मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
*************
*************
सूरह इंफ़ाल - 8
(क़िस्त-1)
निंगलो या उगलो
अभी कल की बात है कि रूस में वहां के बाशिंदे बदलाव चाहते थे,
वह अपनी रियासतों को अपना मुल्क बनाना चाहते थे,
उन्होंने इसकी आवाज़ बुलंद की. सदर ए रूस कोसोगिन ने उन्हें इस तरह आगाह किया कि
'अलग होने से पहले एक हज़ार बार सोचो फिर हमें बतलाओ कि क्या इसका नतीजा तुम्हारे हक़ में होगा?'
जनता ने एक हज़ार बार सोचने के बाद अपनी मांग दोहराई.
बिना किसी ख़ून ख़राबे के सात आठ राज्यों को रूस ने आज़ाद कर दिया. भारत की तरह रियासतों को अपना अभिन्न नहीं बतलाया.
इसी तरह कैनाडा में फरांसीसी लाबी ने कैनाडा से बाहर होकर अपना मुल्क चाहते हैं, उनकी आवाज़ पर कैनाडा में तीन बार राय शुमारी हुई मगर बहुत मामूली अंतर से वह तीनो बार हारे. वहां के सभी समाज ने इस पर एक क़तरा भी ख़ून न बहने दिया. राय आमा को सर आँखों पर रख कर अपने अपने कामों पर लग गए.
सदियों पहले गीता में कहा गया है कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है.
किसी मुफ़क्किर की राय है कि हर हिस्सा ए ज़मीन में कोई बादशाहत या कोई निज़ाम पचास साल से ज़्यादा नहीं पसंद किया जाता.
फिराक़ कहता है
निज़ामे दहर बदले, आसमाँ बदले, ज़मीं बदले,
कोई बैठा रहे कब तक हयात-बेअसर लेके.
तुलसी दास जी कहते हैं
रघु कुल रीति सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई.
भारत ने राष्ट्र मंडल में वचन दिय हुवा है कि कश्मीर में राय शुमारी करा के कश्मीर को कश्मीरियों के मर्ज़ी के हवाले कर देंगे, फिर चाहे वह हिंदुस्तान के साथ रहे, या पाकिस्तान के साथ, अथवा आज़ाद हो कर अपना मुल्क बनाएँ.
यह बात किसी फ़र्द का वादा नहीं, बल्कि क़ौम की दूसरी क़ौम को दी हुई ज़बान है जो अलिमी पंचायत में लिखित दी गई है.
आज हिदुस्ताम चरित्र के मामले में दुन्या के आख़री पायदान या उससे कुछ ऊपर है. इसकी वजह यह है कि हम परले दर्जे के बे ईमान लोग हैं.
अब मैं आता हूँ कश्मीर पर कि - - -
ऐ कश्मीरियो
तुम्हारे लिए यह हुस्न इत्तेफ़ाक़ है कि तुम २/३हिदुस्तान के होकर रह रहे हो, तुम हिदुस्तानी होकर एक बड़े मुल्क के बाशिंदे हो,
वह भी कश्मीरी होते हुए.
हिदुस्तान से अलग होकर क्या रह पाओगे ?
नेपाल, भूटान या श्री लंका जैसे छोटे से देश में? गुमनाम होकर रह जाओगे, तुम्हारे हाथ महरूमियों के सिवा कुछ न आएगा.
वैसे अलग होकर तुम खाओगे क्या?
सेब औए ज़ाफ़रान से अपने पेट भरोगे?
क्या तुम मुल्लाओं का शिकार होकर इस्लामी जिहालातों के गोद में जाना चाहते हो ? यानी पकिस्तान ??
अलक़ायदा और तालिबान तुम्हारा शिकार कर लेंगे .
अभी एक बड़े मुल्क के बाशिदे होकर तमाम सहूलते तुम्हें मयस्सर हैं.
ख़ास कर तालीम के मैदान में,
इन तमाम मवाक़े गँवा बैठोगे.
वैसे अभी तक तुम कुछ ख़ास बन भी नहीं पाए हो.
मैं कश्मीर घूमा हूँ कोई किरदार अवाम में नहीं है.
पक्के झूटे बेईमान, ठग और लड़ाका कौम हो.
आज़ाद होने के बाद भी तुम आपस में लड़ मरोगे.
अब देखिए कि अल्लाह बने मुहम्मद अपनी झोली भरने के लिए लोगों को कैसे जेहाद के लिए वरग़ला रहे हैं - -
फ़तह जेहाद में लूटे हुए माल के बटवारे में मुसलामानों में खीचा तानी है. इसे मुहम्मद ने माल ए ग़नीमत का नाम दिया है जो मुसलामानों के लिए फ़तेह का तबर्रुक अर्थात विजय का प्रसाद बन गया है.
सारी सृष्टि के व्यवस्था को छोड़ कर ईश्वर इस पिद्दी भर मुआमले को निपटाने के लिए फ़रिश्ते जिब्रील को पकड़ता है और बदमाश लुटेर्रों को शान्त करने के लिए मुहम्मद के पास भेजता है. यह फ़तह बदर के बाद के हालात हैं, लूट के माल पर खुद मुहम्मद की नियत ख़राब हो जाती है.
वह अल्लाह और उसके रसूल के नाम पर ख़ुद सारा माल हड़पना चाहते हैं.
''यह लोग आप से गनीमातों का हुक्म दरयाफ़्त करते हैं, आप फ़रमा दीजिए कि ग़नीमतें अल्लाह की हैं और रसूल की हैं. सो तुम अल्लाह से डरो और बाहमी तअल्लुक़ात की इस्लाह करो. अल्लाह और उसके रसूल की इताअत करो, अगर तुम ईमान वाले हो.''
सूरह इंफ़ाल - ८ नौवाँ पारा आयत (१)
अज़ीम कुरैश सरदार अबू जेहल
(यानी जेहालत की औलाद - - को ये नाम मुहम्मद का दिया हुवा है.इसका असली नाम अबू हुश्शाम था. लक़ब को इस्लाम ने इस क़दर दोहराया कि इसका असली नाम ही ना पैद हो गया. ये मुहम्मद के सगे चाचा थे)
को दो अंसारी नव उम्र लड़कों ने मैदान ए जंग में एलान ए जंग होने से पहले ही उसको बे ख़याली में क़त्ल कर दिया. जंग ख़त्म हुई, मुहम्मद को पता चला कि उनका दुश्मन नंबर १ अबू जेहल मारा गया.
लाश के पास गए, पहचाना, दाढ़ी पकड़ कर ताने तिश्ने दिए,
लोगों ने कहा हुज़ूर यह मुर्दा लाश है इसे क्या सुना रहे हैं?
जवाब था तुम्हें नहीं मालूम ये ख़ूब सुन रहा है.
एलान हुआ कि इसको किसने मारा,
दोनों अंसारी लड़के बहादरी और इनआम की लालच लिए हाज़िर हुए, नीयतें दोनों की ख़राब हो चुकीं थीं, दोनों दावे बन गए थे. माले ग़नीमत झगडे में पड़ गया, दोनों की तलवारें मंगाई गईं, दोनों तलवारों में खून ताज़ा लगा हुवा था. मुआमला यूं तै हुआ कि एक को अबू जेहल का घोडा दे दिया गया दूसरे को घोड़े की काठी.
बे शक काठी पाने वाले ने मुहम्मद को ज़रूर कोसा होगा कि उसके साथ ना इंसाफ़ी हुई. इस वाक़ेए के पस ए मंज़र में आप माल ए ग़नीमत का लुटेरों में बटवारा समझ गए होगे कि जेहादियों को यूं टरकाया और अबू जेहल की तमाम जायदाद अल्लाह और उसके रसूल की हुई.
मुहम्मद लूट का सारा का सारा माल घोट जाने के बाद अपने बन्दों को समझाते और फुसलाते हैं असली माल तो क़ुरआनी आयतें हैं,
सच्चे मुसलमान की दौलत उनकाईमान है - - -
''बस ईमान वाले तो ऐसे होते हैं कि जब अल्लाह तअला का ज़िक्र आता है तो उनके कुलूब डर जाते हैं और जब अल्लाह की आयतें उनको पढ़ कर सुनाई जाती हैं तो वह उनके ईमान को ज़रा ज़्यादा कर देती हैं और वह लोग अपने रब पर तवक्कुल करते हैं.''
सूरह इंफ़ाल - ८ नौवाँ पारा आयत (२)
मुहम्मद इस्लामी ईमान के बे ईमान धागे को अपने उँगलियों में बांध कर समाज के बेवक़ूफ़ों और मजबूरों को कठ पुतलियों की तरह नचा रहे हैं. वह अपनी क़ुरआनी तुकबंदी को क़ल्बी सुकून के लिए सुनना चाहते हैं न कि ज़हनी तश्नगी की ख़ातिर. सब्र और संतोष का पाठ उम्मत को और माल व् मता अपने हक़ में कर के आँख में धूल झोंक रहे है.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
No comments:
Post a Comment