मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अहज़ाब -33 -سورتہ الاحزاب
क़िस्त 4
"ऐ नबी! हमने आप के लिए ये बीवियाँ जिनको आप इनके महेर दे चुके हैं, हलाल की हैं और वह औरतें भी जो तुम्हारी ममलूका हैं, जो ग़नीमत में अल्लाह ने आपको दिलवाई हैं. और आप के चचा की बेटियाँ और आपकी फूफी की बेटियाँ और आपके मामूं की बेटियाँ और आप कि ख़ाला की बेटियाँ जिन्हों ने आपके साथ हिजरत की हों और उस मुसलमान औरत को भी जो बग़ैर एवज अपने आपको (पैग़मबर) को देदे, बशर्ते ये कि पैग़मबर इसे क़ुबूल कर लें, हलाह कीं. ये सब आप पर मख़सूस किए गए हैं न कि दीगर मोमनीन पर. हमको वह एहकाम मालूम हैं जो हम ने उन पर, उनकी बीवियों पर और उनकी लोंडियों के बारे में मुक़र्रर किए हैं ताकि आप पर किसी क़िस्म की तंगी न हो. और अल्लाह तअला ग़फूरुर रहीम है. इनमें से आप जब चाहें और जिसको चाहें अपने से दूर या नज़दीक रख सकते है - - - इनके अलावा और औरतें आप पर हलाल नहीं."
सूरह अहज़ाब - 33 आयत (50-52)
शुक्र है कि अय्यार नबी की कोई सगी बहन या भाई नहीं थे वर्ना उसका अल्लाह उसकी बहन भतीजी और भांजी को भी उसके लिए हलाल कर देता, मुसलमानों को भी कोई तन्गी न रह जाती.
ये क़ौम इस बेहूदगी और बद तमीज़ी को अपनी नमाज़ों में दोहराती हैं.
इसकी आँखें तो कोई इसके सर पे हथौड़ा मार कर ही खोल सकता है.
किसी ने मुहम्मद को " रंगीला रसूल" का ख़िताब दिया है,
मैं मुसलमानों को ज़ेहनी झटका नहीं देना चाहता
क्यूँकि मुझे उनसे लगाव है,
मगर उनका इस्लाम से बग़ावत की कोशिश करना चाहता हूँ.
इसी में उनकी बक़ा है और उनकी आबरू भी.
मैं मुसलमानों को ज़ेहनी झटका नहीं देना चाहता
क्यूँकि मुझे उनसे लगाव है,
मगर उनका इस्लाम से बग़ावत की कोशिश करना चाहता हूँ.
इसी में उनकी बक़ा है और उनकी आबरू भी.
मेरा तजज़िया है कि मुहम्मद नाम के आदमी में एक खूँख़ार हैवानियत पेवश्त थी जो इंसानियत की भोले स्वभाव से सर सब्ज़ हुई.
लचक इंसानी तहज़ीब और इंसानों का सबसे बड़ा दुश्मन थी. ';
इंसानियत और तमद्दुन के इर्तेकाई साँचे में ढलते हुए इंसानों को वह अपने क़दमों तले गिडगिडाते हुए देखना चाहता था. हैरत है उसके नंगे-नाच की तस्वीर देखते हुए कोई दानिश्वर मुसलमान अपना मुँह नहीं खोलता.
यही है मुसलमानों की पसपाई की वजेह.
एक रसूल का दीवाना, अहमक़ लिखता है " मुसलमानों को अपने रसूल से इतनी अक़ीदत होनी चाहिए कि आप के जिस्म से (रसूल के जिस्म से) ख़ारिज हुए ख़ून और पेशाब को पी जाने में भी आर नहीं होना चाहिए"
ऐसे दीवानों को रसूल वंशजों का मल-मूत्र खिलाना पिलाना चाहिए.
"ऐ ईमान वालो! नबी के घर में बिना बुलाए हुए मत जाया करो खाने पर बुलाया जाए तो बैठ कर मुन्तज़िर रहा करो बल्कि खाना तैयार हो जाए तो आया करो, बातों में जी लगा कर मत बैठे रहा करो, इस बात से नबी को नागवारी होती है, सो तुम्हारा लिहाज़ करते हैं. अल्लाह साफ़ साफ़ बात करने में कोई लिहाज़ नहीं करता और जब तुम इन से कोई चीज़ माँगो तो परदे के बाहर से. ये बात तुम्हारे और उनके दिलों को पाक रखने का एक उम्दा ज़रीआ है. तुमको जायज़ नहीं कि रसूल को कुलफ़त पहुँचाओ और न ये जायज़ है कि तुम इनके बाद इनसे शादी करो. ये अल्लाह के नज़दीक बहुत भारी बात है."
"पैग़ामबर की बीवियों पर अपने बापों, भाइयों, बेटों, भतीजों, भाँजों, औरतों और न लौडियों पर गुनाह है. बेशक जो लोग अल्लाह और उसके रसूल को ईजः देते हैं, इन पर दुन्या और आख़िरत में लानत करता है. इनके लिए ज़लील करने वाला अज़ाब तैयार रखा है, और जो लोग ईमान रखने वाले मर्दों को और ईमान रखने वाली औरतों को बिना इसके कि उन्हों ने कुछ किया हो, तो वह लोग बोहतान और सरीह गुनाह का बार लेते हैं"
सूरह अहज़ाब - 33 आयत (53-58)
इतने बड़े मज़मूम वाक़ेए के बाद मुहम्मद का ये क़ुरआनी फ़रमान,
ये साबित करता है कि इस्लाम आने के बाद क़ौम अरब किस क़द्र मुर्दा ज़मीर हो गई थी कि ज़िल्लत ए आबरू को गले लगाए हुए थी.
