मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस)
मुसम्मी '' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
मांसाहार
कैटिल्स स्लाटर प्रतिबंधित - - -
कनाटक के मुक्य मंत्री के नाम - - -
आहार भावुकता नहीं, कानून कायदा नहीं, मजहबी और धार्मिक पाखण्ड का दायरा नहीं, आहार भौगोलिक परिस्थितयों की मजबूरी है, आहार माहौल का तकाजा है. आहार कुदरत के नियमों में एक प्राकृतिक नियम है. आहार मन की उमंग ' जो रुचै सो पचै' है, आहार के बारे में विशेष परिस्थितयों में डाक्टर के सिवा किसी को राय देना ही व्योहारिक नहीं है, उसकी आज़ादी में दखल अंदाजी है.
दुन्या का हर जीव किसी न किसी जीव को खाकर ही अपना जीवन बचाता है. कोई जीव जड़ (निर्जीव खनिज एवं पत्थर) को खा कर जीवन यापन नहीं कर सकता. गौर करें कि पर्शियन फिलासफी के अनुसार जीव मुख्यता निम्न चार प्रकार के होते हैं - - -
1-हजरते-इंसान यानी अशरफुल मख्लूक़ात (हालाँ कि जिसे नेत्शे धरती का चर्म रोग बतलाता है)
२-हैवानात यानी जानवर, पानी और ज़नीन के जीव जन्तु
३-बनस्पति
४-खनिज
मैं सबसे पहले जीव नं ४ को लेता हूँ कि यह बेचारे भूमि के गर्भ में पड़े रहते हैं और बनस्पति को अपनी ऊर्जा सप्लाई किया करते हैं. विभिन्न प्रकार के दानो की लज्ज़त, फलों का स्वाद और फूलों कि खुशबू, इन्हीं गडी हुई खनिजों की बरकत है. अरब में खजूरें बहुत होती हैं, हो सकता है कि वहां पाई जाने वाले डीज़ल की बरकत हो. इसी तरह संसार में हर हर हिस्से में पाए जाने वाली खानिजें उस जगह की पैदावार हैं. यह खानिजें चाहती हैं कि इन का भरपूर दोहन हो. इन के दोहन से ही दुन्या शादाब हो सकती है.ये है कुदरत का कानून.
अगर खनिज को आप ने जड़ नुमाँ अर्ध जीव मान लिया हो तो आगे बढ़ते हैं (इनका विनाश भी धरती के चर्म रोगी कर रहे हैं जिसका अंजाम बुरा होगा) जीव की तीसरी प्रजाति यह बनस्पतियाँ हैं. जी हाँ! ये सिद्ध हो चुका है इनमें जान है, एहसास है जीने की चाह है, उमंग और तरंग है, फर्क सिर्फ इतना है कि यह हरकत के लिए हाथ पाँव नहीं रखते, प्रतिवाद के लिए ज़बान नहीं रखते, खामोश खड़े रहते हैं आप कुल्हाडी से इनका काम तमाम कर दीजिए, उफ़ तक नहीं करेंगे. पालक को जड़ से उखाड़ लीजिए, चाकू से टुकड़े टुकड़े कर दीजिए, देगची में डाल कर आग में भून डालिए, वह बेज़बान कोई एहतेजाज नहीं करेगी, वर्ना उसे तो अभी पूलना था, फजा में लहलहाना था, अपने गर्भ में अपने बच्चों के बीज पालने थे. बहुत से बीजों से, फिर धरती पर उसकी अगली नस्लों जा जनम होता जिनकी आप ने ह्त्या कर दी. बनस्पति आपसे बच भी गई तो उसे जानवर कहाँ बख्शने वाले है. वह तो उनकी खुराक है उस पर कुदरत ने उनको पूरा पूरा हक दिया हवा है. घोड़ा घास से यारी नहीं कर सकता. हम बनस्पति को बोते हैं सींचते, पालते, पोसते हैं, किस लिए कि इन पर हमारी खुराक का हक हमें हासिल है. खनिजों की तरह गालिबन इनकी भी दिली आरजू होती होगी कि यह भी किसी के काम आएँ. खनिजों पर बनास्पतियों का जन्म सिद्ध अधिकार के साथ साथ पशु जीव और मानव जाति का भी है। बनास्पतियों पर पशु जीव और मानव जाति का जन्म सिद्ध अधिकार होता है, इन दोनों हकीक़तों के कायल अगर आप हो चुके हों तो हम तीसरे पर आते हैं.
बनास्पतियों के बाद अब बारी है जीव धारी पशु पक्षियो की जिन पर कुदरत ने अशरफुल मख्लूकात इंसान को जन्म सिद्ध अधिकार दिया है कि वह उनका दोहन और भोजन करे, मगर हाँ! आदमी को पहले आदमी से अशरफुल मख्लूकात इंसान बन्ने की ज़रुरत है. जानवरों को तंदुरुस्त और दोस्त बना कर रखने की ज़रुरत है, उन्हें इतना प्यार दें कि वह आप की तरफ से निश्चिन्त हों और उनको अचेत करके ही मारें उनकी चेतना में इंसानों की तरह कोई प्लानिग नहीं है, क्षनिक वर्तमान ही उनकी मुकम्मल खुशी है. उनके वर्तमान का खून मत करिए. पेड़ पौदे भाग कर जान बचने में असमर्थ होते हैं और जानवर, जीव जंतु समर्थ मगर किसे मालूम है कि मरने में किसे कष्ट ज्यादह होता है? हम अपने तौर पर समझते हैं कि जानवर चूंकि प्रतिरोध ज्यादह करते हैं और पेड़ खड़े खड़े खुद को कटवा लेते हैं इस लिए जानवर पर दया करना चाहिए मगर शायद यह हमारी भूल है. आदमी आदमी का कत्ल कर दे तो जुर्म सजाए मौत तक तक की हो सकती है क्यूँ कि वह जानवर से दो क़दम आगे है, यानि फरियाद करने के लिए उसके पास जुबान है और अपने हम जाद को बचाने की अकली दलील. गहरे से सोचें तो खून दरख्त का हो , हैवान का हो और चाहे इंसान का हो सब खून है, हमने अपनी सुविधा के अनुसार इसे पाप पुन्य का दर्जा दे रखा है.
