट भर जाता है, भिखारी की झोली कभी भी नहीं भारती. 
कुत्ता एक टुकड़े के बदले रात भर बस्ती की रखवाली करता है 
और भिखारी भीख मांग कर सुख सुविधा को भोगता है. 
यह पूरा वेद भिखारी नामः है. 
हवि यानी खैरात. 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 17 March 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (40)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (40)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>जो वेदों का अध्ययन करते तथा सोमरस का पान करते हैं, 
वे स्वर्ग प्राप्ति की गवेषणा करते हुए 
अप्रत्यक्ष रूप से मेरी पूजा करते है.
वे पाप कर्मो से शुद्ध होकर, 
इन्द्र के पवित्र स्वर्गिक धाम में जन्म लेते हैं,
यहाँ वे देवताओं का सा आनंद भोगते है.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -9    श्लोक -20 
>जो गीता का अध्ययन करते हैं वह बापू आसा राम बन जाते तो कभी बाबा राम रहीम. कृष्ण का एक रूप रास लीला भी है जो गीता के कृष्ण  को ताक़ पर रख कर सदियों से बापू आसा राम और बाबा राम रहीम बनते चले आए हैं. गीता श्रोत है इन अय्याश मुजरिमों का, इसी से मुजरिम प्रेरणा पाते हैं और हर दौर में अवतार लेते रहते हैं.
और क़ुरआन कहता है - - - 
"हमने इंसान को मिटटी के खुलासे से बनाया, फिर हमने इसको नुत्फे से बनाया, जो कि एक महफूज़ मुकाम में रहा, फिर हमने इस नुत्फे को खून का लोथड़ा बनाया, फिर हमने इस खून के लोथड़े को बोटी बनाई, फिर हमने इस बोटी को हड्डी बनाई, फिर हमने इन हड्डियों पर गोशत चढ़ाया, फिर हमने इसको एक दूसरी ही मखलूक बना दिया, सो कैसी शान है मेरी, जो तमाम हुनरमंदों से बढ़ कर है. फिर तुम बाद इसके ज़रूर मरने वाले हो और फिर क़यामत के रोज़ ज़िन्दा किए जाओगे."
सूरह मओमेनून २३- परा-१८ -आयत (१२-१६)
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 16 March 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (39)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (39)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>समस्त विराट जगत मेरे अधीन है.
यह मेरी इच्छा से स्वयं बार बार प्रकट होता रहता है 
और मेरी ही इच्छा से अंत में विनष्ट होता है.
**जब मैं मनुष्य के रूप में अवतरित होता हूँ, 
तो मूर्ख मेरा उपहास करते हैं. 
वह मुझ परमेश्वर के दिव्य स्वभाव को नहीं जानते.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -9  - श्लोक -8 +11 
>मुहम्मदी अल्लाह जिस काम को करना चाहता है, प्लानिंग करने के बाद " कुन" कह देता है, बस वह काम हो जाता है. 
गीता के भगवान् कुछ ऐसे ही हैं.  दोनों मदारी एक दूसरे से कम नहीं.
और क़ुरआन कहता है - - - 
>>''हाँ! तो क्या अल्लाह की इस पकड़ से बे फ़िक्र हो गए? अल्लाह की पकड़ बजुज़ इसके जिसकी शामत आ गई हो कोई बे फ़िक्र नहीं सकता और इन रहने वालों के बाद ज़मीन पर, बजाए इन के ज़मीन पर रहते हैं, क्या इन को ये बात नहीं बतलाई कि अगर हम चाहते तो इनको इनके जरायम के सबब हलाक कर डालते और हम इन के दिलों पर बंद लगाए हुए हैं, इस से वह सुनते नहीं.''
अलएराफ़ ७ -नवाँ पारा आयत (८८-१००)
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 15 March 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (38)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (38)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>मानवीय गणना के अनुसार एक हज़ार युग मिल कर ब्रह्मा का एक दिन होता है 
और इतनी ही बड़ी ब्रह्मा की एक रात भी होती है.  
**वैदिक मतानुसार इस संसार से प्रयाण करने  के दो मार्ग हैं-- 
एक प्रकाश का दूसरा अन्धकार का. 
जब मनुष्य प्रकाश मार्ग से जाता है तो वह वापस नहीं आता, 
किन्तु अंधकार मार्ग से जाने वाला पुनः लौट आता है. 
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  - 8 - श्लोक -17 -27 
>हिन्दू मिथक अभी तक चार युगों का वर्णन करता है 
जो अविश्नीय तो हैं ही विज्ञान के दृष्टि से कोरी कल्पना कहे जा सकते . 
अब अगर आप की कल्पना शक्ति काम करे तो १००० युगों को कल्पित करें,
जो कि ब्रह्मा का एक दिन होता है. 
ब्रह्मा का युग कितना बड़ा होगा ? 
एक के दाहिने ओर ज़ीरो लगाते लगाते मर जाइए, 
युग के छोर तक जाना मुमकिन न होगा . 
भलाई इसी में है कि मिथ्य को सच मान लीजिए और 7०-80 साल के जीवन को झूट के हवाले करके ख़त्म करिए. 
आपकी नस्लों का उद्धार शायद आप से छुटकारा पाने के बाद ही हो सकता है.
  और क़ुरआन कहता है - - - 
''और हमने ज़मीन में इस लिए पहाड़ बनाए कि ज़मीन इन लोगों को लेकर हिलने लगे.और हमने इसमें कुशादा रस्ते बनाए ताकि वह लोग मंजिल तक पहुँच सकें और हम ने आसमान को एक छत बनाया जो महफूज़ है. और ये लोग इस से एराज़ किए (मुंह फेरे) हुए हैं. और वह ऐसा है जिसने रात और दिन बनाए, सूरज और चाँद. हर एक, एक दायरा में तैरते है. और हमने आप से पहले भी किसी बशर को हमेशा रहना तजवीज़ नहीं किया. फिर आप का इंतक़ाल हो जाए तो क्या लोग हमेश हमेशा दुन्या में रहेंगे. हर जानदार मौत का मज़ा चक्खेगा और हम तुमको बुरी भली से अच्छी तरह आज़माते हैं. और तुम सब हमारे पास चले आओगे और यह काफ़िर लोग जब आपको देखते हैं तो बस आप से हँसी करने लगते हैं. क्या यही हैं जो तुम्हारे मअबूदों का ज़िक्र किया करते हैं? और यह लोग रहमान के ज़िक्र पर इंकार करते हैं. इंसान जल्दी का ही बना हुवा है. हम अनक़रीब आप को अपनी निशानियाँ दिखाए देते हैं ,पस ! तुम हम से जल्दी मत मचाओ. और ये लोग कहते हैं वादा किस वक़्त आएगा? अगर तुम सच्चे हो, काश इन काफ़िरों को उस वक़्त की खबर होती. जब ये लोग आग को न अपने सामने से रोक सकेंगे न अपने पीछे से रोक सकेंगे. और न उनकी कोई हिमायत करेगा. बल्कि वह उनको एकदम से आलेगी. - - -''
सूरह अंबिया -२१ परा १७ -आयत (३१-४०)
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 14 March 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (37)

