हर्फ़-ए-ग़लत-ll (उम्मी का दीवान)
तालीम से गाफ़िल,फ़ने-ओन्का से अलग,
बदहाली में अव्वल, सफ़े-आला से अलग,
गुमराह किए है इन्हें अल्लाह 'मोमिन',
दुन्या है मुसलमानों की दुन्या से अलग
The Hidden Truth.
Saturday, 20 February 2021
क़ुरआन ए ला शरीफ़ (18)
Friday, 19 February 2021
क़ुरआन ए ला शरीफ़ (17)
Thursday, 18 February 2021
क़ुरआन ए ला शरीफ़ (16)
Wednesday, 17 February 2021
क़ुरआन ए ला शरीफ़ (15
Tuesday, 16 February 2021
क़ुरआन ए ला शरीफ़ (14 )
क़ुरआन ए ला शरीफ़ (14 )
सूरह आले इमरान- 3-سورتہ آل عمران
(क़िस्त 1)
एक हदीस मुलहिज़ा फ़रमाएँ - - -
इस्लाम के दूसरे सूत्राधार अली मौला से रवायत है कि
''एक ऊंटनी बद्र के जंग से माले-ग़नीमत (लूट) में मुझे मिली और एक रसूल ने तोह्फ़तन दी. इन दोनों को एक अंसार के सेहन में बाँध कर मैं सोंच रहा था कि इन पर अज़ख़ुर घास लाद कर लाया करूंगा और बेचूगा, इस तरह कुछ पैसा जमा कर के फ़ातिमा का वलीमा करूंगा जो कि अभी तक मुझ पर उधार था. इसी घर में हम्ज़ा बिन अब्दुल मतलब मुहम्मद के चचा शराब पी रहे थे, साथ में एक लौंडी ग़ज़ल गा रही थी जो कुछ इस तरह थी - - -
(तर्जुमा)
चल ऐ हम्ज़ा इन मोटे ऊंटों पे जा,
बंधे हैं सेहन में जो सब एक जा,
चला इनकी गर्दन पे जल्दी छुरा,
मिला इनको तू ख़ून में और लुटा,
बना इनके टुकड़ों से उम्दा जो हों,
गज़क गोश्त का हो पका और भुना.
उसकी ग़ज़ल सुन कर हम्ज़ा ने तलवार उठाई और ऊटों की कोखें फाड़ दीं. अली यह मंज़र देख कर मुहम्मद के पास भागे हुए गए और जाकर शिकायत की, जहाँ ज़ैद बिन हारसा भी मौजूद थे. तीनों अफ़राद जब हम्ज़ा के पास पहुंचे तो वह नशे में धुत्त था. उन सभों को देख कर ग़ुस्से के आलम में लाल पीला हो रहा हो गया, बोला,
'' तुम लोग हो क्या? मेरे बाप दादों के ग़ुलाम हो.''
यह सुन कर मुहम्मद उलटे पाँव वापस हो गए
(देखें हदीस ''मुस्लिम - - - किताबुल अशर्बता'' + बुखारी १५७)
यह मुहम्मद का बहुत निजी मामला था, एक तरफ़ दामाद, दूसरी तरफ़ ख़ुदा ख़ुदा करके हुवा,
मुसलमान बहादुर चचा हम्ज़ा ?
होशियार अल्लाह के ख़ुद साख़ता रसूल को एक रास्ता सूझा,
दूसरे दिन ही अल्लाह की क़ुरआनी आयत नाज़िल करा दी कि शराब हराम हुई.
मदीने में मनादी करा दी गई कि अल्लाह ने शराब को हराम क़रार दे दिया है.
जाम ओ पैमाना तोड़ दिए गए, मटके और ख़ुम पलट दिए गए,
शराबियों के लिए कोड़ों की सज़ाएं मुक़रर्र हुईं.
कल तक जो शराब लोगों की महबूब मशरूब थी, उस से वह महरूम कर दिए गए. यक़ीनन ख़ुद मुहम्मद ने मयनोशी उसी दिन छोड़ी होगी क्यूं कि कई क़ुरआनी आयतें शराबियों की सी इल्लत की बू रखती हैं.
लोगों की तिजारत पर गाज गिरी होगी, मुहम्मद की बला से, उनका तो कौल था कि सब से बेहतर तिजारत है जेहाद जिसमे लूट के माल से रातो रात माला माल हो जाओ.
ग़ौर करें की मुहम्मद ने अपने दामाद अली के लिए लोगों को शराब जैसी नेअमत से महरूम कर दिया.
