मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह इंफ़ाल - ८
(क़िस्त-3)
गवाही
एक साधू ने अदालत में हलफ़ उठा कर गवाही दी थी कि
''मैं ने अपनी आँखों से देखा कि गर्भ गृह से राम लला प्रगत हुए, वहाँ जहाँ बाबरी ढाँचा खड़ा था. अदालत ने उसकी गवाही झूटी मानी, साधू की जग हँसाई हुई,
मुस्लमान खुल कर हँसे
तो हिदू भी मुस्कुराए बिना रह न सके.
अब ऐसे हिदुओं की बात अलग है जो
'क़सम गीता की खाते फिरते हैं हाथों को तोड़ने के लिए'
जो नादन ही नहीं बे वकूफ भी होते हैं.
साधु को शर्म नहीं आई,
हो सकता है उनकी गवाही सही रही हो, गवाही की हद तक.
उन्हों ने अपने चेलों से कह दिया हो कि राम लला की मूर्ती चने भरी हांड़ी के ऊपर रख कर उसमे पानी भर देना और मूर्ती हांड़ी समेत मिटटी में गाड़ देना, चना अंकुरित होकर राम लाला को प्रगट कर देगा.
इस प्रतिक्रिया भर की मैं शपत ले लूँगा,
जो बहर हाल झूट तो न होगा.
मुसलमान बाबरी मस्जिद में साढ़े तीन सौ साल से मुश्तक़िल तौर पर अलल एलान झूटी गवाही दिन में पांच बार देता चला आया है,
उस पर कोई इलज़ाम नहीं, कोई मुक़दमा नहीं, क्यूँ ?
वह गवाही है इस्लामी अज़ान.
अज़ान का एक जुमला मुलाहिज़ा हो - - -
''अशहदो अन्ना मुहम्मदुर रसूलिल्लाह''
अर्थात ''मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद अल्लाह के दूत हैं''
अल्लाह को किसने देखा है कि वह मुहम्मद को अपना रसूल बना रहा है और किसने सुना है?
कौन है चौदह सौ सालों के उम्र वाले आज जिंदा हैं, इस वाक़ेए के गवाह जो चिल्ला चिल्ला कर गवाही दे रहे हैं
- - -''अशहदो अन्ना मुहम्मदुर रसूलिल्लाह''
दुन्या की हज़ारों मस्जिदों में लाखों मुहम्मद के झूठे गवाह,
झूठे साधु से भी गए गुज़रे.
सच्ची गवाही वही होती है जो आँखों से देखा जाए और कानों से सुना जाए.
मुसलामानों!
ग़ौर करो क्या तुम को इस से बढ़ कर तुम्हारी नादानी का सुबूत चाहिए?
तुम तो इन गलीज़ ओलिमा के ज़रीए ठगे जा रहे हो. अपनी आँखें खोलो* .
देखिए मुहम्मदी अल्लाह इंसानी ख़ून का कितना प्यासा दिखाई देता है,
मुसलामानों को प्रशिक्षित कर रह है,
क़त्ल और ग़ारत गरी के लिए - - -
''ऐ ईमान वालो! जब तुम काफ़िरों के मुक़ाबिले में रू बरू हो जाओ, इन को पीठ मत दिखलाना और जो शख़्स इस वक़्त पीठ दिखलाएगा, अल्लाह के गज़ब में आ जाएगा और इसका ठिकाना दोज़ख़ होगा और वह बुरी जगह है. सो तुम ने इन को क़त्ल नहीं किया बल्कि अल्लाह ने इनको क़त्ल किया और आप ने नहीं फेंकी (?) , जिस वक़्त आप ने फेंकी थी, मगर अल्लाह ने फेंकी और ताकि मुसलामानों को अपनी तरफ़ से उनकी मेहनत का ख़ूब एवज़ दे. अल्लाह तअला ख़ूब सुनने वाले हैं.''