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (37)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
और जीवन के अंत में जो केवल मेरा स्मरण करते हुए शरीर का त्याग करता है, वह तुरंत मेरे स्वभाव को प्राप्त करता है. इसमें रंच मात्र भी संदेह नहीं. 
**अतएव हे अर्जुन ! 
तुम्हें सदैव कृष्ण रूप में मेरा चिंतन करना चाहिए 
और साथ ही युद्ध करने के कर्तव्य को भी पूरा करना चाहिए. 
अपने कर्मों को मुझे समर्पित करके तथा अपने मन और बुद्धि को मुझ में स्थिर करके तुम निश्चित रूप से मुझे प्राप्त कर सकोगे. 
>गीता उपदेशों को क़ुरआन के फरमानों से मिला कर देखें, 
क्या दोनों का इशारा एक जैसा नहीं है. ?
 इंसानी ज़ेहन को बंधक बना कर इन पर अपनी मनमानी की जाए. 
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -8  - श्लोक -5+7  
और क़ुरआन कहता है - - - 
>"आप फरमा दीजिए कि मुझे ये हुक्म हुवा है 
कि सब से पहले मैं इस्लाम कुबूल करूँ 
और तुम इन मुशरिकीन में से हरगिज़ न होना. 
आप फरमा दीजिए कि अगर मैं अपने रब का कहना न मानूँ तो 
मैं एक बड़े दिन के अज़ाब से डरता हूँ.''
अनआम -६-७वाँ पारा आयत (15)
''सो जिस शख्स को अल्लाह ताला रस्ते पर डालना चाहते हैं उसके सीने को इस्लाम से कुशादा कर देते हैं और जिस को बे राह रखना चाहते हैं उसके सीने को तंग कर देते हैं जैसे कोई आसमान पर चढ़ना चाहता हो. इसी तरह अल्लाह ईमान न लाने वाले वाले परफिटकार डालता है.''
सूरह अनआम छटां+सातवां पारा (आयत १२६)
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 13 March 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (36)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (36)

