मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह रूम -30- سورتہ الروم
क़िस्त-2
मुहम्मदी अल्लाह की क़ुदरत से मुतालिक़ जानकारी मुलाहिज़ा हो - - -
"वह जानदार चीज़ों को बेजान को निकाल लेता है ( यानी मुर्गी से अण्डा?) और बेजान चीज़ों से जानदार चीज़ों( यानी अंडे से मुर्गी?) से निकल लेता है और ज़मीन को इसके मुर्दा हो जाने के बाद जिंदा कर देता है और इसी से तुम लोग निकलते हो."
सूरह रूम - 30 (आयत 19)
यह आयत क़ुरआन में बार बार आती है जिसको कि कोई आम मुसलमान क़ुरआन का नमूना बना कर पेश नहीं करता, ओलिमा की तो छोड़िए कि इनका आल्लाह परिंदों के अण्डों को बेजान जानता और मानता है.
कोई जाहिल कहलाना पसँद नहीं करता.
मुहम्मद बार बार अपने इस वैज्ञानिक ज्ञान को दोहराते रहे,
सहाबाए इकराम और उनके ख़लीफ़ाओं ने भी कभी न टोका कि
या रसूल लिल्लाह अंडे जानदार होते हैं.
इस बात से ये साबित है कि उनके गिर्द सब के सब जाहिल और उम्मी हुआ करते थे. यही जेहालत इस्लाम मुसलमानों को बाँट रहा है,
"और उसी की निशानियों में ये है कि उसने तुम्हारे वास्ते तुम्हारे जिन्स की बीवियाँ बनाईं ताकि तुमको उनके पास आराम मिले और तुम मियाँ बीवी में मुहब्बत और हमदर्दी पैदा की. इसमें उन लोगों के लिए निशामियाँ हैं जो फिक्र से काम लेते हैं. और उसी की निशानियों में से ज़मीन और आसमान का बनाना है. और तुम्हारे लबो लहजे और नुक़तों का अलग अलग होना है. इसी में दानिश मंदी के लिए निशानियाँ हैं."
सूरह रूम - 30 (आयत 21-22)
मुहम्मदी अल्लाह कहता है तुमहारे वास्ते तुम्हारे जिन्स की बीवियां बनाईं?
कुछ तर्जुमान ने लिखा कि तुम्हारे लिए तुम्हारी हम जिन्स बीवियां बनाईं.
दोनों बातें एक ही है.
मुहम्मदी अल्लाह चूँकि उम्मी है वह कहना चाहता है तुम्हारे लिए जिन्स ए मुख़ालिफ़ बीवियां बनाईं और उसमे लुत्फ़ डालकर जोड़ों में मुहब्बत पैदा की.
मुहम्मद की ये लग्ज़िसें चीख़ चीख़ कर मुसलमानों को आगाह करती हैं कि क़ुरआन और कुछ भी नहीं, सिर्फ़ अनपढ़ मुहम्मद के कलाम के.
फिर सवाल ये उठता है कि क़ुदरत की इन बातों को कौन नहीं जनता था
और कौन नहीं मानता था,
उस वक़्त अरब की तारीख़ में बड़े बड़े दानिश्वर हुवा करते थे.
इंसान तो इंसान, हैवान भी अपने जोड़े के लिए जान ले लेते हैं और जान दे देते हैं.
तालिबानी जेहालत समझती है कि इन बातों को उनके नबी ने जानकर हमें बतलाया.
जाहिलों की जमाअत समझती है कि इंसानों का रोज़ अव्वल,
रसूल की आमद के बाद से शुरू होता है
और क़ुदरत के तमाम इन्केशाफ़ात उनके रसूल ने किया है.
उनको सुक़रात,गौतम, ईसा, कन्फ्यूसेस, ज़ेन, ज़र्तुर्ष्ट और महावीर कोई नज़र ही नहीं आता,
जो मुहम्मद से पहले हो चुके है,
अलावा लाल बुझक्कड़ के.
"और इसी निशानियों में से ये है कि वह तुम्हें बिजली दिख़ता है जिस से डर भी होता है और उम्मीद भी होती है और वह्यि आसमान से पानी बरसता है, फिर उसी से ज़मीन को उस मुर्दा हो जाने के बाद जिंदा कर देता है. इसमें इन लोगों के लिए निशानियाँ हैं जो अक़्ल रखते हैं. और इसी निशानियों में से ये है कि आसमान और ज़मीन उसके हुक्म से क़ायम हैं. फिर जब तुमको पुकार कर ज़मीन से बुलावेगा तो तुम यक बारगी निकल पड़ोगे और जितने आसमान और ज़मीन हैं, सब उसी के ताबे हैं. और वह्यि रोज़े अव्वल पैदा करता है और वह्यि दोबारा पैदा करेगा, और ये इसके नजदीक ज़्यादः आसन है. "
सूरह रूम - 30 (आयत 24-27)
मुसलमानों अल्लाह को बाद में जानो, पहले निज़ामे क़ुदरत को समझो.
पेड़ पौदों की तरह क्या इंसान ज़मीन से उगने शुरू हो जाएँगे?
ज़मीन न मुर्दा होती है न ज़िंदा, पानी ही ज़िदगी है.
बेहतर ये होता कि अल्लाह
एक बार इंसान को पानी की बूँदें की तरह बरसता.
एक बार इंसान को पानी की बूँदें की तरह बरसता.
ये थोडा छोटा झूट होता.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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