मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह निसाँअ-4
क़िस्त - 2
देखिए कि हरियाणा खाप पंचायत के मुखियाओं जैसा मुहम्मदी अल्लाह अरबी भाषा में क्या क्या कहता है - - -
अल्लाह नशे की हालत में नमाज़ के पास भटकने से भी मना करता है. मुसलमानों को जनाबत(शौच) इस्तेंजा(लिंग शोधन ) मुबाश्रत (सम्भोग) और तैममुम (पवित्री करण) के तालमेल और तरीके समझाता है. इस सिलसिले में यहूदियों की गुमराहियों से आगाह करता है कि वह तुम को भी अपना जैसा बनाना चाहते हैं. अल्लाह समझाता है कि वह अल्फाज़ को तोड़ मरोड़ कर तुम्हारे साथ गुफ्तुगू में कज अदाई करते हैं.
यहाँ पर सवाल उठता है कि न यहूदी हमारे संगी साथी हैं और न उनकी भाषा का हम से कोई लेना देना,
इस पराई पंचायत में हम भारतीय लोगों को क्यूँ सदियों से घसीटा जा रहा है,
क्यूँ ऐसे क़ुरआन का रटंट हम पर मुसलसल किए जा रहे है.
रौशनी नए इल्म की आ चुकी है तो ऐसे इल्म को तर्क करना और इसकी मुखालफ़त करना सच्चा ईमान बनता है.
देखिए अल्लाह कहता है - - -
"उन को अल्लाह ने उन के कुफ्र के सबब अपनी रहमत से दूर फेंक दिया है.
ए वह लोगो! जो किताब दिए गए हो, तुम उस किताब पर ईमान लाओ जिस को हम ने नाज़िल फ़रमाया है, ऐसी हालत पर वोह सच बतलाती है जो तुम्हारे पास है, इस से पहले कि हम चेहरों को बिलकुल मिटा डालें और उनको उनकी उलटी जानिब की तरफ़ बना दें या उन पर ऐसी लानत करें जैसी लानत उन हफ़्ता वालों पर की थी. अल्लाह जिस को चाहे मुक़द्दस बना दे, इस पर धागे के बराबर भी ज़ुल्म न होगा - - -
वोह बुत और शैतान को मानते हैं. वोह लोग कुफ्फार के निस्बत कहते हैं कि ये लोग बनिस्बत मुसलमानों के ज़्यादः राह ए रास्त पर हैं - - -
और दोज़ख में आतिश-ऐ-सोज़ाँ काफ़ी है''
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (43-55)
उम्मी मुहम्मद अपने क़ुरआन और हदीस में, बवजेह उम्मियत हज़ार झूट गढ़े हों मगर उसमे उनके ख़िलाफ़ सच्चाई दर पर्दा दबे पाँव रूपोश बैठी नज़र आ ही जाती है. बुत को मानने वाले तो काफ़िर थे ही, बाकी उस वक़्त नुमायाँ क़ौमें हुवा करती थीं जो मशसूर ए वक़्त थीं,
ये शैतान के मानने वाले गालिबन नास्तिक हुवा करते थे?
बडी ही ज़ेहनी बलूग़त थी इनमें जब इसलाम नाज़िल हुवा,
इसलाम ने तमाम ज़र खेज़ियाँ ग़ारत करदीं. ये नास्तिक हमेशा गैर जानिब दार और ईमान दार रहे हैं. यह इन की ही बे लाग आवाज़ होगी.
"वोह बुत और शैतान को मानते हैं. वोह लोग कुफ्फ़ार के निस्बत कहते हैं कि ये लोग बनिस्बत मुसलमानों के ज़्यादः राह ए रास्त पर हैं "
जहाँ भी मुसलमानों के साथ किसी क़ौम का झगडा होता है,
तीसरी ईमान दार आवाज़ ऐसी ही आती है.
आज जो लोग ग़लती से मुसलमान हैं, वक्ती तौर पर इस बात का बुरा मान सकते हैं, क्यूँ कि वोह नहीं जानते कि आम मुस्लमान फ़ितरी तौर पर लड़ाका होता है जिसकी वकालत गाँधी जी भी करते हैं.
