मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह नह्ल १६
(क़िस्त- 1)
सच का एलान
क़ुरआन मुकम्मल दरोग़, किज़्ब, लग्व, मिथ्यऔर झूट का पुलिंदा है.
इसके रचनाकार दर परदा, अल्लाह बने बैठे मुहम्मद सरापा मक्र, अय्यारी, बोग्ज़, क़त्लो-ग़ारत गरी, सियासते-ग़लीज़, दुश्मने इंसानियत और झूटे हैं.
इन की तख़्लीक़ अल्लाह, इंसानों को तनुज़्ज़ली के ग़ार में गिराता हुवा, इनकी बिरादरी क़ुरैशियों पर दरूद-सलाम भिजवाता रहेगा,
इनके हराम ख़ोर ओलिमा बदले में ख़ुद भी हलुवा पूरी खाते रहेंगे और करोरों मुसलमानों को अफ़ीमी इस्लाम की नींद सुलाए रखेंगे.
मैं एक मोमिन हूँ जो कुछ लिखता हूँ सदाक़त की और ईमान की छलनी से बात को छान कर लिखता हूँ.
मैं क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा मुसम्मी (बमय अलक़ाब)
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''
को लेकर चल रहा हूँ जो हिंदो-पाक में अपना पहला मुक़ाम रखते हैं.
मैं उनका एहसान मंद हूँ कि उनसे हमें इतनी क़ीमती धरोहर मिला.
मौलाना ने बड़ी ईमान दारी के साथ अरबी तहरीर का बेऐनेही (अक्षरक्ष:) उर्दू में तर्जुमा किया जोकि बाद के आलिमों को खटका और उन्होंने तर्जुमें में कज अदाई करनी शुरू करदी, करते करते 'कूकुर को धोकर बछिया' बना दिया.
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''
ने इस्लामी आलिम होने के नाते यह किया है कि ब्रेकेट के अन्दर अपनी (मनमानी) बातें रख रख कर क़ुरआन की मुह्मिलात में मअने भर दिए हैं,
मुहम्मद की ग्रामर दुरुस्त करने की कोशिश की है,
यानी तालिब इल्म अल्लाह और मुहम्मद के उस्ताद बन कर उनके कच्चे कलाम की इस्लाह की है,
उनकी मुतशाइरी को शाइरी बनाने की नाकाम कोशिश की है.
हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी ने एक और अहम काम किया है कि रूहानियत के चले आ रहे रवायती फ़ार्मूले और शरीयत की बारीकियों का एक चूँ चूँ का मुरब्बा बना कर नाम रखा
'तफ़सीर'
जो कुछ क़ुरआन के तल्ख़ जुज़ थे मौलाना ने इस मुरब्बे से उसे मीठा कर दिया है. तफ़सीर हाशिया में लिखी है , वह भी मुख़फ़फ़फ़ यानी short form में जिसे अवाम किया ख़वास का समझना भी मोहाल है.
दूसरी बात मैं यह बतला दूँ कि कुरआन के बाद इस्लाम की दूसरी बुनियाद है हदीसें. हदीसें बहुत सी लिखी गई हैं जिन पर कई बार बंदिश भी लगीं मगर
''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम''
की हदीसें मुस्तनद मानी गई हैं मैंने इनको ही अपनी तहरीर के लिए मुन्तख़िब किया है.
ज़ईफ़ कही जाने वाली हदीसों को छुवा भी नहीं.
याद रखें कि हदीसें ही इस्लामी इतिहास की बुन्याद हैं अगर इन्हें हटा दिया जाए तो इस्लाम का कोई सच्चा मुवर्रिख़ न मिलेगा जैसे तौरेत या इंजील के हैं.
क्यूं कि यह उम्मी का दीन है.
ज़ाहिर है मेरी मुख़ालिफ़त में वह लोग ही आएँगे जो मुकम्मल झूट क़ुरआन पर ईमान रखते है और सरापा शर मुहम्मद को ''सललललाहो अलैहे वसल्लम'' कहते हैं.
जब कि मैं अरब की आलमी इंसानी तवारीख़ तौरेत (Old Testament) को आधा सच और आधा झूट मान कर अपनी बात पर क़ायम हूँ.
अब आइए मुकम्मल झूट और सरापा शर कि तरफ . . .
''अल्लाह तअला का हुक्म पहुँच चुका है, सो तुम इस में जल्दी मत मचाओ. वह लोगों के शिर्क से पाक और बरतर है. वह फ़रिश्तों को वह्यी यानी अपना हुक्म भेज कर अपने बन्दों पर जिस पर चाहे नाज़िल फ़रमाते हैं कि ख़बरदार कर दो कि मेरे सिवा कोई लायक़े इबादत नहीं है सो मुझ से डरते रहो. आसमान को ज़मीन को हिकमत से बनाया. वह उनके शिर्क से पाक है. इन्सान को नुतफ़े से बनाया फिर वह यकायक झगड़ने लगा. उसने चौपाए को बनाया, उनमें तुम्हारे जाड़े का सामान है और बहुत से फ़ायदे हैं और उन में से खाते भी हो. और उनकी वजेह से तुम्हारी रौनक़ भी है जब कि शाम के वक़्त लाते हो और जब कि सुब्ह के वक़्त छोड़ देते हो. और वह तुम्हारे बोझ भी ऐसे शहर को ले जाते हैं जहाँ तुम बग़ैर जान को मेहनत में डाले हुए नहीं पहुँच सकते थे. वाक़ई तुम्हारा रब बड़ी शफ़क़त वाला और रहमत वाला है. और घोड़े और खच्चर और गधे भी पैदा किए ताकि तुम उस पर सवार हो और ज़ीनत के लिए भी.''
सूरह नह्ल १६- पारा १४ आयत (१-८)
यह क़ुरआन की आठ आयतें हैं. मुतराज्जिम ने अल्लाह की मदद के लिए काफ़ी रफ़ूगरी की है मगर वह फटे में पेवंद तो नहीं लगा सकता.
१-अल्लाह तअला का हुक्म पहुँच चुका है . . . तो कहाँ अटका है?
२-सो तुम इस में जल्दी मत मचाओ - - - किसको जल्दी थी,
सब तुमको पागल दीवाना समझते थे.
३-वह लोगों के शिर्क से पाक और बरतर है. . .
क्या है ये शिर्क?
अल्लाह के साथ किसी दूसरे को शरीक करना, न ?
फिर तुम क्यूं शरीक हुए फिरते हो.
४- अल्लाह को तुम जैसा फटीचर बन्दा ही मिला था कि तुम पर हुक्मरानी नाज़िल कर दिया.
५-सो मुझ से डरते रहो - - -
आख़िर अल्लाह ख़ुद से बन्दों का डराता क्यूं है?
६-अल्लाह इन्सान को कभी नुतफ़े से बनता है, कभी बजने वाली मिटटी से,
कभी उछलते हुए पानी से, तो कभी खून के लोथड़े से?
तुहारा अल्लाह है या चुग़द?
७- इन्सान को अगर अल्लाह नेक नियती से बनता तो झगड़े की नौबत ही न आती.
८- अब इंसान को छोड़ा तो चौपाए खाने पर आ गए, उनकी सिफ़तें गिनाते है जिस पर अलिमान दीन किताबों के ढेर लगाए हुए हैं, न उन पर रिसर्च, न उनकी नस्ल अफ़ज़ाइश पर काम, न उनका तहफ़फ़ुज़ बल्कि उनका शिकार और उन पर ज़ुल्म देखे जा सकते हैं.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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