मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह-ए-तौबः 9
(क़िस्त-2)
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सूरह-ए-तौबः 9
(क़िस्त-2)
सूरह-ए-तौबः एक तरह से अल्लाह की तौबः है.
अरबी रवायत में किसी नामाक़ूल, नामुनासिब, नाजायज़ या नाज़ेबा काम की शुरूआत अल्लाह या किसी मअबूद के नाम से नहीं की जाती थी,
आमद ए इस्लाम से पहले यह क़ाबिल ए क़द्र अरबी क़ौम के मेयार का एक नमूना था.
क़ुरआन में कुल 114 सूरह हैं, एक को छोड़ कर बाक़ी 113 सूरतें - - -
"आऊज़ो बिल्लाहे मिनस शैतानुर्र्र्जीम , बिमिल्लाह हिररहमान निर रहीम " से शुरू होती हैं .
वजह ?
क्यूंकि सूरह तौबः में ख़ुद अल्लाह दग़ा बाज़ी करता है इस लिए अपने नाम से सूरह को शुरू नहीं करता.
बक़ौल मुहम्मद क़ुरआन अल्लाह का कलाम है तो इंसानी समाज का इसमें दख्ल़ और लिहाज़ क्यूँ ?
क्या अल्लाह भी इंसानों जैसा समाजी बंदा है ?
देखिए क़ुरआन में मुहम्मद कल्पित साज़िशी अल्लाह क्या कहता है - - -
''यह लोग मुसलामानों के बारे में न क़ुर्बत का पास करें न क़ौल व् क़रार का और यह लोग बहुत ही ज़्यादती कर रहे हैं,
सो यह लोग अगर तौबा कर लें और नमाज़ पढ़ने लगें और ज़कात देने लगें तो तुम्हारे दीनी भाई होंगे
और हम समझदार लोगों के लिए एहकाम को ख़ूब तफ़सील से बयान करते हैं''
सूरह तौबः -9 पारा-10 आयत (११-१२)
यह क़ुरआन का अनुवाद ईश-वाणी है,
वह ईश जिसने इस ब्रह्माण्ड की रचना की है,
हर आयत के बाद मेरी इस बात को सब से पहले ध्यान कर लिया करें.
सूरह तौबा की पहली क़िस्त में बयान है कि बेईमान अल्लाह अपने ग़ैर मुस्लिम बन्दों से किस बे शर्मी के साथ किए हुए समझौते तोड़ देता है.
अब देखिए कि वह उल्टा उन पर क़ौल व् क़रार तोड़ने का इलज़ाम उलटा काफ़िरों लगा रहा है,
उन से लड़ने के बहाने ढूंढ रहा है,
नमाज़ें पढ़वा कर अपनी उँगलियों पर नचाने का इन्तेज़ाम कर रहा है, उनसे टेक्स वसूलने के जतन कर रहा है.
''क्या तुम ख़याल करते हो कि तुम यूँ ही छोड़ दिए जाओगे ?
हालां कि अभी अल्लाह तअला ने उन लोगों को देखा ही नहीं,
जिन्हों ने तुम में से जेहाद की हो
और अल्लाह तअला और रसूल और मोमनीन के सिवा किसी को ख़ुसूसियत का दोस्त न बनाया हो''
सूरह तौबः -9 पारा-10 आयत (१६)
जंग, जेहाद से लौटे हुए लाख़ैरे, बे रोज़गार और बद हाल लोग लूट के माल में अपना हिस्सा मांगते हैं तो 'आलिमुल-ग़ैब'' मुहम्मदी अल्लाह बहाने तराशता है कि अभी तो मैं ने जंग की वह रील देखी ही नहीं जिसमें तुम शरीक होने का दावा करते हो.
उसके बाद अभी अपने ग़ैबी ताक़त से यह भी मअलूम करना है
कि तुम्हारे तअल्लुक़ात हमारे दुश्मनों से तो नहीं हैं,
या हमारे रसूल के दुश्मनों से तो नहीं है
या कहीं मोमनीन के दुश्मनों से तो नहीं हैं,
भले ही वह तुम्हारे भाई बाप ही क्यूँ न हों.
