नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
******
सूरह इब्राहीम १४
(क़िस्त- 3 )
मैजिक आई
अल्ताफ़ हुसैन 'हाली'(हलधर) कहते हैं अँधेरा जितना गहरा होता है, मैजिक आई उतनी ही चका चौंध और मोहक लगती है. हाली साहब सर सय्यद के सहायकों में एक थे, रेडियो कालीन युग था जब रेडयो में एक मैजिक आई हुवा करती थी, श्रोता गण उसी पर आँखें गड़ोए रहते थे.
हाली का अँधेरे से अभिप्राय था निरक्षरता.
कहते हैं कि चम्मच से खाने पर भी मुल्लाओं का कटाक्ष होता है,
जब कि यह साइंसटिफ़िक है, क्यूँकि इंसान की त्वचा बीमारी के कीटाणुओं को आमन्तिरित करती है.
सर सय्यद को मुल्लाओं ने काफ़िर होने का फ़तवा दे दिया था.
पता नहीं मौलाना हाली को बख़्शा या नहीं.
क़ुरआन का स्पाट तर्जुमा और उस पर बेबाक तबसरा पहली बार शायद अपने भारतीय माहौल में मैंने किया है.
मेरे विश्वास पात्र सरिता मैगज़ीन के संपादक स्वर्गीय विश्व नाथ जी ने कहा इतना तो मैं भी समझता हूँ जो तुम समझते हो मगर इसका फ़ायदा क्या? मुफ्त में अंगार हाथ में ले रहे हो
और मेरे लेख की पंक्तियाँ उन्हें अंगार लगीं, सरिता में जगह देने से इंकार कर दिया.
क़ुरआन को नग्नावस्था में देखने के बाद कुकर्मियों की रालें टपक पड़ती हैं कि एक अनपढ़, उम्मी का नाम धारण करके अगर इतना बड़ा पैग़म्बर बन सकता है तो मैं क्यूँ नहीं?
न बड़ा तो मिनी पैग़म्बर ही सही.
गोया चौदह सौ सालों से मुहम्मद की नक़्ल में जगह जगह मिनी पैग़म्बर कुकुर मुत्ते की तरह पैदा हो रहे हैं. इसी सिलसिले के ताज़े और कामयाब पैग़म्बर मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद क़ादियानी हुए हैं. यह मुहम्मद की ही भविष्य वाणी के फल स्वरुप हैं कि
'' ईसा एक दिन मेहदी अलैहिस्सलाम बन कर आएँगे और दज्जाल को क़त्ल कर के इस्लाम का राज क़ायम करेंगे .''
मिर्ज़ा ने मुहम्मद की बकवास का फ़ायदा उठाया, और बन बैठे
''मेंहदी अलैहिस्सलाम''
क़दियानियों की मस्जिदें तक कायम हो गईं, वह भी पाकिस्तान लाहोर में. उसमें इस्लामी कल्चर के मुवाफ़िक़ क़त्ल ओ ग़ारत गरी भी होने लगी. पिछले दिनों ७२ अहमदिए शहीद हुए.
उस शहादत की याद आती है जब मुहम्मद का वंश कर्बला में अपने कुकर्मों का परिणाम लिए इस ज़मीन से उठ गया था, वह भी ७२ थे.
उम्मी (निरक्षर) मुहम्मद सदियों पहले अंध वैश्वासिक युग में हुए.
उन्होंने इर्तेक़ा (रचना क्रिया) के पैरों में ज़ंजीर डाल कर युग को और भी सदियों पीछे ढकेल दिया.
इस्लाम से पहले अरब योरोप से आगे था, ख़ुद इसे योरोपियन दानिश्वर तस्लीम करते हैं और अनजाने में मुस्लिम आलिम भी मगर मुहम्मद ने सिर्फ़ अरब का ही नहीं दुन्या के कई टुकड़ों का सर्व नाश कर दिया.
