Wednesday 31 July 2019

मुबालिग़ा आराई



मुबालिग़ा आराई      

फ़तह मक्का के बाद मुसलमानों में दो बाअमल गिरोह ख़ास कर वजूद में आए जिन का दबदबा पूरे ख़ित्ता ए अरब में क़ायम हो गया. 
पहला था तलवार का क़ला बाज़ 
और दूसरा था क़लम बाज़ी का क़ला बाज़. 
अहले तलवार जैसे भी रहे हों बहर हाल 
अपनी जान की बाज़ी लगा कर अपनी रोटी हलाल करते 
मगर इन क़लम के बाज़ी गरों ने आलमे इंसानियत को 
जो नुकसान पहुँचाया है उसकी भरपाई कभी भी नहीं हो सकती. 
अपनी तन आसानी के लिए इन ज़मीर फ़रोशों ने 
मुहम्मद की असली तसवीर का नक़शा ही उल्टा कर दिया. 
इन्हों ने क़ुरआन की लग्वियात को अज़मत का गहवारा बना दिया. 
यह आपस में झगड़ते हुए मुबालग़ा आमेज़ी (अतिशोक्तियाँ )में 
एक दूसरे को पछाड़ते हुए, झूट के पुल बंधते रहे.  
क़ुरआन और कुछ असली हदीसों में 
आज भी मुहम्मद की असली तस्वीर सफेद और सियाह रंगों में देखी जा सकती है. इन्हों ने हक़ीक़त की बुनियादों को खिसका कर झूट की बुन्यादें रखीं और उस पर इमारत खड़ी कर दी. -
कहते हैं कि इतिहास कार किसी हद तक ईमान दार होते हैं 
मगर इस्लामी इतिहास कारों ने तारीख़ को अपने अक़ीदे में ढाल कर दुन्या को परोसा.
"मुकम्मल तारीख़ ए इस्लाम" का एक सफ़ा मुलाहिज़ा हो - - -
"हज़रत अब्दुल्ला (मुहम्मद के बाप) के इंतेक़ाल के वक़्त हज़रत आमना हामिला थीं, गोया रसूल अल्लाह सल्ललाह - - शिकम मादरी में ही थे कि यतीम हो गए. आप अपने वालिद के वफ़ात के दो माह बाद 12 रबीउल अव्वल सन 1 हिजरी मुताबिक़ 570 ईसवी में तवल्लुद (पैदा) हुए. आप के पैदा होते ही एक नूर सा ज़ाहिर हुवा, जिस से सारा मुल्क रौशन हो गया. विलादत के फ़ौरन बाद ही आपने सजदा किया और अपना सर उठा कर फ़रमाया "अल्लाह होअक्बर वला इलाहा इल्लिल्लाह लसना रसूल लिल्लाह "
जब आप पैदा हुए तो सारी ज़मीन लरज़ गई. दर्याय दजला इस क़दर उमड़ा कि इसका पानी कनारों से उबलने लगा. ज़लज़ले से कसरा के महल के चौदह कँगूरे गिर गए. आतिश परस्तों के आतिश कदे जो हज़ारों बरस से रौशन थे, ख़ुद बख़ुद बुझ गए. आप कुदरती तौर पर मख़तून (ख़तना किए हुए) थे और आप के दोनों शाने के दरमियान मोहरे-नबूवत मौजूद थी.
रसूल अल्लाह सलअम निहायत तन ओ मंद और तंदुरुस्त पैदा हुए. आप के जिस्म में बढ़ने की क़ूवत आप की उम्र के मुक़ाबिले में बहुत ज़्यादः थी. जब आप तीन महीने के थे तो खड़े होने लगे और जब सात महीने के हुए तो चलने लगे. एक साल की उम्र में तो आप तीर कमान लिए बच्चों के साथ दौड़े दौड़े फिरने लगे. और ऐसी बातें करने लगे थे कि सुनने वालों को आप की अक़ल पर हैरत होने लगी."

ग़ौर तलब है कि किस क़द्र ग़ैर फ़ितरी बातें पूरे यक़ीन के साथ लिख कर 
सादा लौह अवाम को पिलाई जा रही हैं. 
अगर कोई बच्चा पैदा होते ही सजदा में जा कर दुआ गो हो जाता तो 
समाज उसे उसी दिन से उसे सजदा करने लगता. 
न कि वह बच्चा हलीमा दाई की बकरियां चराने पर मजबूर होता. 
एक साल की उसकी कार ग़ुजारियां देख कर ज़माना उसकी ज़यारत करने आता 
न कि बरसों वह ग़ुमनामी की हालत में पड़ा रहता. 
क़बीलाई माहौल में पैदा होने वाले बच्चे की तारीख़-पैदाइश भी ग़ैर मुस्तनद है. 
रसूल और इस्लाम पर लाखों किताबें लिखी जा चुकी हैं. 
और अभी भी लिखी जा रही हैं 
जो दिन बदिन सच पर झूट की परतें बिछाने का कम करती हैं.  
इन्हीं परतों में मुसलमानों की ज़ेहन दबे हुए हैं.
हलाकू ने ला शुऊरी तौर पर एक भला काम ये किया था 
जब कि दमिश्क़ की लाइब्रेरी में रखी लाखों इस्लामी किताबों को इकठ्ठा कराके आलिमो से कहा था कि इनको खाओ. ऐसा न करने पर आलिमो को वह सज़ा दी थी कि तारीख़ उसको भुला नहीं सकती. उसने पूरी लाइब्रेरी आग के हवाले कर दिया था और आलिमों को जहन्नम रसीदा. 
आज भी इन इल्म फ़रोशों के लिए ज़रुरत है किसी हलाकू की, 
किसी चंगे़ज़ ख़ान की.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 30 July 2019

पूजा


पूजा 

किसी की नक़्ल में पूजा के अंकुर जब मन में फूटते हैं तो 
यह पाप की शुरुआत होती है. 
अकसर पूजा अर्चना और इबादत बच्चे को विरासत में मिलती है. 
यह सूरदास की तरह अंधी होती है. 
कानो से सुन सुन कर परवान चढ़ती है, 
फिर प्रतिस्परधा में आकर नामवर हो जाती है. 
कृष्ण प्रेम कथा सुन सुन कर सुनने वाला इसका शायर बन कर 
सूरदास और मीरा बन जाता है और कभी कभी रसखान.
इन दीवानों ने कितना देखा और समझा कृष्ण को ? 
बस सुना भर है.
पूजा आस्था से शुरू होती है और पूजा से ही पाप का जन्म होता है. 
हमारे गाँव से बच्चे क़स्बे के स्कूल आते थे, 
रास्ते में सरपत के पेड़ हुवा करते थे, जिनकी लंबी लंबी पत्तियां होती है. 
बच्चे पत्तियों को मोड़ कर फंदा बना देते कि 
'अगर आज स्कूल में मार न खाया, या परीक्षा का परचा हल न हुवा तो 
तुमको फंदे में पड़े रहना होगा,
और यदि सब कुछ  ठीक रहा तो मुक्त कर देगे.
इस बचकानी आस्था से पाप का आरम्भ होता है कि 
पेड़ पौदों के साथ ज़ुल्म होता है.
इसी तरह आस्थावान होकर पूज्य से कोई मानता का मन बनाया 
और ख़्वाहिश पूरी हुई तो अनर्थ और बे ईमानी की शुरुआत होती है 
जो बड़ी होती होती रिश्वत में बदल जाति है. 
इसे आस्था की जगह साइंस से बच्चे का दिमाग़ स्थापित किया जा सकता है.
आस्था रेत कीदीवार है जो अन्त्ततः ढय जाती है.
भारतीय सभ्यता इसी रेत की दीवार पर क़ायम है जो अन्दर से खोखली है. 
इसी वजह से  भारत दुन्या के आख़िरी पायदानों पर मुसलसल नज़र आता है. 
अगर आस्था है कि गंगा में प्रवाह करने से मृतक मुक्त होगा . 
इसके आगे लाख गंगा की सफ़ाई होती रहे हिमाक़त है. 
जहाँ बार बार आस्थाएँ नाकाम होती हैं वहां पुख़्ता अनास्था का जन्म होता है. 
फिर धड़ल्ले से हर ग़लत काम होते रहते हैं.  
 ***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 29 July 2019

