जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
तालीम से गाफ़िल,फ़ने-ओन्का से अलग,
बदहाली में अव्वल, सफ़े-आला से अलग,
गुमराह किए है इन्हें अल्लाह 'मोमिन',
दुन्या है मुसलमानों की दुन्या से अलग
The Hidden Truth.
Sunday 30 August 2020
चूतिया=भग़ुवा
Saturday 29 August 2020
अनर्गल श्रद्धा
Friday 28 August 2020
नास्तिकता
हिन्दू ख़ुद अपना दुश्मन
जुनैद मुंकिर
Wednesday 26 August 2020
भारत माता
भारत माता
मादर ए वतन एक जज़बा ए बे असर है.
यह जज़्बा तभी शबाब पर आता है जब हम अपने मुल्क से दूर हों ,
मुल्क में रहते हुए ऐसी तस्वीर सियासी फ्रेम में लगी, बेज़ारी ही होती है,
सच पूछिए तो हुब्बुल वतनी सियासी हरबा ज़्यादा है और हक़ीक़त कम.
वतन को इतना अतिश्योक्ति पर लाया गया है कि इसे मादर और माता का दर्जा दे दिया जाता है, सच्चाई यह है कि यह मादर ए हक़ीक़ी की तौहीन है.
क्या माँ को बदला और बाटा जा सकता है ?
मगर यह धरती हमेशा बदली गई है, बाटी गई है,
माँ तो किसी हद तक सम्पूर्ण धरती को कहा जा सकता है,
मगर इस में भी क़बाहत है कि यह पूरा सच नहीं है.
इस से मादर हक़ीक़ी की तौहीन होती है कि उसका दर्ज उसके सिवा कोई और पाए.
माँ तो एक ही होती है , दो नहीं.
धरती को अर्ज़ पाक या पावन धरती कहा जा सकता है ,
वह जननी नहीं तो पेट भरनी ज़रूर है ,
मगर वतन को तो यह भी नहीं कहा जा सकता क्यों कि आज यह मेरा है ,
कल पराया हो सकता है यहाँ तक कि दुश्मन भी.
कडुवा सच यह है कि ज़मीन के किसी टुकड़े की सियासी हद बंदी की जाती है जो सीमा रेखा से सीमित हो जाती है ,
फिर उसका नाम वतन, मादर ए वतन, देश और भारत माता प्रचारित किया जाता है.
इससे बड़ी सच्चाई यह है कि सीमाओं की हद बंदी मानव जाति की फ़ितरत है ,क्योंकि यह उसकी ज़रुरत भी है।
सीमा बंद हिस्से को हम इस लिए तस्लीम करते हैं कि वह हमारी हिफाज़त करता है , हमारी तहज़ीब का मुहाफ़िज़ है, हमारी आज़ाद नस्लों का रक्षक है.
इसको फतह करके कोई बैरूनी ताक़त हमें अपना गुलाम बना सकती है ,
हमारी बहन बेटियां हमारी सीमा में ही महफूज़ हैं.
अपनी सीमा की हिफाज़त के लिए हम अपनी जान, अपना माल क़ुर्बान कर सकते हैं.
इसके लिए हमें सही सही टैक्स अदा करना चाहिए जिससे सीमा की सुरक्षा होती है.
टैक्स अदायगी के फ़र्ज़ अव्वलीन को खोखले देश प्रेम के गुणगान ,
माता के सम्मान में बदल दिया जाता है.
भारत माता की जय बोल कर और जय बुलवा कर सियासत दान सियासत करते हैं,
सीमाओं की सुरक्षा नहीं, सीमाओं को कमज़ोर करते हैं.
अन्ना हज़ारे और अरविंद केजरी वाल जैसे अच्छे और समझदार लोग भी ,
भारत माता जी जय बुलवा कर हमें जज़्बाती बना देते हैं.
हम पहली नज़र में देखें कि अपनी सीमा बंदी में हम कहाँ हैं ?
इसके लिए टैक्स भरपाई की शर्त पर पूरे उतारते है या कमज़ोरी के शिकार हैं.
दूसरी नज़र में देखें कि हमारे रहनुमा कितने ईमानदार हैं ?
