नाक़िस अक़ीदे
फ़ितरी (लौकिक) सत्य ही, बिना किसी संकोच के सत्य है.
ग़ैर फ़ितरी या अलौकिक सत्य पूरा का पूरा असत्य है.
धर्म और मज़हब की आस्था और अक़ीदा कल्पित मन गढ़ंत का रूप मात्र हैं.
इस रूप पर अगर कोई व्यक्तिगत रूप में विश्वास करे तो करे,
इसमें उसका नफ़ा और नुक़सान निहित है,
मगर इसे प्रसार और प्रचार बना कर आर्थिक साधन बनाए
तो ये जुर्म के दायरे में आता है.
व्यक्ति की व्यक्तिगत आस्था व्यक्ति तक सीमित रहे तो उसे इसकी आज़ादी है,
मगर दूसरों में प्रवाहित किया जाय तो आस्थावान दुष्ट और साज़िशी है.
ऐसे धूर्तों को जेल की सलाखों के अंदर होना चाहिए.
देश का ऐसा संविधान बने कि सिने-बलूग़त और प्रौढ़ता तक बच्चों को कोई धार्मिक या दृष्टि कौणिक यहाँ तक कि विषय विशेष की तअलीम देने पर प्रतिबंध हो ताकि व्यस्क होने पर वह अपना हक़ सुरक्षित पाए.
हमारा समाज ठीक इसके उल्टा है.
बच्चों के बालिग़ होने तक उसको हिन्दू और मुसलमान बना देता है.
यह तरबियत और संस्कार उसके हक़ में ज़ह्र है.
मुसलमानों को इसकी ताक़ीद है कि बच्चा अगर कलिमा गो न हुवा
तो माँ बाप को जहन्नम में दाख़िल कर दिया जायगा.
इस क़ौम की पामाली इस नाक़िस अक़ीदे के तहत भी है.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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