जानवरों को इंसानी गिजा अगर न बनाया जाय तो यह स्वयम उन पर ज़ुल्म है कि इस तरह उनका भला नहीं हो सकता और एक दिन वह खात्में की कगार पर आ जाएँगे, नमूने के तौर पर अजायब घरों की जीनत भर रह पाएंगी, जैसे गायों की दशा भारत में हो रही है. दूध पूत के बाद एक गाय का अंत उसके ब्योसयिक अंगों पर ही निर्भर करता है. जिस देश में आदमीं को दो जून की रोटी न मिलती हो वहां बूढी गाय को बिठा कर कौन खिलएगा. शिकागो में दूध की एक निश्चित मात्रा के बाद लाखों गाएँ हर महीने काट दी जाती हैं।
खाद्य बकरियाँ साल में दो बच्चे हैं और उनके गोश्त से दुकानें अटी हुई हैं और अखाद्य कुतियाँ साल में छ छ बच्चे देती हैं मगर उनमें एकाध ही बच पाते हैं. नॉन फर्टलाइज़ अण्डों एवं ब्रायलर्स (मुर्ग) ने इंसानी खुराक का मसला हल करने में काफी योगदान किया है जो कि नई ईजाद है .
नारवे जैसे देशों में शाकाहार बहुत अस्वाभाविक है, उनको इंपोर्ट करना पड़ेगा, शायद उनको सूट भी न करे और उनको पसंद भी न आए, इस लिए उनकी पहली पसंद बारह सिंघा है और दूसरी पसंद भी बारह सिघा और आखरी पसंद भी बारह सिंघा.
एक दिन आएगा कि मानव समाज की मानवता अपने शिखर विन्दु को छुएगी जब हिष्ट-पुष्ट एवं निरोग मानव शरीर अपने अंत पर प्रकृति को अपने ऊपर लदे क़र्ज़ को वापस करता हुवा इस दुनिया से विदा होगा. जब उसका शारीर मशीन के हवाले कर दिया जाएगा जिसको कि वह ऑटो मेटिक विभाजित करके महत्त्व पूर्ण अंग को मेडीकल साइंस के हवाले कर देगी, मांस को एनिमल्स, बर्डस और फिशेस फ़ूड के प्रोसेस में मिला दिया जाएगा तथा हड्डियों को यूरिया बना कर बनास्प्तियों का क़र्ज़ लौटाया जाएगा. न मरने में सात मन कारामद लकडी जल कर बर्बाद होगी, न एक पीपा घी, न सैकडों लोगों के हजारों वर्किंग आवर्स बर्बाद होंगे, न बाईस गज़ नए कपडे का कफ़न लगेगा और न कबरें बनेंगी जो जिन्दों को मयस्सर नहीं, न ताबूत की कीमत जाया होगी और न मुर्दे के तन पर सजा हुवा उसका कीमती लिबास ज़मीन में गडेगा. तमाम रस्मो-रिवाज यह मानवता का शिखर विदु दफ़्न कर देगा.(शाकाहारियों से क्षमा के साथ)
नारवे जैसे देशों में शाकाहार बहुत अस्वाभाविक है, उनको इंपोर्ट करना पड़ेगा, शायद उनको सूट भी न करे और उनको पसंद भी न आए, इस लिए उनकी पहली पसंद बारह सिंघा है और दूसरी पसंद भी बारह सिघा और आखरी पसंद भी बारह सिंघा.
एक दिन आएगा कि मानव समाज की मानवता अपने शिखर विन्दु को छुएगी जब हिष्ट-पुष्ट एवं निरोग मानव शरीर अपने अंत पर प्रकृति को अपने ऊपर लदे क़र्ज़ को वापस करता हुवा इस दुनिया से विदा होगा. जब उसका शारीर मशीन के हवाले कर दिया जाएगा जिसको कि वह ऑटो मेटिक विभाजित करके महत्त्व पूर्ण अंग को मेडीकल साइंस के हवाले कर देगी, मांस को एनिमल्स, बर्डस और फिशेस फ़ूड के प्रोसेस में मिला दिया जाएगा तथा हड्डियों को यूरिया बना कर बनास्प्तियों का क़र्ज़ लौटाया जाएगा. न मरने में सात मन कारामद लकडी जल कर बर्बाद होगी, न एक पीपा घी, न सैकडों लोगों के हजारों वर्किंग आवर्स बर्बाद होंगे, न बाईस गज़ नए कपडे का कफ़न लगेगा और न कबरें बनेंगी जो जिन्दों को मयस्सर नहीं, न ताबूत की कीमत जाया होगी और न मुर्दे के तन पर सजा हुवा उसका कीमती लिबास ज़मीन में गडेगा. तमाम रस्मो-रिवाज यह मानवता का शिखर विदु दफ़्न कर देगा.(शाकाहारियों से क्षमा के साथ)
''और हमने इसी तरह उसको अरबी कुरआन नाज़िल किया है और हमने उसमें तरह तरह की चेतावनियाँ दी हैं. ताकि वह लोग डर जाएँ या यह उनके लिए किसी कद्र समाझ पैदा कर दे. - - - और आप दुआ कीजिए की ऐ मेरे रब मेरा इल्म बढ़ा दीजिए. और इस से पहले हम आदम को एक हुक्म दे चुके थे, सो उनसे गफ़लत हो गई हमने इन में पुखतगी न पाई, जब कि हमने फरिश्तों को इरशाद फ़रमाया था कि आदम को सजदा करो. - - -
शुरू हो जाती है आदम और इब्लीस की दास्तान जो कुरआन में बार बार दोहराई गई है.
रूरह ताहा २० _ आयत (११३-१२३)
मुहम्मद बार बार कहते हैं कि वह क़यामत की (मुख्तलिफ ड्रामे बाज़ी करके) लोगों को डरा रहा हूँ, डराने वाला ज़ाहिर है झूठा होता है, मुसलमान इसी बात को ही अगर समझ लें तो उनकी इसमें बेहतरी है, मगर इतना ही काफी नहीं है, क्यूं कि उम्मी के पास शब्द भंडार नहीं थे कि वह ''डराने'' की जगह आगाह या तंबीह लफ़्ज़ों को अपने कलाम में लाते. इस से साबित होता है कि मुहम्मद अव्वल दर्जे के फ़ासिक़ और दरोग़ गो थे. कुरआन के एक एक हर्फ़ झूठे हैं जब तक इस बात पर मुसलमान ईमान नहीं लाते, वह सच्चे मोमिन नहीं कहलाएंगे.