अर्जुन भगवान् कृष्ण पूछते हैं - - -
>हे भगवान् !  
हे पुरुषोत्तम !!
ब्रह्म क्या है ?
आत्मा क्या है ? 
सकर्म क्या है ? 
यह भौतिक जगत क्या है ? 
तथा देवता क्या हैं ? 
कृपा करके यह सब मुझे बताइए.
**हे मधु सूदन ! यज्ञ का स्वामी कौन है ? 
और वह शरीर में कैसे रहता है ? 
और मृत्यु के समय भक्ति में लगे रहने वाले आपको कैसे जान जाते हैं ?
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  - 8 - श्लोक -1+2+3   
>भगवान् कृष्ण जवाब देते हैं - - - 
अविनाशी और दिव्य जीव ब्रह्म कहलाता है 
और उसका नित्य स्वभाव आध्यात्म या आत्म कहलाता है. 
जीवों के भौतिक शरीर से संबंधित गतिविधि 
कर्म या सकाम कर्म कहलाती है. 
>अर्जुन के सवाल आज भी ज्यों के त्यों जीवित और निरुत्तरित हैं. 
भगवन के जवाब धार्मिक झोल-झाल हैं.

और क़ुरआन कहता है - - - 
'आप कह दीजिए - - - 
लोगो!
मैं तुम सब की तरफ उस अल्लाह का भेजा हुवा हूँ, 
जिसकी बादशाही है, तमाम आसमानों और ज़मीन पर है - - - 
अल्लाह पर ईमान लाओ और नबी उम्मी पर 
जो अल्लाह और उसके एहकाम पर ईमान रखते हैं''
अलएराफ़ ७ -नवाँ पारा आयत (१५८)

>लोगों को अल्लाह का इल्म भली भांत था जिसे वह मानते थे मगर जनाब उसकी तरफ से नकली दूत बन कर सवार हो, वह भी उम्मी. 
तायाफ़ के हुक्मरां ने ठीक ही कहा थ कि क्या अल्लाह को मक्का में कोई पढ़ा लिखा ढंग का आदमी नहीं मिला था जिसे अपना रसूल बनाता और रुसवा करके उसके दरबार से निकले. अल्लाह ने तुम्हारी कोई खबर न ली. जाहिलों को लूट मार का सबक सिखला कर कामयाब हुए तो किया हुए.
*** 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 12 March 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (35)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (35)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>बुद्धिहीन मनुष्य मुझको ठीक से न जानने के कारण सोचते हैं 
कि मैं (भगवान कृष्ण) पहले निराकार था 
और अब मैंने इस स्वरूप को धारण किया है . 
वह अपने अज्ञान के करण मेरी अविनाशी तथा सर्वोच प्रकृति को नहीं जान पाते.
**मैं मूरखों एवं अल्पज्ञो के लिए कभी भी प्रकट नहीं होता हूँ.
उनके लिए तो मैं अपनी अंतरंगाशक्ति द्वारा आच्छादित रहता हूँ, 
अतः वे नहीं जान पाते कि मैं अजन्मा तथा अविनाशी हूँ.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -7  - श्लोक -24 +25 
> भगवान् रूपी जीव ईश्वरीय शक्ति का मालिक होता है, 
नकि इतना लाचार कि उसे रूप बदलने की ज़रुरत हो. 
सभी धर्म ग्रन्थ अपने ईजाद किए हुए भगवानों को न स्वीकारने वालों को अभद्र भाषा की शब्दावली प्रयोग में लाते हैं. 
थोडा स अगर आपके अन्दर स्वचितन है तो गई भैंस पानी में, 
आपको अज्ञानी अभिमानी और नास्तिक की उपाधि मिल जाएगी. 
धार्मिक रहकर आप कभी भी सीमा रेखा को पार नहीं कर सकते. 
एक अँगरेज़ कथा कार की मशहूर कथा है कि 
एक ठग शोहरत की बुलंदियों पर पहुँच चुका था. वह दुन्या के सबसे अद्भुत तथा कथित परिधान बनाता है जिसके पहनने वाले को सिर्फ सच्ची नज़रें देख सकती हैं, झूटों को वह नज़र नहीं आएगा. खबर राजा तक पहुंची तो वह राज महल पहुँच गया और राजा को अपना आविष्कार किया हुवा लिबास पहना दिया. किसकी मजाल थी कि वह खुद को अँधा साबित करे. सब ने ताली बजाई और राजा नंगा आसन पर बैठ कर शहर में घुमा दिया गया . 
केवल औरतें राजा को देख कर नज़रें नीची करके हैरत में पड़ जातीं, 
" हाय दय्या ! राजा नंगा ?? 
और क़ुरआन कहता है - - - 
>''क्या तुम सचमुच गवाही दोगे कि अल्लाह के साथ और कोई देव भी हैं? 
आप कह दीजिए कि मैं तो गवाही नहीं देता. 
आप कह दीजिए कि वह तो बस एक ही माबूद (पूज्य) है 
और बेशक मैं तुम्हारे शिर्क से बेज़ार हूँ"
'' जिन लोगों ने अपने आप को ज़ाया कर लिया वह ईमान न लाएंगे''
सूरह अनआम -६-७वाँ पारा आयत (१६-२४) 
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 11 March 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (34)

