शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (28)
>जिसने मन को जीत लिया,
उसके लिए मन सर्व श्रेष्ट मित्र है.
किन्तु जो ऐसा नहीं कर पाया,
उसके लिए मन सब से बड़ा शत्रु है.
**जिसने मन को जीत लिया है,
उसने पहले ही परमात्मा को प्राप्त कर लिया है,
क्योकि उसने शान्ति प्राप्त कर ली है.
ऐसे पुरुष के लिए सुख दुःख, सर्दी गर्मी, मान अपमान एक सामान हैं.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -6 - श्लोक -6 -7
>बहुत अच्छा गीता सन्देश है.
यह विचार इस्लाम के बाग़ी समूह तसव्वुफ़ (सूफ़ी इज़्म) के आस पास है.
इस श्लोक में इन्द्रीय तृप्ति की बात नहीं है, इसलिए यह तसव्वुफ़ के और अरीब है. हर सूफी शादी शुदा रह कर और बीवियों के बख्शे हुए कष्ट को झेल कर ही सूफी बनता है.
एक सूफ़ी की बीवी अपने शौहर के इंतज़ार में आग बगूला हो रही थी कि
दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ आई,
तो देखा सूफी नहीं ,उसका दोस्त खड़ा है.
इतने में सूफी भी लकड़ियों का गठ्ठर जिसे शेर पर लादे हुए और एक सांप बांधे हुए था,
लेकर आया.
बीवी जो लकड़ियों का इंतज़ार खाली हांडी हाथों में लिए कर रही थी,
गुस्से में हांडी को सूफी के सर पर पटख दिया.
हांडी टूट गई मगर उसका अंवठ सूफी के गर्दन में था.
दोस्त ने पूंछा यह क्या ?
सूफी का जवाब था
"शादी का तौक़"
शेर और सांप मेरी लकड़ी ढोते हैं और मैं शादी का तौक़.
उर्दू शायरी इस गीता सन्देश को कुछ इस तरह कहती है - - -
नहंग व् अजदहा व् शेर ए नर मारा तो क्या मारा,
बड़े मूज़ी को मारा, नफ्स ए अम्मारा को गर मारा.
नहंग=घड़ियाल*नफस ए अम्मारा =मन
मन को इतना मार मत, मर जाएँ अरमान,
अरमानों के जाल में, मत दे अपनी जान.
और क़ुरआन कहता है - - -
>क़ुरान की तो अलाप ही जुदा है.
>"तुम लोगों के वास्ते रोजे की शब अपनी बीवियों से मशगूल रहना हलाल कर दिया गया,
क्यूँ कि वह तुम्हारे ओढ़ने बिछोने हैं और तुम उनके ओढ़ने बिछौने हो।
अल्लाह को इस बात की ख़बर थी कि तुम खयानत के गुनाह में अपने आप को मुब्तिला कर रहे थे। खैर अल्लाह ने तुम पर इनायत फ़रमाई और तुम से गुनाह धोया - - -
जिस ज़माने में तुम लोग एत्काफ़ वाले रहो मस्जिदों में ये खुदा वंदी जाब्ते हैं कि उन के नजदीक भी मत जाओ। इसी तरह अल्लाह ताला अपने एह्काम लोगों के वास्ते बयान फरमाया करते हैं इस उम्मीद पर की लोग परहेज़ रक्खें ."
(सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत १८७)
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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