मुहम्मदी अल्लाह आज तक अपने मुख़ालिफों का चेहरा मिटा कर उलटी जानिब तो कर नहीं सका
मगर हाँ मुसलमानों की खोपडी को माज़ी की तरफ़ करने में कामयाब ज़रूर हुवा है.
"जो लोग अल्लाह की आयातों के मुनकिर (विरोधी) हो जाएँगे उन को जहन्नम में इतना जलाया जाएगा कि इनकी खालें गल जाएँगी और इनको मज़ा चखाने के लिए नई खालें लगा दी जाएगी. बिला शक अल्लाह ज़बरदस्त हिकमत वाला है."
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (56)
ग़ौर तलब है कि अल्लाह की इस हिकमत पर ही मुहक़्क़िक़ान-ऐ-क़ुरआन (शोध करता) ने इस मूर्खता को ''क़ुरआन-ऐ-हकीम'' का नाम दिया है. इस को इतना उछाला गया है कि दुन्या में क़ुरआन एक हिकमत वाली किताब बन कर रह गई है.
हिकमत क्या है?
बस यही जो मुहम्मद की जेहालत और इस्लामी ओलिमा की अय्याराना चालें.
अफ़सोस कि तालीम याफ़्ता मुस्लिम अवाम मेडिकल साइंस की ए बी सी से वाकिफ़ है और कानो में बेहिसी का तेल डाले बैठे, इन हराम ज़ादों के साथ हम नावाला हम पियाला हैं.
"मुहम्मद का ग़लबा मदीना पर है,
उन का फ़रमान है कि मुसलमान अपने हर व्ययिगत और सामूहिक मुआमले अल्लाह और उसके रसूल के सामने पेश किया करें
अल्लाह तो कहीं पकड़ में आने से रहा, मतलब साफ़ था कि अल्लाह का मतलब भी मुहम्मद है.
कुछ समझदार लोग मुसलमानों, यहूदियों और दीगरों में अपने मुआमले मुहम्मदी पंचायत में न ले जाकर आपस में बैठ कर निपटा लेते हैं,
ऐसे तरीकों की तारीफ़ करने की बजाय मुहम्मद इसे मुनाफ़िक़त (कपटाचार) की राह क़रार देते हैं.
कोई झगडा दो लागों का ख़ामोशी से आपसी समझदारी से ख़त्म हो जाय, यह बात अल्लाह के रसूल को रास नहीं आती. इसको वोह शैतानी रास्ता बतलाते हैं.
क़ुरआन के मुताबिक़ हुए फ़ैसले को ही सहीह मानते हैं. हर मुआमले का तसफ़िया बहैसियत अल्लाह के रसूल के खुद करना चाहते हैं.
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (59-73)
"और जो शख्स अल्लाह कि राह में लडेगा वोह ख्वाह जान से मारा जाए या ग़ालिब आ जाए तो इस का उजर ए अज़ीम देंगे और तुम्हारे पास क्या औचित्य है कि तुम जेहाद न करो अल्लाह कि राह में"
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (75)
यह मुहम्मदी क़ुरआन का अहम पाठ है जिस पर भारत सरकार को सोचना होगा, किसी हिन्दू वादी संगठन को नहीं. ये आयात और इस से मिलती जुलती आयतें मदरसों में मुसलमान लड़कों के कच्चे ज़हनों में घोल घोल कर पिलाई जाती हैं जो बड़े होकर मौक़ा मिलते ही तालिबानी बन जाते हैं,
बहरहाल अन्दर से ज़ेहनी तौर पर तो वह बुनयादी देश द्रोही होते ही हैं,
जो इस इन में रह कर इस ज़हर से बच जाए वह सोना है.
हर राज नैतिक पार्टी को बिना हिचक मदरसों पर अंकुश लगाने की माँग करनी चाहिए
बल्कि एक क़दम बढ़ा कर क़ुरआन की नाक़िस तालीम देने वाले सभी संगठनों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए. इसका सब से ज़्यादा फ़ायदा मुस्लिम अवाम का होगा,
नुक़सान दुश्मन ए क़ौम ओलिमा का और गुमराह करने वाले नेताओं का.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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