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (34)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
> इनमें (इंसानों में) जो परम ज्ञानी हैं 
और शुद्ध भक्ति में लगा रहता है, 
वह सर्व श्रेष्ट है 
क्योंकि मैं उसे अत्यंत प्रिय हूँ 
और वह मुझे प्रिय है.  
**अल्प बुद्धि वाले व्यक्ति देवताओं की पूजा करते हैं 
और उन्हें प्राप्त होने वाले फल सीमित एवं क्षणिक होते हैं. 
देवताओं की पूजा करने वाले देव लोक को जाते हैं, 
किन्तु मेरे भक्त अंततः मेरे परम धाम को प्राप्त होते हैं.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -7  - श्लोक -17 +23 
'भक्ति' 
आने वाले समय में समाज की गाली बन जाएगी, 
भक्त पशुओं की श्रेणी में माना जाएगा.  
भक्ति दासता से बढ़ कर ऐसी मानसिकता है जो इंसान के व्यक्तिव को नष्ट करके दासता को अपनाने का हुक्म देती है. 
इसे मुस्लिम परिवेश में मुरीदी कहते हैं जिसका ह्कवारा कोई पीर हुवा करता है. मेरे परचित एक मुरीद ने बतलाया कि उसका अल्लाह और उस रसूल, 
उसका पीर है, मैं उसके लिए समर्पित हूँ, 
वह मेरे आकबत (परलोक) का निगहबान है. 
भक्ति भाव रखने वाले भेड़ और बकरियां से अधिक और हुछ भी नहीं , 
भारत भूमि का खासकर हिन्दू समूह इस चरागाह में चरना ज्यादा पसंद करते हैं. इस चरागाह के हक्वारे इतने स्वार्थी होते हैं कि प्रचलित देवी देवताओं को भी किनारे लगाने में संकोच नहीं करते.
भगवान् कृष्ण कहते हैं कि 
अल्प बुद्धी वाले व्यक्ति देवताओं की पूजा करते हैं 
और उन्हें प्राप्त होने वाले फल सीमित एवं क्षणिक होते हैं. 
देवताओं की पूजा करने वाले देव लोक को जाते हैं, 
किन्तु मेरे भक्त अंततः मेरे परम धाम को प्राप्त होते हैं.
 यानी अब देवताओं की माया से निकलो और मेरे शरण में आओ.
और क़ुरआन कहता है - - - 
''और अगर आप देखें जब ये दोज़ख के पास खड़े किए जाएँगे 
तो कहेंगे है कितनी अच्छी बात होती कि हम वापस भेज दिए जाएं
 और हम अपने रब की बातों को झूटा न बतलाएं और हम ईमान वालों में हो जाएं''
सूरह अनआम -६-७वाँ पारा आयत (२7)
आगे ऐसी ही बचकानी बातें मुहम्मद करते हैं कि लोग इस पर यकीन कर के इस्लाम कुबूल करें. ऐसी बचकाना बातों पर जब तलवार की धारों से सैक़ल किया गया तो यह ईमान बनती चली गईं. तलवारें थकीं तो मरदूद आलिमों की ज़बान इसे धार देने लगीं.
***


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 10 March 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (33)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (33)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>तीन गुणों (सतो रजो तमो) के द्वारा मोह ग्रस्त यह सारा संसार 
मुझ गुणातीत तथा अविनाशी को नहीं जानता.
**प्रकृति के तीन गुणों वाली इस मेरी दैविक शक्ति को पार कर पाना कठिन है.
किन्तु जो मेरे शरण गत हो जाते हैं, वह सरलता से इसे पार कर जाते हैं.