नाज़िल और नुज़ूल

नाज़िल और नुज़ूल

क़ुरआन ने मुसलामानों दिलों में एक वहम ''नाज़िल और नुज़ूल''
(अवतीर्ण एवं अवतरित) का डाल दिया है, 
मिन जानिब अल्लाह आसमान से किसी बात, किसी शय, किसी आफ़त का उतरना नाज़िल होना कहा जाता है. 
ये सारा का सारा क़ुरआन वहियों (ईश-वाणी) के नुज़ूल का ग्रन्थ बतलाया जाता है. नुज़ूल का मतलब है नाज़िल होना किसी नागहानी का.
यानी क़ुरआन का तअल्लुक़ ज़मीन से नहीं बल्कि यह 
आसमान से उतरी हुई आफ़त आलूद किताब है. 
क़ुरआन अपनी ही तरह मूसा रचित तौरेत और दाऊद द्वारा रचे ज़ुबूर के गीतों को ही नहीं बल्कि ईसा के हवारियों (धोबियों) की लिखवाई गई बाइबिल के बयानों को भी आसमानी साबित करता है, जब कि इन के मानने वाले ख़ुद इन्हें ज़मीनी किताब कहते हैं. 
आगे की खोज कहती है आसमान ऐसी कोई चीज़ नहीं कि जिसके फ़र्श और छत हों, 
ये फ़क़त हद्दे नज़र है. 
क़ुरआन के सात मंजिला आसमान पर मुख़्तलिफ़ मंज़िलों पर मुख़्तलिफ़ दुनिया है, 
सातवें पर ख़ुद अल्लाह मियाँ विराजमान है.? 
हमारी जदीद तरीन तह्क़ीक़ कहती है की ऐसा आसमान एक कल्पना है, 
तो ऐसा अल्लाह भी मुहम्मद का तसव्वुर ही है. 
दोज़ख़ जन्नत सब उनकी साज़िश है.

***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 28 July 2019

सर मग़ज़ी


सर मग़ज़ी

हिन्दू के लिए मैं इक, मुस्लिम ही हूँ आख़िर ,
मुस्लिम ये समझते हैं, ग़ुमराह है काफ़िर ,
इंसान भी होते हैं, कुछ लोग जहाँ में ,
ग़फ़लत में हैं यह दोनों, समझाएगा 'मुंकिर' .

मैं सभी धर्मों को इंसानियत का दुश्मन समझता हूँ.
परंपरा गत जीवन बिताते रहने के पक्ष में तो बिलकुल नहीं.
दुन्या बहुत तेज़ी से आगे जा रही है, 
कहीं ऐसा न हो कि हम परम्परा की घाटियों में घुट कर मर जाएं.
धर्मों में जो अच्छाइया है, वह वैश्विक सच्चाइयों की देन है, उनकी अपनी नहीं.
मुसलमान हिन्दुओं से बेहतर इंसान होते है, 
इस बारे में मैं विस्तार के साथ पहले भी  लिख चुका हूँ.
आज भी हर रोज़ सैकड़ों हिन्दू अपने धर्म की ख़राबियों के कारण , 
उसे त्याग के इस्लाम क़ुबूल कर रहा है और कि मुसलमान अपनी जगह पर क़ायम है. वह हिन्दू धर्म को स्वीकार ही नहीं कर सकता.
कुछ पाठक मुझे हज़्म नहीं कर पा रहें और उल्टियाँ कर रहे हैं.
कुछ आलोचक कहते हैं कि में हिन्दू धर्म की गहराइयों तक पहुँच नहीं पाया, 
मनुवाद पर खड़ा हिन्दू धर्म कहाँ कोई गहराई रखता है ? 
पांच हज़ार सालों से देख रहा हूँ, इस धर्म के कर्म को. 
स्वर्ण आर्यन ने भारत के मूल्य निवासी को किस तरह से शुद्रित किया है , 
शूद्रों को अपने नहाने के तालाब में  पानी भी नहीं पीने देते थे, 
औरतो को अपनी छातियाँ खुली रखने का आदेश हुवा करते थे, 
शूद्रों को अपने कमर में झाड़ू बांध रखने के फ़रमान थे कि 
वह अपने मनहूस पद चिन्हों को मिटते हुए चलें.
ख़ुद हिन्दू लेखक अपने धर्म की धज्जियाँ उड़ाते हुए देखे जाते हैं, 
अपने आराध्य का मज़ाक़ बनाते हैं, 
मुझे राय देना फुजूल है कि मैं इसमें सुगंध तलाशूँ..
मैं अब तक इस बात का पाबंद रहा कि सिर्फ़ मुसलमानों को जागृत करूँ, 
अंतर आत्मा की आवाज़ आई कि नहीं यह भेद भाव होगा.
मुझे इस बात का खौ़फ़ नहीं रह गया है कि कोई हिन्दू मुझे मार दे या मुसलमान. 
मौत तो एक ही होगी, कातिल चाहे जितने हों.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 26 July 2019

मोमिन और मुस्लिम का फ़र्क़


मोमिन और मुस्लिम का फ़र्क़ 

मुसलमानो! 
एक बार फिर तुम से ग़ुज़ारिश है कि तुम मुस्लिम से मोमिन बन जाओ. 
मुस्लिम और मोमिन के फ़र्क़ को समझने की कोशिश करो. 
मुहम्मदी ओलिमा ने दोनों लफ़्ज़ों को ख़लत मलत कर दिया है और तुम को ग़ुमराह किया है कि मुस्लिम ही असल मोमिन होता है जिसका ईमान अल्लाह और उसके रसूल पर हो. 
यह किज़्ब है, दरोग़ है, झूट है,
 सच यह है कि आप के किसी अमल में बे ईमानी न हो यही ईमान है, 
इसकी राह पर चलने वाला ही मोमिन कहलाता है. 
जो कुछ अभी तक इंसानी ज़ेहन साबित कर चुका है 
वही अब तक का सच है, 
वही इंसानी ईमान है. 
अकीदतें और आस्थाएँ कमज़ोर और बीमार ज़ेहनों की पैदावार हैं 
जिनका नाजायज़ फ़ायदा ख़ुद साख़ता अल्लाह के पयंबर, भगवन रूपी अवतार, ग़ुरुऔर महात्माओं के तकिया दार उठाते हैं.
तुम समझने की कोशिश करो. 
मैं तुम्हारा सच्चा ख़ैर ख्वाह हूँ. 
ख़बरदार ! 
कहीं तुम मुस्लिम से हिन्दू न बन जाना वर्ना सब ग़ुड़ गोबर हो जायगा, 
क्रिश्चेन न बन जाना, बौद्ध न बन जाना वर्ना 
मोमिन बन्ने के लिए फिर एक सदी दरकार होगी. 
धर्मांतरण बक़ौल जोश मलीहाबादी एक चूहेदानों की अदला बदली है. 
एक से आज़ाद होकर से दूसरे चूहेदान में जाना है. 
बनना ही है कुछ तो मुकम्मल इंसान बनो, 
इंसानियत ही दुन्या का आख़िरी मज़हब होगा. 
मुस्लिम जब मोमिन हो जायगा तो इसकी पैरवी में 
दूसरे पल में 51% भारत मोमिन हो जायगा. 
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 25 July 2019

आधीनता


आधीनता              

अगर इंसान किसी अल्लाह, गाड और भगवान् को नहीं मानता तो सवाल उठता है कि वह इबादत और आराधना किसकी करे ? 
मख़लूक़ फ़ितरी तौर पर किसी न किसी की आधीन रहना चाहती है. 
एक चींटी अपने रानी के आधीन होती है, 
तो एक हाथी अपने झुण्ड के सरदार हाथी या पीलवान का अधीन होता है. 
कुत्ते अपने मालिक की सर परस्ती चाहते है, 
तो परिंदे अपने जोड़े पर मर मिटते हैं. 
इंसान की क्या बात है, उसकी हांड़ी तो भेजे से भरी हुई है, 
हर वक्त मंडलाया करती है, नेकियों और बदियों का शिकार किया करती है. शिकार, शिकार और हर वक़्त शिकार, 
इंसान अपने वजूद को ग़ालिब करने की उडान में हर वक़्त दौड़ का खिलाडी बना रहता है, मगर बुलंदियों को छूने के बाद भी वह किसी की अधीनता चाहता है.
सूफ़ी तबरेज़ अल्लाह की तलाश में इतने ग़र्क़ गए 
कि उसको अपनी ज़ात के आलावा कुछ न दिखा, 
उसने अनल हक़ (मैं ख़ुदा हूँ) की सदा लगाईं, 
इस्लामी शाशन ने उसे टुकड़े टुकड़े कर के दरिया में बहा देने की सज़ा दी. कुछ ऐसा ही गौतम के साथ हुवा कि उसने भी भगवन की अंतिम तलाश में ख़ुद को पाया और " आप्पो दीपो भवः " का नारा दिया.
मैं भी किसी के आधीन होने के लिए बेताब था, 
ख़ुदा की शक्ल में मुझे सच्चाई मिली और मैंने सदाक़त मे जाकर पनाह ली.

कानपूर के 92 के दंगे में, मछरिया की हरी बिल्डिंग मुस्लिम परिवार की थी, दंगाइयों ने उसके निवासियों को चुन चुन कर मारा, 
मगर दो बन्दे उनको न मिल सके, जिनको कि उन्हें ख़ास कर तलाश थी. 
पड़ोस में एक हिन्दू बूढ़ी औरत रहती थी, 
भीड़ ने कहा इस के घर में ये दोनों शरण लिए हुए होंगे, 
घर की तलाशी लो. 
बूढी औरत अपने घर की मर्यादा को ढाल बना कर दरवाज़े खड़ी हो गई. 
उसने कहा कि मजाल है मेरे जीते जी मेरे घर में कोई घुस जाए, 
रह गई अन्दर कोई मुसलमान हैं ? 
तो मैं ये गंगा जलि सर पर रख कर कहती हूँ कि 
मेरे घर में कोई मुसलमान नहीं है. 
औरत ने झूटी क़सम खाई थी, दोनों व्यक्ति घर के अन्दर ही थे, 
जिनको उसने मिलेट्री आने पर उसके हवाले किया.
ऐसे झूट का भी मैं अधीन हूँ. 
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 24 July 2019

इस्लामी नासूर


इस्लामी नासूर  

तालिबान अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान पर जोर आज़माई कर रहा है, 
बिलकुल इसलाम का प्रारंभिक काल दोहराया जा रहा है, 
जब मुहम्मद बज़ोर गिजवा (जंग) हर हाल में इसलाम को मदीना के आस पास फैला देना चाहते थे. वह अपने हुक्म को अल्लाह का फ़रमान क़ुरआनी आयतों द्वारा प्रसारित और प्रचारित करते. लोगों को ज़बर दस्ती जेहाद पर जाने के लिए आमादा करते, लोग अल्लाह के बजाय उनको ही परवर दिगर! कह कर गिड़गिड़ाते की आप हम को क्यूं मुसीबत में डाल रहे हैं  
तो वह ताने देते की औरतों की तरह घरों में बैठो. 
मज़े की बात ये कि जंगी संसाधन भी ख़ुद जुटाओ. 
एक ऊँट पर 11-11 जन बैठते. 
ये सब क़ुरआन में साफ़ साफ़ है जिसे इस्लामी विद्वान छिपाते हैं
 और जिसे ज़ालिम तालिबान सब जानते हैं. 
आज भी तालिबान अपने अल्लाह द्वतीय मुहम्मद के ही पद चिन्हों पर चल रहे है. इन्हें इंसानी ज़िंदगी से कोई लेना देना नहीं, 
बस मिशन है इस्लाम का प्रसार. 
इसी में उनकी हराम रोज़ी का राज़ छुपा है.
इधर पाकिस्तान का धर्म संकट है कि इस्लाम के नाम पर बन्ने वाला पाकिस्तान, जब तालिबानियों द्वारा इस्लामी मुल्क पूरी तरह बन्ने की दर पर है तो उसकी हवा क्यूं ढीली हो रही है? 
उसका रूहानी मिशन तो साठ साल बाद मुकम्मल होने जा रहा है. 
निज़ामे मुस्तफ़ा ही तो ला रहे हैं ये तालिबानी. 
मुस्तफ़ा यानी मुहम्मद जो बच्ची के पैदा होने को औरत का पैदा होना कहते थे, (क़ुरआन में देखें ) औरत पर पर्दा लाज़िम है. 
मुहम्मद ने छः साला औरत आयशा के साथ शादी रचाई, 
आठ साल में उस से सुहाग रात मनाई और परदे में बैठाया, 
तालिबान अपने रसूल की पैरवी करके क्या ग़लत कर रहे हैं? 
उनको ख़त्म करके पाकिस्तान इस्लाम को क़त्ल कर रहा है, 
कोई मुल्ला उसे फ़तवा क्यूं नहीं दे रहा? 
"मुहम्मद मैले कपड़े लादे रहते" 
इस ज़रा सी बात पर पाकिस्तान न्यायलय ने एक ईसाई बन्दे को 
तौहीन ए रिसालत के जुर्म में सज़ाए मौत दे दिया था, 
आज पाक अद्लिया किंव कर्तव्य विमूढ़ क्यूँ ? 
पाक इसलाम के तलिबों से लड़ने के साथ साथ कुफ्र से भी 
(भारत) लडाई पर आमादा है. 
कहते हैं कि उसकी एटमी हत्यारों का रुख भारत की ओर है. 
यह पाकिस्तान की ग़ुमराही ही कही जाएगी.
मज़हब के नाम पर जो हमारे बड़ों ने अप्रकृतिक बटवारा किया था 
उसका बुरा अंजाम सामने है, 
बहुत बुरा हो जाने से पहले हम को सर जोड़ कर बैठना चहिए 
कि हम 1947 की भूल सुधारें 
और फिर एह हो जाएँ. 
इस तरह कल का हिदोस्तान शायद दुन्या कि नुमायाँ हस्ती बन कर 
लोगों कि आँखें खैरा कर दे. 
मगर भारत के हिदुत्व के पाखंड को भी साथ साथ ख़त्म करना होगा 
जो कि इस्लामी नासूर से कम नहीं. 
***  
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 23 July 2019

बुरे इस्लाम की कुछ खूबी



बुरे इस्लाम की कुछ खूबी

ग़ालिब कहता है - - -
बाज़ीचा ए इत्फ़ाल है दुन्या मेरे आगे,
होता है शब व रोज़ तमाशा मेरे आगे.
बाज़ीचा ए इतफ़ाल = बच्चों के मशक़ का मैदान , 
जी हाँ मैदान में यह बच्चे कभी पूजा पाठ का खेल खेलते हैं 
तो कभी नमाज़ रोज़ा का.
कभी घंटा घड्याल बजाते हैं तो कभी अज़ान चीखते है. 
कभी यह रक़्स ए इरफ़ानी करते हैं तो कभी गणपति बाप्पा मौर्या गाते हैं.
जुनैद मुंकिर भी चचा ग़ालिब का भतीजा है 
और उनके ही नक्श ए क़दम पर चलता है.
जब से मैंने इस्लाम के साथ साथ हिन्दू धर्म के राग माले पेश करना शुरू किया है,  धर्म दूषित लोगों ने इसे पसंद नहीं किया. 
मुझे अन्फ्रेंड करना भी शुरू कर दिया है, 
कुछ ने तो गाली देना भी उचित समझा. 
ऐसे लोगों को मैं ख़ुद अपनी रौशनी से बंचित कर देता हूँ.
उनकी दृष्टि में इस बात की कोई अहमयत नहीं कि 
मैंने इस्लाम को कुछ बुरा जान कर तर्क ए इस्लाम किया, 
उनकी चाहत है कि मैं हिन्दू क्यूँ नहीं बन गया? 
एक अल्लाह पर विश्वाश को छोडने वाला, 
गोबर अथवा देह मैल से निर्मित भगवान गणेश को स्थान देते हुए, 
हिंदुत्व का श्री गणेश क्यूँ नहीं करता .
हिंदुत्व और इस्लाम दो मुख़्तलिफ़ जीवन पद्धतियाँ हैं. 
इस्लाम दुश्मन को क़त्ल कर देता है. 
हिंदुत्व (मनुवाद) शत्रु को कभी भी क़त्ल नहीं करता, 
बल्कि दास बना लेता है. 
दुश्मन की पुश्त दर पुश्त मनुवाद के दास हुवा करते है, 
दास ऐसे कि जिनसे नफ़रत की सारी हदें पार हो जाती हैं.
उनके साया से भी परहेज़ होता है, 
उनकी मर्यादाएं मनुवाद की उगली हुई उल्टियाँ होती है. 
पांच हज़ार साल से भारत के मूल निवासी मनुवाद के ज़ुल्म को जी रही हैं, 
दास (ग़ुलाम ) इस्लाम में भी हुवा करते थे 
मगर शर्त होती कि जो ख़ुद खाओ, 
वही ग़ुलाम  को खिलाओ. जो ख़ुद पहनो वही ग़ुलाम  को भी पहनाओ.
एक ही सफ़ में खड़े हो गए महमूद व् अयाज़, 
कोई बंदा रहा और न कोई बंदा नवाज़.
हिन्सुस्तान का पहला मुस्लिम शाशक क़ुतुबुद्दीन ऐबक 
अपने बादशाह का ग़ुलाम  ही था.
यह है बुरे इस्लाम की कुछ खूबी.
*** 
सत्यापन
मुसलमानों का क़ुरआन मारना सिखलाता है 
और हिदुओं का पुराण मरवाना.
इस बात को सत्यापित गांधी जी ने भी किया  
कि मुसलमान गुंड़े होते हैं और हिन्दू कायर.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 22 July 2019

इस्लाम के चार बुत


इस्लाम के चार बुत        

बुत परस्ती की मुख़ालिफ़त करते हुए, इस्लाम ने लाशऊरी तौर पर ख़ुद चार बुत क़ायम किए, वह भी बहुत मज़बूत. 
1- अल्लाह का बुत 
यह हवा का बुत है जो नज़र तो नहीं आता 
न ही ज़ेहनों में देर तक क़ायम रहता है, 
मगर इसके नाम से ही मुसलामानों की रूह क़ब्ज़ रहती है. 
अल्लाह मुसलमानों की ऐसी चाहत है कि भले ही उनको 
उनके बाप की गाली दे दो मगर 
अल्लाह की शान में ग़ुस्ताख़ी उन्हें बर्दाश्त नहीं. 
काबे में तमाम छोटे बड़े बुतों को तोड़ कर बाहर कर दिए और 
सब से बड़ा अल्लाह का हवाई बुत लगा कर क़ैद कर दिया 
जो अवाम को देखना भी नसीब नहीं. 
उस बुत पर एक क़ीमती ग़लाफ़ अरबियों ने चढ़ा दिया है, 
अवाम उसको एक पर्दा नशीन ख़ातून की तरह लिबास पहना दिया जिसके गिर्द तवाफ़ रायज किया. 
इस तरह इस्लाम ने बुत परस्ती का कुफ़्र ख़त्म किया, मुसलमानों को एक बड़ा बुत देकर.
2- मुहम्मद का बुत 
इस्लाम में कुफ़्र के बाद शिर्क हराम है. 
शिर्क का मतलब है उस बड़ी ज़ात अल्लाह के साथ किसी और का नाम शरीक करना. 
जैसे कि ईश्वर के साथ साथ ब्रह्मा, विष्णु और महेश हिन्दुओं में होते हैं. 
शिर्क इंसानी फ़ितरत है. हज़ार ग़ुनाह हो, 
ख्वाजा मुईन चिश्ती की तरह ख़ुद मुसलमानों में दुन्या भर में अल्लाह के शरीक कार बैठे हुए हैं. 
इनको अकसर इस्लामी इंक़्लाब मिस्मार किए रहते है. 
शिर्क तो चाहिए ही, गोया मुहम्मद ने इनकी जगह ख़ुद को क़ायम करके इंसानी ख़्वाहिश को सर्फ़राज़ा. ख़ुद अल्लाह के शरीक कार बन गए, अल्लाह का पैग़म्बर होने का एलान कर दिया. किसी में है मजाल कि अल्लाह के शरीक कार मुहम्मद के एलान को कोई शिर्क कह सके.
3- क़ुरआन का बुत 
काग़ज़ का यह बुत बहुत अहम् है. 
अल्लाह का बुत तो हवाई है, 
कभी किसी को दिखा भी नहीं. 
मुहम्मद का बुत भी 1450 साल पुराना हो गया है, 
मगर यह काग़ज़ी बुत क़ुरआन मौजूदा  मुसलमानों के सरों हमेशा सवार रहता है. मुसलमानों का यह बुत क़ायम व दायम ही नहीं, सवाब ए जारिया बन चुका है. 
है तो मअनवी एतबार से दुन्या की बद तरीन सिन्फ़ ए सुख़न 
मगर इसकी तहरीर को समझने की इजाज़त नहीं, 
सिर्फ़ तिलावत (पाठ) की जाती है. 
बड़ा अच्छा मज़ाक है यह मुसलमानों के साथ. 
इस किताब में इस की ख़ूबियाँ हज़ार बार दोहराई गईं हैं, 
दिखती एक भी नहीं. 
मुसलमानों में हवा है कि क़ुरआन निज़ाम ए हयात हयात है, 
जब की इसके अंदर जाकर देखिए तो यह इंसानी ज़िंदगी के लिए ज़हर है.
4- शैतान का बुत 
शैतान की तमाम ख़ूबियाँ और ख़ामियां बिलकुल अल्लाह जैसी हैं, 
ज़रा सा दर्जा कम है. 
दोनों हर जगह मौजूद हैं, दोनों इंसानी हरकतों पर नज़र रखते हैं. 
अल्लाह अगर 'अल्लाहु अकबर' है तो शैतान
 'अल्लाहु असग़र'. 
इन्हीं चार बुतों पर आलम ए इस्लाम क़ायम है.
काबा से सारे बुत हटे, थे ग़ैर मुअतबर,
इक बुत हवा का टांगा, अल्लाह हुअकबर.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 21 July 2019

ज्ञान


 ज्ञान 

मेरे दोस्त गण कभी कभी मुझे अज्ञानी होने की उलाहना देते हैं 
और मुझे अधकचरे ज्ञान होने का ताना देते है. 
मैं ज्ञान की भूल भुलय्या से निकल चुका हूँ. 
जहाँ तक समझ चुका हूँ कि सत्य को किसी ज्ञान की ज़रुरत नहीं. 
सत्य का ज्ञान से कोई संबंध नहीं.
मैंने पाया है बड़े से बड़ी असत्य को सत्य साबित करने वाले महा ज्ञानी होते हैं. बाइबिल तौरेत क़ुरान गीता वेद और दूसरे ग्रंथ इसके साक्षी हैं, 
महा मूरख श्रद्धालु इनके शिकार हैं.   
सत्य की राह ही हमको हमारे माहौल को, हमारे समाज को और हमारे देश को सम्पूर्णता पथ प्रदर्शित कर सकती है. 
"सत्य बोलो मुक्ति है" के बोल मुर्दों के लिए अनुचित है, 
"सत्य बोलो मुक्ति है" जिन्दों को हर सांस में सम्लित करने की ज़रुरत है.    
कडुवा सत्य मीठा हो जाएगा. 
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 19 July 2019

इस्लामी कलिमा

इस्लामी कलिमा         

1- कोई भी आदमी (चोर, डाकू, ख़ूनी, दग़ाबाज़ मुहम्मद का साथी मुगीरा* से लेकर गाँधी कपूत हरी गाँधी उर्फ़ अब्दुल्लाह तक) 
नहा धो कर कालिमा पढ़ के मुस्लिम हो सकता है.
2- कालिमा के बोल हैं ''लाइलाहा इललिल्लाह मुहम्मदुर रसूलिल्लाह'' 
जिसके मानी हैं अल्लाह के सिवा कोई अल्लाह नहीं है और मुहम्मद उसके दूत हैं.
सवाल उठता है हज़ारों सालों से इस सभ्य समाज में अल्लाह और ईशवरों की कल्पनाएँ उभरी हैं मगर आज तक कोई अल्लाह किसी के सामने आने की हिम्मत नहीं कर पा रहा. जब अल्लाह साबित नहीं हो पाया तो उसके दूत क्या हैसियत रखते हैं? सिवाय इसके कि सब के सब ढोंगी हैं.
3- कालिमा पढ़ लेने के बाद अपनी बुद्धि मुहम्मद के हवाले करो, 
जो कहते हैं कि मैं ने पल भर में सातों आसमानों की सैर की और अल्लाह से ग़ुफ़तुगू करके ज़मीन पर वापस आया कि दरवाज़े की कुण्डी तक हिल रही थी.
4- मुस्लिम का इस्लाम कहता है यह दुनिया कोई मानी नहीं रखती, 
असली लाफ़ानी ज़िंदगी तो ऊपर है, यहाँ तो इन्सान ट्रायल पर 
इबादत करने के लिए आया है. मुसलमानों का यही अक़ीदा क़ौम  के लिए पिछड़े पन का सबब है और हमेशा बना रहेगा.
5- मुसलमान कभी लेन देन में सच्चा और ईमान दार हो नहीं सकता,
 क्यूंकि उसका ईमान तो कुछ और ही है और वह है 
''लाइलाहा इललिल्लाह मुहम्मदुर रसूलिल्लाह'' 
इसी लिए वह हर वादे में हमेशा '' इंशाअल्लाह'' लगता है. 
मुआमला करते वक़्त उसके दिल में उसके ईमान की खोट होती है. 
बे ईमान क़ौमें दुन्या में कभी न तरक्क़ी कर सकती हैं और न सुर्ख़रू हो सकती हैं.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 18 July 2019

