मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह ज़ुहा 93 = سورتہ ال ظحی
( वज़ज़ुहा वल्लैले इज़ा सज़ा)
यह क़ुरआन का तीसवाँ और आख़िरी पारा है. इसमें सूरतें ज़्यादः तर छोटी छोटी हैं जो नमाज़ियों को नमाज़ में ज़्यादः तर काम आती हैं.
बच्चों को जब क़ुरआन शुरू कराई जाती है तो यही पारा पहला हो जाता है. इसमें 78 से लेकर114 सूरतें हैं जिनको (ब्रेकेट में लिखे ) उनके नाम से पहचान जा सकता है कि नमाज़ों में आप कौन सी सूरत पढ़ रहे हैं
और ख़ास कर याद रखें कि क्या पढ़ रहे हैं.
"क़सम है दिन की रौशनी की,
और रात की जब वह क़रार पकड़े,
कि आपके परवर दिगार ने न आपको छोड़ा न दुश्मनी की,
और आख़िरत आपके लिए दुन्या से बेहतर है.
अनक़रीब अल्लाह तअला आपको देगा, सो आप ख़ुश हो जाएँगे.
क्या अल्लाह ने आपको यतीम नहीं पाया, फिर ठिकाना दिया और अल्लाह ने आपको बे ख़बर पाया, फिर रास्ता बतलाया और अल्लाह ने आपको नादर पाया.
और मालदार बनाया,
तो आप यतीम पर सख़्ती न कीजिए,
और सायल को मत झिड़कइए,
और अपने रब के इनआमात का का तज़किरा करते रहा कीजिए." .
सूरह जुहा 9 3 आयत (1 -1 1 )
मुहम्मद बीमार हुए, तीन रातें इबादत न कर सके, बात उनके माहौल में फ़ैल गई. किसी काफ़िर ने इस पर यूँ चुटकी लिया,
"मालूम होता है तुम्हारे शैतान ने तुम्हें छोड़ दिया है."
मुहम्मद पर बड़ा लतीफ़ तंज़ था, जिस हस्ती को वह अपना अल्लाह मुश्तहिर करते थे, काफ़िर उसे उनका शैतान कहा करते थे. इसी के जवाब में ख़ुद साख़ता रसूल की ये पिलपिली आयतें हैं.
नमाज़ियो !
इन आसमानी आयतों को बार बार दोहराओ.
इसमें कोई आसमानी सच नज़र आता है क्या?
खिस्याई हुई बातें हैं, मुँह जिलाने वाली.
यहाँ मुहम्मद ख़ुद कह रहे हैं कि वह मालदार हो गए हैं.
जिनको इनके चापलूस आलिमों ने ज़िन्दगी की मुश्किल तरीन हालत में जीना, इनकी हुलिया गढ़ रखा है.
ये बेशर्म बड़ी जिसारत से लिखते है कि मरने के बाद मुहम्मद के पास चाँद दीनार थे. मुहम्मद के लिए दस्यों सुबूत हैं कि वह अपने फ़ायदे को हमेशा पेश ए नज़र रखा. तुम्हारे रसूल औसत दर्जे के एक अच्छे इंसान भी नहीं थे.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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