श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -7  - श्लोक -13+14  
>हे महाराज आप बार बार कह चुके हैं कि आप सर्व शक्ति मान और गुण वान होते हैं, फिर यह क्या कि मोह ग्रस्त संसार को ख़ुफ़िया तंत्र से अवगत न करा सके. अगर आप इतना कर लिए होते तो संसार में कोई आपस ना आशना न होता.
**कठिन शब्द आपको शोभा नहीं देता. 
बार बार आप कहते हैं कि आपके लिए कुछ कठिन नहीं, 
विरोधयों के दिलों में प्रेम की तरह घुस जाते.
और क़ुरआन कहता है - - - 
>" अल्लाह ताला जब किसी काम को करना चाहता है 
तो इस काम के निस्बत इतना कह देता है कि 
कुन यानी हो जा 
और वह फाया कून याने हो जाता है " 
(सूरह अल्बक्र २ पहला पारा आयत 117) 
अल्लाह तअला बस इतना ही नहीं कर पता कि सारे संसार को मुसलमान बना दे. 
बेचारे सैकड़ों साल से लड़ कट रहे है.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 9 March 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (32)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (32)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>हे कुंती पुत्र ! मैं जल का स्वाद हूँ, 
सूर्य तथा चंद्रमा का प्रकाश हूँ,
वैदिक मन्त्रों में ओंकार हूँ,
आकाश में ध्वनि हूँ 
तथा मनुष्यों में सामर्थ्य हूँ.
**मैं पृथ्वी की आघ्यसुगंध और अग्नि की ऊष्मा हूँ.
मैं समस्त जीवों का जीवन तथा तपिश्वियों का ताप हूँ. 
***हे पृथा पुत्र ! 
यह जान लो कि मैं ही समस्त जीवों का आदि बीज हूँ, 
बुद्धिमानों की  बुद्धि तथा समस्त तेजस्वी पुरुषों का तेज हूँ.
मैं बलवानों का कामनाओं तथा इच्छा से रहित बल हूँ. 
हे भरत श्रेष्ट अर्जुन ! 
मैं वह काम हूँ जो धर्म के विरुद्ध नहीं.
****तुम जान लो कि मेरी शक्ति द्वारा सारे गुण प्रकट होते हैं, 
चाहे वह सतोगुण हों,रजोगुण हो या तमोगुण हों. 
एक प्रकार से मैं सब कुछ हूँ,
किन्तु हूँ स्वतंत्र. मैं प्रकृति के गुणों के आधीन नहीं हूँ 
अपितु वे मेरे आधीन हैं.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -7  - श्लोक -8 -9 10 11-12 
>हे भगवान् तुम क्या नहीं हो ? बस इतना बतला देते. 
गर्भ से गर्भित, 
योनि से जन्मित, 
माँ बाप द्वारा निर्मित, 
लीलाओं की लीला सहित, 
तुम सब कुछ हो यह बात कहाँ तक और कब तक गिनाते रहोगे, 
केवल इतना बतलाने की ज़रुरत थी कि 
तुम क्या नहीं हो ? 
हे सर्व गुण संपन्न पभु ! 
इस भारत भूमि को आज मानव मात्र गुणों वाला भगवान् चाहिए , 

भगवान् कृष्ण के अंतिम क्षण बहुत कम ऋषि और मुनि दर्शाते हैं. 
बहुत सी किंदंतियाँ हैं, 
उनमे से एक यह भी है कि महा भारत के बाद दोनों परिवारों कौरवों और पांडुओं का समाप्त हो जाना या बिखर जाना उनका भाग्य बना. 
कुछ बचे हुए दोनों के वारिसों ने जब होश संभाला तो भगवान् की खबर ली 
कि हमारे पूर्वजों के विनाश के दोषी यही भगवान श्री है. 
भगवान् को सजा मिली कि बिना भोजन, वस्त्र के इनको बस्ती के बहर वीरान आम के बाग़ में छोड़ दिया जाए. 
मनादी कराई गई कि कोई उन के पास नहीं जाएगा, न कोई सहायता करेगा.
नंगे पाँव भगवान के पैरों में बबूल के कांटे चुभ गए थे, 
शरीर में ज़हरबाद हो गया था, 
भूखे प्यासे एडियाँ रगड़ते बे यार व् मददगार 18 दिनों तक जीवित रहे, 
फिर दम तोड़ दिया.
कुछ शाश्त्र कहते हैं कि यह उन पर किसी ऋषि (?) का श्राप था. 
आश्चर्य है हिन्दू मैथोलोजी पर 
कि गीता जिनका गुण गान करती है 
उन पर किसी फटीचर ऋषि का साप असर कर जाए ?
और क़ुरआन कहता है - - - 
''उन्हों ने देखा नहीं हम उनके पहले कितनी जमाअतों को हलाक कर चुके हैं, जिनको हमने ज़मीन पर ऐसी कूवत दी थी कि तुम को वह कूवत नहीं दिया और हम ने उन पर खूब बारिश बरसाईं हम ने उनके नीचे से नहरें जारी कीं फिर हमने उनको उनके गुनाहों के सबब हलाक कर डाला''
सूरह अनआम -६-७वाँ पारा आयत (6)
मुहम्मद का रचा अहमक अल्लाह अपने जाल में आने वाले कैदियों को धमकता है कि तुम अगर मेरे जाल में आ गए तो ठीक है वर्ना मेरे ज़ुल्म का नमूना पेश है, देख लो. उस वक्त के लोगों ने तो खैर खुल कर इन पागल पन की बातों का मजाक उडाया था मगर जिहाद के माले-गनीमत की हांडी में पकते पकते आज ये पक्का ईमान बन गया है. यही अलकायदा और तल्बानियों का ईमान है. ये अपनी मौत खुद मरेंगे मगर आम बे गुनाह मुसलमान अगर वक़्त से पहले न चेते तो गेहूं के साथ घुन की मिसाल बन जायगी.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 8 March 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (31)

