Thursday, 10 May 2018

Hindu Dharm 178




वेद दर्शन - - -          
                
 खेद  है  कि  यह  वेद  है  . . . 

हे संग्राम में आगे बढ़ने वाले 
और युद्ध करने वाले इन्द्र 
और पर्वत! 
तुम उसी शत्रु को अपने वज्र रूप तीक्षण आयुध से हिंसित करो जो शत्रु सेना लेकर हमसे संग्राम करना चाहे. 
हे वीर इन्द्र ! 
जब तुम्हारा वज्र अत्यंत गहरे जल से दूर रहते हुए शत्रु की इच्छा करें, 
तब वह उसे कर ले. 
हे अग्ने, वायु और सूर्य ! 
तुम्हारी कृपा प्राप्त होने पर हम श्रेष्ठ संतान वाले वीर पुत्रादि से युक्त हों 
और श्रेष्ठ संपत्ति को पाकर धनवान कहावें.
(यजुर्वेद १.८) 

शांति प्रीय हिन्दू धर्म.???


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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