गीता और क़ुरआन
हिदू और मुसलमान
गीता न ईश वाणी है न आकाश वाणी और न ही कृष्ण भगवान् का उपदेश
जो कि कुरुक क्षेत्र में कृष्ण ने अर्जुन को दिया.
गीता की महिमा केवल इतनी है कि पौराणिक युग में भी हमारे विद्वान भाषा, लिपि ही नहीं, विद्या कला और काव्य विधा में कुशल और निपुण थे.
साक्षरता का परिवेश हुवा करता था जबकि उस समय संसार की बहुत सी भाषाएँ अपनी लिपि भी नहीं पैदा कर पाईं थीं.
गीता रचैता साक्षर थे न कि ज्ञानी.
गीता साक्षर व्यक्तियों की कृति है और क़ुरान निरक्षर मुहम्मदी अल्लाह का कलाम है, वह अल्लाह जो कल्पित है.
गीता का शक्ति पुरुष भगवान् भी कल्पित है जो ईश अवतार बन कर करिश्मा साजी करता है
और अल्लाह जोकि संभावित शक्ति का एक रूप है
जिसे विज्ञान भी अभी तक उस रूप के शशो पंज में है.
जैसा कि मैंने कहा गीता साक्षर पुरुष का काव्य और क़ुरान निरक्षर मुहम्मद का तराशा हुआ है शायराना बकवास.
ज्ञान विज्ञान दोनों में नहीं. दोनों में अतिशयोक्तियाँ, मुबालगा आराईयाँ,
अलौकिक और ग़ैर फ़ितरी बातों से भरी पड़ी हैं.
गीता में सलीक़ा है और क़ुर आन में फूहड़ पन.
दोनों किताबें झूट, मक्र (धूर्तता) और बेशर्मी से लैस हैं.
हिन्द व् पाक का सारा समाजी निजाम इन किताबों को सम्हाले हुए है
और इस निज़ाम को संभाले हुए हैं मुल्ला व् पंडे.
यह दोनों हराम खोर सदियों से इंसान को इंसानों से लडवा रहे है
और खुद अपनी औलादों के साथ ऐश कर रही हैं.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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