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (31)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>सारे प्राणियों का उद्गम इन दोनों शक्तियों में है . 
इस जगत में जो भी भौतिक तथा आध्यात्मिक है, 
उनकी उत्पत्ति तथा प्रलय मुझे ही जानो.
**हे धनञ्जय ! 
मुझ से श्रेष्ट कोई शक्ति नहीं. 
जिस प्रकार मोती धागे में गुंधे रहते हैं, 
उसी प्रकार सब कुछ मुझ पर ही आश्रित है.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -7  - श्लोक -6-7 
>उफ़ ! 
हिन्दू समाज के लिए ब्रह्माण्ड से बड़ा झूट ? 
कोई शख्स खुद को इस स्वयम्भुवता के साथ पेश कर सकता है ? 
तमाम भगवानों, खुदाओं और Gods इस वासुदेव के सपूत से कोसों दूर रह गए. कृष्ण जी जो भी हों, जैसे रहे हों, उनसे मेरा कोई संकेत नहीं. 
मेरा सरोकार है तो गीता के रचैता से 
कि अतिश्योक्ति की भी कोई सीमा होती है. 
चलिए माना कि शायरों और कवियों की कोई सीमा नहीं होती 
मगर अदालतों के सामने जाकर अपना सर पीटूं ? 
कि ऐसी काव्य संग्रह पर हाथ रखवा कर तू मुजरिमों से हलफ़ उठवाती है ? 
ऐसा लगता है जिस किसी ने गीता या क़ुरान को कभी कुछ समाज लिया होगा, वह इनकी झूटी कसमें खाने में कभी देर नहीं करेगा. 
क्या गीता और क़ुरान वजह है कि हमारी न्याय व्यवस्था दुन्या में भ्रष्टतम है. भ्रष्ट कौमों में हम नं 1 हैं. 
हमारे कानून छूट देते है कि सौ की आबादी वाले देश की आर्थिक अवस्था १०० रुपए हैं , जो न्याय का चक्कर लगते हुए ९० रुपए दस लोगों के पास पहुँच जाए और 10 रुपए ९० के बीच बचें ? जिसका हक एक रुपया होता हो, उसके पास एक पैसा बचे ? वह अगर इस व्यवस्था के खिलाफ आवाज़ उठाए तो उसे देश द्रोही कहा जाए ? नकसली कहकर गोली मार दी जाए ?
और क़ुरआन कहता है - - - 
>"यह सब अहकाम मज़्कूरह खुदा वंदी जाब्ते हैं 
और जो शख्स अल्लाह और रसूल की पूरी इताअत करेगा 
अल्लाह उसको ऐसी बहिश्तों में दाखिल करेगा 
जिसके नीचे नहरें जारी होंगी. हमेशा हमेशा उसमें रहेंगे, 
यह बड़ी कामयाबी है."
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (८-१३)
यह आयत कुरान में बार बार दोहराई गई है. अरब की भूखी प्यासी सर ज़मीन के किए पानी की नहरें वह भी मकानों के बीचे पुर कशिश हो सकती हैं मगर बाकी दुन्या के लिए यह जन्नत जहन्नम जैसी हो सकती है. 
मुहम्मद अल्लाह के पैगाबर होने का दावा करते हैं और अल्लाह के बन्दों को झूटी लालच देते हैं. अल्लाह के बन्दे इस इक्कीसवीं सदी में इस पर भरोसा करते हैं. 
अल्लाह के कानूनी जाब्ते अलग ही हैं कि उसका कोई कानून ही नहीं है.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 7 March 2020

खेद है कि यह वेद है (30)

खेद  है  कि  यह  वेद  है   (30)

हे समान रूप से प्रसन्न देवो ! 
इस समय जनपदों मेंअन्न की खोज में गए हुए हमारे रथ को गति शील बनाओ.
क्योकि इस रथ से जुड़े हुए घोड़े अपनी गतियों से मार्ग तय करते हैं 
एवं उठी हुई धरती पर अपने खुरों से बहुत तेज़ चल सकते हैं.
द्वतीय मंडल सूक्त 31(2)
लगता है वैदिक काल की सब से बड़ी समस्या अन्न हुवा करता था. अन्न प्राप्ति के लिए प्रोहित यज्ञ का आयोजन किया करते थे. उनके बस की बात न रही होगी कि हल और फावड़ा उठाएं, धरती का सीना चीर कर अन्न उपजाएं. काहिल और हराम खोर जो ठहरे.
यह मानसिक अपंग भी हुवा करते थे. यह बात इनकी रचना बतलाती है कि घोड़ों को पैरों से नहीं, खुरों से दौडाते हैं. 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 5 March 2020

खेद है कि यह वेद है (28-29)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (28-29)

जो यजमान घृत युक्त हव्यों से ब्राह्मणस्पति की सेवा करता है 
उसे वह प्राचीन सरल मार्गों से ले जाते है.
पाप शत्रुओं एवं दरिद्रता से रक्षा करते हैं 
और अद्भुत उपकार करते हैं.
द्वतीय मंडल सूक्त 26 (4)
घृत युक्त व्यंजन के शौक़ीन पंडित जी वेद मन्त्रों से समाज को ठगते थे और आज भी हवन यज्ञ को महिमा मंडित किए हुए हैं. 
जन साधारण समझे कि यह आडम्बर क्या है और क्यों है.



खेद  है  कि  यह  वेद  है   (29)

इस  वृत्र ने आकाश में ऊपर उठा कर सब पदार्थों को ढक लिया था 
इस लिए इंद्र ने उसके ऊपर वज्र फेंका. 
मेघ से ढका हुवा वृत्र इंद्र की ओर दौड़ा, 
तभी तीखे आयुद्ध वाले इंद्र ने उसे हरा दिया.
द्वतीय मंडल सूक्त 30(3)
वृत्र और इंद्र के आकाश युद्ध का फूहड़ नमूना ! 
क्या इसी फार्मूले को पश्चिम वाले चुरा ले गए थे? 
जो आज ब्रह्मांड पर विजय पताका लहरा रहे है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 4 March 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (28)

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (28)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>जिसने मन को जीत लिया, 
उसके लिए मन सर्व श्रेष्ट मित्र है. 
किन्तु जो ऐसा नहीं कर पाया, 
उसके लिए मन सब से बड़ा शत्रु है.
**जिसने मन को जीत लिया है, 
उसने पहले ही परमात्मा को प्राप्त कर लिया है, 
क्योकि उसने शान्ति प्राप्त कर ली है. 
ऐसे पुरुष के लिए सुख दुःख, सर्दी गर्मी, मान अपमान एक सामान हैं.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -6  - श्लोक -6 -7 
>बहुत अच्छा गीता सन्देश है. 
यह विचार इस्लाम के बाग़ी समूह तसव्वुफ़ (सूफ़ी इज़्म) के आस पास है. 
इस श्लोक में इन्द्रीय तृप्ति की बात नहीं है, इसलिए यह तसव्वुफ़ के और अरीब है. हर सूफी शादी शुदा रह कर और बीवियों के बख्शे हुए कष्ट को झेल कर ही सूफी बनता है. 
एक सूफ़ी की बीवी अपने शौहर के इंतज़ार में आग बगूला हो रही थी कि  
दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ आई, 
तो देखा सूफी नहीं ,उसका दोस्त खड़ा है. 
इतने में सूफी भी लकड़ियों का गठ्ठर जिसे शेर पर लादे हुए और एक सांप बांधे हुए था, 
लेकर आया. 
बीवी जो लकड़ियों का इंतज़ार खाली हांडी हाथों में लिए कर रही थी, 
गुस्से में हांडी को सूफी के सर पर पटख दिया. 
हांडी टूट गई मगर उसका अंवठ सूफी के गर्दन में था. 
दोस्त ने पूंछा यह क्या ? 
सूफी का जवाब था 
"शादी का तौक़" 
शेर और सांप मेरी लकड़ी ढोते हैं और मैं शादी का तौक़. 