उन पर नज़र रखना टैक्स अदा करने के बराबर ही है.
जिस हद बंदी में नार्थ कोरिया के डिक्टेटर जैसा ताना शाह या सद्दाम और ग़द्दाफ़ी जैसे हुक्मराँ हो, वहाँ देश द्रोह ही देश प्रेम है.
Tuesday 25 August 2020
प्रति शोध
Monday 24 August 2020
ज़ेहनी ग़ुस्ल
Sunday 23 August 2020
हिन्दुर
मैंने जब लिखना शुरू किया तो उर्दू में हिंदी के शब्द लाना अजीब सा लगता, जैसे बिरयानी में दाल मिला कर खा रहे हों.
इसी तरह हिंदी लिखने में उर्दू अल्फ़ाज़ खटकते.
उचित तो ये है कि जो लफ्ज़ माक़ूलियत को लेकर ज़ेहन में आएँ, उसे लिख मारें.
धीरे धीरे माक़ूलियत का दिल पर ग़लबा होता गया और अब मुनासिब शब्दों को चुनने में कोई क़बाहत नहीं होती.
अकसर मेरे हिंदी पाठक उलझ जाते हैं, मैं उनको सुलझाए रहता हूँ.
अपने दिल की बात मैं जिस ज़बान में अदा करता हूँ, उस भाषा को मैंने नाम दिया है,
"हिन्दुर" (हिंदी+उर्दू)
धीरे धीरे पाठक मेरी "हिन्दुर" को समजने लगेंगे,
इसमें उनका भी फ़ायदा है कि वह दोनों ज़बानों के वाक़िफ़ कार हो जाएँगे.
जहाँ तक भाषाओं की बात की जाए तो, उर्दू में अपनी एक चाशनी है,
बहुत मुकम्मल और सुसज्जित ज़बान है.
जब कि हिंदी आज भी अधूरी भाषा है,
जिसकी बुन्याद ही ऐसी पड़ी है कि सुधार मुमकिन नहीं.
उर्दू में नफ़ासत और बाँकपन है,
हिंदी में ज़बान की रवानी (Flow) नहीं, भद्दा पन अलग से, उच्चारण ही मुहाल है.
मिसाल के तौर पर अभी अभी अवतरित होने वाला शब्द "सहिष्णुता".
इसे उर्दू में रवादारी (Ravadari) कहते हैं जोकि कितना आसान है.
उर्दू कानों में तरन्नुम घोलती है,
हिंदी कान में कभी कभी तो कंकड़ जैसी लगती है.
उर्दू में अरबी, फ़ारसी, तुर्की, हिंदी अंग्रेज़ी और यूरेशियाई आदि कई ज़बानों के शब्द हैं. जिन से वह मालामाल है. सब ज़बानों की विरासत है उर्दू.
नशेमन पर मेरे बार ए करम सारी ज़मीं का है,
कोई तिनका कहीं का है , कोई तिनका कहीं का है .
अपने संगीत मय शब्दावली और उन सब के ग्रामर का असर है उर्दू पर,
जिससे हिंदी महरूम है.
उर्दू ने संस्कृत के शब्द भी लिए हैं मगर उनका उर्दू करण करते हुए. ण च छ ठ ढ भ जैसे कई अक्षर उर्दू में नहीं,
फ़ारसी ने इन में से कुछ अक्षर को लिया ज़रूर है मगर इनसे बने हुए अकसर शब्द सभ्य समाज के लिए नकार्मक अर्थ रखते हैं.
हिदुस्तान में प्रचलित सारी गालियाँ फ़ारसी भाषा की देन हैं.
उर्दू ने हिंदी और अंग्रेज़ी के शब्दों को लिया मगर इनमें करख्त कठोर अक्षर को बदल कर, जैसे यमुना =जमना, रामायण =रामायन, करके.
ऐसे ही Madam को मादाम करके.
मुझे दोनों भाषाएँ अज़ीज़ हैं अपनी दोनों आँखों की तरह.
***
Saturday 22 August 2020
यथा राजा तथा प्रजा
mmmm
यथा राजा तथा प्रजा
60 के दशक में कानपुर में फूल बाग़ के मैदान में एक पांडे जी हुवा करते थे.
