मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह नाज़िआत ७९ - पारा ३०
(वन नज़ात ए आत गर्कन)
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सूरह नाज़िआत ७९ - पारा ३०
(वन नज़ात ए आत गर्कन)
ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखिए और समझिए कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, गलाज़त यहाँ तक कि गालियाँ भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने की क्या, तसव्वुर करने की भी हिम्मत नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो.. इबादत के लिए रुक़ूअ, सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए और धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.
अल्लाह की कसमें देखें, क्या इनमे झूट, मकर, सियासत, नफरत और जेहालत नहीं है - - -
"क़सम है फरिश्तों की जो जान सख्ती से निकालते हैं,
जो आसानी से निकलते हैं, गो ये बंद खोल देते हैं,
और जो तैरते हुए चलते हैं फिर तेज़ी से दौड़ते हैं,
फिर हर अम्र की तदबीर करते हैं,
क़यामत ज़रूर आएगी."
सूरह नाज़िआत ७९ - पारा ३० (आयत १-५)
"जिस रोज़ हिला डालने वाली चीज़ हिला डालेगी ,
जिसके बाद एक पीछे आने वाली चीज़ आएगी,
बहुत से दिल उस रोज़ धड़क रहे होंगे,
आँखें झुक रही होंगी."
सूरह नाज़िआत ७९ - पारा ३० (आयत ६-९
क्या आपको मूसा का किस्सा पहुँचा, जब की अल्लाह ने इन्हें एक पाक मैदान में पुकारा कि फिरौन के पास जाओ, इसने बड़ी शरारत अख्तियार कर रख्खी है उससे जाकर कहो कि क्या तुझको इस बात की ख्वाहिश है कि तू दुरुस्त हो जाए . . . "
सूरह नाज़िआत ७९ - पारा ३० (आयत १५-१७)
"भला तुम्हारा पैदा करना ज्यादह सख्त है या आसमान का?
अल्लाह ने आसमान को बनाया इसकी शेफ्कात को बुलंद किया,
फिर ज़मीन को बिछाया
इससे इसका पानी और चारा निकला
तुम्हारे मवेशियों को फाएदा पहुँचाने के लिए."
सूरह नाज़िआत ७९ - पारा ३० (आयत२७-३३)
सो जब वह बड़ा हंगामा आएगा
यानी जिस रोज़ इन्सान अपने किए को याद करेगा
और देखने वालों के सामने दोज़ख पेश की जाएगी,
तो जिस शख्स ने सरकशी की होगी और दुनयावी ज़िन्दगी को तरजीह दी होगी, सो दोज़ख ठिकाना होगा."
सूरह नाज़िआत ७९ - पारा ३० (आयत ३४-३९)
मुसलमानों!
सबसे पहले हिम्मत करके देखो कि ये अल्लाह किस ढब की बातें करता है? वह गैर ज़रुरी उलूल जुलूल कसमें क्यूँ खाता है ?
ये फ़रिश्ते किसी की जान क्यूँ तडपा तडपा कर निकालते हैं और क्यूँ किसी की आसानी के साथ?
ऐसा भी नहीं कि ये आमाल के बदले होता हो.
एक बीमार मासूम बच्चा अपनी बीमारी झेलता हुवा क्यूँ पल पल घुट घुट कर मरता है? तो एक मुजरिम तलवार की धार से पल भर में मर जाता है? क्या इन हक़ीक़तों से कुरआन का दूर दूर तक का कोई वास्ता है? क़यामत का डर तुम्हें चौदह सौ सालों से खाए जा रहा है.
मूसा ईसा क़ी सुनी सुनाई दस्ताने मुहम्मद अपने दीवान में दोहराते रहते हैं, अगर ये अरबी में न होकर आपकी अपनी ज़बान में होती तो कब के आप इस दीवन ए मुहम्मद को बेजार होकर तर्क कर दिए होते.
इबादत के अल्फाज़ तो ऐसे होने चाहिए की जिससे खल्क़ क़ी खैर और खल्क़ का भला हो.
कुरआन को अज खुद तर्क करके आपको इससे नजात पाना है, इससे पहले की दूसरे तुमको मजबूर करें.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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