आदित्य नाथ योगी की सेवा में प्रस्तुत हैं - - -
ऋग वेद की दो सूक्तियाँ
1-अग्नि ने अपने मित्र इंद्र के लिए तीन सौ भैंसों को पकाया था.
इंद्र ने वृत्र को मारने के लिए मनु के तीन पात्रों में भरे सोम रस को एक साथ ही में पी लिया था.
पंचम मंडल सूक्त - 7
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
2-हे धन स्वामी इंद्र !
जब तुमने तीन सौ भैसों का मांस खाया,
सोम रस से भरे तीन पात्रों को पिया,
एवं वृत्र को मारा, तब सब देवों ने सोमरस से पूर्ण तृप्त इंद्र को उसी प्रकार बुलाया जैसे मालिक अपने नौकर को बुलाता है.
पंचम मंडल सूक्त - 8
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
महाराज !
उत्तर प्रदेश के तथा कथित क़त्ल गाहों को कौन से धर्म के तहत बंद करा रहे हैं ?
जब कि ऋग वेद में अग्नि देवता इंद्र देव के लिए तीन सौ भैसों को मार कर पकाते है
और इंद्र देव भैंसों का सारा मांस एक समय में ही चट कर जाते है,
वह भी तीन मटके दारू के साथ ??
बूढ़े और दूध मुक्त जानवरों को इंसान खाएँ या शेर और गिद्ध ,
उनके शरीर ही दूसरे शरीरों को जीवन दान देते हैं.
हर प्राणी दूसरे प्राणी का आहार है,
सब्जी की लहलहाती हुई शरीर भी प्राण रखती हैं,
फर्क इतना है कि उनके पास आवाज़ नहीं है
और जानवरों के पास चिल्लाने के लिए आवाज़ है.
कुछ बनस्पतियां भी प्राणी वद्ध करती हैं. discovery chanal देखा करें.
संसार के हर देश में आहार की आज़ादी है , चाहे वह मांस हो या शाक.
मत अड़ंगा लगाएँ क़ुदरत के नियम में.
आप रूप और बुद्धि दोनों तरह से धर्म के खांचे में ढले हुए,
"ढलुवा चकनट" लगते हैं.
कंप्यूटर युग है अपने आकार को साकार करिए.
दुन्या के साथ ही चलिए वरना इतिहास आप को मानवता पर लगा हुवा कलंक के रूप में याद करेगा.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
प्रिय जुनैद साहब,
ReplyDeleteआपकी हिन्दू धर्म दर्शन की पोस्ट 78 और 65 पढ़ी जो कि एक ही हैं और आपकी समीक्षा पढ़ कर दुख हुआ। आप के जैसा ज्ञानी व्यक्ति बिना किसी आधार के इस तरह की पोस्ट कर जब अर्थ का अनर्थ करे तो दुख होना स्वाभाविक है। आपके अनुसार समीक्षित मंत्र ऋग्वेद के पंचम मंडल का सूक्त कर्मांक 7 है। परन्तु अगर आप इस पंचम मंडल के सूक्त 7 का अध्यन करेंगे तो पाएंगे कि यह सूत्र मंत्र क्रमांक ३७१० से शुरू होकर क्रमांक ३७१९ तक है और आप पाएंगे कि इनमें से किसी भी मंत्र में न तो इन्द्र का, न ही भैंसों का और न ही कहीं सोमरस का जिक्र किया गया है । फिर पता नहीं कि आपने किस स्तरहीन किताब का संदर्भ लेकर इसको पोस्ट कर दिया है। भाषा के लिहाज से देखें तो अरबी एवं संस्कृत में एक मूल फर्क यह है कि हिन्दी भाषा के बहुत से शब्द संस्कृत से उत्पन्न है और उनकी लिपि भी एक ही है। अगर आप हिन्दी के जानकार हैं तो आपको संस्कृत भाषा में उपयोग हुए शब्दों का ६० प्रतिशत मतलब समझ आ जाएगा और अगर आपने समीक्षित सूक्त को संस्कृत में पढ़ा होता तो बहुत कुछ समझ आ जाता क्योंकि इसमें सिर्फ जो श्रुतियों से चला आ रहा है वही लिखा जाता है और कोई भी टीका या टिप्पणी उसके नीचे अलग से की जाती है परंतु अरबी के साथ ऐसा नहीं है क्योंकि हिन्दी एवं अरबी की लिपि में जमीन आसमान का फर्क है और साथ ही उर्दू एवं अरबी में भी हिन्दी – संस्कृत जैसा सामंजस्य नहीं है साथ ही लिखने वाला आयत में ही अपना अर्थ एक कोष्ठक में लिख देता है।
आपका एक प्रशंसक