गीता और क़ुरआन
भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -हे पार्थ!
वे क्षत्रिय सुखी हैं जिन्हें ऐसे युद्ध के अवसर अपने आप प्राप्त होते हैं
जिस से उनके लिए सवर्गा के द्वार खुल जाते हैं.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 32
और क़ुरआन कहता है - - -
''निकल पड़ो थोड़े से सामान से या ज़्यादः सामान से
और अल्लाह की राह में अपने माल और जान से जेहाद करो,
यह तुम्हारे लिए बेहतर है अगर तुम यक़ीन करते हो.''
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (४१)
क्या गीता और कुरआन के मानने वाले इस धरती को पुर अमन रहने देंगे ?
क्या इन्हीं किताबों पर हाथ रख कर हम अदालत में सच बोलने की क़सम खाते हैं ? ?
धरती पर शर और फ़साद के हवाले करने वाले यह ग्रन्थ
क्या इस काबिल हैं कि इनको हाज़िर व् नाज़िल किया जाए, गवाह बनाया जाए ???
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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