शराब ज़ेहन इंसानी के लिए नेअमत ही नहीं दवा भी है,
दवा को दवा की तरह लिया जाए न के अघोरियों की तरह . शराब जिस्म के तमाम आज़ा को संतुलित रखती है, आज की साइंसी खोज में इसका बड़ा योगदान है. यह ज़ेहन के दरीचों को खोलती है जिसमे नए नए आयाम की आमद होती है. इसकी लम्स क़ुदरत की अन छुई परतें खोलती हैं.
शराब इंसान को मंजिल पाने के लिए मुसलसल अंगड़ाइयां अता करती है.
आलमे इस्लाम की बद नसीबी है कि शराब की बे बरकती ने इसे कुंद जेहन, कौदम, और गाऊदी बना दिया है. इस्लाम तस्लीम करने के बाद कोई मुस्लिम बन्दा ऐसा नहीं हुवा जिस ने कि कोई नव ईजाद की हो.
हमारे मुस्लिम समाज का असर हिन्दू समाज पर अच्छा खासा पड़ा है.
इस समाज ने मुस्लिम समाज के रस्मो-रिवाज, खान पान, लिबासों, पोशाक, और तौर तरीक़ों को अपनाया और ऐसा नहीं कि सिर्फ़ हिन्दुओं ने ही अपनाया हो, मुसलमानों ने भी हिन्दू रस्म को अपनाया.
यूं कहें कि इस्लाम क़ुबूल करने के बाद भी अपने रस्मो रिवाज पर क़ायम रहे.
मसलन दुल्हन का सुर्ख लिबास हो या जात बिरादरी.
मगर सोमरस जो कि ऋग वेद मन्त्र का पवित्र उपहार है, हिदू समाज में हराम कैसे हो गया,
मोदी का गुजरात इसे क्यूं क़ुबूल किए हुए है?
गांधी बाबा इसके ख़िलाफ़ क्यूं सनके?
यह तो वाक़ई आबे हयात है.
किसी के लिए मीठा और चिकना हराम है तो किसी के लिए नमक और मिर्च.
ज़्यादः खाना नुक़सान देह हो तो हराम हो जाता है और ग़रीब को कम खाना तो मजबूरी में हराम होता ही है.
यह हराम हलाल का कन्सेप्ट ही इस्लामी बेवक़ूफ़ियों में से एक है.
हराम गिज़ा वह होती है जो मुफ़्त और बग़ैर मशक्क़त की हो,
दूसरों का हक़ हो लूट पाट की हो.
मुसलमानों!
माले ग़नी मत बद तरीन हराम गिज़ा है.
आइए तीसरे पारे आले इमरान की बख़िया उधेडी जाए - - -
"अलिफ़-लाम-मीम"
सूरह आले इमरान 3 आयत (1)
यह लफ़्ज़ मोहमिल (यानी अर्थ शून्य) है जिसका मतलब अल्लाह ही जनता है.
ऐसे हरफ़ों या लफ्ज़ों को क़ुरआनी मंतक़ियों ने हुरूफ़ ए मुक़त्तेआत का नाम दिया है.
यह सूरत के पहले आते हैं.
यहाँ पर यह एक आयत यानी कोई बात, कोई पैग़ाम की हैसियत भी रखता है.
इस अर्थ हीन शब्द के आगे + ग़ल्लम लगा कर किसी अक़्ल मंद ने इसे अल्लम ग़ल्लम कर दिया,
गोया इस का पूरा पूरा हक़ अदा कर दिया, अल्लम ग़ल्लम.
क़ुरआन का बेहतरीन नाम अल्लम ग़ल्लम हो सकता है.
"अल्लाह तअला ऐसे हैं कि उन के सिवा कोई क़ाबिल माबूद बनाने के नहीं और वह ज़िन्दा ओ जावेद है."
सूरह आले इमरान 3 आयत(२)
यहाँ पर मैं फिर आप को एक बार याद दिला दूँ कि क़ुरआन कलाम अल्लाह नहीं कलाम मुहम्मद है,
जैसा कि वह अल्लाह के बारे में बतला रहे हैं,
साथ साथ उसकी मुशतहरी भी कर रहे हैं. इस आयत में बेवक़ूफ़ी कि इत्तेला है.
अल्लाह अगर है तो क्या मुर्दा होगा ?
मुसलमान तो मुर्दा ख़ुदाओं का दामन थाम कर भी अपनी नय्या पार लगा लेता है. यह अल्लाह के ज़िन्दा होने और सब कुछ संभालने की बात मुहम्मद ने पहले भी कही है आगे भी इसे बार बार दोहराते रहेंगे.