Friday 3 July 2015

Soorah Aale Imran 3 Part 9 (86-144)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह आले इमरान     
Part- 9
आइए देखें कि हमारे समाज की विडंबना क्यू क्या ज़हर इसके लिए बोती है - - - 
" अल्लाह ऐसे लोगों की हिदायत कैसे करेगे जो काफ़िर हो गए, बाद अपने ईमान लाने के और बाद अपने इस इक़रार के कि मुहम्मद सच्चे हैं और बाद इस के कि उन पर वाजः दलायल पहुँच चुके थे और अल्लाह ऐसे बे ढंगे लोगों को हिदायत नहीं करते।" 
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (86) 
यह है मुहम्मद का अभियान जिसमे अल्लाह किसी गाँव के मेहतुक की तरह है, जिसे कि वह रब्बुल आलमीन कहते हैं. उनका अल्लाह उन लोगों से बेज़ार हो रहा है जो रोज़ रोज़ मुसलमान से काफ़िर हो जाते हैं और काफ़िर से मुसलमान. 
" ऐसे लोगों की सज़ा ये है कि इन पर अल्लाह ताला की भी लानत होती है, फरिश्तों की और आदमियों की भी, सब की। वह हमेशा हमेशा के लिए दोज़ख में रहेंगे, इन पर अज़ाब हल्का न होने पाएगा और न ही मोहलत दी जाएगी, हाँ मगर तौबा करके जो लोग अपने आप को संवार लेंगे, सो अल्लाह ताला बख्शने वाला है." 
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (88-89) 
मुसलमानों! सोचो अचानक मुहम्मद किसी अदभुत अल्लाह को पैदा करते है, उसके फ़रमान अपने कानों से अनदेखे फ़रिश्ते से सुनते हैं और उसको तुम्हें बतलाते है। वोह अल्लाह सिर्फ़ २३ सालों की जिंदगी जिया, न उसके पहले कभी था, न उसके बाद कभी हुवा। इस मुहम्मदी अल्लाह पर भरोसा करना क्या अपने आप को धोका देना नहीं है? सोचो कि ऐसे अल्लाह की क़ैद से रिहाई की ज़रुरत है, करना कुछ भी नहीं है, बस जो ईमान उस से ले कर आए थे उसे वापस कर दो. लौटा दो ऐसे हवाई और नामाकूल अल्लाह को उस का ईमान. 
ईमान लाओ मोमिन का जो धर्म कांटे का ईमान रखता  है.
       जंगे ओहद की हार पर लोगों में फैली बद गुमानी, बे चैनी और बगावत पर मुहम्मद धीरे धीरे क़ाबू पा रहे हैं. उनका अल्लाह मज़बूत होता चला जा रहा है. देखिए उसकी हिम्मत की दाद दीजिए - - - 
" हाँ! क्या ये खयाल करते हो कि जन्नत में दाखिल हो गए, हालां कि अभी तक अल्लाह ने उन लोगों को तो देखा ही नहीं जिन्हों ने तुम लोगों में से जेहाद की हो और न उन लोगों को देखा जो लोग साबित क़दम रहे हों, तुम तो मरने की तमन्ना कर रहे थे." 
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (142)
मुसलमानों! तर्क ए इसलाम के लिए यही आयत काफी है, जो अल्लाह दावा करता हो कि वह कायनात की हर मख्लूक़ के हर एक अमल ओ हरकत की खबर रखता है, जिसके हुक्म के बगैर कोई पत्ता भी न हिलता हो, वह कुरआन में कहता है कि "हालां कि अभी तक अल्लाह ने उन लोगों को तो देखा ही नहीं जिन्हों ने तुम लोगों में से जेहाद की हो और न उन लोगों को देखा जो लोग साबित क़दम रहे हों"
कुरान क़यामत तक बदला नहीं जा सकता, ये बात इसकी ज़िल्लत के लिए मुनासिब ही है, मगर क्या इस के साथ साथ तुम नस्ल ए इंसानी भी न बदलने का अहेद किए बैठे हो?
" और तुम मरने की तमन्ना कर रहे थे, मौत के सामने आने से पहले, सो इस को खुली आँखों से देखा था."
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (143)
हारी हुई जंगे ओहद के बारे में जब चे मे गोइयाँ होती हैं तो होशियार नबी इस की ज़िम्मे दरियाँ अल्लाह पर डाल देते हैं. अल्लाह जंग जूओं को माव्ज़ा देने में टाल मटोल करते हुए कहता है - - - 
" अभी इसे मालूम नहीं कि जंग तुमने कैसी लड़ी (वैसे) तुम तो मौत की तमन्ना पहले ही कर रहे थे."
अल्लाह ने यहाँ पर लम्बी नामार्दाना बहेस की है जो की इन्तेहाई शर्मनाक है, खास कर मुस्लमान दानिश वरों के लिए, रह गई बात पढ़े लिखे जाहिलों के लिए तो उनको जेहालत ही अज़ीज़ है, वह अपने इल्म नाकिस के साथ जहन्नम में जाएँ. कुरान इंसानी क़त्ले आम जेहाद के एवाज़ ऊपर शराब और शबाब से भरी जन्नत दिलाने का यकीन दिलाता है, गाल्बन यही यकीन उनकी तमन्ना है. अब देखिए अल्लाह बेवकूफ बन जाने वालों को कैसे ताने देता है " तुम तो मौत की तमन्ना पहले ही कर रहे थे." मतलब साफ है की तुम मेरे झांसे में आए."
 "और मुहम्माद निरे अल्लाह के रसूल ही तो हैं आप से पहले भी कई अल्लाह के रसूल गुज़र चुके हैं सो अगर आप का इंतकाल भी हो जावे या अगर आप शहीद ही हो जाएँ तो क्या लोग उल्टे फिर जाएँगे और जो उल्टा फिर भी जाएगा तो अल्लाह का कोई नुकसान न होगा."
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (144)
मुहम्मद निरे अल्लाह के रसूल तो नहीं मगर निरे घाघ और पैकरे दरोग ज़रूर हैं. ठीक कहते हैं कि इसलाम मे रुकने या फिरने से उसके अल्लाह का कोई नुकसान या नफ़ा होने का नहीं मगर इनकी ईजाद से डेढ़ हज़ार साल से इंसानियत शर्मिंदा है. जब तक इन्सान जेहनी बलूगत को नहीं छूता इस्लामी शर्मिंदगी उस पर ग़ालिब रहेगी.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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