मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं..
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सूरह हज २२-१७ वाँ पारा
रीसरी किस्त
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सूरह हज २२-१७ वाँ पारा
रीसरी किस्त
फतवा
देवबंद के ओलिमा ने एक बार फिर इंसानी हुकूक को लेकर, ज़िदा दिल जीने वाले फ़िल्मी बन्दों सेहरिश और जहाँगीर पर फतवा जड़ दिया है. उनकी निजी आज़ादी इस्लाम को रास नहीं आती इस लिए इन दोनों को इस्लाम से और इसकी बिरादरी ख़ारिज कर दिया गया. ओलिमा के इन फतवों की कोई कद्र व कीमत नहीं होती तब तक कि मुलजिम इन फतवों की परवाह करने लगे. अफ़सोस हुवा ये देखकर कि जहाँगीर इन कठ मुल्लों की परवाह करते हुए सफाई देने लगे कि वह पक्के मुसलमान हैं. वह और उनकी महबूबा कहाँ तक सफाई देते रहेंगे कि वह इस्लाम के पाबंद हैं. उनकी एक्टिंग ही हराम करार दी जा सकती है, कैमरे के सामने जाकर तस्वीर खिचाना भी हराम, बे बुरका रहना हराम, गैर मुस्लिम से शादी करना हराम. मियाँ जहाँगीर सच तो ये है की आप इनकी परवाह किए बगैर अपने धुन में लगे रहिए. इन हराम खोरों की बातों में आकर गुमराह मत होइए. इन से कहिए कि ठीक है मुल्ला जी! हम आप के यहाँ आपकी बेटी का हाथ मांगने नहीं आएँगे. वैसे भी इनकी बहन बेटियों को कोई ढंग का रिश्ता नहीं मिलता है. यह किराए के टट्टू अपने साथ साथ अपनी नस्लों के दुश्मन होते हैं.
हाथी गुज़र जाता है कुत्ते भौंकते रहते हैं. पिद्दी भर एक मुम्बैया तंजीम "जामा कादिर्या अशरफिया " दुन्या की ताक़ते-अव्वल अमरीका को आगाह कर रही है कि अगर ११-९ को क़ुरआनी नुस्खे जलाए गए तो इसके अंजाम बुरे होंगे. इस्लामी दुन्या ऐसी गुमराहियों पर है कि हर मुसलमान कायदे-आज़म बना हुवा है. मुस्लिम अवाम को चाहिए कि इन काठ मुल्लों को ठेंगा दिखलाते हुए अपनी मंजिल की तरफ गामज़न रहें.
चलिए देखें मुहम्मदी अल्लाह की दाँव पेच - - -
" निज़ामे-हयात के तहत अल्लाह अपने लिए जिन मासूम जानवरों की कुर्बानी चाहता है, उसकी नफासत को जताता है और कुर्बानी के तौर तरीकों का बयान करता है . खाना ए काबा को इब्राहीम ने बनाया इसका खुलासा करते हए उनके एह्कमात बाबत हज के बतलाता है. फिर हस्बे- आदत यहूदी नबियों के नाम गिनता है - - - नूह, आद , समूद से मूसा तक."
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-२६-४४)
''सो मेरा अज़ाब कैसा हुवा, कितनी बस्तियां है जिनको हम ने हलाक किया जिनकी यह हालत थी कि वह नाफ़रमानी करती थीं, सो वह अपनी छतों पर गिरी पड़ी हैं और बहुत से बेकार कुवें ''
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-४५)
जुमला गौर तलब है कि
''सो वह अपनी छतों पर गिरी पड़ी हैं"
छतों पर कौन गिरी पड़ी हैं? बस्तियां? या उसके मकानात? या फिर मकानों की दीवारे? कौन सी चीज़ छतों पर गिरी कि जिसके बोझ से वह गिरीं ? कि जिससे बस्ती के लोग हालाक हुए? क़ुरआनी अल्लाह क्या अफीमची है? मूतरज्जिम यहाँ पर इस तरह अल्लाह की बात की रफू गरी करता है कि " गोया पहले छतें गिरीं, फिर छत पर दीवारें. अल्लाह अपने बन्दों पर अज़ाब नाजिल करता है, इसके लिए पहले वह लोगों को गुराह करता है?
''और ये लोग अज़ाब का तकाज़ा करते हैं हालाँकि अल्लाह अपना वादा खिलाफ न करेगा और आप के रब के पास एक दिन एक हज़ार साल के बराबर है तुम लोगों के शुमार के मुवाफ़िक़ और बहुत सी बस्तियां हैं कि जिनको हम ने मोहलत दी थीं और वह ना फ़रमानी करती थीं फिर मैं ने उनको पकड़ लिया और मेरी तरफ ही लौटना होगा और कह दीजिए कि ऐ लोगो ! मैं तो तुम्हारे लिए आशकारा डराने वाला हूँ."
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-४७-४८)
मुसलमानों!
क्या तुम ऐसे मूजी अल्लाह के डर से मुसलमान बने बैठे हो?
जो तुमको एक शर्री बन्दे मुहम्मद को तस्लीम करने पर मजबूर करता है? यह तुम्हारा अकीदा बन चुका है तो इसे तोड़ दो और अपनी अक्ल पर यकीन करो. मुहम्मद बार बार तुम्हें कुदरती आफतों से डरा रहे जो दस पांच साल के वक्फे में बाद, अकाल, बीमारी या जंगो की सूरत में आती ही है, मगर कोई नागहानी आ ही नहीं रही? तो मकर का एक रास्ता उनको सूझता है कि तुम तो चौबीस घंटों का दिन जोड़ते हो, जब कि अल्लाह का एक दिन एक हज़ार साल का होता है तुम अगर ५० साल भी जिए तो अल्लाह महेज़ ८ घंटे, उसकी नींद भी पूरी नहीं हुई और लोग जल्दी मचा रहे हैं कि वादा कब पूरा होगा? अल्लाह का खूब सूरत वादा क़यामत का, जो बन्दों को भुगतना है. मुहम्मद का मकरूह हथकंडा और मुसलामानों की ज़ंग आलूद ज़ेहन, सब यकजा हैं.
"जो शख्स इस क़दर तकलीफ पहुँचावे जिस क़दर उसको दी गई थी, फिर उस शख्स पर ज्यादती की जाय तो अल्लाह उस शख्स की ज़रूर मदद करेगा. बेशक अल्लाह कसीरुल अफो ,कसीरुल मग्फ़िरत है.''
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-६०)
इन्तेकाम का कायल मुहम्मदी अल्लाह खुद को मुन्ताकिम के साथ बतलाता है. मुहम्मद ने अपनी जिंदगी में अपने पुराने दुश्मनों से गिन गिन कर बदला लिया है, इस्लामी तवारीख देखें.
''ऐ लोगो एक अजीब बात बयान की जाती है, इसे कान लगा कर सुनो. इसमें कोई शुबहा नहीं जिन की तुम अल्लाह को छोड़ कर इबादत करते हो, वह एक मक्खी तो पैदा नहीं कर सकते गो सब के सब जमा हो जाएँ और पैदा करना तो बड़ी बात है, इन से मक्खी कुछ छीन ले जाय तो इस से ये छुड़ा नहीं सकते .''
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-८२-८३)
बे शक मिटटी के बुत भला कम भी क्या कर सकते हैं? मगर मुहम्मदी अल्लाह क्या पेड़ों में हमारे लिए बने बनाए फर्नीचर पैदा का सकता है? दोनों ही मिथ्य हैं।
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान