मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह जोमोआ ६२ पारा २८
मुसलमानों को अँधेरे में रखने वाले इस्लामी विद्वान, मुस्लिम बुद्धि जीवी और कौमी रहनुमा, समय आ गया है कि अब जवाब दें- - -
कि लाखों, करोरों, अरबों बल्कि उस से भी कहीं अधिक बरसों से इस ब्रह्मांड का रचना कार अल्लाह क्या चौदह सौ साल पहले केवल तेईस साल चार महीने (मोहम्मद का पैगम्बरी काल) के लिए अरबी जुबान में बोला था?
वह भी मुहम्मद से सीधे नहीं, किसी तथा कथित दूत के माध्यम से,
वह भी बाआवाज़ बुलंद नहीं काना-फूसी कर के ?
जनता कहती रही कि जिब्रील आते हैं तो सब को दिखाई क्यूँ नहीं पड़ते? जो कि उसकी उचित मांग थी और मोहम्मद बहाने बनाते रहे।
क्या उसके बाद अल्लाह को साँप सूँघ गया कि स्वयम्भू अल्लाह के रसूल की मौत के बाद उसकी बोलती बंद हो गई और जिब्रील अलैहिस्सलाम मृत्यु लोक को सिधार गए ?
उस महान रचना कार के सारे काम तो बदस्तूर चल रहे हैं, मगर झूठे अल्लाह और उसके स्वयम्भू रसूल के छल में आ जाने वाले लोगों के काम चौदह सौ सालों से रुके हुए हैं,
मुस्लमान वहीँ है जहाँ सदियों पहले था,
उसके हम रकाब यहूदी, ईसाई और दीगर कौमें आज हम मुसलमानों को सदियों पीछे अतीत के अंधेरों में छोड़ कर प्रकाश मय संसार में बढ़ गए हैं. हम मोहम्मद की गढ़ी हुई जन्नत के मिथ्य में ही नमाजों के लिए वजू, रुकू और सजदे में विपत्ति ग्रस्त है.
मुहम्मदी अल्लाह उन के बाद क्यूँ मुसलमानों में किसी से वार्तालाप नहीं कर रहा है? जो वार्ता उसके नाम से की गई है उस में कितना दम है? ये सवाल तो आगे आएगा जिसका वाजिब उत्तर इन बदमआश आलिमो को देना होगा....
क़ुरआन का पोस्ट मार्टम खुली आँख से देखें,
"हर्फ़ ए ग़लत" का सिलसिला जारी हो गया है.
आप जागें, मुस्लिम से मोमिन हो जाएँ और ईमान की बात करें। अगर ज़मीर रखते हैं तो सदाक़त अर्थात सत्य को ज़रूर समझेंगे और अगर इसलाम की कूढ़ मग्ज़ी ही ज़ेह्न में समाई है तो जाने दीजिए अपनी नस्लों को तालिबानी जहन्नम जिन गलाज़तों में आप सने हुए हैं - - -
उसे ईमान के सच्चे साबुन से धोइए और पाक ज़ेहन के साथ ज़िंदगी का आगाज़ करिए.
गलाज़त भरे पयाम आपको मुखातिब करते हैं इन्हें सुनकर इससे मुंह फेरिए - - -
"सब चीजें जो कुछ आसमानों पर है और ज़मीन में हैं, अल्लाह की पाकी बयान करती हैं.जोकि बादशाह है, पाक है, ज़बरदस्त है, हिकमत वाला है." सूरह जोमोआ ६२ पारा २८ आयत (१)
सूरह जदीद के बाद मुहम्मद के लब ओ लहजे में संजीदी आ गई है, न अब वह जादूगरों की तरह हुरूफे मुक़त्तेआत की भूमिका बाँधते हैं न गैर फ़ितरी जेहालत करते है. उनकी शुरुआत तौरेत की तरह होती है,जैसा की मैंने कहा था की सूरह जदीद किसी यहूदी मुसाहिब की कही हुई थी.
''वही है जिसने नाख्वान्दा लोगों में , इन्हीं में से एक को पैगम्बर भेजा जो इनको अल्लाह की आयतें पढ़ पढ़ कर सुनाते हैं और इनको पाक करते हैं और इनको किताब और दानिश मंदी सिखलाते हैं और ये लोग पहले से ही खुली गुमराही में थे."
सूरह जोमोआ ६२ पारा २८ आयत (२)
मुहम्मद क़ुरआनी आयतें बना बना कर जो भी गाते बजाते थे उसका कोई असर समाज पर नहीं पड़ता था मगर उनकी तहरीक ने जब जेहाद का तरीक़ा अपनाया तो ये सदियों साल पहले कमन्यूज़म की सदा थी, जो सदियों बाद कार्ल मार्क्स की पहचान बनी. कार्ल मार्क्स की तहरीक में किसी अल्लाह का झूट नहीं था, जिसकी वजेह से बनी नव इंसान की आँखें खुलीं, मुहम्मद की तहरीक में झूट और कुरैश परस्ती ने आबादी को मज़हबी अफीम दे दिया, जिसके सेवन चौथाई दुन्या अफीमची बन गई. "जिन लोगों पर तौरेत पर अमल करने का हुक्म दिया गया , फिर उन्हों ने उस पर अमल नहीं किया क्या उनकी हालत उस गधे की सी है जो बहुत सी किताबें लादे हुए है , उनकी हालत बुरी है जिन लोगों ने अल्लाह की किताब को झुटलाया."
सूरह जोमोआ ६२ पारा २८ आयत (५)
यहूदियों की किताब तौरेत है, जिस पर वक़्त के साथ बदलते रहने की ज़रुरत उन्हों ने समझी और आज भी वह आलमी कौमों में सफ़े अव्वल पर हैं. सच पूछिए तो गधे अब मुसलमान हैं जो कुरान को लादे लादे दूसरी कौमों के खिदमत में लगे हुए हैं.
''आप कह्दीजिए कि ऐ यहूदियों! अगर तुम्हारा दावा है कि तुम बिला शिरकत गैरे अल्लाह को मकबूल हो तो तुम मौत की तमन्ना करो अगर तुम सच्चे हो. और वह कभी भी इसकी तमन्ना नहीं करेंगे बवाजेह इस आमाल के जो अपने हाथों में समेटे हुए हैं. आप कह दीजिए कि जिस मौत से तुम भाग रहे हो, वह तुमको आ पकड़ेगी."
सूरह जोमोआ ६२ पारा २८ आयत (६-७)
मुलाहिजा हो- -
है न मुहम्मद की गधे पन की बात ? जवाब में यही बात कोई यहूदी, मुसलामानों को कह सकता है. मौत को कौन पसँद करता है? यहाँ तक कि हैवान भी इस से दूर भागता है. मुसलमानों को जो जन्नत ऊपर मिलेगी वह तो मौजूदा हालात से लाख गुना बेहतर होगी, फटाफट मौत की तमन्ना करें या फिर बेदार हों कि जो कुछ है बस यही दुन्या है, जिसमें ईमान के साथ ज़िन्दगी गुज़ारें और हो सके तो कुछ खिदमते खल्क करें.
"ऐ ईमान वालो जब जुमअ के रोज़ नमाज़ के लिए अज़ान कही जाया करे तो तुम अल्लाह की याद की तरफ चल दिया करो और खरीद फरोख्त छोड़ दिया करो. और वह लोग जब किसी तिजारत या मश्गूली की चीज़ को देखते हैं तो वह उनकी तरफ दौड़ने के लिए बिखर जाते हैं और आपको खडा हुवा छोड़ जाते है. आप कह दीजिए कि जो चीज़ पास है वह ऐसे मशागिल और तिजारत से बदर्जाहा बेहतर है और अल्लाह सब से अच्छा रोज़ी पहचानने वाला है."
सूरह जोमोआ ६२ पारा २८ आयत (९-११)
एक बार मुहम्मद अपने झुण्ड के साथ किसी बाज़ार में थे कि बाज़ार की आशिया और हंगामों ने झुण्ड को अपनी तरफ खींच मुहम्मद अकेले पड़ गए थे, उनको जान का खतरा महसूस हुवा तब ये आयते उनको सूझीं , ऐसे बुजदिल थे अल्लाह के रसूल.
मुहम्मद के अल्लाह की दूसरी बेहतर रोज़ी जेहाद है.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान