Friday 31 July 2020

मांसाहार

मांसाहार            
    
बड़े बड़े ज्ञानी और कभी कभी तो विज्ञानी भी जीव आहार के बारे में 
अज्ञानता और भावुकता पूर्ण बातें करते हैं. 
स्वयंभू बाबा और स्वामी राम देव तो कहते हैं 
मुर्गा नहीं तुम मुर्दा खाते हो, 
ख़ैर ऐसे कुबुद्धों की बात छोडें जिसका ज्ञान प्रमाणित करता हो कि भारत में आयुर्वेद को लाखों, करोरों वर्षों से चला आ रहा है, बतलाते हैं. 
जिनको यह भी नहीं मालूम कि भारत क्या दुन्या को लोहे का ज्ञान भी 
केवल पाँच हज़ार साल पहले तक नहीं था 
और करोरों साल पहले यह धरती जीव धारियों के रहने योग्य हो रही थी. 
राम देव योग्य द्वरा डायबिटीज़ और कैंसर आदि को ठीक करने का दावा करते हैं मगर अपने मुखार बिंदु पर मारे गए लक़वे का इलाज नहीं कर पाते. 
उनके पीछे चलने वाली भेड़या धसान जनता को क्या कहा जाय 
जो दूध में देख कर मक्खी को पीती है. 
मगर जब अग्निवेश जैसे अच्छे, प्यारे और मानवता मित्र मांसाहार को ग़लत क़रार देते है तो ताजुब और अफ़सोस होता है.

आहार भावुकता नहीं, क़ानून क़ायदा नहीं, मज़हबी और धार्मिक पाखण्ड का दायरा नहीं, आहार भौगोलिक परिस्थितयों की मजबूरी है, 
आहार जल वायु के माहौल का तक़ाज़ा है. 
आहार क़ुदरत के नियमों में एक प्राकृतिक नियम है. 
आहार मन की उमंग "जो रुचै सो पचै" है, 
आहार के बारे में विशेष परिस्थितयों में डाक्टर के सिवा किसी को राय देना ही व्योहारिक हक़ नहीं है, उसकी आज़ादी में यह दख़्ल अंदाजी है.
दुन्या का हर जीव किसी न किसी जीव को खाकर ही अपना जीवन बचाता है. 
कोई जीव जड़ (निर्जीव खनिज एवं पत्थर) को खा कर जीवन यापन नहीं कर सकता. 
ग़ौर करें कि पर्शियन फ़िलासफ़ी के अनुसार जीव मुख्यता निम्न चार प्रकार के होते हैं - - -
1-हजरते-इंसान यानी अशरफ़ुल मख़लूक़ात 
(हालाँ कि जिसे नेत्शे धरती का चर्म रोग बतलाता है)
2-हैवानयात यानी जानवर, पानी और ज़नीन के जीव जन्तु
3-बनस्पति
4-खनिज (हालाँकि इन्हें जीव नहीं कहा जा सकता मगर जीव के पोषक हैं)

मैं सबसे पहले जीव नं 4 को लेता हूँ कि यह बेचारे भूमि के गर्भ में पड़े रहते हैं और बनस्पति को अपनी ऊर्जा सप्लाई किया करते हैं. 
विभिन्न प्रकार के दानो की लज्ज़त, फलों का स्वाद और फूलों कि ख़ुशबू, 
इन्हीं गड़ी हुई खनिजों की बरकत है. 
अरब में खजूरें बहुत होती हैं, हो सकता है कि 
वहां पाई जाने वाले डीज़ल की बरकत हो. 
इसी तरह संसार में हर हर हिस्से में पाए जाने वाली खनिजें 
उस जगह की पैदावार हैं. यह खनिजें चाहती हैं कि इन का भरपूर दोहन हो. 
इन के दोहन से ही दुन्या शादाब हो सकती है.
ये है क़ुदरत का कानून.
अगर खनिज को आप ने जड़ नुमाँ अर्ध जीव मान लिया हो तो आगे बढ़ते हैं.  

जीव की तीसरी प्रजाति यह बनस्पतियाँ हैं. 
जी हाँ! ये सिद्ध हो चुका है इनमें जान है, एहसास है जीने की चाह है, 
उमंग और तरंग है, फ़र्क़ इतना है कि यह हरकत के लिए हाथ पाँव नहीं रखते, 
प्रतिवाद के लिए ज़बान नहीं रखते, 
ख़ामोश खड़े रहते हैं आप कुल्हाडी से इनका काम तमाम कर दीजिए, 
उफ़ तक नहीं करेंगे. 
पालक को जड़ से उखाड़ लीजिए, चाकू से टुकड़े टुकड़े कर दीजिए, 
देग़ची में डाल कर आग में भून डालिए, 
वह बेज़बान कोई एहतेजाज नहीं करेगी, 
वर्ना उसे तो अभी फूलना फलना था, फ़ज़ा में लहलहाना था, 
अपने गर्भ में अपने बच्चों के बीज पालने थे. 
बहुत से बीजों से, फिर धरती पर उसकी अगली नस्लों जा जनम होता 
जिनकी आप ने ह्त्या कर दी. 
बनस्पति आपसे बच भी गई तो उसे जानवर कहाँ बख़्शने वाले है. 
वह तो उनकी ख़ूराक है. उस पर क़ुदरत ने उनको पूरा पूरा हक़ दिया हुवा है. 
घोड़ा घास से यारी नहीं कर सकता. 
हम बनस्पति को बोते हैं सींचते, पालते, पोसते हैं, किस लिए ? 
कि इन पर हमारी ख़ूराक का हक़ हमें हासिल है. 
खनिजों की तरह ग़ालिबन इनकी भी दिली आरज़ू होती होगी कि 
यह भी प्राणी के काम आएँ. 
खनिजों पर बनस्पतियों का जन्म सिद्ध अधिकार है, 
साथ साथ पशु और मानव जाति का हक़ भी है. 
बनस्पतियों पर पशु जीव जंतु और मानव जाति का जन्म सिद्ध अधिकार होता है, 
इन दोनों हक़ीक़तों के क़ायल अगर आप हो चुके हों तो हम तीसरे पर आते हैं.

बनस्पतियों के बाद अब बारी है जीव धारी पशु पक्षियो की, जिन पर क़ुदरत ने अशरफ़ुल मख़लूक़ात इंसान को जन्म सिद्ध अधिकार दिया है, 
कि वह उनका दोहन और भोजन करे, मगर हाँ! 
आदमी को पहले आदमी से अशरफ़ुल मख़लूक़ात इंसान बन्ने की ज़रुरत है. 
जानवरों को तंदुरुस्त और दोस्त बना कर रखने की ज़रुरत है, 
उन्हें इतना प्यार दें कि वह आप की तरफ़ से निश्चिन्त हों और 
उनको अचेत करके ही मारें, 
उनकी चेतना में इंसानों की तरह कोई प्लानिग नहीं है, 
क्षनिक वर्तमान ही उनकी मुकम्मल ख़ुशी है. 
उनके वर्तमान का ख़ून मत करिए. 
पेड़ पौदे भाग कर जान बचने में असमर्थ होते हैं और जानवर, 
जीव जंतु समर्थ मगर किसे मालूम है कि 
मरने में किसे कष्ट ज़्यादा होता है? 
हम अपने तौर पर समझते हैं कि जानवर चूंकि प्रतिरोध ज़्यादा करते हैं 
और पेड़ खड़े खड़े ख़ुद को कटवा लेते हैं, 
इस लिए जानवर पर दया करना चाहिए मगर शायद यह हमारी भूल है. 
आदमी आदमी का क़त्ल कर दे तो जुर्म, सज़ा ए मौत तक तक हो सकती है, 
क्यूँ कि वह जानवर से दो क़दम आगे है, 
यानी फ़रियाद करने के लिए उसके पास ज़बान है और 
अपने हम ज़ाद को बचाने की अक़ली दलील. 
गहरे से सोचें तो ख़ून दरख़्त का हो, हैवान का हो और चाहे इंसान का हो सब ख़ून है, 
हमने अपनी सुविधा के अनुसार इसे पाप पुन्य का दर्जा दे रखा है.
जानवरों को इंसानी ग़िज़ा अगर न बनाया जाय तो यह स्वयं उन पर ज़ुल्म है कि 
इस तरह उनका भला नहीं हो सकता और एक दिन वह 
ख़ात्मे की कगार पर आ जाएँगे, 
नमूने के तौर पर अजायब घरों की जीनत भर रह पाएंगी, 
जैसे गायों की दशा भारत में हो रही है. 
दूध पूत के बाद एक गाय का अंत उसके ब्योसयिक अंगों पर ही निर्भर करता है. 
जिस देश में आदमीं को दो जून की रोटी न मिलती हो वहां बूढ़ी गाय 
को बिठा कर कौन खिलएगा. 
शिकागो में दूध की एक निश्चित मात्रा के बाद लाखों गाएँ हर महीने काट दी जाती हैं.

