खेद है कि यह वेद है (43)
मेघावी स्तोता सन्मार्ग मार्ग प्राप्त क्कारने के लिए परम बल शाली,
वैश्यानर अग्नि के प्रति यज्ञों में सुन्दर स्तोत्र पढ़ते है.
मरण रहित अग्नि हव्य के द्वारा देवों की सेवा करते हैं.
इसी कारण कोई भी सनातन धर्म रूपी यज्ञों को दूषित नहीं करता.
तृतीय मंडल सूक्त 3 (2)
सुन्दर स्तोत्र वेद में किसी जगह नज़र नहीं आते.
हाँ ! छल कपट से ज़रूर पूरा ऋग वेद पटा हुवा है.
अग्नि हव्य को किस तरह लेकर जाती है कि देवों को खिला सके.
कहाँ बसते हैं ये देव गण ?
यही लुटेरे बाह्मन हिन्दुओं के देव बने बैठे हैं.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
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