शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (31)
>सारे प्राणियों का उद्गम इन दोनों शक्तियों में है .
इस जगत में जो भी भौतिक तथा आध्यात्मिक है,
उनकी उत्पत्ति तथा प्रलय मुझे ही जानो.
**हे धनञ्जय !
मुझ से श्रेष्ट कोई शक्ति नहीं.
जिस प्रकार मोती धागे में गुंधे रहते हैं,
उसी प्रकार सब कुछ मुझ पर ही आश्रित है.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -7 - श्लोक -6-7
>उफ़ !
हिन्दू समाज के लिए ब्रह्माण्ड से बड़ा झूट ?
कोई शख्स खुद को इस स्वयम्भुवता के साथ पेश कर सकता है ?
तमाम भगवानों, खुदाओं और Gods इस वासुदेव के सपूत से कोसों दूर रह गए. कृष्ण जी जो भी हों, जैसे रहे हों, उनसे मेरा कोई संकेत नहीं.
मेरा सरोकार है तो गीता के रचैता से
कि अतिश्योक्ति की भी कोई सीमा होती है.
चलिए माना कि शायरों और कवियों की कोई सीमा नहीं होती
मगर अदालतों के सामने जाकर अपना सर पीटूं ?
कि ऐसी काव्य संग्रह पर हाथ रखवा कर तू मुजरिमों से हलफ़ उठवाती है ?
ऐसा लगता है जिस किसी ने गीता या क़ुरान को कभी कुछ समाज लिया होगा, वह इनकी झूटी कसमें खाने में कभी देर नहीं करेगा.
क्या गीता और क़ुरान वजह है कि हमारी न्याय व्यवस्था दुन्या में भ्रष्टतम है. भ्रष्ट कौमों में हम नं 1 हैं.
हमारे कानून छूट देते है कि सौ की आबादी वाले देश की आर्थिक अवस्था १०० रुपए हैं , जो न्याय का चक्कर लगते हुए ९० रुपए दस लोगों के पास पहुँच जाए और 10 रुपए ९० के बीच बचें ? जिसका हक एक रुपया होता हो, उसके पास एक पैसा बचे ? वह अगर इस व्यवस्था के खिलाफ आवाज़ उठाए तो उसे देश द्रोही कहा जाए ? नकसली कहकर गोली मार दी जाए ?
और क़ुरआन कहता है - - -
>"यह सब अहकाम मज़्कूरह खुदा वंदी जाब्ते हैं
और जो शख्स अल्लाह और रसूल की पूरी इताअत करेगा
अल्लाह उसको ऐसी बहिश्तों में दाखिल करेगा
जिसके नीचे नहरें जारी होंगी. हमेशा हमेशा उसमें रहेंगे,
यह बड़ी कामयाबी है."
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (८-१३)
यह आयत कुरान में बार बार दोहराई गई है. अरब की भूखी प्यासी सर ज़मीन के किए पानी की नहरें वह भी मकानों के बीचे पुर कशिश हो सकती हैं मगर बाकी दुन्या के लिए यह जन्नत जहन्नम जैसी हो सकती है.
मुहम्मद अल्लाह के पैग़मबर होने का दावा करते हैं और अल्लाह के बन्दों को झूटी लालच देते हैं. अल्लाह के बन्दे इस इक्कीसवीं सदी में इस पर भरोसा करते हैं.
अल्लाह के कानूनी जाब्ते अलग ही हैं कि उसका कोई कानून ही नहीं है.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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