 खाद्य बकरियाँ साल में दो बच्चे देती हैं और उनके गोश्त से दुकानें अटी हुई हैं 
और अखाद्य कुतियाँ साल में छ छ बच्चे देती हैं मगर उनमें एकाध ही बच पाते हैं. 
नॉन फर्टलाइज़ अण्डों एवं ब्रायलर्स (मुर्ग) ने इंसानी ख़ूराक का मसला हल करने में काफ़ी योगदान किया है जो कि नई ईजाद है .
नारवे जैसे देशों में शाकाहार बहुत अस्वाभाविक है, उनको इंपोर्ट करना पड़ेगा, 
शायद उनको सूट भी न करे और उनको पसंद भी न आए, 
इस लिए उनकी पहली पसंद बारह सिंघा है और दूसरी पसंद भी बारह सिघा और आख़री पसंद भी बारह सिंघा.
एक दिन आएगा कि मानव समाज की मानवता अपने शिखर विन्दु को छुएगी 
जब हिष्ट-पुष्ट एवं निरोग मानव शरीर अपने अंत पर प्रकृति को अपने ऊपर लदे 
क़र्ज़ को वापस करता हुवा इस दुनिया से विदा होगा. 
जब उसका शरीर मशीन के हवाले कर दिया जाएगा, 
जिसको कि वह ऑटो मेटिक विभाजित करके 
महत्त्व पूर्ण अंग को मेडीकल साइंस के हवाले कर देगी, 
मांस को एनिमल्स, बर्डस और फिशेस फ़ूड के प्रोसेस में मिला दिया जाएगा 
तथा हड्डियों को यूरिया बना कर बनास्प्तियों का क़र्ज़ लौटाया जाएगा. 
न मरने में सात मन कारामद लकड़ी जल कर बर्बाद होगी, न एक पीपा घी, 
न बाईस गज़ नए कपड़े का कफ़न लगेगा और न कबरें बनेंगी, 
न सैकड़ों लोगों के हज़ारों वर्किंग आवर्स बर्बाद होंगे, 
न ताबूत की क़ीमत ज़ाया होगी और न मुर्दे के तन पर सजा हुवा 
उसका क़ीमती लिबास ज़मीन में गड़ेगा. 
जो कुछ ज़िंदों को मयस्सर नहीं, 
तमाम रस्मो-रिवाज यह मानवता का शिखर विदु दफ़्न कर देगा.
(शाकाहारियों से क्षमा के साथ)
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 30 July 2020

सीता कथा

सीता कथा 

भारत में ग़ुलाम  वंशज के दूसरे बादशाह अल्तुतमिश  के वक्त में बाल्मीकि कानपुर की वन्धाना तहसील में  बिठूर स्थित गाँव में रहते थे. 
उन्होंने सीता नाम की तलाक़ शुदा औरत को पनाह दी थी. 
बिठूर जाकर इस विषय में बहुत सी जानकारियाँ और निशानियाँ आज भी जन जन की ज़ुबान पर है. 
बाल्मीकि रामायण संस्कृत में, सीता पर लिखी एक रोचक कथा मात्र है. 
तुलसी दास ने हिंदी में अनुवाद कर के इस में बड़ा हेर फेर किया है. 
रचना को दिलचस्प कर दिया है. 
इसी सीता राम की कहानी को मनुवाद ने भारत का धर्म घोषित कर दिया है.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 29 July 2020

ब्रहमांड से बाबा बर्फानी तक

ब्रहमांड से बाबा बर्फानी तक 

आज से पचास पहले हिदी की नई नई शब्दावली गढ़ी जा रही थी, 
रेलवे स्टेशन  को भकभक अड्डा और रेल पटरी को लौह पद गामिनी किया गया था, तो अंड़े का शुद्धि करण करते हुए इसे शाकाहार बनाया गया 
और नाम दिया गया, पखेरू गंड फल. 
कुछ ऐसा ही नाम ब्रहमांड का मालूम पड़ता है. 
ब्रह्मा का अंडा. 
ज़ाहिर है ब्रह्म देव नर ही थे योनि विहीन. 
बच्चा देने से रहे, अंडा वैसे ही दिया होगा जैसे पखेरू, 
अर्थात यह ब्रहमांड ब्रह्मा गंड फल हुवा.
हमें वैदिक हिंदुत्व भी बतलाता है कि समस्त मानव प्राणी 
ब्रह्मा के शरीर से निर्मित हुए, सर, बाज़ू , पेट और पैरों निर्मित चार जातियां हुईं. 
मुझे अकसर कहा जाता है कि मैं हिन्दू धर्म की गहराइयों में जा कर देखूं 
कि इस में कितना दम है ?
इस का आभास मुझे ब्रहमांड से शरू होता है, 
मैं कर बध्य होकर पांडित्य के सामने बैठता हूँ, 
उनकी गायकी और उबाऊ कथा के आगे.
मेरे हर कौतूहल के जवाब में इन का सन्दर्भ और संगर्भ आ जाता है, 
सुनते सुनते रत बीत जाती है, 
सन्दर्भ और संगर्भ का सिलसिला ख़त्म होने का नाम नहीं लेता. 
मुझे ख़ामोश रह कर इन सनातनी दास्तानों को सुननी पड़ती है, 
ब्रह्मा शरीर से निर्मित, सुवर पुत्र, या मेढकी से जन्मित अथवा जल से निकसित  
विष्णु द्वारा संचालित सृष्टि की गाथा से लेकर, महेश यानी शिव जी के तांडव तक जाने में हमारी ज़िन्दगी 2 अरब 50 करोर वर्ष समाप्त हो जाते हैं, 
मै बोझिल हो कर पूछता हूँ , पंडित जी महाराज ! 
आप की गाथा ख़त्म हुई? 
और वह कहते हैं , 
वत्स अभी तो वैदिक गर्भ का एक काल ख़त्म हुवा है, 
अभी तो असंख्य काल शेष हैं, आस्था के साथ सुन.