घोर नास्तिक. हिदू धर्म की बखिया उधेड़ते रहते.
उनके गिर्द सौ डेढ़ सौ जनता इकठ्ठा हो कर बैठ जाती,
अनोखी बातें पांडे जी के मुखर विन्दु से फूटतीं
जिसको जनता नकार तो नहीं सकती थी मगर पचा भी न पाती.
वह कहते जंग में चीन ने भारत के एक हिस्से पर अधिकार कर लिया,
क्यूँ न पवन सुत हनुमान उड़कर आए ?
क्यों न अपनी गदा से चीनियों का सर न फोड़ दिया??
उनकी बातें सुनकर कुछ लोग हनुमान भक्त आँख बचा कर उन पर कंकड़ी मार देते,
जैसे मुसलमान हाजी मक्का में जाकर शैतान को कंकड़ी मरते हैं .
वह हंस कर कहते यह तुम्हारा दोष नहीं तुम्हारे धार्मिक संस्कारों का दोष है
कि तुम अभी तक सभ्य इंसान भी नहीं बन सके.
उनके जवाब में थोड़ी दूर पर एक मौलाना इस्लाम की तबलीग़ करते,
वही घिसी पिटी बातें कि अल्लाह ने क़ुरआन में फ़रमाया है - - -
उनके पास भी दस पांच लोग इकठ्ठा होते.
उसी ज़माने में एक कालिया मदारी हुवा करता था
जिसकी लच्छेदार बातें सुनने के लिए 2-4 सौ लोग घेरा बना कर खड़े हो जाते.
अपने वर्णन कला पर उसको पूरा कमांड होता कि वह ग्रीस को मरहम बना कर
और काली रेत को मंजन बना कर बेच लेता,
वह भीड में मूर्खों को ताड लेता उनको मंजन मुफ्त जैसे बाँट कर फंसा लेता
फिर उनसे बातों की चोट से पैसे निकलवा लेता.
महफ़िल बरख़्वात होने से पहले अपने शिकारों को मुख़ातिब करके बतलाता कि
तुममे कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्हों ने कल रत अपनी माँ के साथ ज़िना किया होगा,
वह तुम से कहेगे कि फंस गए बेटा.
कभी कभी मोदी का भाषण सुनकर एकदम मुझे
कालिया मदारी याद आता है और उसके श्रोता गण.
***
Friday 21 August 2020
धर्मांध आस्थाएँ
Thursday 20 August 2020
एजेंट्स
Wednesday 19 August 2020
एजेंट्स
Tuesday 18 August 2020
दोहरे स्तर
Monday 17 August 2020
निंगलो या उगलो
निंगलो या उगलो
अभी कल की बात है कि रूस में वहां के बाशिंदे बदलाव चाहते थे,वह अपनी रियासतों को अपना मुल्क बनाना चाहते थे,उन्होंने इसकी आवाज़ बुलंद की. सदर ए रूस ब्रेज़नेव ने उन्हें आगाह किया कि'अलग होने से पहले एक हज़ार बार सोचोफिर हमें बतलाओ कि क्या इसका नतीजा तुम्हारे हक़ में होगा?'जनता ने एक हज़ार बार सोचने के बाद अपनी मांग दोहराई.बिना किसी ख़ून ख़राबे के सात आठ राज्यों को रूस ने आज़ाद कर दिया.भारत की तरह रियासतों को अपना अभिन्न नहीं बतलाया.इसी तरह कैनाडा में फ़्रांससीसी लाबी नेकैनाडा से बाहर होकर अपना मुल्क चाहते हैं,उनकी आवाज़ पर कैनाडा में तीन बार राय शुमारी हुईअलगाव वादी बहुत मामूली अंतर से तीनो बार हारे.वहां के सभी समाज ने इस पर एक क़तरा भी ख़ून न बहने दिया.राय शुमारी को सर आँखों पर रख कर अपने अपने कामों पर लग गए.सदियों पहले गीता में कहा गया है कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है.किसी मुफ़क्किर की राय है कि हर हिस्सा ए ज़मीन मेंकोई शाही या कोई निज़ाम पचास साल से ज़्यादा नहीं पसंद किया जाता.फिराक़ कहता हैनिज़ामे दहर बदले, आसमाँ बदले, ज़मीं बदले,कोई बैठा रहे कब तक हयात-बेअसर लेके.भारत ने राष्ट्र मंडल में वचन दिय हुवा है कि कश्मीर में राय शुमारी करा के कश्मीर को कश्मीरियों के मर्ज़ी के हवाले कर देंगे,फिर चाहे वह हिंदुस्तान के साथ रहे, या पाकिस्तान के साथ,अथवा आज़ाद हो कर अपना मुल्क बनाएँ.यह बात किसी फ़र्द का वादा नहीं, बल्कि क़ौम की दूसरी क़ौम को दी हुईज़बान है जो अलिमी पंचायत में लिखित दी गई है.तुलसी दास जी कहते हैंरघु कुल रीति सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई.आज हिदुस्ताम चरित्र के मामले में दुन्या के आख़री पायदान के क़रीब है.इसकी वजह यह है कि हम परले दर्जे के बे ईमान लोग हैं.अब मैं आता हूँ कश्मीर पर कि - - -ऐ कश्मीरियोतुम्हारे लिए यह हुस्न इत्तेफ़ाक़ है कि तुम बड़े हिदुस्तान के शहरी होकर रह रहे हो,तुम हिदुस्तानी होकर एक बड़े मुल्क के बाशिंदे हो, वह भी कश्मीरियत के साथ.हिदुस्तान से अलग होकर क्या पाओगे ?नेपाल, भूटान या श्री लंका जैसे छोटे से देशों में ग़ुमनामी ?ग़ुमनाम होकर रह जाओगे, तुम्हारे हाथ महरूमियों के सिवा कुछ न आएगा.वैसे अलग होकर तुम खाओगे क्या?सेब और ज़ाफ़रान से अपने पेट भरोगे?क्या तुम मुल्लाओं का शिकार होकर इस्लामी जिहालातों के गोद में जाना चाहते हो ? पकिस्तान बेचैन है तुमको गोद लेने के लिए.अलक़ायदा और तालिबान तुम्हारा शिकार कर लेंगे .अभी एक बड़े मुल्क के बाशिदे होकर तमाम सहूलते तुम्हें मयस्सर हैं.ख़ास कर तअलीम के मैदान में,इन तमाम मवाक़े गँवा बैठोगे.वैसे अभी तक तुम कुछ ख़ास बन भी नहीं पाए हो.मैं कश्मीर घूमा हूँ कोई किरदार अवाम में नहीं है.पक्के झूटे बेईमान, ठग और लड़ाका क़ौम हो.आज़ाद होने के बाद भी तुम आपस में लड़ मरोगे.कशमीर के मौसमी क़बीले हर साल पूरे भारत में ख़ैरात के लिए फैल जाते हैं,फ़िर वह कहाँ जाया करेंगे ?***
Sunday 16 August 2020
हज और कुम्भ
Saturday 15 August 2020
हसन बसरी
Friday 14 August 2020
इतिहास
Thursday 13 August 2020
सेक्स-sex
सेक्स-sex
मुहम्मद अपनी टोली में बैठे थे कि एक औरत आई और मुहम्मद से कहा,आप मुझे अपने निकाह में ले लीजिए, पेट भरने का तो ठिकाना मिले.मुहम्मद उसे देख कर मुस्कुराए.सोचा होगा कि 9 अदद वैसे भी हैं,अब इस झमेले में पडना मुनासिब नहीं.उन्हों ने मुस्कुराते हुए इंकार में सर हिला दिया.उनके टोली में एक फटीचर भी बैठा हुवा था,मुहम्मद के इनकार करने के फ़ौरन बाद बोला,या रसूल अल्लाह !इस औरत को मेरे निकाह में दे दीजिए ,मुहम्मद ने कहा, तू अपने घर जा और देख कर आ कितेरे पास क्या क्या असासे हैं.वह हुक्म को मानते हुए घर गया और वापस आकर बतलाया कि,उसके पास कोई भी असासा नहीं है, बस तन से लिपटी हुई इस लुंगी के सिवा.मुहम्मद ने पूछा क़ुरान की कोई आयत याद है ?