Wednesday 21 November 2018

सूरह मोमिन/ग़ाफ़िर-40 -سورتہ المومن क़िस्त 1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह मोमिन/ग़ाफ़िर-40 -سورتہ المومن
क़िस्त  1 

ये सूरह मक्का की है जोकि मुहम्मद की तरकीब, तबलीग़ और तक़रीर से पुर है. वह कुछ डरे हुए से है, उनको अपने ऊपर मंडराते ख़तरे का पता चल चुका है, पेशगी में इब्राहीम और मूसा की गिरफ़्तारी की आयतें गढ़ने लगे हैं. उन पर जो आप बीती होती है वह अगलों की आप बीती बन जाती है. नाक लगी फटने, ख़ैरात लगी बटने,
उस वक़्त लोग उन्हें सुनते और दीवाने की बड़बड़ जानकर नज़र अंदाज़ कर जाते. तअज्जुब आज के लोगों पर है कि लोग उसी बड़बड़ को अल्लाह का कलाम मानने लगे हैं. ख़ैर - - -

"हा मीम"
सूरह मोमिन 40 आयत (1)

अल्लाह का ये छू मंतर, कभी एक आयत (बात) होती है और कभी कभी कोई बात नहीं होती. यहाँ पर ये "हा मीम" एक बात है जो की अल्लाह के हमल में है.

"ये किताब उतारी गई है अल्लाह की तरफ़ से जो ज़बर दस्त है. हर चीज़ का जानने वाला है, गुनाहों को बख़्शने वाला है, और तौबा को क़ुबूल करने वाला है. सख़्त  सज़ा देने वाला और क़ुदरत वाला है. इसके सिवा कोई लायक़े इबादत नहीं है, इसके पास लौट कर जाना है. अल्लाह की इस आयत पर वही लोग झगड़ने लगते हैं जो मुनकिर हैं, सो उनका चलना फिरना आप को शुबहे में न डाले."
सूरह मोमिन 40 आयत (2-4)

अल्लाह कोई ऐसी हस्ती नहीं है जो इंसानी दिल ओ दिमाग़ रखता हो, जो नमाज़ रोज़ा और पूजा पाठ से ख़ुश होता हो या नाराज़. यहाँ तक कि वह रहेम करे या सितम ढाए जाने से भी नावाक़िफ़ है. अभी तक जो पता चला है, हम सब सूरज की उत्पत्ति हैं और उसी में एक दिन लीन हो जाएँगे. हमारे साइंसदान कोशिश में हैं कि नसले इंसानी बच बचा कर तब तक किसी और सय्यारे को आबाद कर ले, मगर हमारे वजूद को फ़िलहाल लाखों साल तक कोई ख़तरा नहीं.

"जो फ़रिश्ते अर्श को उठाए हुए हैं और जो फ़रिश्ते इसके गिर्दा गिर्द हैं और अपने रब की तस्बीह और तमहीद करते रहते हैं और ईमान वालों के लिए इसतेगफ़ार करते रहते है कि ऐ मेरे परवर दिगार इन लोगों को बख़्श दीजिए जिन्हों ने तौबा कर लिया है और उनके माँ बाप बीवी और औलादों में से जो लायक़ हों उनको भी बहिश्तों में दाख़िल कीजिए."
सूरह मोमिन 40 आयत (7-8)

जो फ़रिश्ते अर्श को उठाए हुए है तो उनका पैर किस ज़मीन पर टिकता है? फ़रिश्ते अर्श को उठाए हुए नहीं बल्कि अर्श में लटके अपनी जान की दुआ करने में लगे होंगे. मुहम्मद कितने सख़्त  हैं कि "उनके माँ बाप बीवी और औलादों में से जो लायक़ हों उनको भी बहिश्तों में दाख़िल कीजिए."
अगर इन लोगों ने इस्लाम को क़ुबूल कर लिया हो तभी वह लायक़ हो सकते हैं.

अल्लाह बने मुहम्मद अपनी तबीअत की ग़ममाज़ी यूँ करते हैं - - -
"बेशक जो लोग कुफ़्र की हालत में मर कर आए होंगे, उनको सुना दिया जाएगा जिस तरह आज तुम को अपने रब से नफ़रत  है, इससे कहीं ज़्यादः अल्लाह को तुम से नफ़रत थी जब तुमको दुन्या  में ईमान की तरफ़ दावत दी जाती थी और तुम इसे मानने से इंकार करते थे,"
सूरह मोमिन 40 आयत (10)

ऐसी आयतें बार बार इशारा करती है कि मुहम्मद अंदरसे ख़ुद को ख़ुदा माने हुए थे. इन से बड़ा जहन्नमी और कौन हो सकता है?

कलामे दीगराँ - - -
लीक पुरानी न तजैं, कायर कुटिल कपूत.
लीक पुरानी न रहैं, शायर, सिंह, सपूत.
"कबीर"
इस कहते हैं कलाम पाक
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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