ब्रह्मा की चार सरों वाली तस्वीर मुस्लिम मोलवी छाप जैसी है. 
मेरे अनुमान के हिसाब से यह तस्वीर मुस्लिम, ईसाई और यहूदियों में 
मुश्तरका मूल पुरुष अब्राम जो अब्राहम हुए फिर इब्राहीम हुए, 
उसके बाद बराहम हुए, आर्यों ने उनको ब्रह्मा बना दिया.  
अभी पिछले दिनों इस बात पुष्टि हो गई है कि यहूदियों और ब्रह्मनो का 
DNA टेस्ट से मालूम हुवा है कि दोनों में 98% यकसानियत है. 
अब्राहम साढ़े तीन हज़ार साल पहले इराक में पैदा हुआ जिसका वहाँ के मानव इतिहास में पहला वरदान है. 
इनको बाबा ए अक़वाम भी कहा जाता है. 
इनकी प्रसिद्धि इनके पड़ पोते युसूफ़ की वजह से और हुई 
जो मिस्र के फ़िरअना का मंत्री था, बाद में ऐतिहासिक आइकान बना.
शिव जी जो अभी चंद सौ साल पहले उत्तर भारत में हुए 
जिनको कश्मीरी मुसलमान बर्फानी बाबा कहते हैं, 
अभी कुछ साल पहले उनकी लाठी किसी मुस्लिम ने तलाश करके 
नई दुन्या को दिया जिसे छड़ी मुबारक नाम दिया. 
यही बाबा बर्फ़ानी आस्था वानो के ज्ञान का श्रोत्र हैं जो ब्रह्मा के साथ मिल कर 2500000000 वर्षों का कार्य काल पूरा करते हैं.
अब तो मुसलमानों को ही नहीं 
हिदुओं को भी कहने को मजबूर होना पड़ रहा है कि 
जागो हिन्दू जागो !!
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 28 July 2020

चूतिया=भग़ुवा

चूतिया=भग़ुवा 

पिछले दिनों किसी लेख में मैंने तथा कथित अप शब्द "चूतिया" 
का इस्तेमाल किया था, 
जिस पर मेरे एक लाजवंत पाठक ने एतराज़ किया था. 
अफ़सोस होता है कि लाज वश या सभ्यता भार से, 
हम लोग अर्ध सत्य में अटक जाते हैं. 
ठीक है कि कुछ शब्द पार्लियामेंट्री दायरे में नहीं आते हैं 
मगर किसी कारण से शब्द को उच्चारित न किया जाए, 
शब्द का गला घोटना है. 
मशहूर शायर और दानिश्वर रघु पति सहाय 'फ़िराक़' गोरखपुरी 
जो नेहरु जी के रूम पार्टनर हुवा करते थे, के छोटे भाई उनकी बेटी के लिए एक रिश्ता लेकर आए और तारीफ़ करते हुए कहा भय्या आप भी जो जानना चाहते हों लड़के से मिल लें. 
फ़िराक साहब ने कहा तुमने देख लिया, यही काफ़ी है 
और कहा लड़का शराबी हो, जुवारी हो या और कोई ऐब हो चलेगा, 
मगर वह चूतिया न हो. 
इस तरह मैंने भी लेखनी में चूतिया को पढ़ा.
चूतिया का शाब्दिक अर्थ है भग़ुवा. 
दोनों शब्दों का छंद विच्छेद करके देख लें अगर ज़र्रा बराबर भी कोई फ़र्क हो.
एक शब्द गाली बन गया और दूसरा पूज्य ? 
मैं और खुल कर आना चाहता हूँ - - - 
हमारी माएं, बहनें और बेटियां सब भग धारी हैं. 
क्या रंगों को इंगित करने के लिए इनकी भग का रंग ही बचा था ? 
हमारे पूर्वज पाषांण युग के, 
आज की सभ्यता से वंचित थे, तो थे, बहर हाल हमारे पूर्वज थे, 
क्या उनकी अर्ध विकसित सोच को हम आज सभ्य समाज में भी ढोते फिरें ? 
मैं भौगोलिक तौर पर हिन्दू हूँ , 
इस्लाम को ढोता हुवा चौदह नस्लों के बाद भी हिन्दू हूँ. 
मेरे रगों में मेरे पूर्वजों का रक्त है, 
मगर मैं उनके वैदिक युग के ज्ञान को नहीं ढो सकता, 
उसे सर से उतार कर नालों में फेंक चुका हूँ 
और क़ुरआनी इल्म को नाली में.
मुझे आधुनिकता और साइंस की रौशन राह चाहिए.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 27 July 2020

क़ुरबानी


क़ुरबानी    

क़ुरबानी यानी बलिदान,
इस पाक और मुक़द्दस लफ़्ज़ को इस्लाम ने पामाल कर रख्खा है.
जानवरों का सामूहिक बद्ध को क़ुरबानी बना रक्खा है. 
क़ुरबानी और हज आज हैसियत का मुज़ाहिरा बन चुकी है.
क़ुरबानी इस वक़्त मुफ़्त खो़रों और हराम खो़रों की गिज़ा बन चुकी है.
क़ुरबानी ग़रीब और मज़बूर से उन की ग़ैरत छीन लेती है.
मक्के में क़ुरबानी का आलम ये है कि जितने हाजी होते हैं उतनी ही हैवानी जाने कुर्बान होती हैं. ज़ाहिर है कि एक हाजी एक बकरा तो खा नहीं सकता, 
गोश्त को रेगिस्तानो में दफन कर दिया जाता था, अब नहीं. 
दुन्या में कोई क़ौम  होगी जो इतनी बड़ी जिहालत को क़ुरबानी कहती हो ?
नेपाल में भी किसी मौके पर भैसों का कत्ल आम होता है, 
पूरा मैदान भैसों की लाशों से पट जाता है.
यह दुन्या के दूसरे नंबर के जाहिल हिन्दू होते हैं.
संविधान में मानव बलि एवं पशु बलि को जुर्म क़रार दे कर जीवों की सुरक्षा की गई है, जिसे मुस्लिम को छोड़ कर 99% अवाम ने मान लिया है.
मुसलमानों को पशु बलि की पूरी पूरी छूट है. यह बात दूसरों को अखरती है. यह असली तुष्टीकरण करण है. इसके ख़िलाफ़ अवामी आवाज़ उठनी चाहिए .
 ***
जीम 'मोमिन' निसारुल-क़ुरबानीईमान

Sunday 26 July 2020

लब्बयक अल्लहुम लब्बयक

लब्बयक अल्लहुम लब्बयक 
(ऐ अल्लाह मैं हाज़िर हूँ )

हज के ज़माने में हाजियों की यह आवाज़ काबे में गुनती हैं.
क़ब्ल इस्लाम काबा पूरी दुन्या का मरकज़ हुवा करता था. 
आजका अक़्वाम मुत्तःदा (यूनाइटेड नेशन) मक्का हुवा करता था. 
काबे में हर क़ौम  के बुत हुवा करते थे जैसे आज U N O में हर मुल्क के झंडे होते हैं. आस पास की क़ौमें अपने मसाइल लेकर यहाँ इकठ्ठा हुवा करती थीं. 
इस दौरान मक्का में हिंसा वर्जित हुवा करती थी. 
खाने पीने का सामान ख़ुद शुर्का किया करते थे. 
तिजारत भी हुवा करती थी और तबाला ए ख़याल भी. 
काबे में साहिबे हैसियत लोग ही शरीक होते थे, लाख़ैरे नहीं. 
लोग अपनी हैसियत के हिसाब से जानवरों की क़ुरबानी दिया करते थे, 
बकरे से लेकर ऊँट तक सभी जानवर क़ुरबानी के लिए मुहय्या किए जाते थे, स्वस्थ जानवर,बीमार और लाग़ुर नहीं. इस इन्तेज़ामियां में शरीक लोग अपने माल की क़ुरबानी देकर आलमी सम्मलेन का नियोजन किया करते थे.
इस्लामी इंक़्लाब आया, क़ुरबानी की रवायत जिहालत में बदल गई.
तमाम क़ौमो के हुक़ूक़ मुसलमानों की जंग जूई ने हथिया लिया . 
अब मुसलमान के सिवा कोई दूसरा मक्के में दाख़िल नहीं हो सकता. 
क़ुरबानी अब हज के बाद तीन दिनों तक होती है. हाजी हफ़्तों पहले से जाते हैं , उनका ख़र्च ख़राबा उनके जिम्मे. 
बकरे हज के बाद कटते हैं जो खाए नहीं जाते बल्कि रेतों में दफ़्न  कर दिए जाते हैं. होगी कोई इनकी तरह अक़्ल की अंधी, दुन्या में कोई क़ौम  ? 
बुत परस्ती इस्लाम में हराम है, 
बुतों से नफ़रत इतनी कि उसका ही बुत बना कर उसे कंकड़ मा रते है. 
नहीं समझ पाते यह अहमक़ कि बुत परस्ती हो या बुत की संगसारी, 
दोनों बातें बुत की हस्ती को तस्लीम करती हैं. 
आसमान से गिरे पत्थर शहाब साकिब (उल्का पिंड) को पूजने से बढ़ कर, 
उसे चूमते हैं.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 25 July 2020

शर्म से डूब मरो

शर्म से डूब मरो    
             
एक थे बाबा इब्राहीम. 
यहूदियों, ईसाइयों, मुसलमानों 
(और शायद ब्रह्मा आविष्कारक आर्यन के भी) 
के मुश्तरका मूरिसे आला 
(मूल पुरुष) अब्राम, अब्राहम, इब्राहीम, ब्राहम. 
(और शायद ब्रह्मा) 
बाबा इब्राहीम.
बहुत पुराना ज़माना था, अभी लौह युग भी नहीं आया था, 
हम उनका बाइबिल प्रचलित पहला नाम अब्राहम लिखते हैं कि वह पथर कटे क़बीले के ग़रीब बाप तेराह के बेटे थे, 
बाप तेराह बार बार बेटे अब्राहम से कहता कि 
बेटा! हिजरत करो, (विदेश जाना)
हिजरत में बरकत है, 
हो सकता है तुम को एक दिन वहाँ दूध और शहद वाला देश रहने को मिले. 
आख़िर एक दिन बाप तेराह की बात अब्राहम को लग ही गई, 
अब्राहम ने सामान ए सफ़र बांधा, 
जोरू सारा को और भतीजे लूत को साथ किया और तरके-वतन (खल्देइया) से बाहर निकला.
ख़ाके-ग़रीबुल वतनी छानते हुए मिस्र के बादशाह फ़िरअना के दरबार वह तीनो पहुँचे, 
माहौल का जायज़ा लिया. 
बादशाह ने दरबार आए मुसाफ़िरों को तलब किया, 
तीनों उसकी ख़िदमत में पेश हुए, 
अब्राहम ने सारा को अपनी बहन बतला कर 
ग़रीबुल वतनी से नजात पाने का हल तय किया, 
जबकि वह उसकी चचा ज़ाद बहन थी भी, 
सारा हसीन थी, बादशाह ने सारा को मन्ज़ूर ए नज़र बना कर 
अपने हरम में शामिल कर लिया.
एक मुद्दत के बाद जब यह राज़ खुला तो बादशाह ने अब्राहम की ख़बर ली मगर सारा की रिआयत से उसको कुछ माल मता देकर महल से बाहर किया. 
उस माल मता से अब्राहम और लूत ने भेड़ पालन शुरू किया 
जिससे वह एक दिन मालदार चरवाहे बन गए. 
सारा को कोई औलाद न थी, 
उसने बच्चे की चाहत में अब्राहम की शादी अपनी मिसरी ख़ादिमा हाजरा से करा दी, जिससे इस्माईल पैदा हुआ, 
मगर इसके बाद ख़ुद सारा हामला हुई और उससे इस्हाक़ पैदा हुआ.
इसके बाद सारा और हाजरा में ऐसी महा भारत हुई कि 
अब्राहम को सारा की बात माननी पड़ी,  
वह हाजरा को उसके बच्चे इस्माइल के साथ बहुत दूर सेहरा बियाबान में छोड़ आया.

अब्राहम को उसके इलोही ने ख़्वाब में दिखलाया कि 
वह अपने छोटे बेटे इस्हाक़ की क़ुरबानी दे, 
वह इस्हाक़ को लेकर पहाड़ियों पर चला गया 
और आँख पर पट्टी बाँध कर उसे हलाल कर डाला 
मगर वह जब पट्टी आँख से उतारता है तो बच्चे की जगह मेंढा पाता है और इस्हाक़ सही सलामत सामने खड़ा होता है. (तौरात) 

मैं अब इस्लामी अक़ीदत से अबराम को '' हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम'' लिखूंगा 
जिनका सहारा लेकर मुहम्मद अपने दीन को दीने-इब्राहीमी कहते हैं.
सब से पहले, हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर तीन जुर्म ख़ास - - - 
पहला जुर्म 
यह झूट कि उन्होंने अपनी बीवी सारा को बादशाह के सामने अपनी बहन बतलाया और उसको बादशाह की ख़ातिर हरम के हवाले किया.
दूसरा जुर्म 
हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का दूसरा जुर्म कि अपनी बीवी हाजरा और बच्चे इस्माईल को दूर बिया बान सेहरा में मर जाने के छोड़ आए.
तीसरा जुर्म 
हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर तीसरा जुर्म झूट का कि उन्हों ने अपने बेटे इस्हाक़ को हलाल किया था. 
दर असल उन्हों ने हलाल तो किया था मेंढे को ही मगर झूट की ऐसी बुन्याद डाली कि सदियों तक उस पर ख़ूनी जुर्म का अमल होता रहा.

ख़ुद मुहम्मद के दादा अब्दुल मुत्तलिब मनौती की बुन्याद पर मुहम्मद के बाप अब्दुल्ला को क़ुर्बान करने जा रहे थे मगर चाचाओं के आड़े आने पर सौ ऊँटों की क़ुर्बानी देकर अब्दुल्ला की जान बची. 
सोचिए कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के एक झूट पर हज़ारों सालों में कितनी जानें चली गई होंगी. 
हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम झूट बोले, 
इस्हाक़ का मेंढा बन जाना ग़ैर फ़ितरी बात है, 
अगर अल्लाह मियाँ भी रूप धारण करके, आकर गवाही दें तो मेडिकल साइंस इस बात को नहीं मानेगी. 
अक़ीदा जलते तवे पर पैजामें जलाता रहे. 
ऐसे अरबी झूठे और मुजरिम पर हम नमाज़ों के बाद दरूद ओ सलाम भेजते हैं- - - 
अल्ला हुम्मा सल्ले . . . 
अर्थात 
''ऐ अल्लाह मुहम्मद और उनकी औलादों पर रहमत भेज जिस तरह तूने रहमत भेजी थी इब्राहीम और उनकी औलादों पर.बे शक तू तारीफ़ किया गया है, तू बुज़ुर्ग है."
मुसलमानों ! 
अपने बाप दादाओं के बारे में सोचो जिनको तुमने अपनी आँखों से देखा है कि उनहोंने किन किन मुसीबतों का सामना करके तुमको बड़ा किया है और उन बुजुगों को भी ज़ेहन में लाओ जिनका ख़ूने-अक़दस तुम्हारे रगों में दौड़ रहा है और जिनको तुमने देखा भी नहीं, हज़ारों साल पहले या फिर लाखों साल पहले कैसी कैसी मुसीबतों का सामना करते हुए 
तूफ़ानों से, सैलाबों से, दरिंदों से पहाड़ी खोह और जंगलों में रह कर तुमको बचाते हुए आज तक ज़िन्दा रक्खा है 
क्या तुम उनको फ़रामोश करके मुहम्मद की ग़ुम राहियों में पड़ गए हो ? 
अब्राहम की यहूदी नस्लों के लिए और अरबी क़ुरैशियों के लिए दिन में पाँच बार दरूद ओ सलाम भेजते हो? 
शर्म से डूब मरो. 
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 24 July 2020

