Wednesday, 19 February 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (23)

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (23)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
किन्तु जो अज्ञानी और श्रद्धा विहीन व्यक्ति शाश्त्रों में संदेह करते हैं , 
श्रद्धाभावनामृत नहीं प्राप्त कर सकते. 
अपितु नीचे गिर जाते हैं. 
संशयात्मा के लिए न तो इस लोक मे, न परलोक में कोई सुख है.
जो व्यक्ति अपने कर्म फलों का परित्याग करते भक्ति करता है 
और जिसके संशय दिव्य ज्ञान द्वारा विनष्ट हो चुके होते हैं , 
वही वास्तव में आत्म परायण है. 
हे धनञ्जय ! 
वह कर्मों के बंधन में नहीं बंधता.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -4 - श्लोक -40 - 41 
**हर धर्म की धुरी है श्रद्धा अर्थात कल्पना करना कि कोई शक्ति है जिसे हमें पूजना चाहिए. 
इस कशमकश में पड़ते ही गीता और क़ुरआन के रचैता आपकी कल्पना को साकार कर देते हैं, 
इसके बाद आपकी आत्म चिंतन शक्ति ठिकाने लग जाती है. 
किन्तु स्वचिन्तक बअज़ नहीं आता तब धर्म गुरु इनको गरिया शुरू कर देते हैं. 
इस ज्ञानी को अज्ञानी और नास्तिक की उपाधि मिल जाती  है. 
श्रद्धाभावनामृत की पंजीरी बुद्धुओं में बांटी जाती है. 
कर्म करते रहने की भी ख़ूब परिभाषा है, 
बैल की तरह खेत जोतते रहो, 
फ़सल का मूल्य इनके भव्य मंदिरों में लगेगा, 
तभी तो इनकी दुकाने चमकेंगी.
क़ुरआन कहता है ---
''और जब तू इन लोगों को देखे जो हमारी आयातों में ऐब जोई कर रहे हैं तो इन लोगों से कनारा कश हो जा, यहाँ तक कि वह किसी और बात में लग जाएं और अगर तुझे शैतान भुला दे तो याद आने के बाद ऐसे ज़ालिम लोगों में मत बैठ.''
सूरह अनआम ७वां पारा आयत (६८)
मुहम्मद ने मुसलामानों पर किस ज़ोर की लगाम लगाईं है कि उनकी इस्लाह माहौल के ज़रिए करना भी बहुत मुश्किल है. उनको माहौल बदल नहीं सकता. मुल्ला जैसे कट्टर मुसलमान जब आधुनिकता की बातों वाली महफ़िल में होते हैं तो वैज्ञानिक सच्चाइयों का ज़िक्र सुन कर बेज़ार होते हैं और दिल ही दिल में तौबा कर के महफ़िल से उठ जाते हैं.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

No comments:

Post a Comment