भारत देश समूह

 भारत  देश समूह 

वैदिक काल में इंसान पवित्र और अपवित्र की श्रेणी में बटा हुवा था. 
दसवीं सदी ई. तक इंसान ग़ुलामी के ज़ेर ए असर अपने कमर के पीछे झाड़ू बाँध कर चलता था ताकि उसके नापाक क़दमों के निशान ज़मीन पर न रह पाएं.
दूसरी तरफ़ मंद बुद्धि ब्रह्मण वेद रचना में अपनी बेवक़ूफ़ियाँ गढ़ते 
और चतुर बुद्धि समाज पर शाशन करते. 
वह तथा कथित सवर्णों में यज्ञ करके सोमरस निचोड़ते या फिर ख़ून.
गोधन उस समय सब से बड़ा धन हुवा .
तीज त्यौहार और धार्मिक समारोह में हजारों गाएँ कटतीं, 
शर्मा वैदिक कालीन क़साई हुवा करते.
इसी बीच बुद्ध जैसी हस्तियाँ आईं और पसपा हुईं.  
बुद्ध फ़िलासफ़ी भारत के बाहर शरण पा कर फूली फली. 
बुद्ध की अहिंसा की कामयाबी को छोड़कर बाक़ी बुद्धिज़्म को बरह्मनो ने कूड़ेदान में डाल दिया. इस में गाय की हिंसा इतनी शिद्दत थी गाय धन की जगह माता बन गई. 

दसवीं सदी ई में भारत में इस्लाम दाखिल हुवा, 
मानवता ने कुछ मुक़ाम पाया, 
शूद्रों ने जाना कि वह भी इंसानी दर्जा रखते है, 
वह इस्लाम के रसोई से लेकर इबादत गाहों तक पहुंचे.
धीरे धीरे आधा हिन्दुतान इस्लाम के आगोश में चला गया. 
आजके नक्शे में भारत + बांगला देश + पाकिस्तान की आबादियाँ जोड़ गाँठ कर देखी  जा सकती हैं. 

उसके बाद लगभग तीन सौ साल पहले अँगरेज़ भारत में दाखिल हुए, 
जिन्हों ने नईं नईं बरकतें हिन्दुस्तान को बख्शीं. 
धार्मिकता आधुनिकता रूप लेने लगीं, 
मंदिर मस्जिद और ताज महल के बजाए राष्ट्र पति भवन, पार्लिया मेंट हॉउस और हावड़ा ब्रिज भारत का भाग्य बने. लाइफ़ लाइन  रेल का विस्तार हुवा.

भारत आज़ाद हुवा, 
नेहरु काल तक अंग्रेजों की विरासत आगे बढ़ी.
भारत का उत्थान होता रहा, 
इंद्रा के बाद इसका पतन शुरू हुवा. 

मोदी युग आते आते भारत की गाड़ी  में उल्टा गेर लग गया .
बासी कढ़ी में उबाल शुरू हो चुका है.
फिर ब्रह्मणत्व वैदिक काल लाकर मनुवाद को स्थापित करना चाहता है.
भारत को भग़ुवा किया जा रहा है. 
इस आधुनिक युग में जानवरों को संरक्षण देकर प्रकृति के पाँव में बेड़ियाँ डाली जा रही हैं, जानवर इंसानी ख़ूराक न होकर, इंसान जानवरों का ख़ूराक बन्ने की दर पर है. जीव हत्या के नाम पर इंसानों की हत्या की जा रही है. 
दुन्या के अधिक तर जीव मांसाहारी हैं, इन जुनूनयों का बस चले तो यह शेर से लेकर बाज़ तक को शाकाहारी बनाने का यत्न करें.
याद रखें कृषि प्रधान भारत में, किसान का पशु पालन उनके हिस्से का व्यापार है 
जो निर्भर करता है मांसाहार पर. 
भेड, बकरी, भैस हो या गाय. इनका मांस अगर खाया नहीं जाएगा तो यह कुत्ते जैसे आवारा और अनुपयोगी बन कर रह जाएँगे.
इनके खाल हड्डी खुर सींग और मांस ही इनको पुनर जन्मित करते हैं.
अगर गो रक्षा का खेल यूँ ही चलता रहा तो एक दिन आएगा कि गाय भारत से नदारत हो जाएगी. इस पागलपन से एक दिन ऐसा भी आ सकता है कि ऐसे देश में बहु संख्यक किसान बग़ावत पर उतर आए., 
देश प्रेम की जगह देश द्रोह अव्वलयत पा जाए और भारत के दर्जनों खंड बन जाएँ. भारत भारत न रह कर भारत देश समूह बन जाए.
हंसी आती है जब सरकारें देश की तरक्क़ी को अपनी गाथा में पिरोती है .
वैज्ञानिक तरक्क़ी भारत हो या चीन धरती का भाग्य है. इसे कोई रोक नहीं सकता मगर मानसिक उत्थान और पतन क़ौम की रहनुमाई पर मुनहसर है. 
देश तेज़ी से मानसिक पतन की ओर अग्रसर है.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 17 July 2019

इस्लामी अफीम हैं क़ुरआनी आयतें


 इस्लामी अफीम  हैं क़ुरआनी  आयतें

 अगर मर गए या मारे गए तो बिल ज़रुरत अल्लाह के पास ही जमा होगे. 
इस बीसवीं सदी में ऐसी अंध विशवासी बातें? 
अल्लाह इंसानी लाशें जमा करेगा ? दोज़ख सुलगाने के लिए? 
अल्लाह अपने नबी मुहम्मद कि तारीफ़ करता है कि 
अगर वह तुनुक और सख्त़ मिजाज होते तो सब कुछ मुंतशिर हो गया होता? 
यानी कायनात का दारो मदार उम्मी मुहम्मद पर मुनहसर था ,
इसी रिआयत से ओलिमा उनको सरवरे कायनात कहते हैं. 
मुहम्मद को अल्लाह सलाह देता है कि ख़ास ख़ास उमूर पर मुझ से राय ले लिया करो. 
गोया अल्लाह एक उम्मी, दिमाग़ी फटीचर को मुशीर कारी का अफ़र दे रहा है. 
अस्ल में इस्लामी अफ़ीम पिला पिला कर आलिमान इसलाम ने 
मुसलमानों को दिमागी तौर पर दीवालिया बना दिया है.
नबूवत अल्लाह के सर चढ़ कर बोल रही है, 
वक़्त के दानिश वर ख़ून का घूट पी रहे हैं कि जेहालत के आगे सर तस्लीम ख़म है. मुहम्मद मुआशरे पर पूरी नज़र रखे हुए हैं .
एक एक बाग़ी और सर काश को चुन चुन कर ख़त्म कर रहे हैं या 
फिर ऐसे बदला ले रहे हैं कि दूसरों को इबरत हो. 
हदीसें हर वाक़ेए की गवाह हैं और क़ुरआन ज़ालिम तबा रसूल की फ़ितरत का, मगर बदमाश ओलिमा हमेशा मुहम्मद की तस्वीर उलटी ही अवाम के सामने रक्खी. 
इन आयातों में मुहम्मद कि करीह तरीन फ़ितरत की बदबू आती है, 
मगर ओलिमा इनको, इतर से मुअत्तर किए हुए है.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