अगर ऐसा है तो तुम क्या समझते हो तुम को कुछ मिलेगा ?
बल्कि तुम ग़लत समझते हो कि तुम को यूं ही बख़्श दिया जाएगा.
मुसलामानों!
यही ईश वानियाँ तुम्हारी नमाज़ों के नज़र हैं. जागो.
''और अल्लाह तअला को सब ख़बर है तुम्हारे सब कामों का''
सूरह तौबः -9 पारा-10 आयत (१७)
मुसलामानों को डेढ़ हज़ार साल तक अक़्ल से पैदल तसव्वुर करने वाले ख़ुद साख़्ता रसूल शायद अपनी जगह पर ठीक ही थे कि अल्लाह के कलाम में तज़ाद पर तज़ाद भरते रहे और उनकी उम्मत चूँ तक न करती.
देखिए कि पिछली आयत में मुहम्मदी अल्लाह कहता है कि
''अभी अल्लाह तअला ने उन लोगों को देखा ही नहीं जिन्हों ने तुम में से जेहाद की हो और अल्लाह तअला और रसूल और मोमनीन के सिवा किसी को खुसूसयत का दोस्त न बनाया हो''
और अगली ही सांस में इसके बर अक्स बात करता है
"और अल्लाह तअला को सब ख़बर है तुम्हारे सब कामों का ''
ऐसा नहीं कि उस वक़्त जब मुहम्मद लोगों को यह क़ुरआनी आयतें सुनाते थे तो लोग अक़्ल से पैदल थे. मक्का में बारह सालों तक गलियों, सड़कों, मेलों, बाज़ारों और चौराहों पर जहाँ लोग मिलते अल्लाह के रसूल शुरू हो जाते क़ुरआनी राग अलापने.
लोग उन्हें पागल, दीवाना, सनकी और ख़ब्ती समझ कर झेल जाते.
कुछ तौहम परस्त और अंधविश्वासी इन्हें मान्यता भी देने लगे.
क़बीलाई सियासत ने इन्हें मदीना में पनाह दे दिया,
वहीँ पर यह दीवाना फरज़ाना बन गया.
मुहम्मद को मदीने में ऐसी ताक़त मिली कि इनकी क़ुरआनी ख़ुराफ़ात मुसलामानों की इबादत बन कर रह गई है.
अल्लाह के रसूल शायद कामयाब ही हैं
''ऐ ईमान वालो!
अपने बापों को,
अपने भाइयों को अपना रफ़ीक़ मत बनाओ
अगर वह कुफ़्र को बमुक़बिला ईमान अज़ीज़ रखें
और तुम में से जो शख़्श इनके साथ रफ़ाक़त रखेगा,
सो ऐसे लोग बड़े नाफ़रमान हैं''
सूरह तौबः -9 पारा-10 आयत (२३)
ख़ूनी रिश्तों में निफ़ाक़ डालने वाला यह मुहम्मद का पैग़ाम दुन्या का बद तरीन कार ए बद है.
इन रिश्तों से महरूम हो जाने के बाद क्या रह जाता है इंसानी ज़िन्दगी में ? मार काट, जंग ख़ूरेज़ी, लूट पाट, की यह दुनयावी ज़िन्दगी या फिर
उस दुन्या की उन बड़ी बड़ी आँखों वाली ख़याली जन्नत की हूरें?
मोती जैसे सजे हुए बहिश्ती लौंडे??
शराब क़बाब, खजूर और अंगूर? ??
इसके लिए भूल जाएँ अपने शफ़ीक़ बाप को जिसके हम जुज़्व हैं?
अपने रफ़ीक़ भाई को जिसके हम हमखून हैं? ?
वह भी उस ईमान के एवज़ जो एक अक़ीदत है,
एक ख़याली तस्कीन.
लअनत है ऐसे ईमान पर जो ऐसी क़ीमत का तलबगार हो.
अफ़सोस है उन चूतियों पर जो बाप और भाई की क़ीमत पर मिटटी के बुत को छोड़ कर हवा के बुत पर ईमान बदला हो.
''आप कह दीजिए तुम्हारे बाप, तुम्हारे बेटे, तुम्हारे भाई और तुम्हारी बीवियां और तुम्हारा क़ुनबा और तुम्हारा माल जो तुमने कमाया और वह तिजारत जिस में से निकासी करने का तुम को अंदेशा हो और वह घर जिसको तुम पसंद करते हो, तुमको अल्लाह और उसके रसूल से और उसकी राह में जेहाद करने से ज़्यादः प्यारे हों,
तो मुन्तज़िर रहो,
यहाँ तक कि अल्लाह अपना हुक्म भेज दे.
और बे हुकमी करने वाले को अल्लाह मक़सूद तक नहीं पहुंचता''
सूरह तौबः -9 पारा-10 आयत (२४)
उफ़ !
इन्तहा पसंद मुहम्मद,
ताजदारे मदीना,
सरवरे कायनात,
न ख़ुद चैन से बैठते कभी न इस्लाम के जाल में फंसने वाली रिआया को कभी चैन से बैठने दिया.
अगर कायनात की मख़लूक़ पर क़ाबू पा जाते तो जेहाद के लिए दीगर कायनातों की तलाश में निकल पड़ते.
अल्लाह से धमकी दिलाते हैं कि तुम मेरे रसूल पर अपने अज़ीज़ तर औलाद, भाई, शरीक ए हयात और पूरे क़ुनबे को क़ुर्बान करने के लिए तैयार रहो,
वह भी बमय अपने तमाम असासे के साथ जिसे तिनका तिनका जोड़ कर आप ने अपनी घर बार की खुशियों के लिए तैयार किया हो.
इंसानी नफ़्सियात से नावाक़िफ़ पत्थर दिल मुहम्मद,
क़ह्हार अल्लाह के जीते जागते रसूल थे.
मुसलमानो!
एक बार फिर तुम से गुज़ारिश है कि तुम मुस्लिम से मोमिन बन जाओ. मुस्लिम और मोमिन के फ़र्क़ को समझने कि कोशिश करो.
मुहम्मद ने दोनों लफ़्ज़ों को ख़लत मलत कर दिया है और तुम को गुमराह किया है
कि मुस्लिम ही अस्ल मोमिन होता है
जिसका ईमान अल्लाह और उसके रसूल पर हो.
यह क़िज़्ब है,
दरोग़ है,
झूट है,
सच यह है कि आप के किसी अमल में बे ईमानी न हो यही ईमान है,
इसकी राह पर चलने वाला ही मोमिन कहलाता है.
जो कुछ अभी तक इंसानी ज़ेहन साबित कर चुका है वही अब तक का सच है, वही इंसानी ईमान है.
अक़ीदतें और आस्थाएँ कमज़ोर और बीमार ज़ेहनों की पैदावार हैं
जिनका नाजायज़ फ़ायदा ख़ुद साख़ता अल्लाह के पयम्बर,
भगवन रूपी अवतार,
गुरु और महात्मा उठाते हैं.
तुम समझने की कोशिश करो. मैं तुम्हारा सच्चा ख़ैर ख़्वाह हूँ.
ख़बरदार !
कहीं भूल कर मुस्लिम से हिन्दू न बन जाना
वर्ना सब गुड़ गोबर हो जायगा,
क्रिश्चेन न बन जाना, बौद्ध न बन जाना
वर्ना मोमिन बन्ने के लिए फिर एक सदी दरकार होगी.
धर्मांतरण बक़ौल जोश मलीहाबादी एक चूहेदान से निकल कर दूसरे चूहेदान में जाना है.
बनना ही है तो मुकम्मल इन्सान बनो,
इंसानियत ही दुन्या का आख़िरी मज़हब होगा.
मुस्लिम जब मोमिन हो जायगा तो इसकी पैरवी में ५१% भारत मोमिन हो जायगा.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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