लाखों में कोई एक मर्द बच्चा न था कि इस मुजरिमाना फ़ेल के बाद मुहम्मद का गरेबान पकड़ता और इस क़ुरआन को उनके मुँह पर मार के कोई मुहाज़ खड़ा करता.
सारे के सारे नामर्द सहाबिए कराम इन ग़लाज़त भरी आयातों को अपनी तक़दीर मान चुके थे. डीठ मुहम्मद अपने ही ज़ुमरे में तमाम उन हस्तियों को घसीटते हैं जिन्हों ने इंसानियत के लिए अपनी ज़िंदगियाँ निछावर कर दीं.
सारे के सारे नामर्द सहाबिए कराम इन ग़लाज़त भरी आयातों को अपनी तक़दीर मान चुके थे. डीठ मुहम्मद अपने ही ज़ुमरे में तमाम उन हस्तियों को घसीटते हैं जिन्हों ने इंसानियत के लिए अपनी ज़िंदगियाँ निछावर कर दीं.
मुहम्मद कहना चाहते हैं कि उनके अल्लाह ने उनकी ये बदकारी उनके लिए मुक़र्रर कर दी थी, इस लिए उन पर कोई इलज़ाम नहीं.
समाज के तअने तिशने से वह न घबराए और न डरे, अपनी खाल को और मोटी करते हुए कहते हैं कि डरे तो अल्लाह से डरे, किसी बन्दे से डरने के वह क़ायल नहीं. वह जानते हैं कि अल्लाह नाम की कोई मख़लूक़ नहीं.
समाज के तअने तिशने से वह न घबराए और न डरे, अपनी खाल को और मोटी करते हुए कहते हैं कि डरे तो अल्लाह से डरे, किसी बन्दे से डरने के वह क़ायल नहीं. वह जानते हैं कि अल्लाह नाम की कोई मख़लूक़ नहीं.
मुहम्मद आयत में साफ़ साफ़ कहते हैं कि उनको मालूम था कि
उनकी बहू के साथ ज़िना कारी किसी न किसी दिन पकड़ी जायगी.
बे शर्म रसूल कहता है
उनकी बहू के साथ ज़िना कारी किसी न किसी दिन पकड़ी जायगी.
बे शर्म रसूल कहता है
"हम ने इससे आप का निकाह कर दिया ताकि मुसलमानों को अपने मुँह बोले बेटों की बीवियों से निकाह करने कोई तंगी न रहे."
मुबारक हो मुसलमानों.
क्या कोई मुसलमान इसका फ़ायदा उठा सकता है?
"ऐ पैग़म्बर! अपनी बीवियों, अपनी साहब ज़ादियों और दूसरी मुसलमान बीवियों से कह दीजिए कि नीची कर लिया करें अपने ऊपर थोड़ी सी अपनी चादरें, इससे पहचान हो जाया करेगी तो आज़ार न दी जाया करेंगी, तो अल्लाह बख़्श ने वाला और मेहरबान है. वह लोग जो मदीने में अफ़वाहें उड़ाया करते हैं अगर बअज़ न आए तो हम ज़रूर आप को उन पर मुसल्लत कर देंगे, ये लोग मदीने में बहुत ही कम रहने पाएँगे, वह भी फिट्कारे हुए जहाँ मिलेंगे, पकड़ धाकड़ कर मार धाड़ की जायगी."
ये है पैग़मबरी भाषा, रहमतुलआलमीन की.
कैसा दमन किया है अपनी लग्ज़िशों के बाद अपने हलक़ा ऐ बदोशों का,
और औरत ज़ात का.
सच बोलने वालों पर ज़बान खोलने की पाबन्दी आयद हो गई है.
एक आम और शरीफ़ इंसान मरने से पहले अपनी जवाँ साल बीवी को वसीअत कर जाता है कि मेरी मौत क़रीब है,
मरने के बाद तुम दूसरी शादी कर लेना,
अपनी जवानी मत जलाना.
एक पैग़ामबर को देखिए कि वह कितना तंग दिल है कि तमाम जवान बीवियों पर अपने मरने के बाद शादी हराम कर गया है,
मरने के बाद तुम दूसरी शादी कर लेना,
अपनी जवानी मत जलाना.
एक पैग़ामबर को देखिए कि वह कितना तंग दिल है कि तमाम जवान बीवियों पर अपने मरने के बाद शादी हराम कर गया है,
ये कह कर कि उसकी सारी बीवियाँ तमाम मुसलमानों की मान होंगी.
मुहम्मद की बीवियां "उम्मुल-मोमनीन" हुवा करती हैं.
ख़ुद बेवाओं पर करम फ़रमाते रहे.
बेवाओं से शादी को सवाब कहते रहे.
बेवाओं से शादी को सवाब कहते रहे.
जिन बेवाओं ने बूढ़े रसूल पर अपनी जवानियाँ जलाईं, उ
नको इसने तमाम उम्र बेवा रहने की सज़ा दी.
नको इसने तमाम उम्र बेवा रहने की सज़ा दी.
जब मुहम्मद मरे तो आयशा की उम्र सिर्फ़ अट्ठार साल की थी
जो कि आज की सिने बलूग़त की शुरूआत है.
जो कि आज की सिने बलूग़त की शुरूआत है.
कलामे दीगराँ - - -
"अपने आपको खुशियों से महरूम मत रखो. जो कि तुम्हारे लिए पैदा की गई है. ये तुम्हारा फ़र्ज़ है कि तुम्हारे चेहरे पर आसूदगी और खुशियों के निशान हों."
"बहाउल्लाह"
बहाई मसलक
ये है कलामे पाक
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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