हिदू आतंक वाद

हिदू आतंक वाद 

राहुल गाँधी ने अगर ये कहा है कि हिदू आतंक वाद ज़्यादः ख़तरनाक है, 
बनिस्बत मुस्लिम आतंक वाद के, 
तो उनको संकुचित राज नीतिज्ञों से डरने की कोई ज़रुरत नहीं. 
उन्हों ने एक दम नपा तुला हुवा सच बोला है. 
उनके बाप को बम से चीथड़े करके शहीद करने वाले मुस्लिम आतंक वाद नहीं थे, बल्कि लिट्टे वाले थे, जो बहरहाल हिदू हैं. 
उनकी दादी को गोलियों से भून कर शहीद करने वाले सिख थे, 
जो बहरहाल हिन्दू होते हैं जैसा कि भग़ुवा ग़ुरूप मानता है. 
महात्मा गाँधी, बाबा ए क़ौम को इन आतंक वादी शैतानो ने तीन 
गोलियां से उनकी छाती छलनी करके आतंक का मज़ा लिया था. 
मुस्लिम आतंक वाद  को आगे करके ये अपना वजूद क़ायम किए हुए हैं 
जो कि अपने आप में विशाल भारत के लिए चूहों के झुड से ज़्यादः कुछ भी नहीं हैं. 
मुस्लिम आतंक वाद दुन्या के कोने कोने में कुत्तों की मौत मारे जा रहे हैं. 
मुस्लिम आतंक वाद ख़ुद सब से बड़ा दुश्मन मुसलमानों का है 
जो कि हिन्दू समझ नहीं पा रहे हैं, 
जिनको मैं क़ुरआन  की आयतों की धज्जियां उड़ा उड़ा कर समझा रहा हूँ.
राहुल गाँधी को थोड़ी और जिसारत करके मैदान में आना चाहिए 
कि हिन्दू आतंक वाद 5000 साल, वैदिक काल से भारत के मूल्य 
निवासियों पर ज़ुल्म ढा रहा है, 
मुस्लिम आतंक वाद तो सिर्फ़ 14 सौ सालों से पूरी दुन्या को बद अम्न किए हुए है, और हिदू आतंक वाद आदि वासियों और मूल निवासियों को अपना 
शिकार वैदिक काल से बनाए हुए है. 
मुस्लिम आतंक वाद जितना ग़ैरों को तबाह करता है 
उससे कहीं  ज़्यादः ख़ुद तबाह होता चला आया है. 
हिन्दू आतंक वाद जोंक का स्वाभाव रख़ता है, 
अपने शिकार को कभी मरने नहीं देता, 
उसे वह हमेशा ग़ुलाम   बना कर रख़ता है.
हिन्दू आतंक वाद मुस्लिम आतंक वाद से कई ग़ुना घृणित है 
जो कि भारत में फला फूला हुवा है. 
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 15 July 2019

इस्लाम एक फार्मूला है,

 इस्लाम एक फार्मूला है,   

ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद मुजाहिदे इस्लाम दुन्या भर में बिरझाए हुए हैं. भारत में ये अपनी दीवानगी का मुज़ाहिरा नहीं कर पा रहे, 
क्यूंकि पिछले दिनों हुकूमत ए हिंद ने सख़्त होकर इनको सबक़ दे दिया है
कि अपने मज़हबी जूनून को अपने घर तक सीमित रखो.
अब  इनकी इतनी भी ताक़त नहीं बची कि
दूसरे किसी ग़ैर मुस्लिम मुल्क में अपनी दीवानगी का इज़हार करें,
ले दे के ये दीवाने मुस्लिम मुमालिक में अपनी बुज़दिली को अंजाम दे पा रहे हैं.
ख़ास कर पकिस्तान में आए दिन खूँ रेज़ी हो रही है.
इस्लाम की तहरीक रही जेहाद के ज़रीए कमाई का रास्ता बनाओ,
इसके सूत्रधार हैं ओलिमा, यही ज़ात हमेशा आम मुसलमानों को बहकाती रही है,
इस्लाम एक तरीक़ा है, एक फार्मूला है, ब्लेक मेलिंग द्वारा भरण पोषण का.
 लोगों को मुसलमान बना कर अपने लिए साधन बनाओ,
ये इंसान को जेहादी बनाता है,
जेहाद का मक़सद है लूट मार, वह चाहे ग़ैर मुस्लिम का हो चाहे मुसलामानों का. इतिसस गवाह हैं कि मुसलामानों ने जितना ख़ुद मुसलामानों का ख़ून किया है, उसका सवां हिस्सा भी काफ़िरों और मुशरिकों का नहीं बहाया.
आज पकिस्तान इस्लामी जेहादियों का क़त्ल गाह बना हुवा है.
इसको इसकी सज़ा मिलनी भी चाहिए. 
इस्लाम के नाम पर किसी देश का बटवारा किया था.
इसके नज़रिए को मानने वाले तर्क वतन को
मज़हब की बुनियाद पर तरजीह दिया था.
इसके बानी मुहम्मद अली जिना जिन्होंने क़ौम को
इस्लामी क़त्ल गाह के हवाले कर देने का अज़ाब मोल लिया.
उनकी रूह को इस्लामी जहन्नम में पड़ा होना चाहिए
मगर काश कि इस्लामी जन्नत या जहन्नम में कुछ सच्चाई होती.
हिन्दुतान अपनी तहजीब की बुन्यादों पर इर्तेकाई मंजिलों पर गामज़न है. \मुसलामानों को चाहिए कि अपनों आँखें खोलें.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 14 July 2019

लिंग भेद

लिंग भेद 

भारतीय सभ्यता में लिंग एक सामान्य शब्द है और बहु प्रचलित, 
बल्कि इसे मुक़द्दस अर्थात पवित्र शब्द कहा जाए तो मुनासिब होगा. 
मंदिरों में शिव लिंग की पूजा पाठ भी होती है. 
आम तौर पर शिव लिंग कटुवे देखे जाते हैं. 
नईं अवधारणा के अंतर्गत अब पूर्ण शिव लिग्ग की स्थापना हो रही है. 
सिद्धि वाडी (धरम शाला) के चिनिमय मिशन के मंदिर में बारह फीट का 
सम्पूर्ण शिव लिंग देखा जा सकता है.
मुंबई में प्लाज़ा टाकीज़ में साठ फीट का संपूर्ण लिंग दर्शन के लिए शोभायमान है. 
भाषाई ग्रामर के एतबार से लिंग तत्भव है. 
इसका तत्सम (???) 
अगर लिख दिया जाए तो गाली हो जाती है. 
किसी हिन्दू के सामने शिव +तत्सम कहकर देखिए, मज़ा चखा देगा. 
यह कितनी कमज़ोर मर्यादा है. कितना हास्य स्पद गोलमाल है, 
कि तत्भव उच्चारित हो तो मुक़द्दस और तत्सम बोलो तो गाली. 
ऐसे ही योनि का मामला है. इसका तत्सम भी बहुत ख़तरनाक है. 
हमारा सभ्य समाज जब किसी से क्रोधित होता है 
तो इस तत्सम को सामने वाले की माँ के साथ जोड़ देता है.
फ़िदा हुसैन ने शिव लिंग की रिआयत से किसी देवी की योनि को अपने कला में उकेर दिया, तब गरीब को देश निकाला मिला. 
जगह जगह देव शिव का नग्न लिंग पूजनीय ?
नर नारी में इतना बड़ा भेद भाव ?

कुछ चूतए मेरे लिए गाली निकालेगे.
मगर लंडन  वाले नहीं.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 12 July 2019

ईमान दारी बनाम इस्लाम दारी

ईमान दारी बनाम इस्लाम दारी  

इस्लाम ने हर मुक़द्दस अल्फ़ाज़ को अपनी बद नियती का शिकार बना डाला. ईमान बहुत ही अहम् लफ़्ज़ है जो मेरी मालूमात तक इसका हम पल्ला (पर्याय वाची) लफ़्ज़ कहीं और नहीं. 
ईमान दारी में पूरी सच्चाई के साथ साथ फ़ितरत की गवाई भी शामिल हो जाती है और ज़मीर की आवाज़ भी. 
जो फ़ितरी सच हो वही ईमान दारी है. 
ईमान दारी ग़ैर जानिबदारी की अलामत होती है और मसलेहत से परे. 
बहुत जिसारत की ज़रुरत है इस को अपनाने के लिए. 
इस्लामदारी दर असल ग़ुलामी होती है, मुहम्मदी अल्लाह की, 
जिसका फ़रमान हर सूरत से मुसलमान को मानना पड़ता है, 
ख़्वाह कि वह कितनी भी बे ईमानी हो.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 11 July 2019

दोनों की 3 शर्तें

दोनों की 3 शर्तें 

मेरी नज़र में इस्लाम दुन्या का दूसरा बड़ा मुजरिम है 
जो अपनी बात न मानने वालों तीन शर्त देता है, 
1- हमारे मज़हब को अपना लो,
2- या हमें जज़्या दो,
3- अथवा हम से लड़ो और हार कर हमारे ग़ुलाम  बनो.
मेरी नज़र में मनुवादी हिंदुत्व दुन्या का पहला बड़ा मुजरिम है 
जो सामने वाले को एक ही मंत्र देता है कि सारी उम्र मेरे सेवक बन कर जिओ. 
1-क्षत्रीय बन हमारी सुरक्षा करो, 
2-बनिया बन कर हमारा भरण पोषण करो, 
3-और शूद्र बन कर सब की सेवा करो.

