मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अंबिया -21
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सूरह अंबिया -21
क़िस्त- 3
आइए चलें अतीत के बाबा मुहम्मद देव की तरफ़ - - -
''आप कह दीजिए कि मैं तो सिर्फ़ वह्यि (ईश वाणी) के ज़रीए तुम को डराता हूँ और बहरे जिस वक़्त डराए जाते हैं, पुकार सुनते ही नहीं और उनको आप के रब के अज़ाब का एक झोंका भी लग जाए तो कहने लगें कि हाय मेरी कमबख़्ती हम तो ख़तावार थे. और क़यामत के रोज़ हम मीज़ाने-अज़ल क़ायम करेंगे सो किसी पर असला ज़ुल्म न होगा और अगर राई के दाने के बराबर होगा तो हम इसको हाज़िर कर देंगे. और हम हिसाब लेने वाले काफ़ी हैं.- - -
(इब्राहीम की अपने बाप से तू तू मैं मैं, जैसे पहले आ चुका है, इब्राहीम अपने बाप से कहता है) - - -
और ख़ुदा की क़सम मैं तुम्हारे इन बुतों की गत बना दूंगा, जब तुम पीठ फेर के चले जाओगे. और उन्हों ने इन के टुकड़े टुकड़े कर दिए बजुज़ एक बड़े बुत के
(लोगों के ग़ुस्से को देखते ही इब्राहीम झूट बोलते हैं कि ये हरकत इस बड़े बुत की है इससे पूछ लो, - - - झूट काम नहीं आता ,पंचायत इनको आग में झोंक देती है जो अल्लाह की मुदाख़लत से ठंडी हो जाती है) ''
सूरह अंबिया -21- आयत (45-70)
अल्लाह के कलाम में ? पैग़म्बर मुहम्मद की विपदा बयान होती है,
दीवाना अल्लाह उनके मुँह से बोलता है कि वह ईशवानी द्वारा लोगों को डराता है मगर वह बहरे काफ़िर बन्दे उसकी सुनते ही नहीं,
धमकता है कि अगर एक झोंका भी मेरे अज़ाब का उन पर पड़ जाय तो उनको नानी याद आ जाय.
अल्लाह कहता है क़यामत के दिन वह तमाम लोगों के कर्मों का लेखा-जोखा पेश करेगा. एक तरफ़ कहता है कि किसी पर रत्ती भर अत्याचार न होगा,
दूसरी तरफ़ धमकता है,
''तो हम इसको हाज़िर कर देंगे.और हम हिसाब लेने वाले काफी हैं.- - -''
मूर्ती तोड़क मुहम्मद का अल्लाह भी उन्हीं की ज़बान में ख़ुद अपनी क़सम खाकर कहता है ,
''और ख़ुदा की क़सम मैं तुम्हारे इन बुतों की गत बना दूंगा, जब तुम पीठ फेर के चले जाओगे''
क्या डरपोक अल्लाह है कि इब्राहीम के बाप आज़र के सामने उसकी हिम्मत नहीं कि बुतों को हाथ भी लगाए,
मुन्तज़िर है कि यह हटें तो मैं बुतों की दुर्गत कर दूं.
मुहम्मद बड़े बुत को बचा कर उससे गवाही की दिल चस्प कहानी गढ़ते हैं जो इस्लामी बच्चे अपने बच्चों के कानों में पौराणिक कथा की तरह घोल देते हैं..
मुसलामानों!
क्या तुम इन्हीं बेवज़्न कलाम को अपनी नमाज़ों में दोहराते हो?
ये बड़े शर्म की बात है.
जागो! ख़ुदा के लिए जागो!!
''और दाऊद और सुलेमान जब दोनों किसी खेत के बारे में फ़ैसला करने लगे जब कि कुछ लोगों की बकरियाँ रात के वक़्त उसको चर गईं और हम उस फ़ैसले को जो लोगों के मुतअल्लिक़ हुवा था, हम देख रहे थे, सो हमने उसकी समझ सुलेमान को दे दी और हमने दोनों को हिकमत और इल्म अता फ़रमाया और हम ने दाऊद के साथ ताबेअ कर दिया था, पहाड़ों को कि वह तस्बीह किया करते थे और परिंदों को हुक्म करने वाले हम थे. और इनको ज़ेरह (कन्वच) की सनअत तुम लोगों के वास्ते सिखलाई ताकि वह लड़ाई में तुम लोगों को एक दूसरे की ज़द से बचाए तो तुम शुक्र करोगे भी? और हम ने सुलेमान अलैहिस सलाम का ज़ोर की हवा को ताबेअ बना दिया था''.
सूरह अंबिया -21- आयत (71-81)
क्या पुर मज़ाक़ बात है कि दाऊद जिसने चोरी और डाके में अपनी जवानी गुज़ारी वह अल्लाह की हिकमत से इस मुक़ाम तक पहुंचा कि पहाड़ उसके साथ बैठ कर माला फेरने लगे.
पहाड़ कैसे बैठते, उठते और तस्बीह भानते होगे बात भी ग़ौर तलब है, जिसे मुहम्मदी अल्लाह ही जाने जो अपने पिछवाड़े से घोडा खोल सकता है.
मुहम्मदी अल्लाह ऐसा है कि पंछियों को हुक्म देता है कि इन के मातहेत रहें.
यहाँ तक कि हवाओं तक पर भी इन बाप बेटों की हुक्मरानी हुवा करती थी.
सवाल उठता है कि जब उन हस्तियों को अल्लाह ने इतनी पावर ऑफ़ अटार्नी देदी थी तो मुसलामानों के आख़रुज़्ज़मा को क्यों फटीचर बना रक्खा है?
मेरे नादान भाइयो !
कुछ समझ में आता है कि क़ुरानी इबारतें क्या मुक़ाम रखती हैं ?
इस तरक़्क़ी याफ़्ता समाज में.
क्यूँ अपनी भद्द कराने की ज़िद पर अड़े हुए हो. ?
हिदुस्तान में हिदुत्व का देव है, जो तुम को बचाए हुए है,
अगर ये न होता तो तुम खेतों में चरने के लिए भेड़ बकरियों की तरह छोड़ दिए जाते और तुम्हारा अल्लाह आसमान पर बैठा टुकुर टुकुर देखता रहता,
किसी मुहम्मद की गवाही देने के लिए. क़ुरान पूरी की पूरी बकवास है जब तक इसके ख़िलाफ़ ख़ुद मुसलमान आवाज़ बुलंद नहीं करते तब तक हिंदुत्व का भूत भी ज़िदा रहेगा. जिस दिन मुसलमान जग कर मैदान में आ जाएँगे, हिदुत्व का जूनून ख़ुद बख़ुद काफ़ूर हो जायगा फिर भारत में बनेगा एक नया समाज जिसका धर्म और मज़हब होगा ईमान.
'और बअज़े शैतान ऐसे थे कि उनके (सुलेमान) लिए गोता लगाते थे और वह और काम भी इसके अलावा किया करते थे और उनको संभालने वाले थे और अय्यूब, जब कि उन्हों ने अपने रब को पुकारा कि हमें तकलीफ़ पहुँच रही है और आप सब मेहरबानों से ज़्यादः मेहरबान हैं, हमने दुआ क़ुबूल की और उनकी जो तकलीफ़ थी, उसको दूर किया. और हमने उनको उनका कुन्बा अता फ़रमाया और उनके साथ उनके बराबर और भी अपनी रहमते-ख़ास्सा के सबब से और इबादत करने वालों के लिए यादगार रहने के सबब. और इस्माईल और इदरीस और ज़ुल्कुफ़्ल सब साबित क़दम रहने वाले लोगों में से थे.और उनको हमने अपनी रहमत में दाख़िल कर लिया, बे शक ये कमाल सलाहियत वालों में थे. और मछली वाले जब कि वह अपनी क़ौम से ख़फा होकर चल दिए और उन्हों ने यह समझा कि हम उन पर कोई वारिद गीर न करंगे, बस उन्हों ने अँधेरे में पुकारा कि आप के सिवा कोई माबूद नहीं है, आप पाक हैं, मैं बेशक क़ुसूर वार हूँ.. सो हमने उनकी दुआ क़ुबूल की और उनको इस घुटन से नजात दी.. और ज़कारिया, जब कि उन्हों ने अपने रब को पुकारा कि ऐ मेरे रब! मुझको लावारिस मत रखियो, और सब वारिसों से बेहतर आप हैं, सो हमने उनकी दुआ क़ुबूल की और उनको यह्या अता फ़रमाया.और उनकी ख़ातिर उनकी बीवी को क़ाबिल कर दिया. ये सब नेक कामों में दौड़ते थे और उम्मीद ओ बीम के साथ हमारी इबादत करते थे.और हमारे सामने दब कर रहते थे.''
सूरह अंबिया -21- आयत (81-90)
मुहम्मद कहते हैं कि यहूदी बादशाह सुलेमान शैतान पालता था,
जो उसके लिए नदियों में गो़ते लगा कर मोतियाँ और ख़ूराक़ के सामान मुहय्या कराता था, और भी शैतानी काम करता रहा होगा.
आगे आएगा कि वह पलक झपकते ही महारानी शीबा का तख़्त बमय शीबा के उठा लाया था.
वह सुलेमान अलैहिस्सलाम के तख़्त कंधे पर लाद कर उड़ता था,
बच्चों की तरह आम मुसलमान इन बातों का यक़ीन करते हैं,
क़ुरआन की बात जो हुई, तो यक़ीन करना ही पड़ेगा,
वर्ना गुनाहगार हो जाएँगे
और गुनाहगारों के लिए अल्लाह की दोज़ख धरी हुई है.
यह मजबूरियाँ है मुसलामानों की.
उन यहूदी नबियों को जिन जिन का नाम मुहम्मद ने सुन रखा था,
कुरान में उनकी अंट-शंट गाथा बना कर बार बार गाये हैं .
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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