वेद दर्शन
खेद है कि यह वेद है . . .
हे अग्नि ! जो यजमान स्रुज उठाकर तुम्हें प्रज्वलित करता है
एवं दिन में तीन बार तुम्हें हव्य अन्न देता है,
हे जातवेद !
वह तुम्हें संतुष्ट करने वाले ईंधन आदि से बढ़ते हुए
तुम्हारे तेज को जानता हुवा
धन द्वारा शत्रुओं को पूरी तरह हरावे.
चतुर्थ मंडल सूक्त 12 -1
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
आज के युग में इन वेद मन्त्रों के शब्द गुत्थी को सुल्जना ही मुहाल है,
इनके अर्थ मे जाना समय की बर्बादी.
इन्हें पेशेवर पंडित और पुजारियों की स्म्मानित भिक्षा स्रोत कहा जा सकता है.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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