कुरआन अरबी में है, मुनासिब था कि ये अरबियों तक सीमित रहता, वह रहते कुँए के मेंढक, मगर यह तो तलवार के ज़ोर और ओलिमा के प्रोपोगंडा से पूरी दुन्या में मोहलिक बीमारी बन कर फ़ैल गया. हमारे पूर्वजों के वंशजों पर इसका कुप्रभाव ऐसा पड़ा कि अपने रंग में रंगे भारत टुकड़ों में बट गया, अफगानिस्तान में शांति प्रिय बुद्धिस्ट तालिबानी बन गए, आर्यन की मुक़द्दस सरज़मीन नापाक(किस्तान) हो गई, साथ साथ आधा बंगाल भी इस्लाम के भेट चढ़ गया. अगर इस्लाम का स्तित्व न होता तो भारत हिंदुत्व ग्रस्त कभी भी न होता, कोई महान ''माओज़े तुंग'' यहाँ भी पैदा होता जो धर्मों की अफीम से भारत को मुक्त करता और आज हम चीन से आगे होते.मुसलमान कौम, कौमों में रुवाई और ज़िल्लत उठा रही है, इबादत और दुवाओं के फ़रेब में आकर. मुन्जमिद कौम की कोड़ों की मार और संगसारी सिंफे-नाज़ुक पर, ज़माना इनकी तस्वीरें देख रहा है, यह ओलिमा अंधे हो कर इस्लाम की तबलीग में लगे हुए है क्यूंकि मुसलामानों की दुर्दशा ही इनकी खुराक है.''रोज़-हश्र अल्लाह गुनेहगार मुर्दों को कब्र से अँधा करके उठाएगा और कहेगा कि तूने मेरे हुक्म को नहीं, मैं भी तेरे साथ कोई रिआयत नहीं करूंगा. अल्लाह कहता है क्या इस से भी लोगों को इबरत नहीं मिलती कि इससे पहले कई गिरोहों को हमने हालाक कर दिया, (मूसा द्वारा बर्बाद और वीरान की गई बस्तियों का हवाला देते हुए) कहता कि क्या इनको वह दीखता नहीं कि यहाँ लोग चलते फिरते थे. मुहम्मद समझाते हैं कि अगर अल्लाह ने अज़ाब के लिए एक दिन मुक़ररर न किया होता तो अजाब आज भी नाज़िल हो जाता. अल्लाह बार बार मुहम्मद को तसल्ली देता है कि आप सब्र कीजिए जल्दी न मचाइए और दुखी मत होइए. अपने रब की हम्द के साथ इसकी तस्बीह कीजिए. ख़बरदार! खुश हल लोगों की तरफ नज़र उठा कर भी न देखिए कि वह उनके साथ मेरी आज़माइश है. आप के रब का इनआम तो आखरत है. समझाइए अपने साथियों को कि नमाज़ पढ़े, और खुद भी पाबन्दी रखिए. अल्लाह कहता है - - - ''''हम आप से मुआश कमवाना नहीं चाहते मुआश तो आप को हम देंगे.और बेतर अंजाम तो परहेज़ गारी है.'' (१३०) अवाम जब मुहम्मद से पैगम्बरी की कोई निशानी चाहते हैं तो जवाब होता है, पहले के नबियों और उन पर उतरी किताबों की बातें क्या नहीं कान पडीं. कहते हैं हम सब आक़बत की दौड़ में हैं देखना है कि कौन राहे रास्त पर है किसको मंजिले मक़सूद मिलती है.
रूरह ताहा २० _ आयत (११४-२३५)इतना ज़ालिम अल्लाह ? अगर अपने बन्दों को अँधा कर के उठाएगा तो वह मैदाने-हश्र में पहुचेंगे कैसे? इस क़यामती ड्रमों ने तो मुसलमानों को इतना बुज़दिल बना दिया है कि वह दुन्या में सबसे पीछे खड़े होकर अपने अल्लाह से दुआओं में मसरूफ हैं, उनके अक्ल में ये बात नहीं घुसती कि दुआ का फ़रेब इनको पामाल किए हुए है.
मुसलमानों! तुमहारी खुशहाली न अल्लाह को गवारा है, न तुमहारे मफरूज़ा पैगम्बर को, न इन हरम खोर इस्लामी एजेंटों को .
देखो आँखें खोल कर तुम्हारे अल्लाह को अपनी मशक्क़त से रोज़ी रोटी गवारा नहीं? वह अपने रसूल से कहता है,''हम आप से मुआश कमवाना नहीं चाहते मुआश तो आप को हम देंगे.और बेतर अंजाम तो परहेज़ गारी है.'' (१३०)तरक्की की जड़ है अनथक मेहनत मगर इस्लाम में इसकी तबलीग कहीं भी नहीं है, जंगों से मिला माले गनीमत जो मुयस्सर है.मुहम्मद फरमाते हैं - - -'' अम्लों में तीन अमल अफज़ल हैं -(हदीस-बुखारी २५)
* १-अल्लाह और उसके रसूल पर इमान रखना.
* २-अल्लाह की रह में जेहाद करना.
* ३- हज करना.देखें कि बेअमली को वह अमल बतलाते है. १-ये आस्था है, अमल या कर्म नहीं.
जेहाद ही को मुहम्मद ज़रीआ मुआश कहते है. कई हदीसें इसकी गवाह हैं.
तीर्थ यात्रा भी कोई अमल नहीं अरबियों की परवरिश का ज़रीआ मुहम्मद ने कायम किया है.
मुसलमानों !
मेरी तहरीर में आपको कहीं भी कोई खोट नज़र आती है? मेरे इन्केशाफत (उदघोषण) में कहीं भी कोई ऐसा नुक्ता-ऐ-रूपोश आप पकड़ पा राहे हैं जो आप के खिलाफ हो? हम समझते हैं कि मेरी बातों से आप परेशान होते होंगे और दुखी भी. मेरी इमान गोई आपको आपरेट कर रही है, ज़ाहिर है आपरेशन में कुछ तकलीफ तो होती है. मैं क़ुरआनी मरज़ से आपको नजात दिलाना चाहता हूँ, अपनी नस्लों को मोमिन की ज़िदगी दीजिए, ज़माना उनकी पैरवी में होगा, फितरत के आगोश में बेबोझ आबाद होंगे।
शुरू हो जाती है आदम और इब्लीस की दास्तान जो कुरआन में बार बार दोहराई गई है.
रूरह ताहा २० _ आयत (११३-१२३)
मुहम्मद बार बार कहते हैं कि वह क़यामत की (मुख्तलिफ ड्रामे बाज़ी करके) लोगों को डरा रहा हूँ, डराने वाला ज़ाहिर है झूठा होता है, मुसलमान इसी बात को ही अगर समझ लें तो उनकी इसमें बेहतरी है, मगर इतना ही काफी नहीं है, क्यूं कि उम्मी के पास शब्द भंडार नहीं थे कि वह ''डराने'' की जगह आगाह या तंबीह लफ़्ज़ों को अपने कलाम में लाते. इस से साबित होता है कि मुहम्मद अव्वल दर्जे के फ़ासिक़ और दरोग़ गो थे. कुरआन के एक एक हर्फ़ झूठे हैं जब तक इस बात पर मुसलमान ईमान नहीं लाते, वह सच्चे मोमिन नहीं कहलाएंगे.
कुरआन अरबी में है, मुनासिब था कि ये अरबियों तक सीमित रहता, वह रहते कुँए के मेंढक, मगर यह तो तलवार के ज़ोर और ओलिमा के प्रोपोगंडा से पूरी दुन्या में मोहलिक बीमारी बन कर फ़ैल गया. हमारे पूर्वजों के वंशजों पर इसका कुप्रभाव ऐसा पड़ा कि अपने रंग में रंगे भारत टुकड़ों में बट गया, अफगानिस्तान में शांति प्रिय बुद्धिस्ट तालिबानी बन गए, आर्यन की मुक़द्दस सरज़मीन नापाक(किस्तान) हो गई, साथ साथ आधा बंगाल भी इस्लाम के भेट चढ़ गया. अगर इस्लाम का स्तित्व न होता तो भारत हिंदुत्व ग्रस्त कभी भी न होता, कोई महान ''माओज़े तुंग'' यहाँ भी पैदा होता जो धर्मों की अफीम से भारत को मुक्त करता और आज हम चीन से आगे होते.मुसलमान कौम, कौमों में रुवाई और ज़िल्लत उठा रही है, इबादत और दुवाओं के फ़रेब में आकर. मुन्जमिद कौम की कोड़ों की मार और संगसारी सिंफे-नाज़ुक पर, ज़माना इनकी तस्वीरें देख रहा है, यह ओलिमा अंधे हो कर इस्लाम की तबलीग में लगे हुए है क्यूंकि मुसलामानों की दुर्दशा ही इनकी खुराक है.''रोज़-हश्र अल्लाह गुनेहगार मुर्दों को कब्र से अँधा करके उठाएगा और कहेगा कि तूने मेरे हुक्म को नहीं, मैं भी तेरे साथ कोई रिआयत नहीं करूंगा. अल्लाह कहता है क्या इस से भी लोगों को इबरत नहीं मिलती कि इससे पहले कई गिरोहों को हमने हालाक कर दिया, (मूसा द्वारा बर्बाद और वीरान की गई बस्तियों का हवाला देते हुए) कहता कि क्या इनको वह दीखता नहीं कि यहाँ लोग चलते फिरते थे. मुहम्मद समझाते हैं कि अगर अल्लाह ने अज़ाब के लिए एक दिन मुक़ररर न किया होता तो अजाब आज भी नाज़िल हो जाता. अल्लाह बार बार मुहम्मद को तसल्ली देता है कि आप सब्र कीजिए जल्दी न मचाइए और दुखी मत होइए. अपने रब की हम्द के साथ इसकी तस्बीह कीजिए. ख़बरदार! खुश हल लोगों की तरफ नज़र उठा कर भी न देखिए कि वह उनके साथ मेरी आज़माइश है. आप के रब का इनआम तो आखरत है. समझाइए अपने साथियों को कि नमाज़ पढ़े, और खुद भी पाबन्दी रखिए. अल्लाह कहता है - - - ''''हम आप से मुआश कमवाना नहीं चाहते मुआश तो आप को हम देंगे.और बेतर अंजाम तो परहेज़ गारी है.'' (१३०) अवाम जब मुहम्मद से पैगम्बरी की कोई निशानी चाहते हैं तो जवाब होता है, पहले के नबियों और उन पर उतरी किताबों की बातें क्या नहीं कान पडीं. कहते हैं हम सब आक़बत की दौड़ में हैं देखना है कि कौन राहे रास्त पर है किसको मंजिले मक़सूद मिलती है.
रूरह ताहा २० _ आयत (११४-२३५)इतना ज़ालिम अल्लाह ? अगर अपने बन्दों को अँधा कर के उठाएगा तो वह मैदाने-हश्र में पहुचेंगे कैसे? इस क़यामती ड्रमों ने तो मुसलमानों को इतना बुज़दिल बना दिया है कि वह दुन्या में सबसे पीछे खड़े होकर अपने अल्लाह से दुआओं में मसरूफ हैं, उनके अक्ल में ये बात नहीं घुसती कि दुआ का फ़रेब इनको पामाल किए हुए है.
मुसलमानों! तुमहारी खुशहाली न अल्लाह को गवारा है, न तुमहारे मफरूज़ा पैगम्बर को, न इन हरम खोर इस्लामी एजेंटों को .
देखो आँखें खोल कर तुम्हारे अल्लाह को अपनी मशक्क़त से रोज़ी रोटी गवारा नहीं? वह अपने रसूल से कहता है,''हम आप से मुआश कमवाना नहीं चाहते मुआश तो आप को हम देंगे.और बेतर अंजाम तो परहेज़ गारी है.'' (१३०)तरक्की की जड़ है अनथक मेहनत मगर इस्लाम में इसकी तबलीग कहीं भी नहीं है, जंगों से मिला माले गनीमत जो मुयस्सर है.मुहम्मद फरमाते हैं - - -'' अम्लों में तीन अमल अफज़ल हैं -(हदीस-बुखारी २५)
* १-अल्लाह और उसके रसूल पर इमान रखना.
* २-अल्लाह की रह में जेहाद करना.
* ३- हज करना.देखें कि बेअमली को वह अमल बतलाते है. १-ये आस्था है, अमल या कर्म नहीं.
जेहाद ही को मुहम्मद ज़रीआ मुआश कहते है. कई हदीसें इसकी गवाह हैं.
तीर्थ यात्रा भी कोई अमल नहीं अरबियों की परवरिश का ज़रीआ मुहम्मद ने कायम किया है.
