गीता और क़ुरआन
भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -तुम सुख या दुःख ,हानि या लाभ, विजय या पराजय का विचार किए बिना युद्ध करो ऐसा करने पर तुम्हें कोई पाप नहीं लगेगा.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 38
और क़ुरआन कहता है - - -
"और उन से कहा गया आओ अल्लाह की रह में लड़ना या दुश्मन का दफ़ीअ बन जाना। वह बोले कि अगर हम कोई लडाई देखते तो ज़रूर तुम्हारे साथ हो लेते, यह उस वक़्त कुफ़्र से नजदीक तर हो गए, बनिस्बत इस हालत के की वह इमान के नज़दीक तर थे।"
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (168)
क्या गीता और कुरआन के मानने वाले इस धरती को पुर अमन रहने देंगे ?
क्या इन्हीं किताबों पर हाथ रख कर हम अदालत में सच बोलने की क़सम खाते हैं ? ?
धरती पर शर और फ़साद के हवाले करने वाले यह ग्रन्थ
क्या इस काबिल हैं कि इनको हाज़िर व् नाज़िल किया जाए, गवाह बनाया जाए ???
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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