tag:blogger.com,1999:blog-1343468070249503733.post2220041297467617639..comments2023-09-13T01:41:16.688-07:00Comments on <b>हर्फ़-ए-ग़लत-ll</b> <sub>(उम्मी का दीवान)</sub>: सूरह नूर २४ (दूसरी किस्त)जुनैद 'मोमिन'http://www.blogger.com/profile/13449175791700438349noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-1343468070249503733.post-23536219846811959932012-08-05T05:03:23.175-07:002012-08-05T05:03:23.175-07:00जब गुनाहगारों को ऊपर की सज़ा तय है तो तुम नीचे ज़म...जब गुनाहगारों को ऊपर की सज़ा तय है तो तुम नीचे ज़मीन पर न मुकम्मल और जेहालत से भरी हुई सज़ा को क्यूं रवा रक्खे हो। जब तुम्हारे पास कानून बनाने की अक्ल नहीं है तो कानून साज़ी का मजाक क्यूँ बना रहे हो? मुसलमानों!<br />sabse achchhi baat yahi hai, lekin ham log ise samjhte hi nahi.asifnoreply@blogger.com