राहे-अमल
पाकिस्तान की वेबसाइट्स पर जिंसी बेराह रवी की सबसे ज़्यादः भरमार है. किसी भी मज़मून की साइट्स खोलें, धीरे धीरे जिन्स के दरवाजे खुल जाते हैं. जिन्स के ऐसे ऐसे उन्वान कि पढ़के सर शर्म से झुक जाता है. 
ऐसा कल्चर इस मुल्क में फ़ैल रहा है जहाँ इंसानी रिश्ते तार तार हो रहे हैं. 
ये ख़तरनाक वेब मुहिम माँ, बहेन और बेटियों की इज्ज़त, 
उनके रखवाले ही लूटने लगेंगे, 
तब कहाँ  ले जायगा क़ौम को इसका अंजाम ? 
इसका क़ुसूर वार इस्लाम हो सकता है, 
जहां ज़ानियों को सज़ाए मौत दी जाती है. 
शायद ये कल्चर इस बेराह रवी के सहारे, 
फ़रसूदा निज़ाम का जवाब हो.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 10 July 2019

ज़मीर फरोश ओलिमा

ज़मीर फरोश ओलिमा 

मेरे गाँव की एक फूफी के बीच बहु-बेटियों की बात चल रही थी कि 
मेरा फूफी ज़ाद भाई बोला, अम्मा क़ुरान में लिखा है 
औरतों को पहले समझाओ बुझाओ, 
न मानें तो घुस्याओ लत्याओ, फिरौ न मानैं तो अकेले कमरे मां बंद कर देव,
 यहाँ तक कि वह मर न जाएँ . 
फूफी आखें तरेरती हुई बोलीं उफरपरे! कहाँ लिखा है? 
बेटा बोला तुम्हरे क़ुरआन मां.-- 
आयं? कह कर फूफी बेटे के आगे सवालिया निशान बन कर रह गईं. 
बहुत मायूस हुईं और कहा
 ''हम का बताए तो बताए मगर अउर कोऊ से न बताए''
मेरे ब्लॉग के मुस्लिम पाठक कुछ मेरी गंवार फूफी की तरह ही हैं. 
वह मुझे राय देते हैं कि मैं तौबा करके उस नाजायज़ अल्लाह के शरण में चला जाऊं. 
मज़े कि बात ये है कि मैं उनका शुभ चिन्तक हूँ और वह मेरे. 
ऐसे तमाम मुस्लिम भाइयों से दरख़्वास्त है कि मुझे पढ़ते रहें, 
मैं उनका ही असली ख़ैर ख़्वा हूँ . 
***
 अरब के लिए इस्लामी बरकत      
    
फ़त्ह मक्का के बाद अरब क़ौम अपनी इर्तेक़ाई उरूज को खो कर शिकस्त ख़ुर्दगी पर गामज़न हो चुकी थी. जंगी लदान का इस्लामी हरबा उस पर इस क़दर पुर ज़ोर और इतने तवील अरसे तक रहा कि इसे दम लेने की फ़ुर्सत न मिल सकी. 
इस्लामी ख़ुद साख़्ता उरूज का ज़वाल उस पर इस क़द्र ग़ालिब हुवा कि इस का ताबनाक माज़ी कुफ़्र का मज़मूम सिम्बल बन कर रह गया. 
योरोप के शाने बशाने बल्कि योरोप से दो क़दम आगे चलने वाली अरब क़ौम, योरोप के आगे अब घुटने टेके हुए है.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 9 July 2019

Ved Is At Your Door

Ved Is At Your Door 

मैं वन्धना (कानपुर) स्थित चिन्मय ओल्ड एज होम में कुछ दिनों के लिए था. 
यह आश्रम वन्धना और बिठूर के बीच स्थित है जो कभी डाकू बाल्मीकि की शरण स्थली हुवा करती थी.
आश्रम में एक मुस्लिम की आमद पर सुगबुगाहट उठने लगी. 
बात पहुंची संचालक स्वामी शंकरा नन्द जी तक . 
बूढों ने अपनी शंका ज़ाहिर की कि एक मुस्लिम आश्रम में आ गया है , 
हम लोगों को ख़तरे का आभास होने लगा है. 
आश्रम संचालक स्वर्गीय शंकर नन्द उनकी बातें सुनकर मुस्कुराए 
और कहा कि ख़तरा तो उस मुस्लिम को महसूस होना चाहिए कि हिंदुओं के बीच अकेला रह रहा है, न कि आप लोगों को.
मुझे इस बात की जानकारी हुई तो बात गाँधी जी की याद आई कि 
हिन्दू मानस बहुधा कायर होता है. 
स्वामी जी जो Ved Is At Your Door का मिशन अंतर राष्टीय स्तर पर चलाते थे, 
ने उन लोगों से पूछा जब मैं मिडिल ईस्ट जाता हूँ तो किसका अतिथेय बनता हूँ ? ज़ाहिर है मुसलमानों का. अगर उनको मालूम हो कि हम मुसलमानों को आश्रम में नहीं रखते तो मैं क्या जवाब दूँ? 
दूसरे दिन से आश्रम में मेरी इज्ज़त होने लगी और गऊ शाला की जिम्मे दारी मैंने ले ली साथ साथ सब्जी ख़रीदारी का ज़िम्मा भी.
आश्रम की दो बातें मुझे अकसर याद आती है , 
पहली यह कि एक गाय की डिलीवरी पेचीदा हो गई थी, मैं अपनी स्कूटर से भाग कर डाक्टर को वन्धना से लेकर आया तो बछड़ा पैदा हो सका. 
उस बछड़े के साथ मैं रोज़ खेलता. दूसरी हक़ीक़त यह कि - - - 
बियाई हुई गाय में दूध न था. 
ऐसे में एक सज्जन आए और दूसरी ब्याई हुई गाय लाकर आश्रम को पुजा गए, दूसरे दिन पता चला कि उसमें भी दूध देने की क्षमता न थी. 
चार प्राणियों के पालन पोषण की चर्चा हो ही रही थी कि एक सुबह मैं उठ्ठा , देखा तो दोनों गाय नदारद ? 
मैंने पाल से पूछा तो उसने इशारों से बतलाया कि ठिकाने लग गई.
यह हिन्दू और मुस्लिम का समाज कितना खोखला है. 
झूटी मर्यादाएं जी रहे हैं दोनों.
***जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 8 July 2019

मुहम्मद कुछ कुछ ठीक भी - - -

मुहम्मद कुछ कुछ ठीक भी - - -     

मेरी बड़ी कमज़ोरी यह है कि मैं सच को सच लिखता हूँ 
और झूट को झूट.
हिन्दू नाराज़ हो जाए या मुसलमान, कोई परवाह नहीं.
मुहम्मद के अवग़ुण की अभी तक मैं ने सच्ची रूप रेखा पेश की है, 
मगर उनमे कुछ सद ग़ुण भी थे, 
जिसे उजागर करना मेरे क़लम की मजबूरी है और क़लम का तक़ाज़ा भी.  
हर व्यक्ति में चाहे वह कितना भी बुरा क्यूं न हो, कुछ भले पहलू भी होते है. 
ऐसे ही हर भले इंसान में कुछ बुराइयां भी फ़ितरी तौर पर होती हैं. 
मुहम्मद की एक बड़ी ख़ूबी यह थी कि मुहम्मद ऐश व आराम पसंद नहीं थे 
और ग़रीब परवार थे. अपने दास और दासियों को वही खिलाते पहनाते जो ख़ुद खाते और पहनते. 
उस समय दास प्रथा मान्य थी, मगर उनके लिए मुहम्मद के अंदाज़ बदले हुए थे.
अरब के ज़्यादः हिस्से पर इस्लामी झंडा क़ायम होने बावजूद वह सादा ज़िन्दगी ग़ुज़ारते, कोई शाहाना ठाट बाट नहीं, 
कोई महल और क़िला नहीं. 
जबकि वह अरब के बादशाह बन चुके थे मगर हक़ीक़त में बे ताज. 
अपने गिर्द कोई लाव-लश्कर नहीं रखते, बिना खौ़फ़ बस्ती में घूमते फिरते. 
वह बड़ी सादगी के साथ अपनी नौ बीवियों को उनके टूटे फूटे घरों में 
बारी बारी से एक रात बिताते. 
एक दिन राह चलते मुहम्मद का एक हसीना पर दिल आ गया, 
राह बदल कर वह अपनी बीवी सफ़िया के घर अपनी जिंसी तक़ाज़े के लिए पहुँच गए. 
उस वक़्त उनकी बीवी सफ़िया किसी जानवर की खाल को चमड़ा बनाने के लिए कमा रही थीं. 
ग़ौर तलब है कि शाहों के शाह, शहेंशाह की रानी खाल को चमड़ा बना रही थीं? मुहम्मद ने अपनी बीवी से जिंसी आसूदगी पाकर अगले काम की तरफ़ बढे. इससे उनकी ज़ात का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. 