लिंग पूजा

लिंग पूजा 

योगियों, योगिनों स्वामी और साध्वियों के बयानों को पढ़ पढ़ कर पानी सर से ऊंचा हुवा जा रहा है, मेरे पाठक क्षमा करें कि सीमा लांघ रहा हूँ.
वह कहते हैं हिन्दू बच्चो की कतारें लगाएँ, 
porn फ़िल्में देखें, स्व-लिंग पूजा करें, 
यह वही नामर्द और नामुराद लोग हैं जो अपनी पौरुष शक्ति से 
एक चूहा भी पैदा नहीं कर सके.
हिजड़े होते होते रह गए, गेरुवे बन गए . 
इन्हों ने शिव लिंग मंदिर बनवा दिए अपनी औरतो के लिए, 
इनकी औरतों नें शिव लिंग को पूजना शुरू किया और अपनी वासना को लिंग की आराधना में ठंडा कर लिया.
यह आत्म ज्ञान और आत्म ध्यान में इतना डूबे कि वाह्य ज्ञान से बेख़बर रह गए. अपना जीवन तो ख़ुशियों से वंचित कर लिया अब दूसरों को राय दे रहे है कि 8, 8 बच्चे पैदा करके तुम भी जीवन की ख़ुशियों वंचित हो जाओ.
डा तो गडिया ने पौरुष वर्धन दवा भी हिन्दुओं के लिए ईजाद कर लिया है. 
600 की लिंग वर्धन को खरीदने पर 100 रुपिए की छूट भी दे रहे हैं.
धिक्कार है ऐसे मदारियों पर जो अपनी कमियों को छिपाने के लिए 
जनता को मूर्ख बनाए हुए हैं.
सुदर्शन TV का जोकर हिन्दू जागरण की यात्रा कर रहा है जहाँ पहाड़ जैसे 
"झूटों" का प्रचार हो रहा है, लोगों को समझाया जा रह है कि मुसलमान देश में जन संख्या को 8.8 % की दर से बढ़ा रहे है और हिन्दू केवल 1.2% . 
अफ़ग़ानी तालिबान की राह चल कर 10-12 बच्चे पैदा करो.
उन्हें खिलाएं पिलाएंगे वह जो स्वयम दूसरों की मेहनत पर ग़ुज़ारा करते है ?
इस्लाम में ब्रह्म चर्य हराम है जो 100% सही है. 
इसकी बहस को ख़ुद अपने दिमाग़ में गति दें कि 
इस पर पूरी किताब लिखने की ज़रुरत होगी. 
ब्रह्म चर्य तो ठीक वैसे ही है जैसे माली अपने पेड़ को फलने फूलने न दे,
किसान अपनी फसलों को लहलहाने न दे.
इस धरती का सारा कारोबार SEX पर आधारित है, 
धरती का दारोमदार SEX है.
कुछ लोगों में इसमें दिल चस्पी कम हो सकती है, 
जबकि उनके लिए इसके मुक़ाबिले में कोई और विषय हो, 
जो मानव जाति  के लिए वरदान हो.
उनको मुनकिर का सलाम,
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 23 July 2020

ख़ालिस काफ़िर


ख़ालिस काफ़िर          

ख़ालिस काफ़िर ले दे के भारत में या नेपाल में ही बाक़ी बचे हुए हैं. 
कुफ़्र और शिर्क इंसानी तहज़ीब की दो क़ीमती विरासतें है. 
इनके पास दुन्या की क़दीम तरीन किताबें हैं,  
जिन से इस्लाम ज़दा मुमालिक महरूम हो गए हैं. 
इनके पास बेश क़ीमती चारों वेद मौजूद हैं, 
जो कि मुख़्तलिफ़ चार इंसानी मसाइल का हल हुवा करते थे, 
इन्हीं वेदों की रौशनी में 18 पुराण हैं. 
माना कि ये मुबालिग़ा आराइयों से लबरेज़ है, 
मगर तमाज़त और ज़हानत के साथ, जिहालत से बहुत दूर हैं.  
इसके बाद इनकी शाख़ें 108 उप निषद मौजूद हैं, 
रामायण और महा भारत जैसी क़ीमती गाथाएँ, 
गीता जैसी सबक आमोज़ किताबें, अपनी असली हालत में मौजूद हैं. 
ये सारी किताबें तख़लीक़ हैं, तसव्वर की बुलंद परवाज़ें हैं, 
जिनको देख कर दिमाग़ हैरान हो जाता है. 
और अपनी धरोहर पर रश्क होता है. 
जब बड़ी बड़ी क़ौमों के पास कोई रस्मुल ख़त भी नहीं था, 
तब हमारे पुरखे ऐसे ग्रन्थ रचा करते थे. 

अरबों का कल्चर भी इसी तरह मालामाल था 
और कई बातों में वह आगे था, 
जिसे इस्लाम की आमद ने धो दिया. 
बढ़ते हुए कारवाँ की गाड़ियाँ बैक गेर में चली गई.
माज़ी में इंसानी दिमाग़ को रूहानी मरकज़ियत देने के लिए मफ़रूज़ा मअबूदों, 
देवी देवताओं और राक्षसों के किरदार उस वक़्त के इंसानों के लिए अलहाम ही थे. तहजीबें बेदार होती गईं और ज़ेहनों में बलूग़त आती गई, 
काफ़िर अपने ग्रंथो को एहतराम के साथ ताक़ पर रखते गए. 
ख़ुशी भरी हैरत होती है कि आज भी उनके वच्चे अपने पुरखों की रचनाओं को पौराणिक कथा के रूप में पहचानते हैं.
उनकी किताबें धार्मिक से पौराणिक हो गई हैं.

 क़ुरआन इन ग्रंथों के मुकाबले में अशरे-अशीर भी नहीं. 
ये कोई तख़लीक़ ही नहीं है बल्कि तख़लीक़ के लिए एक बद नुमा दाग़ है. 
मुसलमान इसकी पौराणिक कथा की जगह, 
मुल्लाओं की बखानी हुई पौराणिक हक़ीक़त की तरह जानते हैं 
और इन देव परी की कहानियों पर यक़ीन और अक़ीदा रखते है. 
यह मुसलमान कभी बालिग़ हो ही नहीं सकते. 
एक वक़्त इस्लामी इतिहास में ऐसा आ गया था कि इंगलिशतान 
अरबों के क़ब्ज़े में होने को था कि बच गया. 
इतिहास कर "वर्नियर" लिखता है 
"अगर कहीं ऐसा हो जाता तो आज आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पैग़ामबर मुहम्मद के फ़रमूदात पढ़ाए जा रहे होते."
अरब भी मुहम्मद को देखने और सुनने के बाद कहते थे कि 
"इसका क़ुरआन शायर के परेशान ख़यालों का पुलिंदा है" 
इस हक़ीक़त को जिस क़द्र जल्दी मुसलमान समझ लें, इनके हक़ में होगा .
एक ही हल है कि मुसलमान को तर्क-इस्लाम करके, 
अपने बुनयादी कल्चर को संभालते हुए मोमिन बन जाने की सलाह है. 
जिसकी तफ़सील हम बार बार अपने मज़ामीन में दोहराते है. 
कोई भी ग़ैर मुस्लिम नहीं चाहता कि  मुसलमान इस्लाम का दामन छोड़े. 
अरब तरके-इस्लाम करके बेदार हुए तो योरप और अमरीका 
के हाथों से तेल का ख़ज़ाना निकल जाएगा, 
भारत के मालदार लोगों के हाथों से नौकर चाकर, मजदूर, मित्री और एक बड़ा कन्ज़ियूमर तबक़ा सरक जाएगा. 
तिजारत और नौकरियों में दूसरे लोग कमज़ोर हो जाएँगे, 
गोया सभी चाहते है कि दुन्या की 20% आबादी सोलवीं सदी में अटकी रहे.  
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 22 July 2020

हिंदुत्व मेरी पहली पसंद ही नहीं, मेरा ईमान भी है

हिंदुत्व मेरी पहली पसंद ही नहीं, मेरा ईमान भी है. 

