मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अहज़ाब -33 -سورتہ الاحزاب
क़िस्त - 2
पिछली क़िस्त को अगर आप ने ना पढ़ा हो तो पहले उसे पढ़िए ताकि सिलसिला क़ायम रहे.
अल्लाह अपने प्यारे रसूल को मशविरा देता है - - -
"नबी मोमनीन के साथ ख़ुद उनकी नफ़स से भी ज़्यादः तअल्लुक़ रखते हैं और आप की बीवियाँ (नबी की बीवियाँ) उनकी (मोमनीन की )माएँ हैं."
सूरह अहज़ाब - 33 आयत (6)
मुहम्मद मुसलमानों पर जज़बाती और साज़िशी मक्खन लगा कर फ़रमाते हैं कि उनकी तमाम बीवियां मुसलमानों की माँ हैं.
मुहम्मद अपनी बीवियों और मोमनीन से ख़तरा महसूस करते हैं कि कहीं कुछ का कुछ न हो जाए. कहीं कोई बीवी ये न एलान करदे कि मेरा निकाह अर्श पर फलाँ मोमिन से हुवा था जैसे आपका ज़ैनब के साथ हुआ है. अल्लाह ने निकाह पढ़ाया और जिब्रील ने गवाही दी.
जेहादों में मोमनीन को गाजर मूली की तरह कटवाने वाले ज़ालिम अल्लाह के रसूल मोमनीन को अपने नफ़स से भी क़रीब रखने का ढोंग कर रहे हैं.
"आप अपनी बीवियों से कह दीजिए कि अगर दुन्यावी ज़िन्दगी और बहार चाहती हो तो आओ तुमको कुछ माल व मता दे दूं और ख़ूबी के साथ रुख़सत कर दूं. और अगर तुम अल्लाह को चाहती हो और उसके रसूल को चाहती हो और आख़िरत को चाहती हो तो नेक किरदारों के लिए अल्लाह ने उज़्र अज़ीम मुहय्या कर रखा है. ऐ नबी की बीवियों! जो कोई तुम में खुली बेहूदगी करेगी तो उसको दोहरी सज़ा दी जाएगी और ये बात अल्लाह को आसान है."
सूरह अहज़ाब - 33 आयत (28-30)
ज़ैनब की वजेह से घरेलू माहौल ख़राब हो गया था, सूरत यहाँ तक पहुँच गई थी कि मुहम्मद तमाम बीवियों को तलाक देने पर उतार आए थे. दोहरे अज़ाब और दोहरे सवाब के लिए कहते हैं कि
''ये बात अल्लाह को आसान है."
क्यूं कि अल्लाह का अख़्तियार तो वह ख़ुद रखते थे.
''ये बात अल्लाह को आसान है."
क्यूं कि अल्लाह का अख़्तियार तो वह ख़ुद रखते थे.
"और जो कोई तुम में अल्लाह और उसके रसूल की फ़रमा बरदारी करेगी और नेक काम करेगी तो हम उसको इस का सवाब दोहरा देंगे और हम ने उसके लिए एक उम्दा रोज़ी तैयार कर रखी है."
सूरह अहज़ाब - 33 आयत (31)
धमकाने के साथ साथ अपनी बीवियों को समझाते भी हैं कि उनके पेट भरने का इंतज़ाम भी उन्हीं के हाथ में है, कहीं ठिकाना न मिलेगा.
"ऐ नबी की बीवियों! तुम मामूली औरतों की तरह नहीं हो. अगर तक़वा अख़्तियार करो तो बोलने में नज़ाक़त अख़्तियार मत किया करो, इससे शख़्स को ख़याल पैदा होने लगता है, जिसके दिल में ख़राबी है क़ायदे के मुवाफ़िक़ बातें किया करो. और अल्लाह को मंज़ूर है कि ऐ घर वालो! तुम को आलूदी से दूर रखे और तुमको पाक साफ़ रखे और तुम इन आयत को और इस हुक्म को याद रखो जिसका तुम्हारे घर में चर्चा रहता है, बे शक अल्लाह राज़दान है ,पूरा ख़बरदार है."
सूरह अहज़ाब - 33 आयत (32-34)
ख़ुद समाज का और ख़ास कर अपनी बीवियों का मुजरिम ख़ानदानी बरतरी और तक़वा के सबक दे रहा है.
तरीक़े बतलाता है कि तुम अख़लाक़ शिकनी मत किया करो.
गिरावट में लिप्त हुवा ख़ुद साख़्ता रसूल अपनी बीवियों को दर्से-पाकीज़गी दे रहा है. चर्चा उसकी बहू के साथ मुँह काला करने की थी,
उन का मुँह अल्लाह की आयतों से साफ़ करा रहा है.
वह बादशाह बे ताज बन चुका है, उसकी फ़ौजें अतराफ़ के ख़ित्तों पर ज़ुल्म ढाते हुए माले ग़नीमत और जज़्या वसूल रही हैं, जिसका 20% का हिस्सा इसने अपने और अपने अल्लाह के नाम कर रखा है,
लोगों के दिलों पर दहशत क़ायम कर रखा है.
भले ही उनमें उसकी बीवियां ही क्यूं न हो.
अफ़सोस कि मुसलमान ऐसे धूर्त की उम्मत होने में फ़ख्र महसूस करते हैं.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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