वेद दर्शन - - -
खेद है कि यह वेद है . . .
हे अभीष्ट वर्षक मरूद गण !
तुम्हारी जो औषधियां शुद्ध एवं अत्यधिक सुख देने वाली हैं,
जिन्हें हमारे पिता मनु ने पसंद किया था,
रूद्र की उन्हीं सुखदायक व् भय नाशक औषधियों की हम इच्छा करते हैं.
द्वतीय मंडल सूक्त 33(13)
इस वेद मन्त्र को इस लिए चुना कि इससे मालूम हुवा कि इन मन्त्रों के रचैता रुस्वाए-ज़माना मनु महाराज वंशज हैं, मनु महाराज ने मनु समृति रच कर देश को मनु विधान दिया था, जिस में मानवता 5000 सालों से कराह रही है.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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