हर हिदुस्तानी को मेरी तरह ही हिन्दुत्व प्रेम होना चाहिए, 
ख़्वाह वह किसी जाति या धर्म का हो.
सिर्फ़ हिन्दुस्तान में ही नहीं ,
दुन्या के हर भूभाग का अपना अपना कलचर होता है, 
तहजीबें होती हैं और रवायतें होती हैं. हिदुस्तान का कलचर अधिक तर हिंसा रहित है. मारकाट से दूर , मान मोहक़ नृत्य और गान के साथ. 
जब धर्म और मज़हब कलचर में घुसपैठ बना लेते हैं तो, 
वहां के लोगों को ज़ेहनी कशमकश हो जाती है 
जो बाद में विरोध और झगड़े का कारण बन जाते हैं. 
मुझे हिन्दुत्व इस लिए पसंद है कि हम कभी सोच भी नहीं सकते कि 
शादी ब्याह में मेरी बेटी के तन पर अरब के सफ़ेद जोड़े में रुख़सत हो, 
आलावा सुर्ख लिबास के दूसरा कोई रंग मुझे गवारा नहीं. 
मुझे बदलते मौसम के हर त्यौहार पसंद हैं, 
जो मेले ठेले के रूप में होते है, मेरा दिल मोह लेते हैं 
जब मेले जाती हुई महिलाएं  रवायती गीत गाती हैं. 
जब मुख़्तलिफ़ जातियां शादी बारात में अपने अपने पौराणिक कर्तव्य दिखलाती हैं. मुझे रुला देता है वह पल जब बेटी अपने माँ बाप को आंसू भरी आँखों से विदा होती है. मैं अन्दर ही अन्दर नाचने लगता हूँ 
जब कोई क़बीला अपने आबाई रूप में तान छेड़ता है. 
मैं ही नहीं अमीर ख़ुसरो, रहीम, रसखान और नजीर बनारसी जैसे 
मुसलमान भी  हिन्दुत्व पर नहीं बल्कि अपनी सभ्यता पर जान छिड़कते थे.
धर्मों ने आकर सभ्यताओं,में दुर्गन्ध भर दी है, 
ख़ास कर इस्लाम ने इसे ग़ुनाह करार दे दिया हैं. 
इस्लाम की शिद्दत इतनी रही कि बारात में नाचने गाने को हराम क़रार दे दिया है, 
वह कहता है कि इन मौकों पर दरूद शरीफ़ 
(सय्यादों यानी मुहम्मद के पुरखों का ग़ुनगान) 
पढ़ते हुए चलो. 
मनुवाद ने नाचने गाने की आज़ादी तो दी है मगर हर मौक़े 
पर अपने किसी आत्मा को घुसेड दिया है कि इनकी पूजा भी ज़रूरी हो गई है. 
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 21 July 2020

प्रतिक्रियाएं

प्रतिक्रियाएं

मेरे हिंदी आर्टकिल "लिंग भेद" पर काफी कमेंटस पढ़ने को मिल रहे हैं. 
जो पाठक मेरे इस्लाम के जायज़ विरोध पर मेरी हिम्मत की दाद देते हैं, 
वही पाठक हिन्दू आस्था और मान्यता को लेकर मेरे जायज़ जायज़े पर आग बग़ुला हो रहे है. कहते है यह उनकी 5000 साल पुरानी आस्था है . 
मुस्लिम अक़ीदा क्या है ? हिन्दू आस्था है क्या ? 
कठ मुल्लों और पोंगा पंडितों की कल्पनाओं के सिवा 
कोई ठोस आधार रखती हैं यह गाथाएँ रुपी आस्थाएं ? 
अगर इस्लाम 1400 साल पुराना बदबूदार व्यंजन है, 
तो 5000 साल पुरानी वैदिक आस्थाएँ इस्लाम से चार ग़ुणा दुर्गंधित हैं. 
पोंगों ने 1000 ग़ुणा अतिश्यक्ति से काम लिया है. 
राम और कृष्ण काल को हज़ारों साल पुराना बतलाया 
और ढाई अरब साल का एक काल चक्र ? 
क्या इन बातों पर यक़ीन किया जाय ? 
बाल्मीकि का समय अल्तुतमिश के समय काल का है.
बाल्मीकि जिनके संक्षण में सीता अपने दो बेटों के साथ बिठूर में रहती थीं. 
इससे तमाम वास्तविकता खुलती है. 
तुलसी दास की रचित कल्पनाएँ हिदू धर्म बन गई हैं? 
राम के बाद कृष्ण हुए और महा भारत अभी कल की बात लगती है.
ग़ुरु गाँव ग़ुड़गांव हुवा अब ग़ुरु ग्राम हो गया. 
शिव जी की बारात हरिदर निवासी अभी अपने पूर्वजों की कथाओं में समेटे हुए हैं.
 शिव जी मुसलामानों के बाबा बर्फ़ानी बने हुए हैं 
जिनकी छड़ी मुबारक के दर्शन आज कराए जाते है. 
यही शिव जी ब्रह्मा विष्णु के साथ महेष बन कर ब्रह्मांड का सर्व नाश 
ढाई अरब साल बाद करते है > 
कोई हद होती है स्वयं घात की ? 
मैं मुसलमानों के साथ साथ अपने हिदू भाइयों को भी जागृत करना चाहता हूँ. 
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 20 July 2020

महा भारत

महा भारत

सेकुलर अकबर ने एक रोज़ अपने वज़ीर अबुल फ़ज़ल से कहा, 
महा भारत का तर्जुमा फ़ारसी में किया जाए ताकि हिन्दुस्तान का मुक़ाम आलमी सतह पर क़ायम हो सके.
दो हफ़्ते ग़ुज़र गए, अकबर ने फिर अबुल फ़ज़ल को याद दिलाया और दरियाफ़्त किया, कहाँ तक पहुंचे?   
अबुल फ़ज़ल ने कहा सरकार ! महा भारत का अध्धयन चल रहा है. 
महीना ग़ुज़रा तो फिर अकबर ने अबुल फ़ज़ल से पूछा, 
महा भारत की शुरुआत हुई ?
अबुल फ़ज़ल ने जवाब दिया अभी शुरुआत में ही अटका हुवा हूँ हुज़ूर. 
बादशाह ने पूछा, आख़िर माजरा क्या है ?
अबुल फ़ज़ल ने कहा, दर अस्ल मुआमला यह है कि महा भारत के शुरुआती किरदार ही हसबन और नसलन मशक़ूक़ और नाजायज़ हैं 
अकबर :- वह कैसे ?
अबुल फ़ज़ल :- हुज़ूर ! हिन्दुओं में एक प्रथा नियोग की हुवा करती है .
अकबर :- वह क्या हैं ? 
अबुल फ़ज़ल :- वह यह कि इनके नपुंसक महानुभाव अपनी पत्नियों का गर्भाधान किसी हिष्ट पुष्ट और योग्य पुरुष से मावज़ा देकर कराते हैं, 
जैसे गायों के लिए सांड किराए पर लिए जाते हैं.
एक राजा ने गौतम ऋषि को किराए पर लेकर अपनी तीनों रानियों का गर्भा दान कराया, इनसे जन्मित तीनों रानियों के राज कुमार महा भारत के बुनयादी किरदार हैं . इसके प्रचार और प्रसार से हिदुस्तान की शोहरत कम बदनामी ज़्यादः होगी .
अकबर सर पकड़ कर बैठ गया कि उसका तैमूरी ख़ून गैरत में आ गया था.
अबुल फ़ज़ल ने कह एक ग़ुज़ारिश और है हुज़ूर !
जलाल उद्दीन अकबर सरापा सवालिया निशान बन कर अबुल फ़ज़ल को देखा 
और पूछा, वह क्या है ?
अबुल फ़ज़ल ने बतलाया ,
महा भारत के किरदार में पांडु नाम के पांच भाई हुआ करते हैं 
जिन्हों ने मुश्तरका तौर पर एक औरत से ही शादी की है. 
द्रोपदि अपने शौहरों की, देवरों और जेठों की तनहा बीवी है.
लाहौल वला क़ूवत - - - अकबर के होटों पर आ गया,
अबुल फ़ज़ल ने कहा हुज़ूर ! 
इसे पढ़ कर फ़ारसी दानों को और उनके समाज को क्या पैग़ाम जाएगा ?
सुन कर बादशाह चीखा, 
ख़ामोश ! 
तख़लिया !!
महा भारत को बी आर चौपड़ा ने बड़ी कामयाबी के साथ फ़िलमाया . 
इसके प्रसारण के वक़्त सड़कों पर कर्फ्यू का आलम होता.
तब हिन्दू समाज में सहिस्नुता सहिषणुता का अंबार था, 
यही हिम्मत आज कोई मासूम रज़ा करके दिखलाए ?
फिल्म बैंड ही नहीं हो जाएगी,
मुल्क में फ़साद की नौबत आ जाएगी .
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 19 July 2020