उनकी तहरीक थी कि दौलत किसी के पास इकठ्ठा न होने पाए. 
ऐसे दोस्तों को मश्विरह देते कि तुम्हारे पास तीन बाग़ हैं, 
इसमें से एक अपने ग़रीब भाई (फुलां) को दे दो. 
कन्जूसों के ख़िलाफ़ कहते कि इन को लूट लो. 
लेनिन और कार्ल मार्क्स ने मुहम्मद को पसंद किया, 
इसी वजेह से उनका रवय्या इस्लाम के प्रति नर्म था. 
1300 साल पहले साम्यवाद का विचार कम्युनिष्टों को भा गया.
वह जब मरे तो उनके जेब से सिर्फ़ 6 दीनार निकले, जो उनकी कुल पूँजी थी.
यह थी एक बादशाह की कुल विरासत .
जिन्सी मुआमले में मुहम्मद कुछ ज़्यादः ही बदनाम हैं, 
वह भी इस दौर में जब औरत सम्मान एक सिंबलबन गई है. 
उस दौर में जब कि आजके मानव मूल्य कोई हैसियत नहीं रखते थे, 
थे ही नहीं. 
जब औरत एक प्राणी मात्र हुवा करती थी, 
उस दौर में मुहम्मद की तस्वीर देखी जा सकती है जब औरत को पैदा होते ही मार देना कोई जुर्म न था. कमसिन के साथ विवाह और संभोग आज के परिवेश में जुर्म हुवा है. वह भारत हो या अरब. 
मर्द जन्ग जूई में मारे जाते थे, औरतें लावारिस हो जाती थीं, इसी लिए इस्लाम ने चार बीवियों की छूट दी, इस के बाद पराई औरत से संभोग ज़िनाकारी होती,
इस पर संगसारी की सज़ा थी. 
तो संभोग पर आज़ादी मगर एलान्या, निकाह करके. 
मुहम्मद की ग्यारह बीवियों में से दस बीवियां बेवा थीं. 
ऐसी बहुत सी ख़ूबियाँ मुहम्मद की गिनाई जा सकती हैं,

कहते हैं कि एक क़तरा पेशाब का,
 पूरे भरे हुए घड़े के शुद्ध पानी को नापाक कर देता है.
मुहम्मद का झूट क़ुरान 
भरे हुए घड़े में आधा घड़ा नजासत है, 
कैसे पिया जा सकता है ?  
अफ़सोस कि उनके बाद कोई इस्लामी रहनुमा ऐसा नहीं हुवा जो एलान करता कि इंसानों को सुधारने के लिए मुहम्मद ने झूटी क़दरों (क़ुरआन) का सहारा लिया था. और क़ुरआन को हदीस की तरह ही रद्द कर देता.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 7 July 2019

प्रति शोध

प्रति शोध 

मुसलमानों की बाबरी मस्जिद को लाखों हिन्दु कारसेवकों ने धराशाई कर दिया, नाम कारसेवा दिया जोकि सिख्खों के ग़ुरु द्वारों में श्रद्धालुओं की सेवा करने काम होता है. 
इस तरह से किसी धर्म स्थल को गिराने का काम एक तरह से 
सिख्खिज़्म के काँधे पर रख्खा. 
मुसलमानो में इसका रोष हुवा, आवाज़ उठाई, तो मुंबई में बड़ा दंगा करके 
उन्हें सबक़ सिखलाया गया जिसमे हज़ार जानों के साथ साथ झोपड़ पट्टी में 
बसने वालों का असासा आग को हवाले किया गया.  
इसी दुर्घटना का शिकार एक ईमान दार पुलिस अफसर करकरे को भी 
हिंदू सगठनो ने मौत के घाट उतार दिया और हत्या का इलज़ाम भी 
मुसलमानो के सर मढ़ा. 
इसके बाद मुंबई सीरियल बम कांड की घटना इन ज़्यादतियों का प्रति शोध था जिसमे जाने नहीं बल्कि महत्त्व पूर्ण जाने और झोपड़ पट्टियां नहीं बल्कि क़ीमती इमारतें आग के हवाले हुईं. 
दोनों कुकृतियों का न्याय अनन्याय पूर्ण हुवा 
जिसका विरोध दबी ज़बान में दोनों पक्ष बुद्धि जीवीयों ने किया. 
10%की अल्पसंख्यक 90% का खुलकर कुछ बिगड़ नहीं सकती 
मगर जो कर सकती उसे निडर होकर किया.  
याक़ूब मेमन के जनाज़े में शरीक होकर .
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 5 July 2019

एक लक़ब उम्मी भी है


एक लक़ब उम्मी भी है        

बहुत से लक़बों (उपाधियों) के साथ साथ तथा-कथित पैग़मबर मुहम्मद का एक लक़ब उम्मी भी है जिसके के लफ़्ज़ी मानी होते हैं अनपढ़ और जाहिल. 
ये लफ़्ज़ किसी फ़र्द को नफ़ी (न्यूनता की परिधि) में ले जाता है 
मगर बात मुहम्मद की है तो बात कुछ और ही हो जाती है. 
इस तरह उनके तुफ़ैल में उम्मी शब्द पवित्र और मुक़द्दस हो जाता है. 
ये इस्लाम का ख़ास्सा है. 
वैसे उम्मी हिब्रू शब्द है भाषा का है, 
हिब्रू न जानने वाला यहूदी समाज में उम्मी कहा जाता है. 
इस्लामी इस्तेलाह (परिभाषा) में कई अलफ़ाज़ आलिमों के साज़िशों से 
अस्ल मअनी कुछ के कुछ हो गए हैं जिसे आगे आप देखेंगे. 
मुहम्मद निरे उम्मी थे, मुतलक़ जाहिल. 
क़ुरआन उम्मी, अनपढ़ और अक़ली तौर पर उजड, 
मुहम्मद का ही कलाम (वचन) है जिसे उनके गढ़े हुए 
अल्लाह का कलाम कहा जाता है. 
इसको क़ुराने-हकीम भी कहा जाता है यानी हिकमत से भरी हुई बातें.
क़ुरआन के बड़े बड़े हयूले बनाए गए, 
बड़ी बड़ी मर्यादाएं रची गईं, 
ऊंची ऊंची मीनारें क़ायम की गईं, 
इसे विज्ञान का जामा पहनाया गया, 
तो कहीं पर रहस्यों का दफ़ीना साबित किया गया है. 
यह कहीं पर अज़मतों का निशान बतलाया गया है तो कहीं पर जन्नत की कुंजी, और हर सूरत में नजात (मुक्ति) का रास्ता, 
निज़ामे हयात (जीवन विद्या) तो हर अदना पदना मुसलमान 
इस क़ुरआन कह कर फूले नहीं समाता, 
गोकि दिनोरात मुसलमान इन्हीं क़ुरानी आयतों की ग़ुमराही में मुब्तितिला, 
पस्पाइयों में समाता चला जा रहा है. 
आम मुसलमान क़ुरआन को अज़ ख़ुद कभी समझने की कोशिश नहीं करता, उसे हमेशा अपने ओलिमा (धर्म ग़ुरु) ही समझाते हैं.
इस्लाम क्या है? 
इसकी बरकत क्या है? 
छोटे से लेकर बड़े तक सारे मुसलमान ही दानिश्ता और ग़ैर दानिश्ता 
तौर पर इस के झूठे और खोखले फ़ायदे और बरकतों से जुड़े हुए हैं. 
सच पूछिए तो कुछ मुट्ठी भर अय्यार और बेज़मीर मुसलमानों का 
सब से बड़ा ज़रीया मुआश (भरण पोषण) इस्लाम है 
जो कि मेहनत कश, इसी तबके के अवाम पर मुनहसर करता है, 
यानी बाक़ी क़ौमों से बचने के बाद ख़ुद मुसलमान, 
मुसलमानों का इस्तेह्साल (शोषण) करते हैं. 
दर अस्ल यही मज़हब फ़रोशों का तबक़ा, 
ग़रीब मुसलमानों का ख़ुद दोहन करता है और 
दूसरों से भी इस्तेह्साल कराता है. 
वह इनको इस्लामी जेहालत के दायरे से बाहर ही निकलने नहीं देता.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान