खेद है कि यह वेद है (70)
हे प्रचंड योद्धा इन्द्र!
तू सहस्त्रों प्रकार के भीषण युद्धों में अपने रक्षा-साधनों द्वारा हमारी रक्षा कर |हमारे साथियों की रक्षा के लिए वज्र धारण करता है,
वह इन्द्र हमें धन अथवा बहुत से ऐश्वर्य के निमित्त प्राप्त हो.
(ऋग्वेद १.३.४. ७)
इन्हीं वेदों की देन हैं कि आज मानव समाज विधर्मिओं और अधर्मियों को मिटाने की दुआ माँगा करता है और उनके बदले अपनी सुरक्षा चाहता है. इंसान को दूसरों का शुभ चिन्तक होना चाहिए.
हे वन स्वामी इंद्र
जब तुमने तीन सौ भैसों का मांस खाया,
सोम रस से भरे तीन पात्रों को पिया
एवं वृत्र को मारा,
तब सब देवों ने सोमरस से पूर्ण तृप्त इंद्र को
उसी प्रकार बुलाया जैसे मालिक अपने दास को बुलाता है.
पंचम मंडल सूक्त - 8
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
सभी देवता नशे में मद मस्त हो गए तो आदर सम्मान की मर्यादा खंडित थी. वह बक रहे हैं - - -
अबे इंद्र !
इधर आ, सुनता नहीं ?
दूं कंटाप पर एक तान कर !!
सारे पूज्य देवों को पंडित ने हम्माम में नंगा कर दिया है.
सारे हिदू जन साधारण, इस वेद जाल में फंसे हुए हैं. कहते हैं वेद मन्त्रों को समझना हर एक के बस की बात नहीं.
आप समझें कि आप कहाँ हैं.
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