अल्लाह क्या है ?

अल्लाह क्या है ?            
   
अल्लाह एक वह्म, एक ग़ुमान है.
अल्लाह का कोई भी ऐसा वजूद नहीं जो मज़ाहिब बतलाते हैं.
अल्लाह एक अंदाजा है, एक अंदेशा नुमा खौ़फ़ है.
अल्लाह एक अक़ीदा है जो विरासत या ज़ेह्नी ग़ुलामी के मार्फ़त मिलता है.
अल्लाह हद्दे ज़ेहन है या अक़ली कमज़ोरी की अलामत है,
अल्लाह अवामी राय है या फिर दिल की चाहत,
कुछ लोगों की राय है कि 
अल्लाह कोई ताक़त है जिसे सुप्रीम पावर भी कह जाता है?
अल्लाह कुछ भी नहीं है. 
ग़ुनाह और बद आमाली कोई फ़ेल नहीं होता ?
अगर आपके फ़ेल से किसी का कोई नुक़सान न हो. 
इन बातों का यक़ीन करके अगर कोई शख़्स मौजूदा 
इंसानी क़द्रों से बग़ावत करता है तो वह 
बद आमाली की किसी हद के क़रीब सकता है.
ऐसे कमज़ोर इंसानों के लिए अल्लाह को मनवाना ज़रूरी है.
वैसे अल्लाह के मानने वाले भी ग़ुनहगारी की तमाम हदें पर कर जाते हैं.
बल्कि अल्लाह के यक़ीन का मुज़ाहिरा करने वाले और अल्लाह की 
अलम बरदारी करने वाले सौ फ़ीसद दर पर्दा बेज़मिर मुजरिम देखे गए हैं.
बेहतर होगा कि बच्चों को दीनी तअलीम देने की बजाय उन्हें  
अख़लाक़यात पढ़ाई जाए, 
वह भी जदीद तरीन इंसानी क़द्रें जो मुस्तक़बिल क़रीब में उनके लिए फ़ायदेमंद हों.
मुस्तक़बिल बईद में इंसानी क़द्रों के बदलते रहने के इमकानात हुवा करते है.
आजका सच कल झूट साबित हो सकता हैं, 
आजकी क़द्रें कल की ना क़दरी बन सकती है.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 18 July 2020

माता

माता 

मैं मुस्लिम 
बाहुल्य और मुस्लिम शाशक कस्बे में पैदा हुवा, 
चार पाँच की उम्र से सामाजिक चेतना मुझ में जागने लगी थी. 
माहौल के हिसाब से ख़ुद को हिन्दुओं से बरतर समझने लगा था. 
सेवक लोग उस समय के प्रचलित अछूत हुवा करते थे 
जो शक्लन काले कलूटे मज़लूम लगते . 
हिन्दू अकसर मुझे चेचक ज़दा चेहरे दिखते . 
बड़ों से मालूम हुवा कि चेचक एक बीमारी होती है 
जिसमें पूरे शरीर पर फोड़े निकल आते हैं , 
हिदू इसे माता कहते हैं और इलाज नहीं कराते . 
मेरे मन में शब्द माता घृणित बीमारी जैसा लगने लगा .

बाज़ार में एक बनिए की दूकान में आग लग गई तो 
बूढ़ी बानिन लोगों को आग बुझाने से रोक रही थीं कि 
अग्नि माता को मत बुझाव . 
इससे मेरी समझ में आया कि वाक़ई माता ख़तरनाक हुवा करती हैं .

मैं अपनी माँ के साथ बस द्वारा कानपुर आ रहा था कि शोर सुना 
जय गंगा मय्या की, बस से झांक कर देखा तो पहली बार देखा, 
एक विशाल नदी ठाठें मार रही थी, डर लगा. 
माँ से मालूम हुवा हिन्दू गंगा नदी को माता कहते हैं.
अभी तक माता बमानी माँ होती है, मैं नहीं जनता था, 
इस लिए हर ख़तरनाक बात को माता समझता था.

क़स्बे में काली माई का मेला हुवा करता था जिसमे माताओं की ख़तरनाक तस्वीरें हुवा करती थीं, कोई ख़ूनी ज़बान बीता भर की लपलपाती हुई होती, 
तो कोई नर मुंड का हार पहने दुर्गा माता हुवा करती थी. 
माँ का तसव्वुर मेरे ज़ेहन में घिनावना ही होता गया.
क़स्बे में गाय का गोश्त एलानया कटता और बिकता. 
सुनने में आया कि हिन्दू गाय को भी माता कहते हैं. 
माता ! माता !! अंततः मेरी झुंझलाहट को पता चला  कि माता के मानी माँ के हैं.
शऊर बेदार हुवा तो इस माता पर ग़ौर किया, बहुत सी माताएं सुनने में आईं, 
धरती माता, सीता माता, लक्ष्मी माता, सरस्वती माता, सति माता, 
संतोषी माता से होते हुए बात राधे माता (डांसर ) तक आ गई .
पिछले दिनों गऊ माता के सपूतों ने काफ़ी ऊधम कटा 
और कई मानव जीव भी काटा.
अब नए सिरे से सियासी भूत अवाम पर चढ़ाया जा रहा है 
"भारत माता" .
ख़ैर ! मैं सियासी फ़र्द नहीं समाजी चिन्तक हूँ . 
इन माताओं की भरमार में इंसान की असली माता पीछे कर दी गई है . 
सदियों से वह इतनी पीछे है कि उसका ठिकाना गंगा पुत्रो के शरण में है . 
उसकी किसी हिन्दू को परवाह नहीं कि 
अन्य कल्पित माताएं उन्हें दूध भी दे रही हैं और कुर्सियां भी .
हिन्दू भाई अन्य समाज से ख़ुद को नापें तौलें 
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 17 July 2020

ख़ुदा कहता है मुझे पूजो नहीं, मुझ से लड़ो

ख़ुदा  कहता है मुझे पूजो नहीं, मुझ से लड़ो 

तू ऐसा बाप है जो अपने बेटे को कुश्ती के दाँव पेंच सिखलाता है,
ख़ुद उससे लड़ कर,
चाहता है कि मेरा बेटा मुझे परास्त कर दे.
तू अपने बेटे को डांटता है यहाँ तक कि गाली भी दे देता है,
ये कहते हुए कि ''अगर मेरी औलाद है तो मुझे चित करके दिखला'',
बेटा जब ग़ैरत में आकर बाप को चित कर देता है,
तब तू मुस्कुराता, पुलकित होता है और शाबाश कहता है.

