श्रद्धा
क्या बला ये श्रद्धा
इसके पीछे हमेशा ही भोले भाले और नादान लोगों की माल तो माल,
कभी कभी जानें भी जाती हैं.
उफ़ !2013 का केदारनाथ, 10000 का क़ीमती मानव जीवन.
श्रद्धा सैकड़ों रचनात्मक कामों को छोड़ कर अरचनात्मकता के नज़र होती है.
श्रद्धा भी एक तरह से विलासता का प्रतीक है.
इस पर ख़र्च होने वाले पैसे को अगर स्वच्छ भारत अभियान को दे दिया जाए
तो एक साल में भारत आईना जैसा साफ़ बन सकता है.
हज और तीर्थ के श्रद्धालु ख़ुद तो अराचनात्मक होते ही है,
इनकी सेवा में लगे सेवक भी अरचनात्मकता के शिकार होते हैं.
इनके लिए सरकारी फौज फाटे भी ज़ाया होते है.
मज़े की बात तो यह है कि इनको शहीद करने वाले सफ़र भी
आस्था पर श्रद्धा का प्रतीक माने जाते हैं की मुसाफिर स्वर्ग सिधारा.
सरकारें श्रद्धा का विशुद्ध व्यापार करती हैं.
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कृष्ण दोराहा
क्या कभी आपने ग़ौर किया है कि
वेद और गीता में कहीं भी औरतों का कोई दर्जा है ?
क्या उनको भी मानव समूह का कोई अंश माना गया है ?
हमारा संविधान तो औरतों को मर्दों के बराबर लाकर खड़ा करता है,
कहीं कहीं इस से भी ज़्यादः,
कि सार्वजानिक स्थानों बस या रेल में अगर कोई महिला ख़ड़ी हुई है
तो बैठे हुए पुरुष को उसका सम्मान करते हुए उठ खड़ा हो जाना चाहिए.
वेद में शायद कहीं कोई ज़िक्र आ गया हो महिलाओं का किसी वस्तु की तरह,
वरना हवन अनुष्ठान मर्दों द्वारा,
यजमान पुरुष केवल ,
इन्द्र देव और अग्नि देव से लेकर दर्जनों देव सिर्फ़ पुल्लिंग.
सोमरस और हव्य, सब पुरुषों द्वारा पाए और खाए जाते हैं.
गीता पर भी वेदों की गहरी छाप है, मनु के शिष्यों ने ही गीता को रचा,
शायद भृग़ु महाराज.
गीता भी पुरुष प्रधान है.
कृष्णाभावनामृत तो वासना को पाप मानते है,
अर्थात पाप कर्म का साधन स्त्री.
कृष्ण भक्त अजीब दोराहा पर खड़े हैं,
कि मथुरा में इन्हीं भगवन श्री की 'राधा कृष्ण लीला' सुनाई और दिखाई जाती.
यह धर्म के धंधे बाज़ हर अवस्था में और हर आयु के लोगों को अपने ड़ोर में बांधे हुए हैं. समाज में कब जागृति आएगी ?
कि उसको बतलाया जाएगा कि तुम्हारी मंजिल कहीं और है.
इनसे मुक्ति पाओ.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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