एक करबद्ध अनुरोध
छि -छि - छी
गूगल के दो पैग़म्बरों और अवतारों ने मिलकर, क्या इनके लिए यह सुविधा सेज बिछाई थी? मानवता वादी हमेशा मानव के हक़ और हित में काम करते हैं मगर इसका दुरोपयोग यह अमानुष लोग करते चले आए हैं। धर्मों और मज़हबों का संसार होता ही ऐसा है कि इसके साँचे में ढलने के बाद समप्रदाय अधर्मी बन जाते हैं. शाशन और नेता इनके सहयोग में समर्पित रहते है. बुद्धि जीवी असहाय खडा खड़ा टुकुर टुकुर इनका मुँह तकता है, कुछ मुट्ठी भर लोग पूरे माहौल में गन्दगी फैलाए रहते हैं. ऐसे लोग सोचें कि वह किसका भला कर रहे हैं? देश का? धरती माता का? या इस पर बसने वाले जीवों का?
मैं ने अपने ब्लॉग पर मुसलामानों के लिए जागरण यात्रा प्रारंभ की है, जिसे मैं मानव धर्म मानता हूँ, इसके लिए मुसलमान मुझ पर हर तरह का हमला कर सकता है क्यूंकि वह गहरी अन्ध विश्वास की नींद सो रहा है, नींद में किसी को जगाओ तो बडबडाता हुवा ही उठता है, उसकी गालियाँ मुझे मंज़ूर हैं, उसका प्रतिवाद आप सिर्फ देखिए, उसकी तरह गाली मत बकिए। हो सके तो आप अपने समाज में मोमिन जैसा प्रयास करिए, मत ग़लत फ़हमी में रहिए कि वह पूरी तरह जाग चुके हैं। गैर मुस्लमान भाइयों से मेरा अनुरोध है कि कृपा करके मेरे ब्लॉग पर अपशब्द की भाषा मत लाएँ.
बेहतर है कि शायर की बात मानें - - -
लड़ें ख़ामोश आपस में, न तुम बोलो न हम बोलें
सूरह कुहफ़ १८
The CAVE 18
चौथी किस्त
मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
(बमय अलक़ाब) '' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
तबसरा ---- जीम। ''मोमिन'' का है।
''लोग आप से ज़ुलक़रनैन का हाल पूछते हैं, आप बयान करिए - - - हम ने उनको रूए ज़मीन पर हुकूमत दी थी और हम ने उनको हर क़िस्म का सामान दिया था, चुनांच वह एक राह पर हो लिए, यहाँ तक कि जब ग़ुरूब आफ़ताब तक का मौक़ा आ पहुंचा तो उनको एक सियाह रंग के पानी में डूबता हुवा दिखाई दिया (?) और इस मौके पर उन्हों ने एक कौम देखी. हमने उनसे कहा ऐ ज़ुलक़रनैन ! ख्वाह सज़ा दो खवाह नरमी का बरताव अख्तियार करो, जवाब दिया जो ज़ालिम रहेगा उसको तो हम लोग सज़ा ही देंगे, फिर वह अपने मालिक के पास पहुँचा दिया जाएगा और वह उसको सख्त सज़ा देगा और जो शख्स ईमान लाएगा और नेक अमल करेगा तो उसके लिए बदले में भलाई मिलेगी - - - फिर ज़ुलक़रनैन ऐसी जगह तुलूए आफ़ताब देखी जिसके लिए हम ने आफ़ताब को ही आड़ नहीं रख्खी. इस तरह ज़ुलक़रनैन के पास जो सामान था, उसको इसकी पूरी खबर है ,फिर एक और राह हो लिए, यहाँ तक कि जब दो पहाड़ों के दरमियाँ पहुँचे तो उनसे, उस तरफ एक कौम को देखा जो कोई बात समझने के करीब में नहीं पहुँचते. उन्हों ने अर्ज़ किया कि ऐ ज़ुलक़रनैन ! याजूज माजूज इस सर ज़मीन पर बड़ा फ़साद मचाते हैं सो क्या हम लोग आप के लिए कुछ चंदा जमा करें , इस शर्त पर कि आप हमारे उनके बीच कोई रोक बना दें, जवाब दिया कि जिस में हमारे रब ने अख्तियार दिया है, वह बहुत बहुत कुछ है . सो कूवत से मेरी मदद करो. मैं तुम्हारे और उनके दरमियान खूब मज़बूत दीवार बना दूगा. तो लोग मेरे पास लोहे की चादरें लाओ, यहाँ तक कि जब उनके दोनों सरों के बीच बराबर कर दिया तो हुक्म दिया कि धौंको, यहाँ तक कि जब उसको अंगारा क़र दिया तो हुक्म दिया कि मेरे पास पिघला हुवा ताम्बा लाओ कि इस पर डाल दूँ सो वह लोग न तो इस पर चढ़ सकते थे, कहा कि ये मेरे रब की रहमत है फिर जिस वक़्त मेरे रब का वादा आएगा , इसके फ़ना का वक़्त आएगा सो इसको ढा कर बराबर कर देगा और मेरे रब का बर हक़ हक है.''