उसने क़ुरान की एक आयत सुना दिया.मुहम्मद ने दोनों का निकाह पढ़ा कर रुख़सत कर दिया.(हदीस बुखारी)मुहम्मद का फ़ैसला दोनों के हक़ में ग़नीमत था.उन दोनों के पास कुछ भी न थाक़ुदरत की बख़्शी हुई दौलत सिर्फ़ SEX था,जिसके तुफ़ैल में दोनों एक दूसरे के मुस्तहक़ भी थे और तलबगार भी.अगले दिन उनके अन्दर समाया हवा हिस बेदार हुवा होगाऔर उन्हें आपस में एक दूसरे के पेट के लिए ग़ैरत जगी होगी.वह ज़रूर हरकत में आ गए होंगे.उनके यहाँ बाल बच्चे भी हुए होंगे,ख़ुश हाली भी आ गई होगी.SEX की बड़ी बरकत होती है,आप देखते हैं कि परिंदे SEX के बाद कितने ज़िम्मेदार हो जाते हैं,घोसला बनाने लगते हैं,अपने बच्चों के लिए चारा ढो ढो कर लाना शुरू कर देते हैं.मुझे हैरत होती है कि हिन्दू समाज SEX को इतना बुरा क्यों मानता है.SEX को दबाने की कोशिश क्यों करता है ?SEX की लज्ज़त से इतना ना आशना क्यों होता है ?पेट भरने के बाद SEX इंसान की दूसरी ज़रुरत है.***
Wednesday 12 August 2020
निर्पक्षता
Tuesday 11 August 2020
बुरे इस्लाम की कुछ खूबी
Monday 10 August 2020
गुंड़े और कायर
Sunday 9 August 2020
नास्तिकता
खौ़फ़, लालच और अय्यारी ने God, अल्लाह या भगवान को जन्मा.
इनकी बुन्याद पर बड़े बड़े धर्म और मज़हब फले फूले,
अय्यारों ने अवाम को ठगा.
इन ठगों को धर्म ग़ुरु कहा जाता है.
कभी कभी यह निःस्वार्थ होते हैं मगर इनके वारिस चेले यक़ीनन फित्तीन होते है.
कुछ हस्तियाँ इन से बग़ावत करके धर्मों की सीमा से बाहर निकल आती हैं ,
मगर वह काल्पनिक ख़ुदा के दायरे में ही रहती हैं, इन्हें संत और सूफ़ी कहा जाता है.
संत और सूफ़ी कभी कभी मन को शांति देते है.
कभी कदार मै भी इन की महफ़िल में बैठ कर झूमने लगता हूँ.
देखा गया है कि इनकी मजारें और मूर्तियाँ स्थापित हो जाती है
और आस्था रूपी धंधा शुरू हो जाता है.
कुछ मानव मात्र इन से बेगाना होकर, मानव की ज़रूरतों को समझते हैं ,
उनके लिए ज़िंदगी को आसान बनाने का जतन किया,
ऐसे महा पुरुष मूजिद (ईजाद करने वाला) और साइंस दां होते हैं .
उन्हें नाम नमूद या दौलत की कोई चिंता नहीं,
अपने धुन के पक्के, वर्षों सूरज की किरण भी नहीं देखते,
अपना नाम भी भूल जाते हैं.
यह महान मानव संसाधनों के आविष्कारक होते हैं.
इनकी ही बख़्शी हुई राहों पर चल कर दुन्या बरक़रार रहती है.
आधी दुन्या हवा के बुत God या अल्लाह को पूजती है,
एक चौथाई दुन्या मिटटी पत्थर और धात की बनी मूर्तियाँ पूजती है,
और एक चौथाई दुन्या ला मज़हब अथवा नास्तिक है.
नास्तिकता भी एक धर्म है,
निज़ाम ए हयात है
या जीवन पद्धति कहा जाए.
यह नवीन लाइफ़ स्टाइल है.
उपरोक्त धर्म और अर्ध धर्म हमें थपकियाँ देकर अतीत में सुलाए रहते हैं
और साइंस दान भविष्य की चिंता में हमे जगाए रहते हैं.
वास्तविकता को समझिए
नास्तिकता को पहचानिए
कि इसकी कोई पहचान नहीं.