मुसलमानों !
मेरी तहरीर में आपको कहीं भी कोई खोट नज़र आती है? मेरे इन्केशाफत (उदघोषण) में कहीं भी कोई ऐसा नुक्ता-ऐ-रूपोश आप पकड़ पा राहे हैं जो आप के खिलाफ हो? हम समझते हैं कि मेरी बातों से आप परेशान होते होंगे और दुखी भी. मेरी इमान गोई आपको आपरेट कर रही है, ज़ाहिर है आपरेशन में कुछ तकलीफ तो होती है. मैं क़ुरआनी मरज़ से आपको नजात दिलाना चाहता हूँ, अपनी नस्लों को मोमिन की ज़िदगी दीजिए, ज़माना उनकी पैरवी में होगा, फितरत के आगोश में बेबोझ आबाद होंगे।
मोमिन को समझने की कोशिश कीजिए.
जीम 'मोमिन' निसरुल-ईमान
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उफ़…॥
ReplyDeleteमांसाहार का अतिरेक,मानव मांस तक ले गये?,कुछ लकडियां व कफ़न बचाने के चक्कर में? जबकि सभी चीजें प्रकृति से मिलती है और पुनः उसमें विलिन होती है चाहे कोई भी तरिका अपनाएं।
हर आहार में जीव हिंसा होनें का तात्पर्य यह नहिं कि उच्च्तम,क्रूर हिंसाजनक आहार अपना लिया जाय?।
घोर असहमत आपसे,आपकी विचारधारा से!!!
अब शायद आपकी विचारधारा स्पष्ट हो चली है……।
ReplyDelete"अफगानिस्तान में शांति प्रिय बुद्धिस्ट तालिबानी बन गए, आर्यन की मुक़द्दस सरज़मीन नापाक(किस्तान) हो गई, साथ साथ आधा बंगाल भी इस्लाम के भेट चढ़ गया. अगर इस्लाम का स्तित्व न होता तो भारत हिंदुत्व ग्रस्त कभी भी न होता, कोई महान ''माओज़े तुंग'' यहाँ भी पैदा होता जो धर्मों की अफीम से भारत को मुक्त करता और आज हम चीन से आगे होते"
खैर कुरआन की असामान्य बातों पर विवेचन करते रहिये।
मानव मांस को एनिमल्स, बर्डस और फिशेस फ़ूड के प्रोसेस में मिला दिया जाएगा, प्रकृति के लदे क़र्ज़ को वापस करने के लिये?
ReplyDeleteयह आपकी सोच? और उसे कहते है मानवता का शिखर बिंदु?
घृणित मानसिकता।
शाकाहारियों की छोडिये,मांसाहारियों के लिये भी अक्षम्य सोच है।
अब तक आप लोग अच्छी तरह से समझ गए होंगे कि सत्य गौतम ,नवल किशोर और कामदर्शी एक ही व्यक्ति है, क्योंकि यह तीनों एक ही किताब "हिन्दू ग्रन्थ"से हवाले copy कर रहे हैं यह किताब अम्बेडकर ने लिखी थी.अंगरेजी में इसका नाम "riddle in hinduism "है यह तीनों फर्जी नाम मुहम्मद उमर कैरानवी के हैं ."impact "का पूरा नाम "indian muslim progressive activist "है यह दल "indian mujaahidin "से संबधित है .कैरानावी और सलीम खान इसके local सरगना हैं .बाक़ी सब सदस्य हैं, जिनमें असलम कासमी, अनवर जमाल, अयाज अहमद, एजाज अहमद, जीशान जैदी आदि शामिल हैं. .इनके साथ कुछ औरतें भी हैं .इनका मुख्य काम दुश्मनों को सूचना देना है. कैरानवी का गिरोह धर्मं परिवर्तन कराना, आतंकवादियों को और घुसपैठ करने वालों को पनाह देना है और उनका सहयोग करना है. blogging तो इनका बाहरी रूप है. ब्लोगिंग के माध्यम से ये लोग अपनी जेहादी मानसिकता के लोग तलाश रहे हैं.
ReplyDeleteसायबर यज़ीद कैरानवी,
ReplyDeleteले सुन अपने अल्लाह, कुरआन और इस्लाम की हक़िकत॥………………
इब्लीस शैतान नहिं, वह पहला क्रांतिकारी था,जिसने अल्लाह के दोगले आदेश को मानने से इन्कार कर दिया था। अल्लाह हमेशा कहता था,मेरे सिवाय किसी को भी सज़दा न करो,यह शिर्क है,और आदम को पैदा कर उसे भी सज़दा करने का दोगला हुक्म फ़रिस्तों को फ़रमा दिया।
सभी डरपोक फ़रिस्तों ने मान लिया, पर इब्लीस नें इस दोगलेपन का विरोध किया। आज भी वह शैतान शब्द के अन्याय पूर्ण ठप्पे को सह रहा है।
ऐसा मनमौजी अल्लाह यदि आखरत के दिन अपने नियम बदल दे,और जिसने भी लाइलाह् इल्ल………॥ किया जह्न्नुम में झोक दे।
सायबर यज़ीद कैरानवी,
ReplyDeleteले सुन अपने अल्लाह, कुरआन और इस्लाम की हक़िकत॥………………
हज़रात इब्राहीम एक परदेसी थे, बद हाली और परेशानी की हालत में अपनी बीवी सारा को किसी मजबूरी के तहत अपनी बहन बतला कर मिसरी बादशाह फ़िरौन की पनाह में रहा करते थे. तौरेत के मुताबिक सारा हसीन थी और बादशाह कि मंजूरे नज़र हो कर उसके हरम में पनाह पा गई थी. सच्चाई खुलने पर हरम से बहार की गई और साथ में इब्राहीम और उनका भतीजा लूत भी. उसके बाद दोनों चचा भतीजों ने मवेशी पालन का पेशा अपनाया और कामयाब गडरिया हुए.बनी इस्राईल की शोहरत की वजेह तारीख़ में फिरअना के वज़ीर यूसुफ़ की ज़ात से हुई. युसूफ इतना मशहूर हुवा कि इसके बाप दादों का नाम तारिख में आ गया, वर्ना याकूब, इशाक , इस्माईल, और इब्राहीम जैसे मामूली लोगों का नामो निशान भी कहीं न होता.मानव की रचना कालिक अवस्था में इब्राहीम को जो होना चाहिए था वोह थे, न इतने सभ्य कि उन्हें पैगाबर या अवतार कहा जाए, ना ही इतने बुरे कि जिन्हें अमानुष कहा जाय. मानवीय कमियाँ थीं उनमें कि अपनी बीवी को बहन बना कर बादशाह के शरण में गए और अपनी धर्म पत्नी को उसके हवाले किया. दूसरा उनका जुर्म ये था कि अपनी दूसरी गर्भ वती पत्नी हाजरा को पहली पत्नी सारा के कहने पर घर से निकल बाहर कर दिया था, जो कि रो धो कर सारा से माफ़ी मांग कर वापस घर आई. तीसरा जुर्र्म था कि दोबारा इस्माईल के पैदा हो जाने के बाद हाजरा को मय इस्माईल के घर से दूर मक्का के पास एक मरु खंड में मरने के लिए छोड़ आए. उनका चौथा बड़ा जुर्म था सपने के वहम को साकार करना और अपने बेटे इशाक को अल्लाह के नाम पर कुर्बान करने का नाटक करना, जो आज मुसलमानों का अंध विश्वास बन गया है और हजारो जानवर हर साल मारे जाते हैं.
सायबर यज़ीद कैरानवी,
ReplyDeleteले सुन अपने अल्लाह, कुरआन और इस्लाम की हक़िकत॥………………
हज़रात इब्राहीम अलैहिस्सलाम का पहला जुर्म और झूट कि उन्होंने अपनी बीवी सारा को बादशाह के सामने अपनी बहेन बतलाया और उसको बादशाह की खातिर हरम के हवाले किया.
हज़रात इब्राहीम अलैहिस्सलाम का दूसरा जुर्म कि अपनी बीवी हाजरा और बच्चे इस्माईल को दूर बिया बान सेहरा में मर जाने के छोड़ आए.
हज़रात इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर तीसरा जुर्म झूट का कि उन्हों ने अपने बेटे इस्हाक़ को हलाल किया था, दर असल उन्हों ने हलाल तो किया था भेड़ा ही मगर झूट की ऐसी बुन्याद डाली की सदियों तक उस पर ख़ूनी जुर्म का अमल होता रहा. खुद मुहम्मद के दादा अब्दुल मुत्तलिब मनौती की बुन्याद पर मुहम्मद के बाप अब्दुल्ला को क़ुर्बान करने जा रहे थे मगर चाचाओं के आड़े आने पर सौ ऊँटों की कुर्बानी देकर अब्दुल्ला की जान बची. सोचिए कि हज़रात इब्राहीम अलैहिस्सलाम के एक झूट पर हजारों सालों में कितनी जानें चली गई होंगी. हज़रात इब्राहीम अलैहिस्सलाम झूट बोले, इस्हाक़ का भेड़ा बन जाना गैर फितरी बात है, अगर अल्लाह मियाँ भी रूप धारण करके, आकर गवाही दें तो मेडिकल साइंस इस बात को नहीं मानेगी
सायबर यज़ीद कैरानवी,
ReplyDeleteले सुन अपने अल्लाह, कुरआन और इस्लाम की हक़िकत॥………………
मुहम्मदी अल्लाह अपनी कुरानी आयातों की खामियों की जानकारी देता है कि इन में कुछ साफ़ साफ़ हैं और यही क़ुरआन की धुरी हैं और कुछ मशकूक हैं जिनको शर पसंद पकड़ लेते हैं. इस बात की वज़ाहत आलिमान क़ुरआन यूँ करते हैं कि क़ुरआन में तीन तरह की आयतें हैं---
१- अदना (जो साफ़ साफ़ मानी रखती हैं)
२- औसत (जो अधूरा मतलब रखती हैं)
३- तवास्सुत ( जो पढने वाले की समझ में न आए और जिसको अल्लाह ही बेहतर समझे।)
सवाल उठता है कि एक तरफ़ दावा है हिकमत और हिदायते नेक से भरी हुई क़ुरआन अल्लाह की अजीमुश्शान किताब है और दूसरी तरफ़ तवस्सुत और औसत की मजबूरी ? अल्लाह की मुज़बज़ब बातें, एहकामे इलाही में तजाद, हुरूफ़े मुक़त्तेआत का इस्तेमाल जो किसी मदारी के छू मंतर की तरह लगते हैं। दर अस्ल कुरआन कुछ भी नहीं, मुहम्मद के वजदानी कैफ़ियत में बके गए बड का एह मज्मूआ है। इन में ही बाज़ बातें ताजाऊज़ करके बे मानी हो गईं तो उनको मुश्तबाहुल मुराद कह कर अल्लाह के सर हांडी फोड़ दिया है। वाज़ह हो कि जो चीजें नाज़िल होती हैं वह बला होती हैं. अल्लाह की आयतें हमेशा नाज़िल हुई हैं. कभी प्यार के साथ बन्दों के लिए पेश नहीं हुईं. कोई कुरानी आयत इंसानी ज़िन्दगी का कोई नया पहलू नहीं छूती, कायनात के किसी राज़ हाय का इन्क्शाफ़ नहीं करती, जो कुछ इस सिलसिले में बतलाती है दुन्या के सामने मजाक बन कर रह जाता है. बे सर पैर की बातें पूरे कुरआन में भरी पड़ी हैं, बसकी कुरआन की तारीफ, तारीफ किस बात की तारीफ उस बात का पता नहीं. इस की पैरवी मुल्ला, मौलवी, ओलिमाए दीन करते हैं जिन की नक़ल मुस्लमान भी करता है. आम मुस्लमान नहीं जनता की कुरआन में क्या है खास जो कुछ जानते हैं वह सोचते है भाड़ में जाएँ हम बचे रहें इन से यही काफी है।
क़ुरआन में ताजाद ((विरोधाभास) का यह सब से बड़ा निशान है. दीने इस्लाम में तो इतनी ज़बरदस्ती है कि इसे मानो या जज्या दो या गुलामी कुबूल करो या तो फिर इस के मुंकिर होकर जान गंवाओ.
"दीन में ज़बरदस्ती नहीं."ये बात उस वक़्त कही गई थी जब मुहम्मद की मक्का के कुरैश से कोर दबती थी. जैसे आज भारत में मुसलामानों की कोर दब रही है, वर्ना इस्लाम का असली रूप तो तालिबानी ही है.
(सूरह अलबकर-२ तीसरा परा तिरकर रसूल आयत 256)
सायबर यज़ीद कैरानवी,
ReplyDeleteकैरानावी मुस्लिम ब्लोगर गैंग का सरगना है. एक बहुरूपिये की तरह कई नामों से फर्जी ब्लॉग बना रखे है ,जैसे इम्पेक्ट .सत्यागौतम और नवलकिशोर आदि .तुझे एक ऎसी बीमारी लग गइ है कि यह खुद को इस्लाम का झंडा बरदार समझाने लगा है .और समझता है बाक़ी के सारे लोग मूर्ख हैं ,और तूं ही इस्लाम का एकमात्र विद्वान् है.इसलिए तूं इब्लीस की तरह किसी भी ब्लॉग में प्रकट हो जाता है ,और अपने गिनेचुने मुद्दों को लेकर किसी को भी चेलेंज करता रहता है .इसके पीछे इसके आका हैं ,जो देश के बाहर से इसको निर्देश देते रहते हैं .तुझ पाखंडी को मुंहतोड़ जवाब नहीं दिया गया तो तूं और भी उद्दंड हो जाएगा ,और यह समझाने लगेगा कि कोई इसका जवाब देने वाला नहीं है.और तूं जो बकवास करता है वह सच है .लेकिन तूं सफ़ल होगा नहिं .
ले नोट कर अपने चेलेंजो के जवाब……………।
अल्लाह का चैलेंज पूरी मानव-जाति को
(साल्लाह अपनी ही पैदा की गई मानव-जाति को चैलेंज ठोकता है)
अल्लाह का चैलेंज है कि कुरआन में कोई रद्दोबदल नहीं कर सकता
(कितने सबूत चाहिए,चल अल्लाह को बोल एक टिप्पणी मार यहां)
अल्लाह का चैलेंजः कुरआन में विरोधाभास नहीं
(साल्लाह विरोध का 'आभास' क्या, प्रमाणिक विरोध ही विरोध दर्ज़ है)
अल्लाह का चैलेंजः आसमानी पुस्तक केवल चार
(साल्लाह कभी कहता है,बहुत सी भेजी,कभी चार,तो चारों को सही तो मान )आसमानी नहिं हरे रंग की दिखती है।
अल्लाह का चैलेंज वैज्ञानिकों को सृष्टि रचना बारे में
(साल्लाह कभी वैज्ञानिकों की बातों का सहारा लेता है,कभी वैज्ञानिकों के विरोध में खडा होता है,तेरा क्या भरोसा?)
अल्लाह का चैलेंज: यहूदियों (इसराईलियों) को कभी शांति नहीं मिलेगी
(साल्लाह तूं ही पैदा करे, जीवित भी रखे और कहे कभी शांति नहीं मिलेगी। जब तक यहूदी इस ज़मी पर रहेंगे, अल्लाह तुझे शांति नहीं मिलेगी )
सायबर यज़ीद कैरानवी,
ReplyDeleteले सुन अपने अल्लाह, कुरआन और इस्लाम की हक़िकत॥………………
और
देख तेरा शागिर्द जमाल तेरे बारे में क्या सोचता है…………
कैरानवी तो वह मेरी ज्ञान वाटिका के ख़रगोश हैं, उनकी उछल-कूद से हमारा दिल भी बहलता है और कुरआन की तो…होती रहती है। कैरानवी को जवाब देने वाले तो सदा वहां मौजूद रहते हैं। कभी कभी मैं खुद भी पहुंच जाता हूं ताकि कैरानवी का जाल में फ़ंसा रहे। और लगे रहें और उन्हें देखकर दूसरे भी प्रेरित हों।
केवल मानने के लिये तो मोटे तौर की जानकारी से भी काम चल जाता है लेकिन जिस विचार में कोई कमी न हो उसमें दोष ढूंढने के लिये बहुत गहराई तक जाना पड़ता है । जब आदमी गहराई में उतर जाता है तो सत्य देर सवेर उसपर प्रकट हो जाता है । हमारी पोल भी सत्य देर सवेर खुलनी ही है। और हम तो फ़ंसे हुए है।साला पैसा आना बंद हो जायेगा।
-डा जमाल
सुज्ञ जी
ReplyDeleteबहुत जल्दी बद दिल हो गए और राय दे दी की, ''खैर कुरआन की असामान्य बातों पर विवेचन करते रहिये।'' यानी यही आप को अच्छा लगता है.
मेरी विचारधारा में ईमान दारी के साथ आइए, न हन्दू बन कर न मुसलमान बन कर. आने वाला समय मेरे वर्णित शिखर वंदू को ही अपनाने वाला है.
मैं ने कौन सी अनुचित बात की कि मानवता को पसंद न आई. भारतीय परिवेश से निकल कर वैशिक सीमा पर आइए तब आप मुझे समझ सकेंगे.
'मोमिन' साहब,
ReplyDeleteजहां पर हम आपके विचारों से सहमत नहिं हमें पुरा अधिकार बनता है,हम विरोध करें।
मैं कभी इस मजे से आपके ब्लोग पर नहिं आया कि आप इस्लाम या कुरआन की छिछालेदार करते है,मैं सत्य अभिलाषी हूं,उसी को सर्च करते आपके ब्लोग पर पहुंचा था। आप मेरी सभी टिप्पणीयों से भली-भांति जान सकते है। मेरा यह कथन ''खैर कुरआन की असामान्य बातों पर विवेचन करते रहिये।'' भी इसी आश्य से है कि जो सत्य है बाहर लाते रहिये,पर यदि आपका मक़्सद येन-केन धर्मों को भांडना मात्र है जो कि मार्क्सवादीयो-वामपंथीयों का होता है,तो सत्य मुझ तक न पहुंचेगा।
मैं न हिन्दु न मुसल्मान बनकर बल्कि इन्सान बन कर ही आपके साथ आया था। लेकिन विचारधाराओं की अलग अलग चुहेदानियों में मै भी नहिं फ़सना चाहता।
मांसाहार का प्रचार,आपके मोज़ुदा विषय से भिन्न होते हुए भी अनावश्यक रूप से आप ले आये। मैं मानता था आप हिंसा के खिलाफ़ है,देखिए आपका कथन"बेटे इशाक को अल्लाह के नाम पर कुर्बान करने का नाटक करना, जो आज मुसलमानों का अंध विश्वास बन गया है और हजारो जानवर हर साल मारे जाते हैं."
लेकिन आपने मांसाहार लेख में लिखते हुए मानव मांस तक ले गये,हमारी नज़र में तो यह बडा घ्रणित है। और अगर यही वैश्विक परिवेश है,तो क्षमा करें हमें पारम्परिक भारतीय ही रहने दें।
आपसे असह्मत होते हुए भी आपका सम्मान करता हूं,क्योकि भले पूर्वाग्रह से आप सत्य उजागर करें,सम्भावित सत्य का आदर करता हूं।
'मोमिन' साहब,
ReplyDeleteपिछ्ले एक लेख में आपने लिखा था "नक्सलवाद का सफ़ल होना भारत का सौभाग्य होगा" उस समय मैने समझा आपने त्रृटिवश लिखा होगा पर इस लेख मे आपने माओवाद का समर्थन किया। तब स्पष्ठ हुआ की आप मार्क्सवादी विचारधारा रखते है।
मुझे इस विचारधारा से कोई द्वेष नहिं है,पर मेरी मान्यताओं से मेल नहिं खाती।
क्योंकि यह विचारधारा भी दूसरे पूर्वाग्रहों को छोडने का कहती है पर अपने पूर्वाग्रहों पर चिपकी रह्ती है।
सुज्ञ जी
ReplyDeleteआप से निवेदन है कि मेरी ओर से आहत न हों, मैं मानव जति का और साथ साथ धरती के हर प्राणी एवं जीव का शुभ चिन्तक हूँ , इसी सन्दर्भ में मुझे समझ सकें तो बेहतर होगा. मैं किसी दृष्टि कोण का बंधक नहीं. मानवता के साथ जिसने भी न्याय किया हो उसका मैं एहसान मंद हूँ, चाहे वह माव्ज़े तुंग हों अथवा महात्मा गाँधी. आप मेरा ब्लॉग ध्यान से पढ़ते हैं, इसका आभार,मगर उसकी गहराइयों में भी आपको जाना चाहिए.
मानव शरीर का सदुपयोग इस से बेतर क्या हो सकता है कि वह जीवतों का हिस्सा लेकर समाप्त हो? या उनके लिए कुछ छोड़ जाए?
हम उस देश में रहते हैं हैं जहाँ १५ करोर धान मजदूर हैं जिनकी औरतें मात्र एक धोती में रहती है और उसको बचाने के लिए घरों में वह नंगी रहती है . उनको अगर कफ़न में लगने वाला २२ गज कपडा दे दिया जाय तो मेरी बात उचित नहीं है क्या ? मैं आलमी नज़रिया रखता हूँ , अफ्रीकन देशों की कराहती ज़िन्दगी! अगर मेरा मृत्यु शारीर उनके काम आ जाय तो मैं अपने को धन्य समझूं . आपसे अनुनय है कि प्लीज़ हर प्राणी को अपने साथ लेकर चलें.
मोमिन साहब,
ReplyDeleteमैं आहत नहिं,आपका दृष्टिकोण है,आपके चिंतन से आप चाहे उस तरिके
समाधान पर पहूंचने में स्वतंत्र है। मुझे कोई खेद नहिं।
मानना तो मेरा भी यही है कि इस जगत के सभी जीवों के प्रति दया व करूणा हो। और मैं तो शुरू से जानता हूं आपकी विचारधारा शुभ चिन्तक की ही है।
मतभिन्नता उस तरिके से है जिस राह से आप समाधान सोचते है।
मृत मानव शरीर का निपटान किसी भी तरिके से किया जाय,उस मिट्टी की उर्जा प्रकृति में स्वतः मिलकर दूसरो के काम लग जाती है।
भले दफ़नाएं या जलाएं,यही प्रकृति का नियम है। आप तो प्रकृतिवादी ही है। क्यों न यह कार्य प्रकृति पर ही छोड दें। एक घ्रणित तरिका हमें पुनः जंगली कालखण्ड में धकेल देगा। वैसे मैं पारसीयों के तरिके को ठीक मानता हूं,पर यह उन जानवरों तक। मनुष्यों को तो उर्जा सीधी वनस्पति से ही लेनी चाहिए। अर्थार्त शाकाहारी ही रहना चाहिए।
मांस में एक तो थर्ड ग्रेड उर्जा (मिट्टी>वनस्पति>जानवर)उपर से एक जीव की हिंसा,पडे मांस में अनंत जीवों की उत्पत्ति,और क्रुर मानसिकता।
मैं आपके सारे लेख बहुत ही ध्यान से पढता हूं,बुरा न मानें,पर इतना गहराई से कि शायद लिखने के बाद आपने भी न पढा होगा।
क्योकि दर्शन शास्त्र मेरा पसंददीदा विषय है,और ईश्वर की परिकल्पना क्यों हुई मेरे खोज विषय, साथ ही सुख,दुख,भावनाएं क्यों है? क्रोध,लोभ,मोह,स्वार्थ हमारा पिछा क्यों नहिं छोडते,सोचता हूं।
भुख,भय,काम,संग्रहवृति हममें फ़ितरी क्यों है? आदि।
मैं भी यही मानता हुं,हमारे पास जो अतिरिक्त है वह वास्तव में जरूरतमंद के पास पहुंच जाय।
पर फ़ितरी रूप से वह कफ़न का कपडा,जरूरतमंद मजदूर औरत के पास धोती के लिये नहिं पहूंचता,पता नहिं क्यो?,कभी कभी तो उस मजदूर औरत की चिंता करनेवाले ही चिंता करने के संसाधनो में खर्च कर देते है।
प्रकृति के सारे संसाधनो का उपयोग सभी समानता से करे,पर शायद ऐसा प्रकृति ही नहिं होने देती।
सुज्ञ जी ,
ReplyDeleteआपका अंतिम पत्र पढ़ कर बड़ा संतोष सा हो रहा है. मैं कैसे आप का शुक्रया अदा करूँ? आपके दो तीन पोस्टें डिलीट हो गई थीं, लगा कि मैं ने किसी अपने को खो दिया मगर आज ब्लाग पर आने के बाद संतोष हुवा.
मैं हफ्ते में दो लेख पोस्ट करता हूँ, इधर तीन हफ़्ते से छोटे शहर में हूँ, इंटरनेट काम नहीं कर पा रहा. पोस्टिग फेल हो जाती है. बड़ी मजबूरी सामने आ गई है.
आपने निजी विचारों की अभिव्यक्ति की छूट देकर एक सराहनीय काम किया है.
आपका मोमिन