सूरह कुहफ १८-१६ वां परा(८३-९८)
मुहम्मद ने ईसा, मूसा, मरियम, हकीम लुकमान वगैरह, जिनका हाल सुन रख्खा था, या जिनकी कहानी सुनी थी सबको कुरआन में शामिल करके उनकी कहानी अपने अंदाज़ में बनाई है, जो इस्लामी प्रचार के लिए विषय होते थे और इसका गवाह सीधे अल्लाह को बना दिया। कुरआन को अल्लाह का कलाम बता कर।
मशहूर हस्तियाँ ही नहीं कुछ अजीबो-गरीब हस्तियाँ अपनी तरफ़ से भी गढ़ लिया था. इस सूरह में कोई फ़र्ज़ी बादशाह ज़ुलक़रनैन की कहानी गढ़ी है.
''हम ने उनको रूए ज़मीन पर हुकूमत दी थी''
''हम ने उनको हर क़िस्म का सामान दिया था''
बड़े बादशाह को हर क़िस्म का सामान भी अल्लाह ने दिया, है न अहमकाना बात - -
''और ज़ुलक़रनैन के पास जो सामान था, अल्लाह को इसकी पूरी खबर है ''
है ये दूसरी अहमकाना दलील हुई,
मगर वह बे सरो समानी के आलम में तनहा सफ़र पर भी था - - -
शाम का वक़्त था काले पानी में क्या डूबता हुवा दिखाई दिया उसका नाम बतलाना भूल कर आगे बढ़ते हैं।
''चुनांच वह एक राह पर हो लिए, यहाँ तक कि जब ग़ुरूब आफ़ताब तक का मौक़ा आ पहुंचा तो उनको एक सियाह रंग के पानी में डूबता हुवा दिखाई दिया (?)''
''इस मौके पर उन्हों ने एक कौम देखी। हमने (गोया अल्लाह ने) उनसे कहा ऐ ज़ुलक़रनैन ! ख्वाह सज़ा दो खवाह नरमी का बरताव अख्तियार करो''
मतलब हुवा कि अल्लाह ज़ुलक़रनैन के मातहत था। अल्लाह का मशविरा ठुकरा कर ज़ुलक़रनैन ने फैसला कुन जवाब दिया कि
''जो ज़ालिम रहेगा उसको तो हम सज़ा ही देंगे और (कोई आप से बड़ा मालिक है तो) फिर वह अपने मालिक के पास पहुँचा दिया जाएगा। वह उसको सख्त सज़ा देगा.''
मुहम्मद अपनी इस्लामी डफली बजाने लगते हैं - - -''जो शख्स ईमान लाएगा और नेक अमल करेगा तो उसके लिए बदले में भलाई मिलेगी - - -''
चलते चलते शाम से रात हुई और सुबह का वक़्त आया फिर ''ज़ुलक़रनैन ऐसी जगह तुलूए आफ़ताब देखी जिसके लिए हम ने आफ़ताब को ही आड़ नहीं रख्खी।''
मुहम्मद ने यहाँ क्या कहा है आलिम रफुगरों की समझ से भी बाहर है. अल्लाह ने सूरज को चिलमन बना कर नहीं लटकाया? मुखबिर अल्लाह ज़ुलक़रनैन के झोले में रख्खे सामान की पूरी जानकारी रखता है यह मुक़र्रर इरशाद है . - - - ''इस तरह ज़ुलक़रनैन के पास जो सामान था, उसको इसकी पूरी खबर है''
चलते चलते ''ज़ुलक़रनैन यहाँ तक कि जब दो पहाड़ों के दरमियाँ पहुँचे तो उनसे, उस तरफ एक कौम को देखा जो कोई बात समझने के करीब में नहीं पहुँचते।''
यानी उस कौम की गुतुगू को न समझते हुए भी समझे कि उन लोगों ने '' अर्ज़ किया कि ऐ ज़ुलक़रनैन ! याजूज माजूज इस सर ज़मीन पर बड़ा फ़साद मचाते हैं सो क्या हम लोग आप के लिए कुछ चंदा जमा करें, इस शर्त पर कि आप हमारे उनके बीच कोई रोक बना दें''
यह याजूज माजूज भी मुहम्मद की जेहनी पैदावार हैं. आगे फरमाते हैं की ज़ुलक़रनैन ने उन लोगों से कोई माली मदद तो नहीं ली क्यूँकि उनके पास रब का दिया हुवा बहुत था, मगर लोगों कि मेहनत ज़रूर तलब की. बादशाह उनकी मदद यूँ करता है - - -
''तो लोग मेरे पास लोहे की चादरें लाओ, यहाँ तक कि जब उनके दोनों सरों के बीच बराबर कर दिया तो हुक्म दिया कि धौंको'', जिस कौम ने लोहे की चादर बना ली हो, उसको इनसे मैदान की घेरा बंदी भी आती होगी. ज़ुलक़रनैन उनसे क्या (?) धौंक्वता है,
'' यहाँ तक कि जब उसको अंगारा क़र देते हैं तो हुक्म दिया कि मेरे पास पिघला हुवा ताम्बा लाओ कि इस पर डाल दूँ सो वह लोग न तो इस पर चढ़ सकते थे.''