उर्दू शायरी इस गीता सन्देश को कुछ इस तरह कहती है - - -
नहंग व् अजदहा व् शेर ए नर मारा तो क्या मारा,
बड़े मूज़ी को मारा, नफ्स ए अम्मारा को गर मारा.
नहंग=घड़ियाल*नफस ए अम्मारा =मन 

नक्क़ारे के शोर में मुंकिर की आवाज़ 
मन को इतना मार मत, मर जाएँ अरमान,
अरमानों के जाल में, मत दे अपनी जान.

और क़ुरआन कहता है - - - 
>क़ुरान की तो अलाप ही जुदा है.
>"तुम लोगों के वास्ते रोजे की शब अपनी बीवियों से मशगूल रहना हलाल कर दिया गया, 
क्यूँ कि वह तुम्हारे ओढ़ने बिछोने हैं और तुम उनके ओढ़ने बिछौने हो। 
अल्लाह को इस बात की ख़बर थी कि तुम खयानत के गुनाह में अपने आप को मुब्तिला कर रहे थे। खैर अल्लाह ने तुम पर इनायत फ़रमाई और तुम से गुनाह धोया - - -
जिस ज़माने में तुम लोग एत्काफ़ वाले रहो मस्जिदों में ये खुदा वंदी जाब्ते हैं कि उन के नजदीक भी मत जाओ। इसी तरह अल्लाह ताला अपने एह्काम लोगों के वास्ते बयान फरमाया करते हैं इस उम्मीद पर की लोग परहेज़ रक्खें .
" (सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत १८७)
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 3 March 2020

खेद है कि यह वेद है (27)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (27)

यजमान अपने वीर पुत्रों की सहायता से हिसक शत्रु की हिंसा करे. 
वह गाय रूप धन का विस्तार करता है 
एवं स्वयं ही सब कुछ समझता है. 
ब्राह्मणस्पति जिस जिस यजमान को मित्र के रूप में स्वीकार कर लेते हैं, 
वह अपने पुत्र तथा पौत्र से भी अधिक दिनों तक जीता है. 
द्वतीय मंडल सूक्त 25 (2)
ब्राह्मण हमेशा शांति प्रिय होता है, बस दूसरों को लड़ने लड़ाने का आशीष देता है. यजमान के पुत्रों को दुश्मनों से लड़ने की कामना करता है. 
वेद मन्त्रों से पता चलता है कि वैदिक काल का सब से बड़ा धन गाय ही हुवा करती थीं, जो खाने के लिए मांस, पीने के लिए दूध और पहिनने के लिए खाल दिया करती थीं.
ब्राह्मण इन वेद मन्त्रों का खुलासा नहीं बतलाता कि 
इसका भेद देव को बेहतर पता है.
  ब्राह्मणस्पति जिन यजमानों को पसंद करते हैं, 
उनको उनके पुत्र और पौत्र से भी लंबी आयु देते हैं, 
पता नहीं यह वंशो के लिए वरदान है या अभिशाप. 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 2 March 2020

खेद है कि यह वेद है (25-26)



खेद  है  कि  यह  वेद  है  (25)

हे धन स्वामी इंद्र एवं ब्रहस्पति ! तुम्हारी सभी स्तुत्याँ सत्य हैं, तुम्हारे ब्रत को जल नष्ट नहीं कर सकता, रथ एवं जुते हुए घोड़े जिस प्रकार घास की ओर दौड़ते हैं, उसी प्रकार तुम हमारे हवि के सम्मुख आओ.
ऋग वेद -द्वतीय मंडल  सूक्त 24(12)
महाराज कह रहे हैं घास को देख कर घोडा तो घोडा, 
रथ भी दौड़ता है. 
और इन्हीं दोनों की तरह अपने देवों को हवि को 
देख कर दौड़ने की राय देते हैं. 
पता नहीं कि इनके देव भी पशुओं के स्वाभाव के हैं ??
इनका क्या भरोसा कि देवों को यह पशु बना दें,
या पशुओं को माता. 


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (26)

हे बृहस्पति ! हमें चोरों, द्रोह कर के प्रसन्न होने वालो, 
शत्रुओं, पराए धन के इच्छुकों 
एवं देव स्तुति एवं यज्ञ विरोधयों के हाथों में मत सौपना. 
द्वतीय मंडल सूक्त 23(16)
बृहस्पति से महाराज से पंडित जी का निवेदन कि वह असुरक्षित. जैसे हालात होते हैं, वैसे ही दुआ भी होती है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान