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सूरह अलम नशरा - 94 = سورتہ الم نشرح
यह क़ुरआन का तीसवाँ और आख़िरी पारा है. इसमें सूरतें ज़्यादः तर छोटी छोटी हैं जो नमाज़ियों को नमाज़ में ज़्यादः तर काम आती हैं.
बच्चों को जब क़ुरआन शुरू कराई जाती है तो यही पारा पहला हो जाता है. इसमें 78 से लेकर114 सूरतें हैं जिनको (ब्रेकेट में लिखे ) उनके नाम से पहचान जा सकता है कि नमाज़ों में आप कौन सी सूरत पढ़ रहे हैं
और ख़ास कर याद रखें कि क्या पढ़ रहे हैं.
दुन्या की सब से बड़ी ताक़त कोई है,
यह बात सभी मानते हैं चाहे वह आस्तिक हो या नास्तिक.
उसकी मान्यता सर्व श्रेष्ट है.
उसका सम्मान सभी करते हैं,
वह किसी को नहीं सेठ्ता.
एक मुहम्मद ऐसे हैं जो उस सर्व शक्ति मान से अपनी इज्ज़त कराते हैं.
वह ताक़त (अल्लाह) मुहम्मद को सम्मान जनक शब्दों से ही संबोधित करता है.
वह मुहम्मद को आप जनाब करके ही बात करता है.
इसका असर ये है की मुसलमान मुहम्मद को मान सम्मान अल्लाह से ज़्यादः देते है, वह इस बात को मानें या न मानें, मगर लाशूरी तौर पर उनके अमल बतलाते हैं,
वह मुहम्मद को अल्लाह के मुक़ाबिले में ज़्यादः मानते है.
मुहम्मद की शान में नातिया मुशायरे हर रोज़ दुन्या के कोने कोनों में हुवा करते है, मगर अल्लाह की शान में "हम्दिया" मुशायरा कहीं नहीं सुना गया. अल्लाह की झलक तो संतों और सूफ़ियों की हदों में देखने को मिलती है. देखिए कि अल्लाह अपने आदरणीय मुहम्मद को कैसे लिहाज़ के साथ मुख़ातिब करता है - - -
"क्या हमने आपकी ख़ातिर आपका सीना कुशादा नहीं कर दिया,
और हमने आप पर से आपका बोझ उतार दिया,
जिसने आपकी कमर तोड़ रक्खी थी,
और हमने आप की ख़ातिर आप की आवाज़ बुलंद किया,
सो बेशक मौजूदा मुश्किलात के साथ आसानी होने वाली है,
तो जब आप फ़ारिग हो जाया करेंतो मेहनत करें,
और अपने रब की तरफ़ तवज्जो दें."
सूरह इन्शिराह 94 - आयत(1 -8 )
क्या क्या न सहे हमने सितम आप की ख़ातिर
नमाज़ियो!
धर्म और मज़हब का सबसे बड़ा बैर है नास्तिकों से
जिन्हें इस्लाम दहेरया और मुल्हिद कहता है.
वो इनके ख़ुदाओं को न मानने वालों को
अपनी गालियों का दंड भोगी और मुस्तहक़ समझते हैं.
कोई धर्म भी नास्तिक को लम्हा भर नहीं झेल पाता.
यह कमज़र्फ और ख़ुद में बने मुजरिम, समझते हैं कि
ख़ुदा को न मानने वाला कोई भी पाप कर सकता है,
क्यूंकि इनको किसी ताक़त का डर नहीं.
ये कूप मंडूक नहीं जानते कि कोई शख़्सियत
नास्तिक बन्ने से पहले आस्तिक होती है
और तमाम धर्मों का छंद विच्छेद करने के बाद ही क़याम पाती है.
वह इनकी खरी बातों को जो फ़ितरी तकाज़ा होता हैं, को ग्रहण कर लेता है
और थोथे कचरे को कूड़ेदान में डाल देता है.
यही थोथी मान्यताएं होती हैं धर्मों की गिज़ा.
नास्तिकता है धर्मो की कसौटी.
पक्के धर्मी कच्चे इंसान होते हैं.
नास्तिकता व्यक्तित्व का शिखर विन्दु है.
एक नास्तिक के आगे बड़े बड़े धर्म धुरंदर,
आलिम फ़ाज़िल, ज्ञानी ध्यानी आंधी के आगे न टिक पाने वाले मच्छर बन जाते हैं.
पिछले दिनों कुछ टिकिया चोर धर्मान्ध्र नेताओं ने एलक्शन कमीशन
श्री लिंग दोह पर इलज़ाम लगाया कि वह क्रिश्चेन हैं
इस लिए सोनिया गाँधी का ख़ास लिहाज़ रखते हैं.
जवाब में श्री लिंगदोह ने कहा था,
"मैं क्रिश्चेन नहीं एक नास्तिक हूँ
और इलज़ाम लगाने वाले नास्तिक का मतलब भी नहीं जानते."
बाद में मैंने अखबार में पढ़ा कि आलमी रिकार्ड में
"आली जनाब लिंगदोह, दुन्या के बरतर तरीन इंसानों में
पच्चीसवें नंबर पर शुमार किए गए हैं.
ऐसे होते हैं नास्तिक.
फिर मैं दोहरा रहा हूँ कि दुन्या की ज़ालिम और जाबिर तरीन हस्तियाँ
धर्म और मज़हब के कोख से ही जन्मी है.
जितना खूनी नदियाँ इन धर्म और मज़ाहब ने बहाई हैं,
उतना किसी दूसरी तहरीक ने नहीं.
और इसके सरताज हैं मुहम्मद अरबी
जिनकी इन थोथी आयतों में तुम उलझे हुए हो.
जागो मुसलामानों जागो.