लोग ताम्बा पिघला सकते हैं, बस कि लोहे की चादरों से दीवार नहीं खड़ी कर सकते?
'' फिर मुहम्मद क़ुरआनी सारंगी छेड़ देते हैं.''
मुसलमानों! ईमान दार मोमिन ही कुरआन की सही तर्जुमानी कर सकता है, ये ज़मीर फरोश ओलिमा सच बोलने की हिम्मत भी नहीं कर सकते. कुरआन में इस फ़र्ज़ी वाकिए और नामुकम्मल गुफ्तुगू में आलिम ने क्या क्या न आरिफाना (आध्यात्मिक) मिर्च मसालों की छ्योंक बघारी हैं कि पढ़ कर दिल मसोसता है. तुम जागो, जग कर मोमिन हो जाओ जो कि इंसान का मुकम्मल मज़हब है, जिसका कोई झूठा पैगम्बर नहीं, बल्कि कोई पैगम्बर नहीं, कोई चल-घात की बातें नहीं, सीधा सादा एलान कि २+२=४ होता है, न तीन और न पाँच. फूल में खुशबू होती है, इसे किसने पैदा किया? उसकी तलाश में मत जाओ कि तुम्हारी तलाश की राह में कोई मुहम्मद बना हुवा पैगम्बर बैठा होगा. बहुत से सवाल, जवाब नहीं रखते, कि वक़्त कब शुरू हुआ था? कब ख़त्म होगा? सम्तें (दिशाएँ) कहाँ से शुरू होती हैं, कहाँ ख़त्म होंगी? इन सवालों को ज़मीन की दीगर मखलूक की तरह सोचो ही नहीं. फितरत की इस दुन्या में चार दिन के लिए आए हो, फ़ितरी ज़िन्दगी जी लो।
''और उस रोज़ हम उनकी ऐसी हालत कर देंगे कि वह एक दूसरे में गडमड हो जाएँगे और सूर फूँका जायगा और हम सब को जमा कर लेंगे और दोज़ख को उस रोज़ काफ़िरों के सामने पेश करेगे और वह अपने ख़याल में हैं कि अच्छा काम कर रहे हैं, ये लोग हैं जो कि रब की आयातों का और उस से मिलने का इंकार कर रहे हैं इनके सारे काम ग़ारत हो जाएँगे क़यामत के रोज़. हम इनका ज़रा भी वज़न न कायम करेंगे. यानी दोज़ख इस सबब से कि उन्हों ने कुफ्र किया था और मेरी आयातों और पैगम्बर का मज़ाक उड़ाया था. आप कह दीजिए कि मेरे रब की बातें लिखने के लिए समन्दर रोशनी हो तोसमन्दर ख़त्म हो जाएगा मगर मेरे रब की बातें ख़त्म न होंगी'' सूरह कुहफ १८-१६ वां परा(१००-११०)
मुसलमानों! देखो कि अपने अल्लाह की शान, अपने बन्दों की हालत वह क्या कर देगा, यह मुहम्मद की ज़ालिमाना फ़ितरत की गम्माज़ी है. क्या तुम को ये शैतान ज़ेहन की साज़िश नहीं मअलूम पड़ती? क्या तुम उस कुदरत को इतना बे रहम समझते हो कि अपने बन्दों में कुफ़्र को गुनाह साबित करके उनके लिए अलग से सज़ा मुक़र्रर करेगा? ज़लज़ला आता है तो काफ़िर और मोमिन को देख कर उनके घर गिराता है ? मुहम्मद इतने बड़े गैर मुंसिफ थे कि काफिरों के नेक अमल को भी खातिर में नहीं लाते. बस कि जब तक उनकी इन पुरगुनाह आयतों को तस्लीम न कर लें. दुन्या की तारिख में इतना बड़ा साजिशी कोई और नहीं हुवा कि इंसानियत को महसूर करके कामयाब हो गया हो. मगर नहीं यह कामयाबी नहीं, झूट भी क्या कभी कामयाब हो सकता है? मकर कभी हक़ीक़त का सामना नहीं कर सकती, मुहम्मद आलमे इंसानियत में बद तरीन मुजरिम हैं।
