Thursday 4 June 2020

पांडु लिपियाँ

पांडु लिपियाँ 

दर्जा दो के बच्चे के सामने एक गाय ख़ड़ी कर दो और उससे कहो कि इसकी आकृति अपनी कापी पर उकेरे. वह हुछ न कुछ ज़रूर बनाएगा जो गाए की तरह भले न लगे मगर चार पैरों के जानवर की तरह लगेगा. 
ऐसी ही आकृतियाँ हमें पुराने शिला लेख पर या किसी गुफा के पत्थर पर उकरी हुई मिलती हैं जो कभी कभी हज़ारों पुरानी होती हैं और हमें युगांतर की ख़बर देती हैं. 
हमें आशचर्य भरी ख़ुशी होती है कि १६०००या २५००० हज़ार पहले हमारे बुज़ुर्ग चित्रण करने की क्षमता रखते थे, उनके चित्र में कुछ अर्थ भी छुपा हुआ होता है. 
शिला लेखों से हमें पता चलता है कि इंसान किस युग में था और उसका मानसिक स्तर कहाँ तक पहुंचा था. हो सकता है कि आजका पाप कर्म उस युग में पुन्य माना जाता रहा हो. आज भी अफ़्रीक़ी क़बीलों में दुश्मन का शरीर अंग खाना उनके लिए शुभ और शान है. 
बहुत सी पांडु लिपियाँ आज तक पढ़ी नहीं जा सकीं, जो पढ़ी भी गईं, हमको ख़बर देती हैं कि उस समय मानव की मानसिक स्तिथि क्या थी. 
किस दर्जे वह इंसानियत से दूर था या करीब थे ? 
हमारे वेद, पुराण उपनिषद, उसके बाद गीता, मनु स्मृति 
फिर तौरेत, बाइबिल और क़ुरआन  इलाक़ाई सभ्यता की पंडू लिपियाँ हैं, जिन्हें समझा जाने लगा है. वह मानव बुद्धि जी विकृतियां है कि वह पांडु लिपियाँ समझने के बाद उन्हें पूजने लगता है.  
इन ग्रंथों में मानव मूल्यों के साथ बलात्कार किया गया है और सामने है. 
हमारे नए संविधान में, इन ग्रंथों के बहुत से उपदेश और आदेश आज जुर्म बन गए हैं. हम संविधान को मानते हुए इन ग्रंथों के आदेश को भी अगर उचित मानते हैं तो यह हमारा दोहरा चरित्र है. 
मुझे हैरत होती है कि अदालतों में इनको हाथ में लेकर शपत ली जाती है कि "जो कुछ कहूंगा सच कहूँगा." 
वेद और पुराणों की अज़मत ये है कि हमारे पुरखे युगों पहले लिखना और पढना जानते थे, जब कि उस समय बहुत सी सभ्यताएँ अक्षर ज्ञान से भी वंचित थीं. 
उनमें लिखे हुए विचारों को मानना मूर्खता है.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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