Monday 27 July 2015

Soorah Nisa 4 Part 4 (56-75)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह निसाँअ ४ चौथा पारा  
किस्त 4

" जो लोग अल्लाह की आयातों के मुनकिर (विरोधी) हो जाएँगे उन को जहन्नम में इतना जलाया जाएगा कि इनकी खालें गल जाएँगी और इनको मज़ा चखाने के लिए नई खालें लगा दी जाएगी. बिला शक अल्लाह ज़बरदस्त हिकमत वाला है."
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (56)
गौर तलब है कि अल्लाह की इस हिकमत पर ही मुहक़्क़िक़ान-ऐ-क़ुरआन (शोध करता) ने इस मूर्खता को ''क़ुरआन-ऐ-हकीम'' का नाम दिया है. इस को इतना उछाला गया है कि दुन्या में क़ुरआन एक हिकमत वाली किताब बन कर रह गई है. 
हिकमत क्या है? 
बस यही जो मुहम्मद की जेहालत और इस्लामी ओलिमा की अय्याराना चाल. अफ़सोस कि तालीम याफ़्ता मुस्लिम अवाम मेडिकल साइंस की ए बी सी से वाकिफ़ है और कानो में बेहिसी का तेल डाले बैठे, इन हराम जादों के साथ हम नावाला हम पियाला हैं. 

"मुहम्मद का गलबा मदीना पर है, उन का फ़रमान है कि मुसलमान अपने हर व्ययिगत और सामूहिक मुआमले अल्लाह और उसके रसूल के सामने पेश किया करें( अल्लाह तो कहीं पकड़ में आने से रहा, मतलब साफ़ था  कि अल्लाह का मतलब भी मुहम्मद है. कुछ समझदार लोग मुसलमानों, यहूदियों और दीगरों में अपने मुआमले मुहम्मदी पंचायत में न ले जाकर आपस में बैठ कर निपटा लेते हैं, 
ऐसे तरीकों की तारीफ़ करने की बजाय मुहम्मद इसे मुनाफ़िक़त (कपटाचार) की राह क़रार देते हैं. 
कोई झगडा दो लागों का खामोशी से आपसी समझदारी से ख़त्म हो जाय, यह बात अल्लाह के रसूल को रास नहीं आती. इसको वोह शैतानी इसे रास्ता बतलाते हैं. क़ुरआन के मुताबिक़ हुए फैसले को ही सहीह मानते हैं. हर मुआमले का तस्फिया बहैसियत अल्लाह के रसूल के खुद करना चाहते हैं।"
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (59-73)
" और जो शख्स अल्लाह कि राह में लडेगा वोह ख्वाह जान से मारा जाए या ग़ालिब आ जाए तो इस का उजरे अज़ीम देंगे और तुम्हारे पास क्या औचित्य है कि तुम जेहाद न करो अल्लाह कि राह में।"
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (75)
यह मुहम्मदी क़ुरआन का अहेम पाठ है जिस पर भारत सरकार को सोचना होगा, किसी हिन्दू वादी संगठन को नहीं। ये आयात और इस से मिलती जुलती हुई आयतें मदरसों में मुस्लमान लड़कों के कच्चे ज़हनों में घोल घोल कर पिलाई जाती हैं जो बड़े होकर मौक़ा मिलते ही तालिबानी बन जाते हैं, बहरहाल अन्दर से जेहनी तौर पर तो वह बुनयादी देश द्रोही होते ही हैं, जो इस इन में रह कर इस ज़हर से बच जाए वह सोना है. हर राज नैतिक पार्टी को बिना हिचक मदरसों पर अंकुश लगाने की माँग करनी चाहिए बल्कि एक क़दम बढ़ा कर क़ुरआन की नाक़िस तालीम देने वाले सभी संगठनों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए. इसका सब से ज़्यादा फ़ायदा मुस्लिम अवाम का होगा, नुक़सान दुश्मने क़ौम ओलिमा का और गुमराह करने वाले नेताओं का।

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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