खेद है कि यह वेद है (41)
*हे वायु ! तुम्हारे पास जो हजारों रथ हैं,
उनके द्वारा नियुत गणों के साथ सोमरस पीने के लिए आओ.
*हे वायु नियुतों सहित आओ.
यह दीप्तमान सोम तुम्हारे लिए है.
तुम सोमरस निचोड़ने यजमान के घर जाते हो.
* हे नेता इंद्र और वायु आज नियुतों के साथ गव्य (पंचामृति) मिले सोम पीने के लिए आओ.
द्वतीय मंडल सूक्त 41 (1) (2) (3)
* हजारो रथ पर सवार अकेले इंद्र देव कैसे आ सकते हैं ? वह भी एक जाम पीने के लिए ?? पुजारी देव को परम्परा याद दिलाता है कि
"तुम सोमरस निचोड़ने यजमान के घर जाते हो."
हमारा मक़सद किसी धार्मिक आस्था वान को ठेस पहुचना नहीं है.
उनको जगाना है कि इन मिथ्य परम्पराओं को समझें और जागें.
यह रूकावट बनी हुई हैं इंसान के लिए कि वह वक़्त के साथ क़दम मिला कर चले.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
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