युग का अँधेरा दूर हो गया है, धरती के कई हिस्सों पर रातें भी दिन की तरह रौशन हो गई मगर मुहम्मद का नाज़िला ( प्रकोपित) अंधकार मय इस्लाम अपनी मैजिक आई लिए मुसलमानों को सदियों पुराने तमाशे दिखा रहाहै.
अब देखिए मफ़रूज़ा अल्लाह का कलामे-बेलगाम - - -
''पस कि अल्लाह तअला को अपने रसूल की वअदा ख़िलाफ़ी करने वाला न समझना. बे शक अल्लाह तअला बड़ा ज़बरदस्त और पूरा बदला लेने वाला है और सब के सब ज़बदस्त अल्लाह के सामने पेश होने वाले हैं.''
सूरह इब्राहीम १४- पारा १३- आयत (४७)
इस आयत के लिए जोश मलीहाबादी की रुबाई काफ़ी होगी.
कहते हैं - - -
गर मुन्तक़िम है तो झूटा है ख़ुदा,
जिसमें सोना न हो वह गोटा है ख़ुदा,
शब्बीर हसन खाँ नहीं लेते बदला,
शब्बीर हसन खाँ से भी छोटा है ख़ुदा.
''जिस रोज़ दूसरी ज़मीन बदल दी जाएगी, इस ज़मीन के अलावा आसमान भी, और सब के सब एक ज़बरदस्त अल्लाह के सामने पेश होंगे और तू मुजरिम को ज़ंजीरों में जकड़े हुए देखेगा, और उनके कुरते क़तरान के होंगे और आग उनके चेहरों पर लिपटी होगी ताकि अल्लाह हर शख़्स को इसके किए की सज़ा दे यक़ीनन अल्लाह बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है.''
सूरह इब्राहीम १४- पारा १३- आयत (४९-५१)
ज़मीन बदल दी जाएगी, आसमान बदल जाएगा मगर इंसान न बदलेगा,
क़तरान का कुरता पहने मुंह पर आग की लपटें लिए ज़बरदस्त अल्लाह के आगे अपने करतब दिखलाता रहेगा. आज ऐसा दौर आ गया है कि बच्चे भी ऐसी कहानियों से बोर होते हैं. मुसलमान इन पर यक़ीन रखते हैं?
मुसलमानों!
दुन्या की हर शय फ़ानी है और यह दुन्या भी.
साइंस दान कहते है कि यह धरती सूरज का ही एक हिस्सा है और एक दिन अपने कुल में जाकर समां जाएगी मगर अभी उस वक़्त को आने में अरबों बरसों का फ़ासला है.
अभी से उस की फ़िक्र में मुब्तिला होने की ज़रुरत नहीं.
साइंस दान यह भी कहते हैं कि तब तक नसले-इंसानी दूसरे सय्यारों तक पहुँच कर बस जाएगी. साइंस की बातें भी अर्द्ध-सत्य होती हैं,
वह ख़ुद इस बात को कहते है मगर इन अल्लाह के एजेंटों की बातें १०१% झूट होती हैं, इन पर क़तई न यक़ीन करना.
''और हुज्र वालों ने पैगम्बर को झूठा बतलाया और हमने उनको अपनी निशानयाँ दीं सो वह लोग उस से रू गरदनी करते रहे और वह लोग पहाड़ों को तराश तराश कर अपना घर बनाते थे कि अमन में रहें सो उनको सुबह के वक़्त आवाज़ ए सख़्त ने आन पकड़ा सो उनका हुनर उनके कुछ काम न आया . . और ज़रूर क़यामत आने वाली है, सो आप ख़ूबी के साथ दरगुज़र कीजिए.
सूरह इब्राहीम १४- पारा १३- आयत (८०-८५)
मुहम्मद ने तौरेती वाक़ेए के मुख़बिर यहूदी के ज़ुबानी सुना सुनाया क़िस्सा गढ़ते हुए उस बस्ती को लिया है जिस पर कुदरती आपदा आ गई थी, जिसमें बसे लूत बस्ती को तर्क करके पहाड़ों पर अपनी बेटियों के साथ आबाद हो गए थे और उनकी बीवी हादसे का शिकार हो गई थी. उसके आसार आज भी देखे जा सकते हैं कि योरोपियन लूत की नस्लें मुआबियों और अम्मोनियों को उस वाक़ेए पर रिसर्च करने की तैफीक़ हुई है.
मुहम्मद उसकी कहानी की गढ़ी,
क़ुरआन की मुसलामानों से तिलावत करा रहे हैं.
''बिला शुबहा आप का रब बड़ा ख़ालिक़ और बड़ा आलिम है. और हम ने आप को सात आयतें दीं जो मुक़र्रर हैं और क़ुरआन ए अज़ीम. आप अपनी आँख उठा कर भी इस चीज़ को न देखिए जो कि हम ने उन मुख़्तलिफ़ लोगों को बरतने के लिए दे रक्खी है और उन पर ग़म न कीजिए.और मुसलमानों पर शिफ़क़त रखिए.
सूरह इब्राहीम १४- पारा १३- आयत (८६-८८)
अल्लाह अपने प्यारे नबी से वार्ता लाप कर रहा है कि वह बड़ा निर्माण कुशल और ज्ञानी है,
कहता है हमने आपको सात आयतें दीं(?)
{ अब याद नहीं कि सात दीं या सात सौ ? कुछ याद नहीं आ रहा}
कि क़ुराने-अज़ीम समझो.
वह अपने बच्चे को समझाता है दूसरों की संपन्नता को आँख उठा कर देखा ही मत करो.
''रूखी सूखी खाए के ठंडा पानी पिव,
देख पराई चोपड़ी क्यूं ललचाए जिव.''
इस बात का ग़म भी न किया करो.( क़ुरैशियों का आगे भला ज़रूर होगा.)
बस मुसलामानों को चूतिया बनाए रहना.
''और कह दीजिए कि खुल्लम खुल्ला मैं डराने वाला हूँ जैसा कि हम ने उन लोगों पर नाज़िल किया है जिन्हों ने हिस्से कर रखे थे यानी आसमानी किताबों के मुख़्तलिफ़ अजज़ा करार दिए थे, सो तुम्हारे परवर दिगार की क़सम हम उन सब के आमाल की ज़रूर बाज़ पुर्स करेंगे. ये लोग जो हँसते हैं अल्लाह तअला के साथ, दूसरा माबूद क़रार देते हैं, उन से आप के लिए हम काफ़ी हैं. सो उनको अभी मालूम हुवा जाता है. और वाक़ई हमें मालूम है ये लोग जो बातें करते हैं उस से आप तंग दिल हैं.
सूरह इब्राहीम १४- पारा १३- आयत (९५-९७)
अल्लाह की राय मुहम्मद को कितनी स्टीक है कि कहता है
कह दीजिए कि खुल्लम खुल्ला मैं डराने वाला बागड़ बिल्ला हूँ ,
यह कि इस से वह हज़ारों साल तक डरते रहेगे.
हमने उन मुसलमानों पर दिमाग़ी हिपना टिज़्म क़ायम व दायम कर दिया है. यह आसमानी किताबों के मुख़्तलिफ़ अजज़ा क्या होते हैं किसी दारोग़ गो आलिम से पूछना होगा कि अल्लाह यहाँ पर बे महेल बहकी बहकी बातें क्यूं करता है?
अपने प्यारे नबी को तसल्ली देता है कि वह उनके दुश्मनों से जवाब तलब करेगा कि मेरे रसूल की बातें क्यूं नहीं मानीं?
और उल्टा उनका मज़ाक़ उड़ाया.
काश कि मुहम्मद तंग दिल न होते, कुशादा दिल और तअलीम याफ़्ता भी होते.