सूरह - इंफ़ाल - 8 पारा 9 आयत (१५-१६-१७)
मज़ाहिब ज़्यादः तर इंसानी ख़ून के प्यासे नज़र आते हैं,
ख़ास कर इस्लाम और यहूदी मज़हब.
इसी पर उनकी इमारतें खड़ी हुई हैं.
धर्म व मज़हब को भोले भाले लोग इनके दुष प्रचार से इनको पवित्र समझते हैं और इनके जाल में आ जाते हैं.
तमाम धार्मिक आस्थाओं का योग मेरी नज़र में एक इंसानी ज़िन्दगी से कमतर होता है.
गढ़ा हुवा अल्लाह मुहम्मद की क़ातिल फ़ितरत का खुलकर मज़ाहिरा करता है.
आज की जगी हुई दुनिया में अगर मुसलामानों के समझ में यह बात नहीं आती तो वह अपनी क़ब्र अपने हाथ से तैयार कर रहे हैं.
क़ुरआन में अल्लाह फेंकता है ?
यह कोई अरबी इस्तेलाह रही होगी मगर आप हिदी में इसे बजा तौर पर समझ लें कि अल्लाह जो फेंकता है वह दाना फेंकने की तरह है, बण्डल छोड़ने की तरह है और कहीं कहीं ज़ीट छोड़ने की तरह.
''और तुम उन लोगों की तरह न होना जो दावे करते हैं कि हमने हैं सुन लिया, हालाँकि वह सुनते सुनाते कुछ भी नहीं. बेशक बद तरीन ख़लायक़ अल्लाह के नज़दीक़ वह लोग है जो बहरे हैं, गूंगे हैं जोकि ज़रा भी नहीं समझते.
सूरह - इंफ़ाल - 8 पारा 9 आयत (२२)
अल्लाह बने हुए मुहम्मद मस्जिद में तक़रीर कर रहे हैं,
छल कपट की जिस को लोग खूब समझ रहे हैं और बेज़ार होकर इधर उधर देख रहे हैं, गोया उनको एहसास दिला सकें कि वह ख़ूब उनका असली मक़सद समझते हैं.
मुहम्मद अपने जंबूरे अल्लाह का सहारा बार बार लेते हैं मगर वह पानी का हुबाब साबित हो रहा है. वह इस्लाम पर ईमान लाए लोगों को बद तरीन मख़लूक़ तक भी कह रहे है, कोई तो मसलेहत होगी कि लोग सर झुका कर महफ़िल में उनकी यह गाली भी बर्दाश्त कर रहे हैं. इन बहरे और गूंगे लोगों पर अल्लाह की कोई हिकमत काम नहीं करती जो दोज़ख में काफ़िरों की खालें अंगारों से जल जाने के बाद बदलता रहता है.
''अल्लाह तअला इन में कोई ख़ूबी देखे तो इन को सुनने की तौफ़ीक़ दे और अगर इनको सुना दे तो ज़रूर रू गरदनी करेगे बे रुख़ी करते हुए.''
सूरह - इंफ़ाल - 8 पारा 9 आयत (२३)
दुन्या के मासूम लोग मानते हैं कि क़ुरआन अल्लाह का कलाम है,
ईश वाणी है.
क्या ईश्वर भी इंसानों की तरह ही चाल घात और मक्र व फ़रेब का दिल ओ दिमाग़ रखता होगा?
जैसा कि क़ुरआनी आयतें अपने अन्दर छुपाए हुए हैं.
इसी लिए मुहम्मद ने इसे रटने और पाठ करने के लिए पुन्य कार्य यानी सवाब करार दे दिया है और कह दिया है कि इसकी गहराई में मत जाओ कि इसको अल्लाह ही बेहतर जानता है.
मुहम्मद की ख़ूबी वाले लोग उन्हीं को मानते हैं जो डरपोंक हों चापलूस हों और बिला शर्त उनको समर्पित हों.
वह ज़हीन लोगों से डरते हैं कि वह ख़तरनाक होते हैं. कुंद ज़हनों पर ही उनका अल्लाह राज़ी है कि मुहम्मद उनका शोषण कर सकते हैं.
आज तालिबान जैसे संगठन ठीक मुहम्मद के नक़्श ए क़दम पर चलते हैं.
''ऐ ईमान वालो! तुम अल्लाह और रसूल के कहने को बजा लाया करो जब कि रसूल तुम को तुम्हारी ज़िन्दगी बख़्श चीजों की तरफ़ बुलाते हैं और जान रखो अल्लाह आड़ बन जाया करता है आदमी के और उसके क़ल्ब के दरमियान और बिला शुबहा तुम सब को अल्लाह के पास जाना ही है.''
सूरह - इंफ़ाल - 8 पारा 9 आयत ( २४ )
जादूई ख़सलत के मालिक मुहम्मद इंसानी ज़ेहन पर इस क़द्र क़ाबू पाने में आख़िर कार कामयाब हो ही गए जितना कि कोई ज़ालिम आमिर किसी क़ौम पर फ़तह पाकर उसे ग़ुलाम बना कर भी नहीं पा सकता.
आज दुन्या की बड़ी आबादी उसकी दरोग़ की आवाज़ को सर आँख पर ढो रही है और उसके कल्पित अल्लाह को ख़ुद अपने और अपने दिल ओ दिमाग़ के बीच हायल किए हुए है.
''ऐ ईमान वालो! अगर तुम अल्लाह से डरते रहोगे तो, वह तुम को एक फ़ैसले की चीज़ देगा और तुम से तुम्हारे गुनाह दूर क़र देगा और तुम को बख़्श देगा और अल्लाह बड़ा फ़ज़ल वाला है.''
सूरह - इंफ़ाल - 8 पारा 9 आयत ( २९ )
अल्लाह के एजेंट बने मुहम्मद उसकी बख़्शी हुई रियायतें बतला रहे हैं. पहले उसके बन्दों को समझा दिया कि उनका जीना ही गुनाह है,
वह पैदा ही जहन्नम में झोंके जाने के लिए हुए हैं,
इलाज सिर्फ़ यह है कि मुसलमान होकर मुहम्मद और उनके कुरैशियों को टेक्स दें और उनके लिए जेहाद करके दूसरों को लूटें मारें जब तक कि वह भी उनके साथ जेहादी न बन जाएँ.
ना करदा गुनाहों के लिए बख़्शाइश का अनूठा फार्मूला जो मुसलमानों को धरातल की तरफ़ खींचता रहेगा.
''और जब उनके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाती हैं तो कहते हैं; हमने सुन लिया और अगर हम इरादा करें तो इसके बराबर हम भी कह लाएं, यह तो कुछ भी नहीं सिर्फ बे सनद बातें हैं जो पहलों से मनक़ूल चली आ रही हैं.''
सूरह - इंफ़ाल - 8 पारा 9 आयत ( ३१)
अल्लाह बने मुहम्मद झूट बोलते हैं कि क़ुरआन किसी अल्लाह का कलाम है क्यूं कि यह ख़ुद इस्लामी अल्लाह हैं और क़ुरआन इन का फूहड़ कलाम है.
अरब में तौरेत की पुरानी कहानियाँ सीना दर सीना सदियों से चली आ रही थीं जैसे भारत में पौराणिक कथाएँ. जब मुहम्मद उसे अल्लाह का कलाम गढ़ कर अवाम को सुनाते तो ख़ुद मुसलमान हुए लोगों में ऊब कर कुछ लोग कह देते कि ऐसी बे सनद बातें तो हम भी कर सकते हैं जो पहले से मशहूर हैं इनमें नया क्या है?
तलवार की काट और हराम खो़र ओलिमा की ठाठ,
आज मुसलमानों की ज़ुबान पर क़ुफ्ल जड़े हुए है.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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