Monday 3 August 2015

Soorah Nisa 4 Part 6 (७९-८५ )

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
*************
सूरह निसाँअ ४ चौथा पारा  
किस्त 6
" ऐ इंसान! तुझ को कोई खुश हाली पेश आती है, वोह महेज़ अल्लाह तअला की जानिब से है और कोई बद हाली पेश आवे, वोह तेरी तरफ़ से है और हम ने आप को पैगम्बर तमाम लोगों की तरफ़ से बना कर भेजा है और अल्लाह गवाह काफ़ी है." 
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (79)
यह मोहम्मदी अल्लाह की ब्लेक मेलिंग है। अवाम को बेवकूफ बना रहा है. आज की जन्नत नुमा दुनिया, जदीद तरीन शहरों में बसने वाली आबादियाँ, इंसानी काविशों का नतीजा हैं, अल्लाह मियां की रचना नहीं. 
अफ्रीका में बसने वाले भूके नंगे लोग कबीलाई खुदाओं और इस्लामी अल्लाह की रहमतों के शिकार हैं. 
आप जनाब पैगम्बर हैं, इसका गवाह अल्लाह है, और अल्लाह का गवाह कौन है? 
 आप ? 
बे वकूफ मुसलमानों आखें खोलो। 

" पस कि आप अल्लाह की राह में कत्ताल कीजिए. 
आप को बजुज़ आप के ज़ाती फेल के कोई हुक्म नहीं 
और मुसलमानों को प्रेरणा दीजिए .
 अल्लाह से उम्मीद है कि काफ़िरों के ज़ोर जंग को रोक देंगे और 
अल्लाह ताला ज़ोर जंग में ज़्यादा शदीद हैं और सख्त सज़ा देते हैं।" 
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (84) 
कैसी खतरनाक आयात हुवा करती थी कभी ये गैर मुस्स्लिमो के लिए और आज खुद मुसलामानों के लिए ये खतरनाक ही नहीं, शर्मनाक भी बन चुकी है जिसको वह ढकता फिर रहा है। 

मुहम्मद ने इंसानी फितरत की बद तरीन शक्ल नफ़रत को बढ़ावा देकर एक राहे हयात बनाई थी जिसका नाम रखा इसलाम. उसका अंजाम कभी सोचा भी नहीं, क्यूंकि वोह सच्चाई से कोसों दूर थे. यह सच है कि उनके कबीले कुरैश की सरदारी की आरजू थी जैसे मूसा को बनी इस्राईल की बरतरी की, और ब्रह्मा को, ब्रह्मणों की श्रेष्टता की.
इसके बाद उम्मत यानी जनता जनार्दन कोई भी हो, जहन्नम में जाए. आँख खोल कर देखा जा सकता है, सऊदी अरब मुहम्मद की अरब क़ौम कि आराम से ऐशो आराइश में गुज़र कर रही है और प्राचीन बुद्धिष्ट अफगानी दुन्या तालिबानी बनी हुई है, सिंध और पंजाब के हिन्दू अल्कएदी बन चुके हैं, हिदुस्तान के बीस करोड़ इन्सान मुफ़्त में साहिबे ईमान (खोखले आस्था वान) बने फिर रहे है, दे दो पचास पचास हज़ार रुपया तो ईमान घोल कर पी जाएँ. 
सब के सब गुमराह,होशियार मुहम्मद की कामयाबी है यह, 
अगर कामयाबी इसी को कहते हैं।
 
''क्या तुम लोग इस का इरादा रखते हो कि ऐसे लोगों को हिदायत करो जिस को अल्लाह ने गुमराही में डाल रक्खा है और जिस को अल्लाह ताला गुमराही में डाल दे उसके लिए कोई सबील नहीं।"
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (84)
गोया मुहम्मदी अल्लाह शैतानी काम भी करता है, अपने बन्दों को गुमराह करता है. मुहम्माद परले दर्जे के उम्मी ही नहीं अपने अल्लाह के नादाँ दोस्त भी हैं, जो तारीफ में उसको शैतान तक दर्जा देते हैं. उनसे ज्यादा उनकी उम्मत, जो उनकी बातों को मुहाविरा बना कर दोहराती हो कि
 " अल्लाह जिसको गुमराह करे, उसको कौन राह पर ला सकता है"? 


" वह इस तमन्ना में हैं कि जैसे वोह काफ़िर हैं, वैसे तुम भी काफ़िर बन जाओ, जिस से तुम और वोह सब एक तरह के हो जाओ। सो इन में से किसी को दोस्त मत बनाना, जब तक कि अल्लाह की राह में हिजरत न करें, और अगर वोह रू गरदनी करें तो उन को पकडो और क़त्ल कर दो और न किसी को अपना दोस्त बनाओ न मददगार"

यह है मुहम्मदी अल्लाह की हकीकत .

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

No comments:

Post a Comment