हज और कुम्भ
(टेलिविज़न पर आँखों देखा हाल)
मैं हमेशा की तरह निष्पक्ष होकर बयान करता हूँ.
पहले हज का बयान, कि दुन्या भर के लाखों मुसलमान अपने निवास से नहा धो कर और बग़ैर सिला हुवा कफ़नी लिबास धारण करके हज के मैदान में उतरते हैं,जहाँ बीबी हाजरा अपने बेटे के वास्ते पानी तलाश करने के लिए भटकीं,
बेटे के पास आकर देखा तो उसके लिए एक चश्मा फूट चुका था,
जिसे बाद में कुवां बना कर चाह ए ज़मज़म का नाम दिया गया.
मुसलमान हज में इन्ही पहाड़ियों में जाकर हाथ उठाए दुआ मांगते हैं कि
"या अल्लाह मैं हाजुर हूँ."
मैदान में इस आलम को देख कर एक बार अहले दिल अपने आप में खो जाते हैं,
औरत और मर्द बिना किसी ख़याल ए ख़ाम के सिर्फ़ उस पाक हस्ती के याद में गर्क़ हो जाते हैं जो ख़ालिक़ है इस दुन्या का.
हज के दौरान किसी मख़लूक़ पर हिंसा नहीं होती ख़्वाह वह मख्खी या मच्छर हो. हज के और भी दिलकश मनाज़िर भी नज़र आते हैं जो नज़र को ख़ैरा और दिल को बाग़ बाग़ कर देते हैं.
सऊदी सरकार ने हज को फाइव स्टार जैसा बना दिया है.
मैदान को नीचे से एयर कंडीशन कर दिया है,
सफ़ाई का अजीब आलम है,
हाजियों को खजूर और नेमतों का तोहफ़ा क़दम क़दम पर मिलता है.
उन पर गुलाब जल का छिडकाव होता है.
हज से सऊदी अरब को सिर्फ़ भारत से पचास ख़राब (50,00,00,00,00,000/-) का सालाना फ़ायदा होता है , पूरी दुन्या का हिसाब आप खुद लगाएं.
जिसका वह हक़ भी अदा करते हैं.
कुम्भ का हाल अब आप बयान करें - - -
तीन करोर इंसानो की देह मैल गंगा मय्या को परोसते हुए,
तीन हज़ार नंग धुडंग नागा साधू जो इंसानियत को शर्मशार करते हुए दुन्या में देश को नंगा कर देते है .
और बहुत कुछ - --
हिन्दू ख़ुद गवाह बन कर सोचें - - -
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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