खुदा के लिए अपने आप को और अपनी औलादों को आने वाले वक़्त से बचाओ. अभी सवेरा है, वरना मुहम्मद के किए धरे की सज़ा भुगतने के लिए तैयार रख्खो अपनी नस्लों को. तुमको छूट हैकि मोमिन बन के अपने बुजुर्गों की भूल की तलाफी करो।
जीम 'मोमिन' निसरुल-ईमान
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॰ जीम जनाब
ReplyDeleteप्रभावित कर गया आपका यह अनुरोध!
मैं ने अपने ब्लॉग पर मुसलामानों के लिए जागरण यात्रा प्रारंभ की है, जिसे मैं मानव धर्म मानता हूँ, इसके लिए मुसलमान मुझ पर हर तरह का हमला कर सकता है क्यूंकि वह गहरी अन्ध विश्वास की नींद सो रहा है, नींद में किसी को जगाओ तो बडबडाता हुवा ही उठता है, उसकी गालियाँ मुझे मंज़ूर हैं, उसका प्रतिवाद आप सिर्फ देखिए, उसकी तरह गाली मत बकिए।
॰जिम्मोमिन,
ReplyDeleteखुबसुरत
तुम अपनी खामियाँ खोलो, हम अपनी खामियाँ खोलें,
लड़ें ख़ामोश आपस में, न तुम बोलो न हम बोलें
आज तबसरा खातिर में लेकर तस्लीम लायक़ है।
ReplyDelete"कौम ने लोहे की चादर बना ली हो, उसको इनसे मैदान की घेरा बंदी भी आती होगी. ज़ुलक़रनैन उनसे क्या (?) धौंक्वता है,"
आलिम रफुगरों की समझ से भी बाहर है।
सटीक संशोधन
ReplyDeleteआलिम रफुगरों की उतरन उतार फ़ैकने का वक्त है।
ReplyDeletenice post
ReplyDeleteinteresting
ReplyDeleteapne blog ko 'hamarivani' aur 'raftar' par bhi daaliye
ReplyDeletekuchh technical jaankaari dene vaale blog bhi hai upyog kijiye.
http://blogs.raftaar.in/Aggregator
ReplyDeletehttp://hamarivani.feedcluster.com/
http://hi.indli.com/
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ReplyDeleteAnonymous said...
ReplyDeleteapne blog ko 'hamarivani' aur 'raftar' par bhi daaliye
kuchh technical jaankaari dene vaale blog bhi hai upyog kijiye.
6 July 2010 08:05
Anonymous said...
http://blogs.raftaar.in/Aggregator
http://hamarivani.feedcluster.com/
http://hi.indli.com/
बहुत बहुत शुक्रिया,
हम आज्ञां पालन करेंगे.
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ReplyDeleteशुक्रिया,
ReplyDeleteआपकी तहरीर का स्पष्टिकरण अपने ब्लोग पर text में डाल दीजिये। ताकि,हर बार पोस्ट में न जोडना पडे,और आपका संदेश भी text में ब्लोग मुख्पृष्ठ पर डाल दें,जो आपके मक़्सद को स्पष्ठ कर देगा।
इसतरह बार बार आप स्पष्टिकरण से बचेंगे और पोस्ट आसान बन पडेगी।
मोमिन जी
ReplyDeleteदेखिए गधा खेत चरने कैराना जिला मुज़फ्फर नगर से आ गया.
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ReplyDeleteमोमिन साहब
ReplyDeleteबुनियादी जानकारी अपने ब्लॉग के टेक्स्ट में दे दीजिये, जिससे बार-बार आपको लिखना न पड़े. अपने दोनों ब्लोग्स में एक-दुसरे ब्लॉग का लिंक जोड़ दीजिये, जिससे पढने वाले को सुविधा रहे और पाठक दोनों ब्लोग्स पर आसानी से जा सकें. इसके अलावा अपने ब्लॉग की टेम्पलेट बदल दीजिये. कोई ऐसी टेम्लेट चुनिए जिसमें साइड में आपके ब्लॉग के पैगाम को रखा जा सके. इसके अलावा कोई ई-मेल आडी भी दीजिये, जिससे आपके मुरीद आपके संपर्क में रह सकें. मत्वपूर्ण बात यह है कि आप फर्जी आईडी के व्यक्ति से संपर्क न रखिये, क्योंकि यहाँ (ब्लोग जगत ) पर इस्लामी आतंकवादी भी छाये हुए हैं, जिनमें कुछ को तो आप भी जाते हो. ईश्वर आपको हमारी आयु भी लगा दे, यही अभिलाषा है
मोमिन साहब
ReplyDeleteबुनियादी जानकारी अपने ब्लॉग के टेक्स्ट में दे दीजिये, जिससे बार-बार आपको लिखना न पड़े. अपने दोनों ब्लोग्स में एक-दुसरे ब्लॉग का लिंक जोड़ दीजिये, जिससे पढने वाले को सुविधा रहे और पाठक दोनों ब्लोग्स पर आसानी से जा सकें. इसके अलावा अपने ब्लॉग की टेम्पलेट बदल दीजिये. कोई ऐसी टेम्लेट चुनिए जिसमें साइड में आपके ब्लॉग के पैगाम को रखा जा सके. इसके अलावा कोई ई-मेल आडी भी दीजिये, जिससे आपके मुरीद आपके संपर्क में रह सकें. मत्वपूर्ण बात यह है कि आप फर्जी आईडी के व्यक्ति से संपर्क न रखिये, क्योंकि यहाँ (ब्लोग जगत ) पर इस्लामी आतंकवादी भी छाये हुए हैं, जिनमें कुछ को तो आप भी जाते हो. ईश्वर आपको हमारी आयु भी लगा दे, यही अभिलाषा है
एक सुझाव और है कि आप अपने दूसरे ब्लोग में भी बेनामी की सुविधा दे दीजिये, ताकि आपके चाहने वाले आपको कमेन्ट कर सकें. इन दिनों यहाँ (ब्लोग जगत ) पर इस्लामी आतंकवादी भी छाये हुए हैं, लोग उनकी गाली-गलोच से बचने के लिए अपने नाम से कमेन्ट नही कर पाते.
ReplyDelete''ईश्वर आपको हमारी आयु भी लगा दे, यही अभिलाषा है''
ReplyDeleteमैं भरी आँखों के साथ आपकी अभिलाषा अस्वीकार करता हूँ , मुझ बूढ़े को खुश कर दिया, जीते रही. आपने अपनी सद भावना मुझे दे दिया यही काफी है, मूल्यवान भी. आपकी हर दिशा दर्शन पर अमल कर रहा हूँ . दर अस्ल मैं टेक्नीकल नहीं हूँ, आपही की तरह एक सहयोगी बच्चा है जो आपकी राय को समझ कर मेरे ब्लॉग को सक्षम कर देता है. मैं ६६ को होने वाला हूँ पुराना आदमी नई ईजादों को कहाँ आसानी के साथ समझ पाएगा. बस यूं ही रहनुमाई करते रही. आभार - - -
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ReplyDeleteहिन्दकौमहितेषी 'मोमिन'
ReplyDelete'हमारीवाणी'का गैजेट नहीं दिख रहा,
http://hamarivani.feedcluster.com/forms/add.jsp
'ब्लोग जोडें'
अब तो बिचारे कैरानवी को बता ही दो,अलबेदार आपका चाचा नहिं,आप खुद है।
अलबेदार पर आपकी पोस्टें बंद होने से,कैरानवी मियां मिट्ठु बन रहा है,छाती ठोक रहा है,कि अलबेदार को चुप कर दिया। हर महिने की एक पोस्ट वहां भी फ़िड कर दिया करो।
इम्पैक्ट,
यह 66 का अनुभव तुम 36 पर 30 से भारी है।
मोमिन महाराज, हमारीवाणी उन लोगों का एग्रीगेटर है जो आपके खिलाफ बाही तबाही बकते रहे हैं, अब वो लोग अपने डोमेन पर चले गये हैं, अब अगर उन तक कोई बात पहुंचायेंगे तो आपकी आईपी उन के पास पहुच जायेगी
ReplyDeleteशेष आप खुद समझदार हैं