शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (12)
यदि कोई कृष्णाभावनामृत अंगीकार कर लेता है तो भले ही वह शाश्त्रानुमोदित कर्मों को न करे अथवा ठीक से भक्ति न करे और चाहे वह पतित भी हो जाए तो इसमें उसकी हानि या बुराई नहीं होगी. किन्तु यदि वह शाश्त्रानुमोदित सारे कार्य करे तो उसके किस काम का है ?
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 1.5.17
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और क़ुरआन कहता है - - -
"कुल्ले नफ़्सिन ज़ाइक़तुलमौत''-हर जानदार को मौत का मज़ा चखना है,
और तुम को तुम्हारी पूरी पूरी पादाश क़यामत के रोज़ ही मिलेगी, सो जो शख़्स दोज़ख़ से बचा लिया गया और जन्नत में दाख़िल किया गया, सो पूरा पूरा कामयाब वह हुवा। और दुनयावी ज़िन्दगी तो कुछ भी नहीं, सिर्फ़ धोके का सौदा है।"
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (185)
क्या गीता और कुरआन के मानने वाले इस धरती को पुर अमन रहने देंगे ?
क्या इन्हीं किताबों पर हाथ रख कर हम अदालत में सच बोलने की क़सम खाते हैं ? ?
धरती को शर और फ़साद के हवाले करने वाले यह ग्रन्थ
क्या इस क़ाबिल हैं कि इनको हाज़िर व् नाज़िल किया जाए,
गवाह बनाया जाए ???
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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