Monday 17 February 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (21)

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (21)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
जिस व्यक्ति का प्रत्येक प्रयास (उद्दयम ) इन्द्रिय तृप्ति की कामना से रहित होता है , उसे पूर्ण ज्ञानी समझा जाता है. 
उसे ही साधु पुरुष ऐसा करता कहते है. 
जिसमें पूर्ण ज्ञान की अग्नि से काम फलों को भस्म कर कर दिया जाता है.   
ऐसा ज्ञानी पुरुष पूर्ण रूप से संयमित मन तथा बुद्धि से काम करता है. 
अपनी संपत्ति के सारे स्वभाव को त्याग देता है 
और केवल शरीर निर्वाह के लिए कर्म करता है. 
इस तरह कार्य करता हुवा वह पाप रुपी फलों से प्रभावित वहीँ होता है.                                                                                                                                                                                                                     
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -4 - श्लोक -19 -21 
*केचुवे बहुत ही महत्त्व पूर्ण जीव हैं, 
इस धरती की उर्वरकता के लिए वह 24सो घंटे मिटटी को एक ओर से खाते हैं और दूसरी ओर से निकालते हैं. केचुवे अपने कर्म में लगे रहते हैं अपनी उपयोगिता को जानते भी नहीं 
कि धरती की हरियाली उनके दम से है. 
भगवान् कृष्ण इंसान को केचुवे बन जाने की सलाह देते हैं, 
इंसान इंसानी मिज़ाज से परे होकर हैवानी प्रकृति को अपनाए. 
ज्ञान का खाना, कपड़ा खाए और पहने, 
कोई प्रयास (उद्दयम ) इन्द्रिय तृप्ति की कामना से रहित हो ही नहीं सकता . 
इन्द्रिय तृप्ति ही तो संचालन है, मानव उत्पत्ति का. 
इसके बग़ैर तो मानव जाति ही धरती से ग़ायब हो जाएगी. 
सिर्फ़ सनातनी ही इस ईश वाणी का पालन करें तो सौ साल से पहले इतिहास बन जाएँगे.
और क़ुरआन कहता है - - - 
''और मेरे पास ये क़ुरआन बतौर वही (ईश वाणी) भेजा गया है ताकि मैं इस क़ुरआन के ज़रीए तुम को और जिस जिस को ये क़ुरआन पहुंचे, इन सब को डराऊं''
सूरह अनआम-६-७वाँ पारा आयत(२८)
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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