मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अल-एराफ़ ७
(क़िस्त- 3)
इबादत के लिए रुक़ूअ, सुजू द, अल्फ़ाज़, तौर तरीक़े और तरकीब की कोई जगह नहीं होती,
ग़र्क़ ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा.
वह तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो,
आने वाले बन्दों के लिए,
यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए.
इनसे नफ़रत करना गुनाह है,
इन बन्दों और बाशिदों की ख़ैर ही तुम्हारी इबादत होगी.
इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक़ में होगा.
क़ुरआनी अल्लाह है या कि बद तरीन बन्दा,
देखिए कि क्या कहता है - - -
''और इन के लिए दोज़ख़ का बिछौना होगा और उसके ऊपर ओढना होगा और हम ऐसे ज़ालिमों को ऐसी सज़ा देते हैं."
सूरह अलएराफ़ ७ -आठवाँ पारा आयत (४१)
वाह अल्लाह मियाँ !
ज़ुल्म ख़ुद करते हो और मज़लूम को ज़ालिम कहते हो?
''सब दीनी कामों में मसरूफ़ है, अल्लाह भारी भारी बादलों को हवाओं के हवाले करता है जो इन्हीं लुड्खाती हुई ख़ुश्क बस्तियों तक ले जाती हैं''
अलएराफ़ ७ -आठवाँ पारा आयत (४२)
हवाओं और बादलों का दीनी काम ? मुलाहिजा हो.
जब यही हवाएं और बादल तूफ़ान और तबाही की शक्ल अख़्तियार कर लेते है तो इन को कैसा काम कहा जाए?
मुहम्मद फ़ितरत के राज़ से ग़ाफ़िल और हवा में तीर चलाने में माहिर, मोलवियों को निशाना दिया है कि नादान मुसलामानों का शिकार करो.
* मुहम्मदी अल्लाह अपने लाल बुझक्कड़ी दिमाग़ की परवाज़ भरते हुए औलाद ए नूह, आद, हूद, सालेह वग़ैरा की इबरत नाक कहानी छेड़ देता है जो कि पैग़म्बर के हक़ हो - - -
''ग़रज़ कि उन्हों ने उस ऊट्नी को मार डाला और अपने परवर दिगार के हुक्म से सरकशी की और कहने लगे कि ऐ सालेह ! जैसा कि आप हम को धमकी देते थे इसको मंगवाएं अगर पैग़म्बर हों. पस आ पकड़ा इनको ज़लज़ले ने, सो अपने घरों में औंधे के औंधे पड़े रह गए. उस वक़्त वह उन से मुंह मोड़ कर चले कि ऐ मेरी क़ौम !
मैं ने तो तुम को अपने परवर दिगार का हुक्म पहुँचा दिया था.''
अलएराफ़ ७ -आठवाँ पारा आयत (८८-८९)
ग़ौर तलब है कि कैसा चरवाहा नुमा अल्लाह रहा होगा जिसने किसी ऊंटनी को आवारह बना कर छोड़ दिया होगा और इंसानों को इसे पकड़ने से मना कर दिया होगा. मगर उस ज़माने के गिद्ध नुमा इंसानों ने उसे दबोच कर खा लिया होगा.
इस क़िस्से के पसे मंज़र में कोई पौराणिक कथा या वाक़आ होगा जो मुहम्मद के कानों में पड़ा होगा और वह कुरआनी आयत बन गया.
कुरआन ऐ हकीम यानी हिकमत वाला कुरआन. ???
मुसलमान आँख खोल कर अल्लाह की हिकमत को देखें.अल्लाह की छोड़ी हुई ऊंटनी को क़ौ म के सरकश लोग मार डालते हैं और मुन्ताक़िम मुहम्मदी अल्लाह ख़ित्ते में ज़लज़ला बरपा कर देता है जिसके अज़ाब से सारी क़ौम तबाह हो जाती है, जिसमें साहिबे ईमान भी होते है और बे इमान भी.
मुहम्मद की कुरआनी चूल कहीं से भी तो फिट बैठे.
''और हम ने लूत को भेजा जब उन्हों ने अपने क़ौम से फ़रमाया क्या तुम ऐसा फ़हश काम करते हो कि जिसको तुम से पहले किसी ने दुन्या जहान वालों ने न किया हो? तुम मर्दों के साथ शहवत रानी करते हो, औरतों को छोड़ कर, बल्कि तुम हद से ही गुज़र गए हो''
अलएराफ़ ७ -आठवाँ पारा आयत (८१)
बाबा इब्राहिम के भतीजे लूत (लोट) के इतिहास में मुहम्मद को सिर्फ़ यही ग़लत वाक़ेआ मालूम है जब कि इंजील कहती है कि लूत एक ऐसी बस्ती में रात भर के लिए मेहमान हुए थे जहां लोग समलैंगिक थे और लूत को भी शिकार बनाने के लिए बज़िद थे. मुहम्मद ने चरवाहे की उम्मत भी गढ़ दी और उम्मत को समलैंगिक करार दे दिया.
मुसलामानों!
इस तरह से तारीख़ी वाक़ेआत को एक अनपढ़ ने तोड़ मरोड़ कर अपनी पैग़म्बरी के लिए कुरआन को गढ़ा है।
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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