प्रकृति पर विजय पाना ही मानव का लक्ष है,
उसको पूजना नहीं.
मेरा ख़ुदा कहता है तुम मुझे हल हथौड़ा लेकर तलाश करो,
माला और तस्बीह लेकर नहीं.
तुम खोजी हो तो एक दिन वह सब पा जाओगे जिसकी तुम कल्पना करते हो,
तुम एक एक इंच ज़मीन के लिए लड़ते हो,
बेवकूफ़ो! मैं तुम को एक एक नक्षत्र देने के लिए तैयार हूँ.
तुम लम्बी उम्रों  की तमन्ना करते हो,
मैं तुमको मरने ही नहीं दूँगा जब तक तुम न चाहो ,
तुम तंदुरस्ती की आरज़ू करते हो,
मैं तुमको सदा जवान रहने का वरदान दूंगा,
शर्त है कि, तुम 
मेरे छुपे हुए राज़ो-नियाज़ को तलाशने की जद्दो-जेहाद करो,
मुझे मत तलाशो,
मेरे नाम की लगी हुई इन रूहानी दूकानों पर तुम को 
अफ़ीमी नशा के सिवा कुछ न मिलेगा.
तुम जा रहे हो किधर ? सोचो,

पश्चिम जागृत हो चुका है. वह आन्तरिक्ष में आशियाना बना रहा है,
तुम आध्यात्म के बरगद के साए में बैठे पूजा पाठ और नमाज़ों में मग्न हो.
जागृत लोग नक्षर में चले जाएँगे तुम तकते रह जाओगे,
तुमको भी  ले जाएंगे साथ साथ,
मगर अपना ग़ुलाम  बना कर,
जागो, 
मोमिन सभी को जगा रहा है.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 16 July 2020

हिन्दू मानस

हिन्दू मानस

हिन्दू मानस, मानव जाति का ख़ाम माल, अथवा Raw Material होता है. 
इसी Compoud (लुद्दी) से हर क़िस्म के वैचारिक स्तर पर, 
मानव की उपजातियां वजूद में आईं. 
बौध, जैन, मुस्लिम, ईसाई और सिख सब इसी Compoud से निर्मित हुए हैं.
ख़ास कर पूर्वी एशिया में ज़्यादा मानव जाति इसी Raw Material से निर्मित हुए हैं.
पूर्वी एशिया के बौध और मुस्लिम के पूर्वज बुनयादी तौर पर हिन्दू थे.
 बुनयादी तौर पर हर बच्चा पहले हिन्दू ही पैदा होता है, 
उसे अपने तौर पर विकसित होने दिया जाए तो 
वह आदि काल की सभ्यता में विकसित हो जाएगा 
और अगर विभिन्न धार्मिक सांचों में ढाला जाए तो वह 
मुल्ले और पंड़े जैसे आधुनिक युग के कलंक बन जाएँगे. 
पत्थर युग से मध्य युग तक इंसान अपने माहौल के हिसाब से 
हज़ारो आस्थाएँ स्थापित करता गया, 
फिर सामूहिक धर्मों का वजूद मानव समाज में आया 
जिसे मज़हब कहना ज़्यादा मुनासिब होगा. 
मजहबों ने जहाँ तक समाज को सुधारा, 
वहीं स्थानीय आस्थाओं को मिटाया. 
हिन्दू आस्थाएँ यूँ होती हैं कि 
2.5 अरब सालों तक ब्रह्मा विश्व का निर्माण करते हैं, 
2.5 अरब सालों तक विष्णु विश्व को सृजित करते है और  
2.5 अरब सालों तक महेश विश्व का विनाश करते हैं. 
या 
भगवान् विष्णु मेंढकी योनि से बरामद हुए 
अथवा गणेश पारबती के शरीर की मैल से निर्मित हुए.
इसी समाज की आस्था है कि 33 करोड़ योनियों से ग़ुज़रता हुवा 
हर प्राणी अंत में मुक्त द्वार पर होता है. 
इस हास्यापद आस्थाओं से ऊब कर मनुष्य जब अपनी निजता पर आता है 
तो वह अन्य आस्थाओं की तरफ रुख करता है, 
उसे बहु ईश्वरीय संघ से एक ईश्वर उसे ज़्यादः उचित लगता है, 
33 करोड़ योनियाँ उसके दिमाग़ को चकरा देती हैं. 
मेढ़ाकीय योनि से निकसित भगवान् उसको अच्छे नहीं लगते. 
यही करण है कि भारत में इस्लाम विस्तृत हुवा और आज भी हो रहा है . 
बौध की रफ़्तार इतनी नहीं क्योंकि यह भूल वश हिन्दू के समांनांतर ही है, 
इस्लाम या ईसाइयत ही इसके धुर विरोभ में खड़े दिखाई देते हैं, 
वह समझता है कि इसमें घुस जाएं, बाद की देखी जाएगी.
कट्टर हिन्दू वादियों का शुभ समय आया है, 
वह लव जिहाद, घर वापसी जैसे हथकंड़े से इस परिवर्तनीय प्रवाह की 
रोक थाम करने में लगे हैं जो अंततः विरोधयों के हक़ में जाएगा. 
इस पर पुनर विचार न किया गया तो एक समय ऐसा भी आ सकता है 
कि रेत की बनी हिन्दू आस्थाओं को वक़्त की आंधी उड़ा ले जाए.
क्यूंकि इस युग में मानव समाज वैदिक काल में जाना पसंद नहीं करेगा.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 14 July 2020

हयात ए बे असर

 हयात ए बे असर       
   
दस्तूर ए क़ुदरत के मुताबिक़ हर सुब्ह कुछ बदलाव हुवा करता है. 
कहते हैं कि परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है.
फ़िराक़ कहते हैं -
निज़ाम ए दह्र बदले, आसमान बदले ज़मीं बदले,
कोई बैठा रहे कब तक हयात ए बे असर लेकर.
मुसलमानों ! तुम क्या "हयात ए बे असरी" को जी रहे हो? 
हर रोज़ सुब्ह ओ शाम तुम कुछ नया देखते हो . 
इसके बावजूद तुम पर असर नहीं होता? 
इंसानी ज़ेहन भी इसी ज़ुमरे में आता है, जो कि तब्दीली चाहता है.
बैल गाड़ियाँ इस तबदीली की बरकत से आज तेज़ रफ़्तार रेलें बन गई हैं. 
तुम जब सोते हो तो इस नियत को बाँध कर सोया करो कि कल कुछ नया होगा, जिसको अपनाने में हमें कोई संकोच नहीं होगा.
तारीकयों से पहले सरे शाम चाहिए,
हर रोज़ आगाही से भरा जाम चाहिए.
मगर तुम तो सदियों पुरानी रातों में सोए हुए हो, 
जिसका सवेरा ही नहीं होने देते. 
दुनिया कितनी आगे बढ़ गई है, तुमको ख़बर भी नहीं.
रात मोहलत है इक, जागने के लिए,
जाग कर सोए तो नींद आज़ार है.
उट्ठो आँखें खोलो. 
इस्लाम तुम पर नींद की अलामत है. 
इसे अपनाए हुए तुम कभी भी इंसानी बिरादरी की अगली सफ़ों में नहीं आ सकते. 
इस से अपना मोह भंग करो वर्ना तुम्हारी नस्लें तुमको कभी मुआफ़ नहीं करेगी.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान